डेयरी पशुओं में हरे चारे का महत्व

By: MeriKheti
Published on: 14-Jan-2020
डेयरी पशुओं में हरे चारे का महत्व
पशुपालन पशुपालन गाय-भैंस पालन

पशुपालन पर होने वाली कुल लागत का लगभग 60 प्रतिशत व्यय पशु आहार पर होता है। इसलिए पशुपालन व्यवसाय की सफलता प्रमुख रूप से पशु आहार पर होने वाले खर्च पर निर्भर करती है। पशु आहार में स्थानीय रूप से उपलब्ध पशु आहार के घटकों एवं हरे चारे का प्रयोग करने से पशु आहार की लागत को कम किया जा सकता है, और पशुपालन व्यवसाय से अधिकाधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। शारीरिक विकास, प्रजनन तथा दूध उत्पादन हेतु आवश्यक पोषक तत्वों को सही मात्रा एवं उचित अनुपात में देना अत्यन्त आवश्यक है। भारतवर्श में पशुओं का पोषण प्रमुख रूप में कृषि उपज तथा फसलों के चक्र पर निर्भर करता है। हरा चारा पशु आहार का एक अभिन्न अंग है। 

हरा चारा पशुओं के लिए सस्ते प्रोटीन व शक्ति का मुख्य स्रोत है तथा दो दलहनी चारे की फसलों से प्राप्त, दाने से प्राप्त प्रोटीन दाने से सस्ती होती है। कम लागत में दुधारू पशुओं को पौष्टिक तत्व प्रदान करने के लिए हरा चारा पशुओं को खिलाना जरूरी हो जाता है। दाना मिश्रण के अलावा संतुलित आहार हेतु चारे की पौष्टिकता का अलग महत्व है, अतः हमें चारे की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए। जहाँ हम हरे चारे से पशुओं के स्वास्थय एवं उत्पादन ठीक रख सकते हैं वहीं दाना व अन्य कीमत खाद्यान की मात्रा को कम करके पशु आहार की लागत में भी बचत कर सकते हैं। 

 पशुओं में हरे चारे का होना अत्यंत आवश्यक है। यदि किसान चाहते हैं कि उनके पशु स्वस्थ्य रहें व उनसे दूध एवं मांस का अधिक उत्पादन मिले तो उनके आहार में वर्ष भर हरे चारे को शामिल करना चांहिये। मुलायम व स्वादिष्ट होने के साथ-साथ हरे चारे सुपाच्य भी होते हैं। इसके अतिरिक्त इनमें विभिन्न पौष्टिक तत्व पर्याप्त मात्रा में होते हैं। जिनसे पशुओं की दूध देने की क्षमता बढ़ जाती है और खेती में काम करने वाले पशुओं की कार्यशक्ति भी बढ़ती है। दाने की अपेक्षा हरे चारे से पौष्टिक तत्व कम खर्च पर मिल सकते हैं। हरे चारे से पशुओं को विटामिन ए का मुख्य तत्व केरोटिन काफी मात्रा में मिल जाता है। हरे चारे के अभाव में पशुओं को विटामिन ए प्राप्त नहीं हो सकेगा और इससे दूध उत्पादन में भारी कमी आ जाएगी, साथ ही पशु विभिन्न रोगों से भी ग्रस्त हो जायेगा। 

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 गाय व भैंस से प्राप्त बच्चे या तो मृत होंगे या वे अंधे हो जायेंगे और अधिक समय तक जीवित भी नहीं रह सकेंगे। इस प्रकार आप देखते हैं कि पशु आहार में हरे चारे का होना कितना आवश्यक है। साधारणतः किसान भाई अपने पशुओं को वर्ष के कुछ ही महीनों में हरा चारा खिला पते हैं इसका मुख्य कारण यह है कि साल भर हरा चारा पैदा नहीं कर पाते। आमतौर पर उगाये जाने वाले मौसमी चारे मक्का, एम. पी. चरी, ज्वार, बाजरा, लोबिया, ग्वार, बरसीम, जई आदि से सभी किसान भाई परिचित हैं। इस प्रकार के अधिक उपज वाले पौष्टिक उन्नतशील चारों के बीज़ पशुपालन विभाग व राष्ट्रीय बीज निगम द्वारा किसानों को उपलब्ध कराए जाते है जिससे वह अपने कृषि फसल चक्र के अंदर अधिक से अधिक इनका उपयोग करके फायदा उठा सकते हैं जिससे अधिक से अधिक पशुओं के पोषण की पूर्ति हो सके और दूध एवं मांस उत्पादन की ब्रधि में सहायता मिले। 

हरे चारे का महत्व

 

 चारा स्वादिश्ट, रसदार, सुपाच्य तथा दुर्गन्ध रहित होने चाहिए। चारे की फसल थोड़े समय में तैयार होने वाली, अधिक पैदावार देने वाली, कई कटाई वाली होनी चाहिए। फसलों में जल्दी फुटवार होनी चाहिए फसल साइलेज बनाने के लिए उपयुक्त होनी चाहिए तथा जहरीलें पदार्थ रहित होनी चाहिए। हरे चारे की नस्ल कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाने योग्य होनी चाहिऐ।

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हरे चारे की मुख्य फसलें

 

 हरे चारे की दो दाल वाली फसलों में मुख्यतः वार्शिक फसल रबी में बरसीम, खरीफ में लोबिया, ग्वार तथा एक दाल वाली फसलों में रबी में जई, सर्दियों की मक्का, खरीफ में मक्का, ज्वार, बाजरा, चरी आदि हैं। तिलहन में सरसों तथा बहुवर्शीय दलहनी फसलों में रिजका, स्टाइलो, राईस बीन आदि, घासों में हाथी, पैरा, गिन्नी, दीनानाथ, मीठा सुडान, रोड, नन्दी, राई, घास आदि मुख्य चारे की घासें हैं। साल में दो बार हरे चारे की तंगी के अवसर आते हैं।

 ये अवसर है- अप्रैल, जून (मानसून प्रारम्भ होने से पहले) तथा नबम्बर, दिसम्बर (मानसून खत्म होने के बाद) जबकि पशुओं में साल भर हरे चारे की जरूरत पड़ती है। चारे उगाने की उचित वैज्ञानिक तकनीक अपना कर पर्याप्त मात्रा में हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है। अच्छे उत्पादन के विभिन्न फसल चक्र का चुनाव वहाॅं की जलवायु अथवा मिट्टी की संरचना पर आधारित है। उत्तर में रबी के मौसम में बरसीम, जई, सेंजी, मेथा आदि फसलें आसानी से उगाई जा सकती हैं। दक्षिणी इलाकों में जहां सामान्यतः तापमान 12-15 से. ग्रे. से नीचे नहीं आता ऐसे इलाकों में ज्वार, मक्का, स्टाइलो, बाजरा, हाथी घास, गिनी घास, पैरा घास व चरी आदि उगाये जा सकते हैं। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में कम पानी की आवश्यकता वाली फसलें जैसे सूडान घास, ज्वार, अंजन, ब्ल्यू पैनिक आदि उगाना उत्तम रहता है। हरे चारे हेतु उपयोगी फसलें नीचे दी हुई है।

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