जानिये कैसे करें जौ की बुआई और देखभाल

By: MeriKheti
Published on: 11-Nov-2021

जौ रबी सीजन की प्रमुख फसल है। जौ का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाओं, धार्मिक कार्यों, बेकरी, वाइन, पेपर, फाइबर पेपर, फाइबर बोर्ड जैसे उद्योग में  किया जाता है। इसके अलावा इसका प्रयोग पशु आहार व चारे में भी किया जाता है। इसलिये जौ की खेती करना अब फायदे का सौदा है।आइये जानते हैं कि जौ की बुआई किस प्रकार की जाती है और बुआई के बाद फसल की देखभाल कैसे  की जाती है।

कैसे की जाती है जौ की बुआई

समशीतोष्ण जलवायु वाले क्षेत्र की बलुई, बलुई दोमट के अलावा क्षारीय व लवणीय भूमि में भी जौ की खेती की जा सकती है। दोमट मिट्टी को जौ की खेती की लिए सबसे उत्तम माना जाता है। जौ की बुआई 25-30 डिग्री सेंटीग्रेट के तापमान में की जाती है। जलभराव वाले खेतों में जौ की खेती नहीं की जा सकती है। जौ की बुआई करने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार किया जाता है। सबसे पहले हैरों से खेत की जुताई करें और उसके बाद  क्रास जुताई दो बार करनी चाहिये। इसके बाद पाटा लगाकर मिट्टी की भुरभुरी बनानी चाहिये। इसके बाद क्यूनालफॉस या मिभाइल पैराथियोन चूर्ण का छिड़काव करना चाहिये। नवम्बर और दिसम्बर के महीने में पलेवा करके बुआई करनी चाहिये। बुआई करते समय किसान भाइयों को ये बात ध्यान रखनी होगी कि लाइन से लाइन की दूरी एक से डेढ़ फुट की होनी चाहिये। प्रति हेक्टेयर के लिए जौ का बीज 100 किग्रा बुआई के लिए चाहिये। देरी से बुआई करने पर किसान भाइयों को सावधानी बरतनी होती है। बीज की मात्रा 25 प्रतिशत बढ़ानी होती  है तथा लाइन से लाइन की दूरी भी अधिक रखनी पड़ती है।

ये भी पढ़ें: 
जानिए चने की बुआई और देखभाल कैसे करें

जौ की बुआई के बाद फसल की देखभाल ऐसे करें

जौ की बुआई करने के बाद अच्छी फसल लेने के लिये किसान भाइयों को खेत की हमेशा निगरानी करना चाहिये।साथ ही समय-समय पर सिंचाई, खाद का छिड़काव, रोग नाशक व कीटनाशकों का उपयोग करना होता है।आइये जानते हैं कि कब किस चीज की खेती के लिए जरूरत होती है।

बुआई के बाद सबसे पहले क्या करें

जौ की फसल को अच्छी पैदावार के लिए बुआई के बाद सबसे पहले खरपतवार नियंत्रण के उपाय करने चाहिये। इसके लिए किसान भाइयों को फसल की बुआई के दो दिन बाद 3.30 लीटर पैन्डीमैथालीन को 500 से 600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिये।  इसके बाद 30 से 40 दिनों की फसल हो जाये तो एक  बाद खरपतवार का प्रबंधन करना चाहिये।  उसके बाद 2,4 डी 72 ईसवी एक लीटर को 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कना चाहिये। यदि खेत में फ्लेरिस माइनर नाम का खरपतवार का प्रकोप अधिक दिखाई दे तो पहली  बार सिंचाई करने के बाद आईसोप्रोटूरोन  1.5 किलो को 500 लीटर में मिलाकर छिड़कने से लाभ मिलता है।

सिंचाई का प्रबंधन करें

जौ की अच्छी पैदावार के लिए किसान भाइयों को कम से कम 5 सिंचाई करना चाहिये। किसान भाइयों को खेत की निगरानी करें और खेत की कंडीशन देखने के बाद सिंचाई का प्रबंधन करना चाहिये। पहली सिंचाई बुआई के 30 दिनों बाद करना चाहिये। इस समय पौधों की जड़ो का विकास होता है।  दूसरी बार सिंचाई करने से पौधे मजबूत होते हैं और यह सिंचाई पहली सिंचाई के 10 से 15 दिन बाद करनी चाहिये। तीसरी सिंचाई फूल आने के समय करनी चाहिये।

खाद एवं उर्वरक का प्रबंधन करें

जो किसान भाई जौ की अच्छी फसल लेना चाहते हैं तो उन्हें खाद एवं उर्वरकों का समयानुसार उपयोग करना होगा। वैसे जौ की सिंचित व असिंचित फसल के हिसाब से खाद एवं उर्वरकों की व्यवस्था करनी होती है।
  1. सिंचित फसल: इस तरह की फसल के लिये किसान भाइयों को 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस और 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर के लिए जरूरत होती है।
  2. असिंचित फसल: इस तरह की फसल के लिए किसान भाइयों को चाहिये कि प्रति हेक्टेयर 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस और 30 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है।
  3. किसान भाइयों को खाद एवं उर्वरक का प्रबंधन बुआई से पहले ही शुरू हो जाती है। बुआई से पहले प्रति हेक्टेयर 7 से 10 टन गोबर या कम्पोस्ट की खाद डालनी चाहिये।  इसके साथ सिंचित क्षेत्रों के लिए फास्फोरस व पोटाश 40-40 किलो खेत में डाल देनी चाहिये तथा 20 किलो नाइट्रोजन का इस्तेमाल करना चाहिये।
  4. असिंचित क्षेत्र में  पूरा 40 किलो नाइट्रोजन, 30 किलो फॉस्फोरस व 30 किलो पोटाश का इस्तेमाल बुआई के समय ही करना होगा।  इसके बाद पहली सिंचाई के बाद नाइट्रोजन की बची हुी मात्रा को डालना चाहिये।  इससे पौधों की बढ़वार तेजी  से होती है।  इससे पैदावार बढ़ने में भी मदद मिलती है।

रोग की रोकथाम करना चाहिये

जौ की फसल में अनेक रोग भी समय-समय पर लगते हैं।  जिनसे फसलें प्रभावित होतीं  हैं।  इसलिये किसान भाइयों को इन रोगों से फसल को बचाने के लिए अनेक उपाय करने चाहिये। 1. पत्तों का रतुआ या भूरा रोग: नारगी रंग के धब्बों वाला यह रोक जौ के पौधों की पत्तों व डंठलों पर दिखाई देता है। बाद में यह धब्बे काले रंग में तबदील हो जाते हैं। फरवरी माह के आसपास दिखाई देने वाला यह रोग तब तक बढ़ता रहता है जब तक फसल हरी होती है। इस रोग के दिखने के बाद किसान भाइयों को फसल पर 800 ग्राम डाईथेन एम-45 या डाईथेन जेड-78 को 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें। पहली बार में बीमारी समाप्त न हो तो 15 दिन में दूसरी बार इसी घोल का छिड़काव करें। जरूरत पड़ने पर तीसरी बार भी छिड़काव करना चाहिये। 2.धारीदार पत्तों का रोग: इस रोग में जौ के पौधों के पत्तियों पर लम्बी व गहरी भूरी रंग की लाइनें पड़ जातीं हैं,  या जालाीनुमा पत्तियां दिखतीं हैं।  रोग का प्रकोप बढ़ने पर पत्ते झुलस जाते हैं । इस रोग की शुरुआत जनवरी के अंत में होती है।  इस रोग के दिखते ही किसान भाइयों को चाहिये कि  600 डाइथेन-45 को 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ एक से दो बार तक छिड़काव करें। 3.पीला रतुआ: जौ के पौधों पर पीले रंग के  धब्बे कतारों में दिखने लगते हैं। कभी कभी ये धब्बे डंठलों पर भी दिखते हैं। इस रोग के बढ़ने से बालियां भी रोगी हो जाती हैं। यह रोग जनवरी के  पहले पखवाड़े में नजर आने  लगता है।  इससे दाने कमजोर हो जाते हैं। इस रोग के दिखने पर किसान भाइयों को डाइथैन एम-45 या डाईथेन जेड-78 के घोल का छिड़काव करना चाहिये। 4. बंद कांगियारी व खुली कांगियारी: यह रोग बीजों की नस्ल से जुड़ा होता है। इस रोग से बालियों में दानों की जगह भूरा या काला चूर्ण बन जाता है। यह चूर्ण पूरी तरह से झिल्ली से ढका होता है। इन दोनों रोगों से बचाव के लिए रोगरहित बीज का इस्तेमाल करना चाहिये या रोगरोधी किस्म के बीजों का इस्तेमाल करना चाहिये।

कीट एवं नियंत्रण

1.माहू कीट: माहू कीट जौ की पत्ती पर पाई जाती है। इससे पौधे कमजोर हो जाते हैं। बालियां नहीं  निकल पातीं हें । दाने मर जाते हैं। कीट दिखने पर पत्तियों को तोड़कर जला देना चाहिये। नाइट्रोजन खाद के  इस्तेमाल से बचना चाहिये। मैलाथियान 50 ईसी का या डाइमेथेएट 30 ईसी या मेटासिस्टॉक्स 25 ईसी का घोल छिड़कें। 2.अगर लेटीबग बीटल जैसे कीट दिखाई दें तो नीम अर्क 10 लीटर को 500 लीटर में मिलाकर छिड़काव करें। 3.दीमक के दिखाई देने पर क्लोरोपायरीफॉस 20 ईसी 3.5 लीटर प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करें। इनकी बांबी को खोज कर नष्ट करना चाहिये। 4.सैनिक कीट: इस कीट के हमले से पूरी फसल चौपट हो जाती है। ये दूधिया दानों को चट कर जाता है।  यह कीट दिन में सोता रहता है और रात में फसल को  खा जाता है। इसकी रोकथाम के लिए किसान भाइयों को डाइमेथेएट 30 उईसी का घोल छिड़कना चाहिये।

श्रेणी