बिना लागात लगाये जड़ी बूटियों से किसान कमा रहा है लाखों का मुनाफा

By: MeriKheti
Published on: 04-Dec-2022

खेती में नवीन तकनीकों को प्रयोग में लाने के अतिरिक्त किशोर राजपूत ने देसी धान की 200 किस्मों को विलुप्त होने से बचाव किया है, जिनको देखने आज भारत के विभिन्न क्षेत्रों से किसान व कृषि विशेषज्ञों का आना जाना लगा रहता है। भारत में सुगमता से प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। खेती में होने वाले व्यय को कम करके बेहतर उत्पादन प्राप्त करने हेतु आज अधिकाँश किसानों द्वारा ये तरीका आजमा रहे हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ के एक युवा किसान के माध्यम से वर्षों पूर्व ही प्राकृतिक खेती आरंभ कर दी थी। साथ ही, गौ आधारित खेती करके जड़ी-बूटियां व औषधीय फसलों की खेती की भी शुरूआत की थी। किशोर राजपूत नामक इस युवा किसान की पूरे भारतवर्ष में सराहनीय चर्चा हो रही है। शून्य बजट वाली इस खेती का ये नुस्खा इतना प्रशिद्ध हो चूका है, कि इसकी जानकारी लेने के लिए दूरस्थित किसानों का भी छत्तीसगढ़ राज्य के बेमेतरा जनपद की नगर पंचायत नवागढ़ में ताँता लगा हुआ है। अब बात करते हैं कम लागत में अच्छा उत्पादन देने वाली फसलों के नुस्खे का पता करने वाले युवा किसान किशोर राजपूत के बारे में।



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किशोर राजपूत को खेती किसानी करना कैसे आया

आमतौर पर अधिकाँश किसान पुत्र अपने पिता से ही खेती-किसानी के गुड़ सीखते हैं। यही बात किशोर राजपूत ने कही है, किशोर पिता को खेतों में अथक परिश्रम करते देखता था, जो उसके लिए एक प्रेरणा का स्त्रोत साबित हुआ। युवा का विद्यालय जाते समय रास्ते में पेड़-पौधों, पशु-पक्षी, हरियाली बहुत आकर्षित करती थी। किशोर ने कम आयु से ही खेतों की पगडंडियों पर मौजूद जड़ी-बूटियों के बारे में रुचि लेना और जानना शुरू कर दिया। बढ़ती आयु के दौरान किशोर किसी कारण से 12वीं की पढ़ाई छोड़ पगडंडियों की औषधियों के आधार पर वर्ष २००६ से २०१७ एक आयुर्वेदित दवा खाना चलाया। आज किशोर राजपूत ने औषधीय फसलों की खेती कर भारत के साथ साथ विदेशों में भी परचम लहराया है, इतना ही नहीं किशोर समाज कल्याण हेतु लोगों को मुफ्त में औषधीय पौधे भी देते हैं।

किशोर ने कितने रूपये की लागत से खेती शुरू की

वर्ष २०११ में स्वयं आधार एकड़ भूमि पर किशोर नामक किसान ने प्राकृतिक विधि के जरिये औषधीय खेती आरंभ की। इस समय किशोर राजपूत ने अपने खेत की मेड़ों पर कौच बीज, सर्पगंधा व सतावर को रोपा, जिसकी वजह से रिक्त पड़े स्थानों से भी थोड़ा बहुत धन अर्जित हो सके। उसके उपरांत बरसाती दिनों में स्वतः ही उत्पादित होने वाली वनस्पतियों को भी प्राप्त किया, साथ ही, सरपुंख, नागर, मोथा, आंवला एवं भृंगराज की ओर भी रुख बढ़ाया। देखते ही देखते ये औषधीय खेती भी अंतरवर्तीय खेती में तब्दील हो गई व खस, चिया, किनोवा, गेहूं, मेंथा, अश्वगंधा के साथ सरसों, धान में बच व ब्राह्मी, गन्ने के साथ मंडूकपर्णी, तुलसी, लेमनग्रास, मोरिंगा, चना इत्यादि की खेती करने लगे। प्रारंभिक समय में खेती के लिए काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, आरंभ में बेहतर उत्पादन न हो पाना, लेकिन समय के साथ उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है।

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