पशुओं के लिए गर्भ जांच किट

अब किट से होगी पशु के गर्भ की जांच

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मादा पशुओं की गर्भावस्था का पता लगाना अब आसान हो गया है। केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान हिसार के वैज्ञानिकों ने मूत्र आधारित गर्भावस्था जांच की तैयारी कर ली है। इसी के माध्यम से बेहद कम समय में ही पशु के मूत्र के माध्यम से जांच हो सकेगी और पता लग सकेगा के पशु गाभिन हुआ है कि नहीं। वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि इस किट के माध्यम से स्वस्थ पशु के गर्भ धारण की स्थिति का पता 18 दिन बाद ही हो जाता है।

पशु समय से गर्मी में नहीं आता। तो समय से ठहर नहीं पाता और यदि ठहर भी जाए तो 45 -50 दिन बाद ही हाथ डालकर या अल्ट्रासाउंड करके ही पता चल पाता है कि उसने गर्भ धारण कर लिया है।इससे पशुपालकों को प्रतिमाह हजारों हजार रुपए का खर्चा अतिरिक्त करना पड़ता था। गर्भ जांच में यदि पशुपालक शीघ्रता करते थे तो ब्याने के समय पर पशु को डिस्टोकिया यानी बच्चे के सर का आकार बड़ा हो जाना और बयान ए में परेशानी होना जैसी दिक्कतें आम होती थी लेकिन अब इन दिक्कतों का सामना पशुपालकों को नहीं करना पड़ेगा। मूत्र आधारित गर्भ परीक्षण किट को विकसित करने वाले वैज्ञानिकों की टीम के लीडर डॉ अशोक बल्हारा और उनकी टीम के प्रयासों से यह सफलता मिली है। करीब साढे 500 पशुओं पर यह परीक्षा के सफल सिद्ध हुई है। अभी इस किट से बीमार पशुओं के गर्भ की जांच के परिणाम उतने संतोषजनक नहीं पाए गए हैं। यह बात अलग है कि वैज्ञानिकों ने विकसित तकनीकी को पेटेंट की प्रक्रिया शुरू कर दी है लेकिन उनका अनुसंधान निश्चय ही पशुपालन के क्षेत्र में किसानों को करोड़ों करोड़ों रुपए की राहत प्रदान करेगा। पशु गाभिन हुआ है कि नहीं इसकी जांच तत्काल होगी तो पशुपालक को महीनों बेकार में दाना पानी पर खर्च नहीं करना पड़ेगा। यानी पशु समय से ठहरेगा, समय से बच्चा देगा ताकि किसानों को लगातार दुग्ध उत्पादन के जरिए आय बनी रहेगी।

वैज्ञानिकों ने दावा किया है है कि इस किट के माध्यम से 28 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले मूत्र को लेकर 30 मिनट में पशु के गर्भ होने की पुष्टि हो जाती है। यानी कि मेडिकल स्टोरों पर जिस दिन यह किट मिलने लगेगी पशुओं के गर्भ की जांच बेहद आसान हो जाएगी ‌‌। विदित हो कि किसी भी तकनीकी को सरकारी संस्थानों द्वारा विकसित किए जाने के बाद उनको व्यापक स्तर पर उत्पादन एवं बाजारीकरण का काम प्राइवेट कंपनियां करती हैं। इंतजार इस बात का है कि इस तकनीक के प्रोडक्शन और बाजारीकरण में कौन कंपनियां रुचि दिखाती है और कब तक इसके को बाजार में लेकर आती हैं।

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