भेड़ पालन भारत में एक पारंपरिक, भरोसेमंद और लाभकारी पशुपालन व्यवसाय माना जाता है। यह व्यवसाय मुख्य रूप से ऊन और मांस उत्पादन के लिए किया जाता है, जबकि कुछ क्षेत्रों में सीमित मात्रा में दूध का उपयोग भी होता है। भेड़ ऊन प्राप्त करने का सबसे प्रमुख और विश्वसनीय स्रोत हैं, इसलिए ऊनी वस्त्र उद्योग में इनका विशेष महत्व है।
कम निवेश, अपेक्षाकृत सरल प्रबंधन, कम रख-रखाव और प्राकृतिक चरागाहों पर आसानी से पालन हो जाने के कारण भेड़ पालन छोटे, सीमांत और संसाधन-सीमित किसानों के लिए भी उपयुक्त व्यवसाय है। सही योजना और नस्ल चयन के साथ यह नियमित आय का अच्छा साधन बन सकता है।
हालांकि, भेड़ पालन में वास्तविक सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि किसान अपने क्षेत्र की जलवायु, उपलब्ध चारा, पानी की स्थिति और बाजार की मांग के अनुसार सही नस्ल का चयन करें। भारत में भेड़ों की कई उन्नत और स्थानीय नस्लें पाई जाती हैं, जिनमें ऊन की गुणवत्ता, शरीर का वजन, रोग सहनशीलता और उत्पादन क्षमता के आधार पर काफी अंतर होता है।
नीचे गद्दी, दक्कनी, मांड्या, नेल्लोर और मारवाड़ी भेड़ नस्लों की विशेषताओं का विस्तृत विवरण दिया गया है, जिससे किसान अपने लिए उपयुक्त नस्ल चुन सकें।
गद्दी नस्ल की भेड़ें मुख्य रूप से जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी एवं ठंडे क्षेत्रों में पाई जाती हैं। यह नस्ल आकार में अपेक्षाकृत छोटी होती है, लेकिन कठोर ठंड और ऊंचाई वाले इलाकों में भी आसानी से जीवित रहने की क्षमता रखती है।
गद्दी नस्ल का प्रमुख उद्देश्य ऊन उत्पादन है। नर भेड़ों में मजबूत सींग पाए जाते हैं, जबकि मादा भेड़ें सामान्यतः सींग रहित होती हैं। इनका ऊन सफेद, चमकदार और मध्यम गुणवत्ता का होता है, जिसकी बाजार में स्थिर मांग बनी रहती है।
एक गद्दी भेड़ से औसतन 1.0 से 1.2 किलोग्राम ऊन प्रतिवर्ष प्राप्त हो जाता है। आमतौर पर वर्ष में 2 से 3 बार ऊन की कटाई की जाती है। पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों के लिए यह नस्ल विशेष रूप से उपयोगी और लाभकारी मानी जाती है।
दक्कनी भेड़ें भारत की प्रमुख ऊन उत्पादक नस्लों में गिनी जाती हैं। यह नस्ल आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे गर्म और शुष्क क्षेत्रों में अधिक पाई जाती है। इन क्षेत्रों की जलवायु के अनुसार यह नस्ल अच्छी तरह अनुकूलित हो चुकी है।
दक्कनी भेड़ों का रंग सामान्यतः काला या गहरा भूरा होता है। इनसे ऊन का उत्पादन मात्रा में अधिक होता है, हालांकि गुणवत्ता अपेक्षाकृत मोटी होती है। प्रति भेड़ लगभग 4 से 5 किलोग्राम ऊन प्रतिवर्ष प्राप्त किया जा सकता है।
इस नस्ल का ऊन बालों और रेशों के मिश्रण से बना होता है, जिसका उपयोग मुख्यतः मोटे कंबल, दरी और कालीन बनाने में किया जाता है। कठिन जलवायु में भी टिके रहने की क्षमता इसे किसानों के लिए उपयोगी बनाती है।
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मांड्या नस्ल मुख्य रूप से कर्नाटक के मांड्या जिले और आसपास के क्षेत्रों में पाई जाती है। यह एक छोटी कद-काठी वाली नस्ल है, लेकिन मांस उत्पादन के लिए काफी लोकप्रिय है।
इस नस्ल की भेड़ों का रंग प्रायः सफेद होता है, जबकि कभी-कभी चेहरे पर हल्का भूरा रंग भी दिखाई देता है। नर भेड़ का औसत वजन लगभग 30–35 किलोग्राम तथा मादा भेड़ का वजन 22–25 किलोग्राम के बीच होता है।
मांड्या भेड़ों से ऊन की मात्रा कम प्राप्त होती है, लेकिन मांस की गुणवत्ता अच्छी मानी जाती है। कम चारे में पलने और स्थानीय परिस्थितियों में जल्दी ढल जाने की क्षमता के कारण यह नस्ल किसानों के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी साबित होती है।
नेल्लोर नस्ल को भारत की सबसे लंबी कद-काठी वाली भेड़ नस्ल माना जाता है। यह मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के क्षेत्रों में पाई जाती है और मांस उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
इस नस्ल के शरीर पर ऊन लगभग नहीं के बराबर होता है, बल्कि छोटे और घने बाल पाए जाते हैं। बनावट में यह कुछ हद तक बकरी जैसी दिखाई देती है। इसके कान लंबे और झुके हुए होते हैं तथा चेहरा भी लंबा होता है।
नर नेल्लोर भेड़ का औसत वजन लगभग 36–38 किलोग्राम और मादा का वजन 28–30 किलोग्राम तक होता है। अधिकतर भेड़ें लाल रंग की होती हैं, इसी कारण इसे “नेल्लोर रेड” भी कहा जाता है। तेजी से बढ़ने की क्षमता के कारण यह नस्ल व्यावसायिक मांस उत्पादन के लिए उपयुक्त है।
मारवाड़ी भेड़ें राजस्थान की प्रमुख नस्लों में से एक हैं और शुष्क, अर्ध-रेगिस्तानी क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त मानी जाती हैं। यह नस्ल मुख्य रूप से जोधपुर, जयपुर के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में भी पाई जाती है।
मारवाड़ी भेड़ों का चेहरा काला और नाक उभरी हुई होती है। इनके पैर लंबे और मजबूत होते हैं, जबकि पूंछ छोटी और नुकीली होती है। यह नस्ल कठोर जलवायु, कम पानी और सीमित चारे में भी जीवित रहने में सक्षम होती है।
इनका ऊन मध्यम गुणवत्ता का होता है, जबकि मांस की बाजार में अच्छी मांग रहती है। कठिन परिस्थितियों में भी अच्छा उत्पादन देने की क्षमता इसे शुष्क क्षेत्रों के किसानों के लिए आदर्श बनाती है।
भेड़ पालन से पहले कुछ महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है। सबसे पहले अपने क्षेत्र की जलवायु और उपलब्ध संसाधनों के अनुसार नस्ल का चयन करें। ऊन या मांस, जिस उद्देश्य से पालन करना हो, उसी के अनुसार नस्ल चुनना लाभकारी रहता है।
इसके साथ ही टीकाकरण, कृमिनाशक दवाओं और रोग नियंत्रण पर विशेष ध्यान देना चाहिए, ताकि झुंड स्वस्थ बना रहे। पर्याप्त चरागाह, संतुलित आहार और साफ पानी की नियमित उपलब्धता सुनिश्चित करें।
अंत में, स्थानीय बाजार में ऊन और मांस की मांग को समझकर उत्पादन की योजना बनाएं। सही नस्ल, उचित प्रबंधन और बाजार की जानकारी के साथ भेड़ पालन एक स्थायी और लाभदायक व्यवसाय साबित हो सकता है।
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