कृषि प्रधान देश में किसानों की उपेक्षा असंभव | [ Krishi pradhan desh mei kisano ki upesha asambhav ]

कृषि प्रधान देश में किसानों की उपेक्षा असंभव

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जिस देश की 80 फीसद आबादी परोक्ष एवं अपरोक्ष रूप से खेती किसानी से जुड़ी हो वहां किसानों की उपेक्षा कोई नहीं कर सकता। वह चाहे दृढ़ इच्छाशक्ति और कठोर निर्णय के आदी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मेादी ही क्यों न हों।आखिरकार प्रधानमंत्री को देशवासियों से क्षमा मांगते हुए कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करनी ही पड़ी। उन्होंने दैवीय शक्त्यिों का आह्वान करते हुए कहा कि हे देवि मुझे इतनी शक्ति दो कि शुभकार्य करने से पीछे न हटूं। उन्होंने स्पष्ट किया कि 29 नवंबर को शुरू हो रहे संसद सत्र में कानून रद्द करने का प्रस्ताव लाया जाएगा।

मोदी सरकार ने कृषि क्षेत्र में कई लाभकारी और अहम फैसले लिए लेकिन कृषि कानूनों को अमल में लाने से उन प्रयासों पर पानी फिर गया। प्रधानमंत्री ने देश के किसानों की छोटी जोत और उससेे जीविका संचालन की दिक्कतों का मार्मिक जिक्र किया लेकिन लंबे समय तक कानून वापसी की मांग पर अड़े किसानों की अनदेखी भी उनसे छिपी नहीं रही । कानून वापसी के आन्देालन में तकरीबन 700 किसानों को जान गंवानी पड़ी। राजनीतिक समीक्षक इसे राजनीक पैतरे बाजी से जोड़ सकते हैं लेकिन यदि कानून वापसी का निर्णय उनके द्वारा लिया गया है तो वह काबिले तारीफ है।

कानून को लागू करने और उसके समर्थन में माहौल बनाने में सरकार ने ऐडी चोटी का जोर लगाया। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सभी संस्थान के निदेशकों ने प्रेस के माध्यम से कानून के फायादे गिनाने का प्रयास किया। पद्मश्री किसानों ने भी ज्यादातर सरकार का पक्ष लिया लेकिन कोई भी मत बहुसंख्यक किसानों की अनदेखी की हुंकार के आगे नहीं टिक पाय। सरकार ने अपने पक्ष में कई किसान संगठनों को भी खड़ा किया लेकिन कहीं न कहीं कानून को जीरो आवर्स लाने जैसे सरकार के निर्णय के चलते उसे विवादास्पद होने के कलंक से मुक्ति नहीं मिल सकी। आन्दोलन चलने के दौरान यह मसला भी भरपूर उठाया गया कि आन्दोलन में पंजाब, हरियाणा के अलावा अन्य राज्यों के किसान नहीं हैं लेकिन किसानों को डिगाने की कोशिशें नाकाम रहीं। यूंतो सरकार कानून को लेकर काफी कुछ समीक्षा कर चुुकी है लेकिन कानून वापसी के निर्णय के बाद भी समीक्षा का दौर जारी रहेगा। बहुसंख्यक किसानों वाले देश में कृषि और किसानों का भरोसे में लिए बगैर किसी ठोस नीति के अमल लाने की कल्पना भविष्य में भी कोई सरकार शयद ही कर पाए।

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कानून रद्द करने की क्या होगी प्रक्रिया

—जिस कानून को रद्द करना होता है उसका एक प्रस्ताव कानून मंत्रालय को भेजा जाता है।
—कानून मंत्रालय सारे कानूनी पहलुओं की जांच परख एवं अध्ययन करता है।
—जिस मंत्रालय से संबंधित कानून होता है वह मंत्रायल उसे वापस लिए जाने संबंधी बिल सदन में पेश करता है।
—बिल पर सदन में बहस और बहस के बाद मतदान कराया जाएगा। कानून वापसी के समर्थन में ज्यादा मत पड़ने पर उसे वापस लिया जाएगा।
—सदन में प्रस्ताव पास होने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी के माध्यम से कानून रद्द करने की अधिसूचना जारी होगी।

संयुक्त किसान मोर्चा ने किया स्वागत

संयुक्त किसान मोर्चा ने तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के प्रधानमंत्री के निर्णय का स्वागत किय है। मोर्चा घोषणा के प्रभावी होने की प्रतीक्षा करेगा। यदि ऐसा होता है तो यह भारत में एक साल के किसान संघर्ष की ऐतिहासिक जीत होगी। बसपा सुप्रीमो मायावती एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि सरकार को यह निर्णय काफी पहले लेना चाहिए था ताकि देश अनेक प्रकार के झगड़ों से बच जाता ।

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