पपीता की खेती ने बदली जिंदगी की राह

By: MeriKheti
Published on: 30-Nov-2020

किसी ने ठीक ही कहा कि अकेले खेती करने से समृद्धि नहीं आ सकती। यदि खेती के साथ पशुपालन, उद्यान और बागवानी जैसी चीजें शामिल हों तो बदहाली दहलीज से दूर ही रहेगी। सहनवा, चित्तौडग़ढ़ राजस्थान के किसान गौरीशंकर सालवी ने इसे साकार कर दिखाया। वह अन्य फसलों के साथ मुख्य फसल के रूप में पपीते की खेती करते हैं। वह मानते हैं कि पपीता का एक पेड़ किसान को हजार से ज्यादा की आय दे सकता है। बशर्ते, पपीता के बगीचे की देखरेख अच्छी हो। सालवी अपने खेत में लगे 200 पपीता के पेड़ों से डेढ़ से दो लाख रूपए की आय लेते हैं। उन्हें यह ज्ञान चित्तौडगढ़ के कृषि विज्ञान केन्द्र पर मजदूरी करने के दौरान प्राप्त हुआ। उन्होंने वैज्ञानिकों से आय बढ़ाने के तरीके पूछे और वैज्ञानिकों ने उन्हें बागवानी के साथ मिश्रित खेती करने के गुर सिखाए। कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में अपनाई गई पपीता की खेती से ना केवल आमदनी का ग्राफ बढ़ा। बल्कि, गांव में बागवां के रूप में नई पहचान भी मिली है। किसान का कहना है कि परम्परागत फसलों में लाख मेहनत करने के बाद भी इतनी आय संभव नहीं है। किसान गौरीशंकर ने बताया कि परिवार के पास महज 6 बीघा जमीन है। उन्होंने बताया कि 10वीं पास करने के दौरान ही मम्मी का आकस्मिक देहावसान होने के कारण घर संभालने की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई। पिताजी खेती करते थे और मैं घर का काम देखता था। इसी के चलते 10वीं के बाद पढ़ाई छोडऩी पड़ी। उन्होंने बताया कि पांच साल पहले मैने खेती का दारोमदार संभाला है। दिन में कृषि विज्ञान केन्द्र, चित्तौडग़ढ़ में मजदूरी करता हूँ। वहीं, सुबह-शाम खेती को समय देता हूँ। उन्होंने बताया कि कृषि विज्ञान केन्द्र पर मजदूरी करने के दौरान ही मुझे वैज्ञानिक खेती के तौर-तरीके सीखने का मौका मिला। केन्द्र के उद्यानिकी वैज्ञानिक डॉ. राजेश जलवानिया से एक दिन मैंने आय बढ़ाने का सवाल किया तो उन्होंने मुझे पपीता के साथ सब्जी फसलों की खेती करने की सलाह दी। इसके बाद पिछले तीन साल से पपीता का उत्पादन ले रहा हॅू। उन्होंने बताया कि परम्परागत फसल में  गेहूं, मक्का का उत्पादन लेता हूँ। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि वैज्ञानिकों की सलाह ने मेरे जीवन को बदल दिया हैं। अब ना दिहाड़ी की फ्रिक हैं, ना परिवार के गुजर-बसर की। खेतों से हो रही आमदनी से परिवार की समृद्धि साल दर साल बढ़ रही हैं। ऐसी बदली किस्मत डॉ. जलवानिया की सलाह पर एक बीघा क्षेत्र में पपीते का उत्पादन लेना शुरू किया। उन्होंने बताया कि पशुपालन होने के चलते एक बीघा क्षेत्र में रिजके की फसल लेता हूँ। वैज्ञानिकों की सलाह पर उसी खेत में पपीता का रोपण करना शुरू कर दिया। इससे पशुओं को हरा चारा भी मिलता रहा और आय का ग्राफ भी बढ़ता रहा। उन्होंने बताया कि पपीता की फसल से सालाना डेढ़ से दो लाख रूपए की आय हो जाती है। एक पौधें पर एक क्विंटल तक फलों का उत्पादन मिल जाता है। इसके अलावा कभी आधा बीघा तो कभी एक बीघा क्षेत्र में सब्जी फसल का उत्पादन ले रहा हूँ। सब्जी फसल में मिर्च, टमाटर सहित दूसरी मौसमी फसल शामिल है। इससे भी सालाना 40 हजार रूपए की आय हो जाती है। वहीं, एक बीघा क्षेत्र में गन्ने की फसल से 40-50 हजार रूपए तक आमदनी हो जाती है। उन्नत पशुपालन उन्होंने बताया कि पशुधन में मेरे पास 4 भैंस है। प्रतिदिन 10-12 लीटर दुग्ध का उत्पादन मिलता है। इसमें से एक समय के दुग्ध का विपणन कर देता हॅू। इससे प्रति माह खर्च निकालने के बाद 10 हजार रूपए की शुद्ध बचत मिल जाती है। इससे परिवार का खर्च निकल जाता है। वहीं, पशु अपशिष्ट का उपयोग खेतों में कर रहा हॅू।  

श्रेणी