जानें मखाने की खेती की विस्तृत जानकारी

जानें मखाने की खेती की विस्तृत जानकारी

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बिहार राज्य में सर्वाधिक मखाने का उत्पादन होता है। बतादें, कि बिहार में 80 प्रतिशत मखाने का उत्पादन किया जाता है। मखाने की खेती करने के लिए चिकनी दोमट मिट्टी सर्वाधिक अनुकूल मानी जाती है।

साथ ही, मखाने का सेवन करने से स्वास्थ्य भी काफी अच्छा होता है। इससे शरीर में डायबिटीज से कोलेस्ट्रॉल जैसे रोगों को काबू में किया है। हड्डियों को मजबूत करने से लेकर वजन कम करने तक में यह बेहद सहायक साबित होता है। भारत के अकेले बिहार राज्य में मखाने की 80 फीसदी खेती की जाती है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह बिहार की जलवायु मखाने की खेती के लिए सर्वाधिक अनुकूल होती है। इसके अतिरिक्त इसका उत्पादन मेघालय, उड़ीसा और असम में भी प्रचूर मात्रा में उत्पादन किया जाता है। आइये मखाने की खेती के तरीके के बारे में जानते हैं।

मखाने की खेती करने का सही तरीके

मिट्टी कैसी हो

मखाने का बेहतरीन उत्पादन करने के लिए चिकनी दोमट मिट्टी सर्वाधिक अनुकूल मानी जाती है। तालाब, जलाशय एवं निचली भूमि पर जहां जल जमाव 4-6 फीट के करीब तक हो, वह स्थान मखाने का उत्पादन करने हेतु काफी अच्छी होती है।

बुवाई कैसे करें

मखाने का बीजारोपण करने के दौरान मखाने के बीजों को तालाब में छिड़का जाता है। वहीं, बीज डालने के 35 से 40 दिन उपरांत जल के अंदर यह उगना चालू हो जाता है। मात्र दो से ढ़ाई माह के मध्य ही इसके पौधे जल के तल पर दिखने लगते हैं।

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रोपाई करने की क्या विधि हो

इस विधि के जरिए मखाने की खेती करने के लिए मखाने के स्वस्थ एवं नवजात पौधों की बुवाई मार्च से अप्रैल माह के मध्य किया जाता है। बुवाई के 2 माह उपरांत बैंगनी रंग के फूल पौधों पर दिखाई देने लगते हैं। साथ ही, 35 से 40 दिन बाद इसके फल पूर्णतय पक जाते हैं। वहीं, गूदेदार होकर के फटने भी लग जाते हैं।

नर्सरी कैसे तैयार की जाए

बतादें कि मखाना एक जलीय पौधा है। नर्सरी तैयार करने से पूर्व खेत की 2-3 बार गहरी तरह जुताई करनी चाहिए। साथ ही, पौधों के समुचित विकास के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश को एक अनुमानित मात्रा में मृदा में मिश्रित करें। खेत में 2 फीट ऊंचा बांध बना कर इसमें 1.5 फीट तक जल भर दें। दिसंबर माह में इसमें मखाने के बीज डाल कर छोड़ दें। यह पौधे मार्च माह के समापन तक बीजारोपण हेतु तैयार हो जाते हैं।

कटाई कब की जानी चाहिए

मखाने की कटाई सिंतबर एवं अक्टूबर के माह के मध्य की जाती है। तालाब के जल के नीचे बैठ मखाने की कटाई करी जाती है। बाकी बचे एक तिहाई बीजों को आगामी अंकुरित होने के लिए छोड़ दिया जाता है।

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