आने वाले दिनों में औषधीय खेती से बदल सकती है किसानों को तकदीर, धन की होगी बरसात

आने वाले दिनों में औषधीय खेती से बदल सकती है किसानों को तकदीर, धन की होगी बरसात

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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि आज भी दुनिया के विकासशील देशों में 80 फीसदी लोग अपने इलाज के लिए प्राकृतिक जड़ी बूटियों पर निर्भर हैं। इन देशों में जड़ी बूटियों के माध्यम से आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी जैसी पद्धतियों द्वारा इलाज किया जाता है। इसके साथ ही होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति में भी पौधों के रसों का इस्तेमाल बहुतायत में किया जाता है। इसलिए पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि दुनिया भर में औषधीय और सुगंधित पौधों की मांग में तेजी से वृद्धि हुई है। इसका एक बहुत बड़ा कारण एलोपैथी दवाओं से होने वाले दुष्प्रभाव भी हैं, जिनके कारण हर्बल औषधियों की मांग तेजी से बढ़ी है।

दुनिया के विशेषज्ञों का कहना है की आगामी समय में साल 2050 तक हर्बल दवाइयों का बाजार 5 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच सकता है। यह किसानों के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी। भारत में जड़ी-बूटियों का भंडार है जिससे आगामी समय में भारत का महत्व बढ़ने वाला है और दवाइयों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भारत की भागीदारी बढ़ती हुई दिखाई देगी।

भारत एक जैव विविधिता वाला देश है जहां 960 प्रकार से ज्यादा जड़ी बूटियां पाई जाती हैं। अगर दुनिया भर में जैव विविधिता वाले क्षेत्रों की गणना करें तो इनकी संख्या 18 है। जिनमें से 2 भारत में पाए जाते हैं। भारत में पर्यावरण के हिसाब से औषधीय वनस्पतियां स्वतः ही उगने लगती हैं यह भारत एक लिए सबसे बड़ी सकारात्मक बात है।

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राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी ने अपने दस्तावजों में बताया है कि भारत सरकार अब व्यावसायिक रूप से हर्बल खेती को बढ़ावा दे रही है, ताकि देश के किसान भी इस विकास के मुख्य भागीदार बन सकें। इसके लिए सरकार के द्वारा औषधीय और सुगंधित पौधों के संरक्षण और उनके उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है। राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी का कहना है कि जड़ी बूटियों को जंगलों से लूटने के बजाय इन्हें खेतों में उगाया जाना चाहिए ताकि जैव विविधिता बरकरार रह सके। जिससे आगामी पीढ़ियों को भी इस प्रकार की जड़ी बूटियां मिल सकें। सरकार अपनी योजनाओं के तहत मेंथा, ईसबगोल, सनाय और पोस्तदाना जैसी हर्बल दवाइयों की खेती को बढ़ावा दे रही है। सरकार के प्रयासों से देश भर में करीब 5 लाख किसान मेंथा की खेती कर रहे हैं। भारत में इसका कारोबार 3500 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। किसानों की कड़ी मेहनत से भारत दुनिया में मेंथा का सबसे बड़ा उत्पादक बन चुका है, इसके साथ ही भारत इसका सबसे बाद निर्यातक भी है।

राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी का कहना है कि देश के किसानों को औषधीय पौधों के उत्पादन के साथ ही उनके अंतिम उत्पाद बनाकर बाजार में बेंचना चाहिए। इससे किसानों की आमदनी तेजी से बढ़ सकती है। औषधीय पौधों के उत्पादन के लिए सरकार ने देश में कई क्लस्टरों का चयन किया है जहां सभी प्रकार की सहूलियतें उपलब्ध कारवाई जा रही हैं। देश में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु और पूर्वोत्तर राज्यों में हर्बल खेती व्यापक पैमाने पर की जा सकती है। खेती के लिए सभी प्रकार की प्राकृतिक संभावनाएं इन राज्यों में मौजूद हैं। फिलहाल इन राज्यों में लेवेंडर, मेहंदी, नींबू घास, अश्वगंधा, सतावर और दूसरी कई जड़ी-बूटियों की खेती व्यापक पैमाने पर की जा रही है। आगामी समय में यदि किसान उन्नत तकनीक से हर्बल खेती करना शुरू करेंगे तो निश्चित ही उनके ऊपर धन की बरसात हो सकती है।

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