भारत में दुग्ध उत्पादन के लिए कई उन्नत नस्लों की गायें पाई जाती हैं, जिनका विकास प्राकृतिक रूप से जलवायु, भौगोलिक परिस्थितियों और स्थानीय पालन पद्धतियों के आधार पर हुआ है।
प्रत्येक नस्ल की अपनी विशेषता, दूध देने की क्षमता, शरीर की बनावट और अनुकूलन क्षमता होती है। नीचे भारत की तीन प्रमुख दुग्ध नस्लों – गिर, साहीवाल और हरियाणा – का विस्तृत विवरण दिया गया है।
गिर गाय की पहचान उसकी अनोखी त्वचा के रंग और शरीर की बनावट से की जाती है। इसका शरीर आमतौर पर सफेद रंग का होता है, जिस पर चॉकलेट ब्राउन, लाल या कभी-कभी काले रंग के धब्बे मौजूद रहते हैं।
गाय के कान लंबे और ढीले होते हैं, जो आगे की ओर लटकते हुए दिखाई देते हैं। इसके सींग अर्धचंद्राकार आकार के होते हैं, जो इसे एक सुंदर और विशिष्ट रूप प्रदान करते हैं।
गिर गाय अपनी शांत स्वभाव, कठोर जलवायु में जीवित रहने की क्षमता और जलवायु परिवर्तन के प्रति उच्च सहनशीलता के लिए जानी जाती है। यह नस्ल रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी काफी मजबूत होती है।
दूध उत्पादन: सामान्य परिस्थितियों में एक गिर गाय से 1200 से 2200 किलोग्राम (प्रति दुग्धावधि) दूध प्राप्त होता है। कुछ उन्नत प्रबंधन और बेहतर पोषण के साथ यह उत्पादन और भी बढ़ सकता है।
साहीवाल गाय का रंग हल्का ईंट-लाल से लेकर पीला लाल होता है और कभी-कभी शरीर पर छोटे सफेद धब्बे भी दिखाई देते हैं।
यह नस्ल भारत और दक्षिण एशिया की सबसे अधिक दूध देने वाली शुद्ध भारतीय नस्ल मानी जाती है। यह गर्मी और उष्णकटिबंधीय जलवायु में भी उत्कृष्ट रूप से दूध उत्पादन बनाए रखने में सक्षम है, जो इसे अन्य विदेशी नस्लों से बेहतर बनाता है।
दूध उत्पादन: साहीवाल गाय औसतन 1600 से 3500 किलोग्राम दूध एक दुग्धावधि में देती है, और कई उन्नत प्रजनन केंद्रों में इसका उत्पादन इससे भी अधिक दर्ज किया गया है। साहीवाल का दूध वसा (Fat) में उच्च होता है, जो घी बनाने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।
गिर, साहीवाल और हरियाणा नस्लें भारतीय जलवायु और कृषि पद्धतियों के अनुरूप विकसित शुद्ध देसी नस्लें हैं। इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये कठोर जलवायु, रोगों और कम पोषण वाले वातावरण में भी अच्छे से जीवित रहकर किसान को स्थायी दूध उत्पादन का लाभ दे सकती हैं। इसके अतिरिक्त इनका दूध स्वास्थ्यवर्धक और वसायुक्त होता है, जो घी और दुग्ध उत्पादों के लिए अत्यंत उपयोगी माना जाता है।