पोषण और पैसे की गारंटी वाली फसल है मूंग

By: MeriKheti
Published on: 25-Nov-2019

मूंग खरीफ बोई जाने वाली मुख्य फसल है लेकिन इस मौसम में मोजैक रोग ज्यादा आने के कारण् अब इसकी फसल खरीफ में भी लेना ज्यादा लाभकारी सिद्ध हो रहा है। बेहद कम समय यानी कि 60-70 दिन में इस दलहनी फसल को लेने के दो फायदे हैं। इसकी जड़े खेत में जैविक नाइट्रोजन ​फिक्सेसन का काम करती हैं और नाके बराबर लागत में किसान अपने परिवार के लिए साल भर का पोषक दाल का जुगाड़ कर सकते हैं। मूंग की खेती रबी सीजन के बाद गेहूं काटने के बाद भी ले सकते हैं। फसल मिले तो ठीक नहीं भी मिले तो मूंग की फसल जमीन को खाद के रूप में बेशकीमती पोषक तत्वों का भंडार देने वाली है। तकनीकी ज्ञान के आधार पर अनेक प्रतिकूल परिस्थितियों के बाद भी इसका अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है। रबी सीजन के बाद देश में लाखों हैक्टेयर क्षेत्रफल समूूचे देश में खाली पड़ा रहा जाता है । यदि किसान सामूहिक और सामान्य रूप से भी इसमें मूंग लगाएं तो बेहद लाभकारी परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। मूंग की टाइप 44 किस्म अगस्त के दूसरे हफ्ते में बोकर 65 दिन में काटी जा सकती है। इससे अधिकतम 8 कुंतल प्रति हैक्टेयर की उपज मिलती है। पंत मूूंग 1 की बिजाई 25 जुलार्इ् से 10 अगस्त कर करते हैं। 75 दिन में पक कर 10 कुंतल तक उपज मिलती है। यह पीला मोजेक अवरोधी है। पन्त मूंग दो 25 जुलार्इ् से 10 अगस्त कर बोते हैं। यह 70 दिन में 11 कुंतल तक उपज देती है। पंत मूंग 3 की ​बिजाइ्र 25 जुलार्इ् से 10 अगस्त तक करते हैं। अधिकतम 85 दिन में यह 10 से 15 कुंतल तक उत्पादन देती है। राजस्थान के लिए आर एम जी-62 पकाव अवधि 65-70 दिन, उपज 6-9 कुंतल, राइजक्टोनिया ब्लाइट कोण व फली छेदन कीट के प्रति रोधक ,फलियां एक साथ पकती हैं। आरएमजी-268 अवधि 62-70 उपज 8-9 कुंतल, सूखे के प्रति सहनसील,I रोग एवं कीटो का कम प्रकोप,I फलियां एक साथ पकती हैं। I आरएमजी-344 पकाव 62-72 दिन, उपज 7-9 कुंतल, खरीफ एवं जायद दोनों के लिए उपयुक्त,I ब्लाइट को सहने की क्षमता। Iएसएमएल-668, 62-70 दिन, उपज 8-9 कुंतल, दोनों सीजन के लिए उपयुक्त, अनेक बिमारियों एवं रोगो के प्रति सहनसील । गंगा-8, 70—72 दिन, उपज 9-10 कुंतल, उचित समय एवं देरी दोनों स्थतियों में बोने योग्य, दोनों सजीनों के लिए उपयुक्त रोग रोधी। जीएम-4, 62-68 दिन, उपज 10-12 कुंतल, फलियां एक साथ पकती हैं। Iदाने हरे रंग के तथा  बड़े आकर के होते हैं। मूंग के -851, 70-80 दिन, उपज 8-10 कुंतल, सिंचित एवं असिंचित क्षत्रों के लिए उपयुक्त, I चमकदार एवं मोटा दाना होता है। नरेन्द्र मूंग 1, पीडीएम 54, पंत मूग 4, मालवीय ज्योति, मालवीय जनप्रिया, मालवीय जागृति, मालवीय जन चेतना, आशा, मेहा, टीएम 9937, मालवीय जनकल्याणी किस्में अधिकतम 70 दिन में तैयार होकर 15 कुंतल तक उत्पादन देती हैं। पूसा विशाल किस्म समूचे देश में लगार्इ् जा सकती है। उपज 12 कुतल एवं अवधि 70 दिन है। पूसा 672 किस्म 65 दिन में तैयार होकर 12 कुंतल तक उपज देती है। मूंग की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी रहती है। उत्तर भारत में इसकी खेती गर्मी एवं बरसात के सीजन में तथा दक्षित भारत में रबी सीजन में की जाती है। किस्में अनेक हैं। एचयूएम सीरीज की भी मूग की कई किस्में श्रेष्ठ हैं। किसानों को क्षेत्रीय कृषि विज्ञान केन्द्र एवं कृषि विभाग में संपर्क कर आगामी फसल के समय को ध्यान में रखते हुए साल में एक बार अपने खेतों में मूंग की खेती अवश्य करनी चाहिए ताकि जमीन की उपज क्षमता बरकरार रहे।

मूंग की खेती के लिए बीज की बुवाई

  buwai 5 मूंग की बुवाई 15 जुलाई तक करलें। वर्षा देरी से हो तो शीघ्र पकने वाली किस्म की वुबाई 30 जुलाई तक करें। बीज प्रामाणिक लेना चाहिए। कतरों के बीच दूरी 45 से.मी. तथा पौधों से पौधों की दूरी 10 से.मी. उचित है । मूंग की खेती के लिए 12 से 15 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से बीज की जरूरत होती है।

मूंग की फसल में खाद एवं उर्वरक

  urwaruk 1 दलहनी फसलों में उर्वरक की बेहद कम जरूरत होती है। मूंग के लिए 20 किलो नाइट्रोजन तथा 40  किलो फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की आवश्कता होती है। इसकी पूर्ति क्रमश 87 किलो ग्राम डी.ए.पी. एवं 10 किलो ग्राम यूरिया से करें। 600 ग्राम राइज़ोबियम कल्चर को एक लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ के साथ गर्म कर ठंडा होने पर बीज को उपचारित कर छाया में सुखा लेना चाहिए तथा बुवाई कर देनी चाहिए। किसी भी दलहनी फसल में अच्छे उत्पादन के लिए कल्चर से बीज उपचार जरूर करें।

मूंग की फसल में खरपतवार नियंत्रण

  moong kharaptar फसल की बुवाई के एक या दो दिन पश्चात एवं अंकुरण से पूर्व पेन्डीमेथलिन (स्टोम्प )की बाजार में उपलब्ध 3.30 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। फसल जब 25 -30 दिन की हो जाये तो ​निराई करें।  इसके बाद भी खरपतवार दिखे तो इमेंजीथाइपर(परसूट) की 750 मिली लीटर मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिए।

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