सरसों की खेती से होगी धन की बरसात, यहां जानिये वैज्ञानिक उपाय जिससे हो सकती है बंपर पैदावार

Published on: 15-Oct-2022

सरसों (Mustard; sarson) भारत में एक प्रमुख तिलहन की फसल है, इसकी खेती ज्यादातर उत्तर भारत में की जाती है। इसके साथ ही उत्तर भारत में सरसों के तेल का बहुतायत में इस्तेमाल किया जाता है। चूंकि भारत तिलहन का बहुत बड़ा आयातक देश है, इसलिए सरकार भारत में तिलहन के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए हमेशा प्रयासरत रहती है। सरकार ने पिछले कुछ सालों में सरसों के उत्पादन में बढ़ोत्तरी का ज्यादा से ज्यादा प्रयास किया है ताकि भारत को तिलहन उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बनाया जा सके। सरसों की खेती रबी सीजन में की जाती है, इस फसल की खेती में ज्यादा संसाधन नहीं लगते और न ही इसमें ज्यादा सिंचाई की जरुरत होती है। एक आम और छोटा किसान कम संसाधनों के साथ भी सरसों की खेती कर सकता है। लेकिन अगर हम पिछले कुछ समय को देखें तो जलवायु परिवर्तन और मौसम की भीषण मार का असर सरसों की खेती पर भी हुआ है, जिसके कारण उत्पादन में कमी आई है और खेती लागत बढ़ती जा रही है। ऐसे में यदि किसान सरकार द्वारा बताये गए वैज्ञानिक उपायों का इस्तेमाल करते हैं, तो वो इस घाटे की भरपाई आसानी से कर सकते हैं।

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किन-किन राज्यों में होती है सरसों की खेती

भारत में कुछ राज्यों में सरसों की खेती बहुतायत में होती है। इनमें पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और गुजरात का नाम शामिल है। इन राज्यों की जलवायु और मिट्टी सरसों की खेती के अनुकूल है और राज्य के किसान भी खेती करना पसंद करते हैं।

मिट्टी की जांच किस प्रकार से करें

किसी भी फसल की खेती में मिट्टी सबसे महत्वपूर्ण घटक है। इसलिए किसान को चाहिए कि सबसे पहले वह अपने खेत की मिट्टी की प्रयोगशाला में जांच करवायें, ताकि उसे मिट्टी की कमियों, संरचना और इसकी जरूरतों का पता चल सके। मिट्टी की जांच के पश्चात किसानों को इसका रिपोर्ट कार्ड दिया जाता है, जिसे मृदा स्वास्थ्य कार्ड (Soil Health Card) कहते हैं। इसमें मिट्टी के सम्पूर्ण स्वास्थ्य के बारे में सम्पूर्ण जानकारी होती है। कार्ड में दी गई जानकारी के अनुसार ही निश्चित मात्रा में खाद-उर्वरक, बीज और सिंचाई करने की सलाह किसानों को दी जाती है। यह वैज्ञानिक तरीका सरसों की पैदावार को कई गुना तक बढ़ा सकता है।

सरसों की बुवाई

भारत में सरसों की बुवाई प्रारम्भ हो चुकी है। वैसे तो सरसों की बुवाई अक्टूबर से लेकर दिसंबर तक की जा सकती है। लेकिन यदि इस फसल की बुवाई 5 अक्टूबर से लेकर 25 अक्टूबर के मध्य की जाए, तो बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। सरसों की बुवाई करने के पहले खेत को पर्याप्त गहराई तक अच्छी तरह से जुताई करनी चाहिए। इसके बाद हैप्पी सीडर या जीरो टिल बेड प्लांटर के माध्यम से 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सरसों के उन्नत बीजों की बुवाई करनी चाहिए।

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बाजार में उपलब्ध सरसों की उन्नत किस्में

भारतीय बाजार में वैसे तो सरसों की उन्नत किस्मों की लम्बी रेंज उपलब्ध है। लेकिन इन दिनों आरजीएन 229, पूसा सरसों 29, पूसा सरसों 30, सरसों की पीबीआर 357, कोरल पीएसी 437, पीडीजेड 1, एलईएस 54, जीएससी-7 (गोभी सरसों) किस्में को किसान बेहद पसंद कर रहे हैं। इसलिए सरसों के इन किस्मों के बीजों की बाजार में अच्छी खासी मांग है।

सरसों की फसल में सिंचाई किस प्रकार से करें

सरसों वैसे तो विपरीत परिस्तिथियों में उगने वाली फसल है। फिर भी यदि सिंचाई का साधन उपलब्ध है तो इस फसल के लिए 2-3 सिंचाई पर्याप्त होती हैं। इस फसल में पहली बार सिंचाई बुवाई के 35 दिनों बाद की जाती है, इसके बाद यदि जरुरत महसूस हो तो दूसरी सिंचाई पेड़ में दाना लगने के दौरान की जा सकती है। किसानों को इस बात के विशेष ध्यान रखना होगा कि जिस समय सरसों के पेड़ में फूल लगने लगें, उस समय सिंचाई न करें। यह बेहद नुकसानदायक साबित हो सकता है और इसके कारण बाद में किसानों को उम्दा क्वालिटी की सरसों प्राप्त नहीं होगी।

ध्यान देने वाली अन्य चीजें

सरसों की खेती में खरपतवार की समस्या एक बड़ी समस्या है। इससे निपटने के लिए किसानों को खेत की निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। साथ ही यदि खेत में खरपतवार जरुरत से ज्यादा बढ़ गया है, तो किसानों को परपैंडीमेथालीन (30 EC) की एक लीटर मात्रा 400 लीटर पानी में घोलकर खेत में स्प्रे के माध्यम से छिड़कना चाहिए। ऐसा करने से किसानों को खरपतवार से निजात मिलेगी। अगर किसान चाहें तो खेत की जुताई करते समय मिट्टी में खरपतवारनाशी मिला सकते हैं ताकि बाद में परपैंडीमेथालीन के छिड़काव की जरुरत ही न पड़े। सरसों की फसल में माहूं या चेंपा कीट के आक्रमण की संभावना बनी रहती है। ये कीट फसल को पूरी तरह से बर्बाद कर सकते हैं, इनकी रोकथाम के लिए किसान बाजार में उपलब्ध बढ़िया कीटनाशक का छिड़काव कर सकते हैं। यदि किसान सरसों की खेती के साथ मधुमक्खी का पालन करते हैं तो उन्हें रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग से बचना चाहिए। रासायनिक कीटनाशकों की जगह पर वो नीम के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं, इसके लिए 5 मिली लीटर नीम के तेल को 1 लीटर पानी के साथ मिश्रित करें और उसका खेत में छिड़काव करें। ये भी पढ़े: गेहूं के साथ सरसों की खेती, फायदे व नुकसान सरसों की फसल में अच्छी पैदावार के लिए खेत की मेढ़ों पर मधुमक्खी पालन के डिब्बे जरूर रखें। मधुमक्खियां फसल की मित्र कीट होती है, जो पॉलीनेशन में मदद करती हैं, इससे उत्पादन में बढ़ोत्तरी संभव है। इसके साथ ही किसानों को मधुमक्खी पालन से अतिरिक्त आमदनी हो सकती है। सरसों की खेती में कुछ और चीजें ध्यान देने की जरुरत होती है, जैसे- जब सरसों के पेड़ में फलियां लगने लगें तब पेड़ के तने के निचले भाग की पत्तियों को हटा दें, इससे फसल की देखभाल आसानी से हो सकेगी और पूरा का पूरा पोषण पेड़ के ऊपरी भाग को मिलेगा। इसके साथ ही यदि ठंड के कारण फसल में पाला लगने की आशंका हो, तो 250 ग्राम थायोयूरिया को 200 लीटर पानी में घोलकर फसल के ऊपर छिड़काव कर दें। यह वैज्ञानिक उपाय करने के बाद फसल में पाला लगने की संभावना खत्म हो जाएगी।

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