ठण्ड में दुधारू पशुओं की देखभाल कैसे करें [thand mai dudharu pashuon ki dekhbhal kaise karen]

ठण्ड में दुधारू पशुओं की देखभाल कैसे करें

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पशुपालन किसानों का सहायक व्यवसाय है। कृषि में मशीनी युग आने के बाद दुधारू पशुओं के पालन का कार्य किया जा रहा है। इन दुधारू पशुओं के पालने से किसानों को काफी आय प्राप्त होती है। सर्दियों में दुग्ध उत्पादन और पशुओं की सेहत दुरुस्त रखने के लिए कुछ खास इंतजाम करने होते हैं और कुछ सावधानिणं भी बरतनी होतीं हैं। आइये जानते हैं कि किसान भाइयों को कौन-कौन सी सावधानियां बरतनी होतीं हें और कौन कौन से उपाय करने होते हैं।

सर्दियों के आने से पहले ही करें इंतजाम

जिस प्रकार से आम आदमी सर्दियों से बचाव करने के लिए अनेक उपाय करता है उसी प्रकार से किसानों को अपने पशुओं को सर्दी से बचाने का इंतजाम करना होता है। पशुपालक भाइयों को अपने दुधारू पशु गाय, भैंस, बकरी आदि को सर्दी के प्रकोप से बचाने के लिए उनके खाने पीने की खुराक और उनके रहने के स्थान पशुशाला पर विशेष ध्यान देना चाहिये। जिससे वो स्वस्थ रहें और दुग्ध उत्पादन भी कम न हो पाए।

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पशुपालक इस तरह करें पशुओ की देखभाल का प्रबंधन

सर्दियों में पशुओं की तीन प्रकार से देखभाल की जाती है। जो इस प्रकार हैं:-

  1. आवास प्रबंधन
  2. आहार प्रबंधन
  3. स्वास्थ्य प्रबंधन

आवास प्रबंधन

  1. सर्दियों में पशुओं को बर्फीली हवाओं से बचाने के लिए रात के समय खुले में न बांधें। सर्दियों में वर्षा या ओलावृष्टि और धुंध के समय पशुओं को बंद स्थानों पर ही रखें।
  2. पशुओं को बर्फीली हवाओं से बचाने के लिए पशुशाला के रोशनदान, दरवाजों, खिड़कियों को टाट-बोरा से बंद करें । इसके अलावा ज्वार-बाजरा आदि के सूखे पेड़ों की टटिया बनाकर भी इन्हें बंद कर सकते हैं।
  3. पशुशाला में गोबर व मूत्र के निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिये। ताकि वहां पर पानी न भरे और सीलन आदि भी न  हो।
  4. पशुशाला में ऐसी व्यवस्था करें कि सर्दियों के दिन में धूप अधिक से अधिक समय तक रहे। सीलन या नमी से बचाव के उपाय करने चाहिये।
  5. पशुओं को बैठने के लिए पुआल का बिछावन डालें। ताकि पशुओं पर जमीन की नमी का असर न पड़े।
  6. पशुओं को शरीर ढकने के लिए जूट के बोरे की झूल ऐसे पहनाएं ताकि उनके शरीर से खिसके नहीं।
  7. गर्भित पशु का विशेष ध्यान रखें और उसे सर्दियों से बचाने के लिए ढंके हुए स्थान पर बिछावन पर रखें।
  8. बिछावन को समय समय पर बदलते रहें ताकि मूत्र या जमीन की नमी से पशु को सर्दी न लग सके।
  9. रात के समय पशुओं को पशुशाला में रखें और धूप निकलने पर पशुओं को धूप में बांधें। धूप लगने से उनके शरीर का रक्त संचार बढ़ता है, जिससे पशुओं में रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है तथा दुग्ध उत्पादन की वृद्धि में भी मदद मिलती है।

पशुपालक इस तरह करें पशुओ की देखरेख का प्रबंधन

आहार प्रबंधन

सर्दियों में पशुओं को संतुलित आहार देने से जहां पशुओं का स्वास्थ्य अच्छा रहता है, बीमारियों से दूर रहता है। वहीं दुग्ध उत्पादन में भी वृद्धि होती है।

  1. हरे चारे के साथ संतुलित आहार नियमित रूप से कम से कम एक दिन में तीन बार दिया जाना चाहिये।
  2. संतुलित आहार किस प्रकार बनायें: 100 किलो संतुलित आहार बनाने का फार्मूला इस प्रकार है:-
  1. जौ,गेहूं, मक्का, बाजरा व जई का दलिया 26 किलो
  2. सरसों, बिनौला व मूंगफली की खली 40 किलो
  3. चोकर व दाल चूरी 26 किलो
  4. सादा नमक ढेले वाला 6 किलो
  5. खनिज लवण 2 किलो

इन सबको पीस कर अच्छी तरह मिलायें और पशुओं को नियमित रूप से दें।

इस आहार को अपने दुग्ध उत्पादक पशुओं को किस हिसाब से दें। इस बारे में विशेषज्ञों की राय इस प्रकार है :-

  1. ढाई लीटर दूध देने वाली भैंस को एक किलो आहार दें।
  2. तीन लीटर दूध देने वाली गाय को भी एक किलो आहार दें। इसी अनुपात में गायों व भैंसों का आहार बढ़ाते जायें।
  3. इसके अलावा एक से डेढ़ किलो प्रतिलीटर दूध के हिसाब से अतिरिक्त आहार प्रतिदिन देना चाहिये। इससे पशुओं की सर्दी से बचाव में बहुत अधिक मदद मिलती है।
  4. पुष्टाहार के साथ ही पशुओं के पीने के पानी का भी विशेष प्रबंध करना चाहिये। सर्दियों में पोखर, तालाब या टैंक में भरा हुआ बासी पानी पिलाने से बचना चाहिये।
  5. सर्दियों में कम पानी पिलाने से भी पशु के स्वास्थ्य और दुग्ध उत्पादन क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। पशु विशेषज्ञों की राय के अनुसार 24 घंटे में कम से कम 3 बार ताजा व स्वच्छ पानी अवश्य पिलाना चाहिये।

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शिशुओं व गर्भित पशुओं के लिए बरतें सावधानियां

  1. नवजात शिशुओं को खीस जरूर पिलाएं, इससे उनका इम्यून सिस्टम तगड़ा होता है और वे बीमार नहीं पड़ते हैं। 12 घंटे में कम से कम तीन बार खीस पिलाएं।
  2. ब्याने वाले पशुओं को गुनगुना पानी दें, ठंडा पानी देने से बचें।
  3. पशु के शिशुओं को सूखा चारा दें, धूप-छांव की व्यवस्था में विशेष देखभाल करें।

स्वास्थ्य प्रबंधन

पशुओं को सर्दियों से बचाने के लिए स्वास्थ्य का प्रबंधन सबसे महत्वपूर्ण है। सर्दियों के आने से पहले पशुओं के आवास व खान-पान की व्यवस्था अच्छी कर लेनी चाहिये।

  1. सबसे अधिक देखभाल पशुओं के शिशुओं की करनी होती है।
  2. शिशुओं की देखभाल गर्भकाल से ही करें तो उत्तम होगा। ब्याने से पहले गाय व •भैंस को ए, डी, ई विटामिन का इंजेक्शन लगवाना चाहिये।
  3. ब्याने के बाद बच्चे की नाल को 4 इंच काट कर उसे रोगरोधक दवा से धो देना चाहिये तथा इस तरह 4 दिन तक साफ सफाई करते रहना चाहिये ताकि पक न पावे और घाव न बने।
  4. ब्याने के बाद बच्चे की मालिश करके उसकी मां के सामने चाटने के लिए रखें।
  5. शिशु को तत्काल खीस पिलाना चाहिये। उसके खड़े होने का इंतजार नहीं करना चाहिये। 12 घंटे में दो से तीन बाद खीस पिलायें।
  6. सर्दी से जैसे आप अपने शिशु को बचाते हैं उसी प्रकार इन शिशुओं को खास कर छह माह के शिशुओं का विशेष ध्यान रखें वरना उन्हें निमोनिया हो सकता है।
  7. दस दिन बाद पशुओं के शिशुओं को पेट के कीड़े मारने वाली दवा दें तथा उनके खान पान में दूध के अलावा अन्य चीजें शामिल करें।
  8. इसी तरह स्वस्थ पशुओं की सर्दियों में देखभाल करें। कंपकपी आने पर सतर्क हो जायें तथा चिकित्सक से सम्पर्क करें और उपचार करायें क्योंकि ये बुखार आने के लक्षण होते हैं। लापरवाही करने से निमोनिया तक हो सकता है।
  9. पशुओं को सर्दी से बचाने के लिए शाम के समय पशुशाला में अलाव जलायें। अलाव जलाते समय विशेष सावधानी बरतें। अलाव ऐसे स्थान पर जलायें जो पशु की पहुंच से दूर हो। इसके लिए पशु की रस्सी छोटी रखें।
  1. पशुओं को सर्दी लगने से पशुपालकों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
  2. पशुओं को एक बार सर्दी लगने से पशुपालकों को दोहरा नुकसान उठाना पड़ता है। एक तो उसका दुग्ध उत्पादन प्रभावित होता है। दूसरा उसके स्वास्थ्य खराब होने के कारण उसके इलाज में पैसा खर्च करना पड़ता है।
  3. गाय-भैंस और बकरी के छोटे बच्चों पर सर्दी का सबसे अधिक असर होता है। इनके प्रति जरा सी लापरवाही भारी पड़ सकती है। इनका बचाव विशेष रूप से करें
  4. कई बार पशुओं के बच्चे सर्दी की चपेट में आने से निमोनिया रोग के शिकार हो जाते है उनको बचाना भी मुश्किल हो जाता है।

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