बैंगन की उन्नत खेती कैसे करें - बैंगन की खेती बनी रोज घर पैसा लाने वाली फसल

बैंगन की खेती साल भर दे पैसा

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बैंगन का सब्जियों में प्रमुख स्थान है। यह हर तरह की पर्यावरणीय परिस्थितियों में और साल भर उगाई जाने वाली फसल है। आयुर्वेद के अनुसार यह यकृत समस्याओं को दूर करने में सहायक है। सफेद बैंगन मधुमेह के मरीजों के लिए लाभप्रद रहता है। इसमें विटामिन ए, बी व सी प्रचुर मात्रा में मिलते है । बैंगन की मांग अधिक रहने के कारण किसानों को इसका बाजार भाव ठीक मिल रहा है। इसकी खेती काफी लाभदायक साबित हो रही है । वर्ष 2015-16 में क्षेत्रफल, उत्पादन व उत्पादकता भारत में क्रमश: 663000 हैक्टेयर, 12515000 मैट्रिक टन एवं 18.9 मैट्रिक टन था। इसकी उत्पादकता को बढ़ाने की काफी गुंजाइश है।

किस्में लम्बे फल- पूसा हाईब्रिड़-5 कांटे रहित, औसत वजन 100 ग्राम, औसत पैदावार 500 क्विण्टल/ हैक्टेयर ,अर्का आनन्द (एफ-1) हरे फल, 20-24 सेमी लम्बे, 55-65 ग्राम फल का वजन, 4-5 फल / गुच्छे में, 600-650 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर तक पैदावार, जीवाणु मुरझान प्रतिरोधी। अन्य किस्में काशी कोमल, अर्काशील, अर्का केशव, अर्का निधि, अर्का शिरिश ।

अन्य किस्में-पूसा उपकार, पूसा अंकुर (60-80 ग्राम वजनी छोटे फल), काशी प्रकाश, काशी संदेश (एफ-1)

अण्डाकार फल:-पूसा उत्तम, पूसा बिन्दु (छोटे फल), पूसा अनमोल (एफ-1), अर्का नवनीत (एफ-1, 650 से 700 क्विण्टल / हैक्टेयर तक पैदावार)।

जलवायुः-यह गर्म मौसम की फसल है, बहुत अधिक तापक्रम पर फल विकृत हो जाते हैं और पत्तियां झड़ जाती है। बीजों का अंकुरण 250 सेन्टीग्रेड तापक्रम पर उत्तम होता है।

 

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भूमि एवं तैयारी:-हल्की बुलई से लेकर चिकनी मिट्टी तक में इसकी खेती संभव है। दोमट व बलुई दोमट मिट्टी जिनकी उर्वराशक्ति उत्तम, गहरी तथा जल निकास युक्त मृदाएं उत्तम रहती हैं । बैंगन प्रतिकूल जलवायु के लिए तुलनात्मक रूप से सहनशील पौधा है। अधिक लवणीय व क्षारीय भूमि में खेती संभव है। जमीन को 4-5 बार आडी-तिरछी जुताई व समतलीकरण द्वारा भुरभुरा बनाते हैं।

खाद एवं उर्वरकः- अधिक पोषक तत्वों की माग वाली लम्बी अवधि की फसल है। सड़ी हुई गोबर की खाद 200-250 क्विटंटल / हैक्टेयर भूमि की तैयारी के समय मिलायें। फसल को 100-120 किलो नाइट्रोजन 50-60 किलो फास्फोरस व पोटाष प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता पड़ती है। भूमि की जांच के आधार पर उपलब्ध पोषक तत्वों को ध्यान में रखते हुए बाकी मात्रा दें।

सम्पूर्ण फास्फोरस, पोटाश व आधा नाइट्रोजन रोपाई पूर्व जमीन में मशीन से ऊर कर दें। आधी नाइट्रोजन को तीन बार में रोपाई के 30, 45 व 60 दिन बाद देते हैं। सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे जिंक, लौह, बोरोन की कमी होने पर 1 से 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करना लाभदायक रहता है। पानी में घुलनशील पोषक तत्व जेसें एन.पी.के. (19ः19ः19 प्रतिशत) की 5-10 ग्राम मात्रा प्रतिलीटर रोपाई के 45 व 75 दिन बाद छिड़कने से भी पैदावार बढ़ती है।

फास्फोरस, पोटाष व आधा नाइट्रोजन रोपाई पूर्व जमीन में मशीन से दें। आधी नाइट्रोजन को तीन बार में रोपाई के 30, 45 व 60 दिन बाद देते हैं। सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे जिंक, लौह, बोरोन की कमी होने पर 1 से 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करना लाभदायक रहता है। पानी में घुलनशील पोषक तत्व जेसे एन.पी.के. (19ः19ः19 प्रतिशत) की 5-10 ग्राम मात्रा प्रतिलीटर रोपाई के 45 व 75 दिन बाद छिड़कने से भी पैदावार बढ़ती है।

बुवाई का समय व बीज की मात्राः- मार्च-अप्रैल, जून-जुलाई व अक्टूबर-नवम्बर में व हाइब्रिड किस्मों के लिए 250 ग्राम / हैक्टेयर बीज काफी रहते हैं ।

सिंचाई:-

फूल व फल आते समय व फलों के विकास के लिए समय पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। गर्मियों में 5-7 दिन व सर्दियों में 7 से 12 दिन के अन्तराल पर मिट्टी के प्रकार के अनुसार सिंचाई  की जरूरत नजर आने पर करते हैं। बूंद-बूंद सिंचाई व्यवस्था से भी सिंचाई कर सकते हैं। सर्दियों में कम तापक्राम होने पर सिंचाई अवश्य करें। उसके अलावा गन्धक का अम्ल एक मिली लीटर प्रतिलीटर पानी के साथ छिड़काव करने से पाला या अधिक सर्दी से बचाव होता है।

खरपतवार प्रबन्ध:-

 

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रोपाई करने से पूर्व पेन्डामेथेलीन एक किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हैक्टेयर भूमि में नमी की उपस्थिति में 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई भी करने से भूमि में वायु संचार सही रहता है व जड़ों का विकास भी उत्तम होता है।

पादप वृद्धि नियामक:- नेफ्थीलीन ए​​सीटिक एसिड 10 पी.पी.एम. का फूल आने पर छिड़काव करने से फूल व फल गिरते नहीं हैं। फलों का विकास जल्दी होता है व उत्पादन अधिक होता है।

फलों की तुड़ाई एवं पैदावारः-फलों की तुड़ाई जब फल पूर्ण आकार व रंग चमकदार होने पर करें। तुड़ाई में देरी करने पर फलों का रंग हल्का होता जाता है व बीज सख्त होने लग जाते हैं। पैदावार किस्म व मौसम के अनुसार 300 से 600 क्विण्टल/हैक्टेयर तक मिल जाती है।

बुवाई का समय व बीज की मात्राः- मार्च-अप्रैल, जून-जुलाई व अक्टूबर-नवम्बर में व हाइब्रिड किस्मों के लिए 250 ग्राम / हैक्टेयर बीज काफी रहते हैं ।

 

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