सोयाबीन मिटाए कुपोषण, दे पैसा 

By: MeriKheti
Published on: 05-Dec-2019

सोयाबीन कुपोषण मिटाने के साथ माली हालत सुधारने की दृष्टि से भी अच्छी फसल है। इसके उत्पादन में मध्य प्रदेश अग्रणी राज्य है लेकिन अन्य राज्यों के किसान भी इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। मैदानी क्षेत्रों में इसकी खेती का चलन बढ़ा है। इसमें 40 से 45 प्रतिशत प्रोटीन एवं 20 से 22 प्रतिशत तेल की मात्रा मौजूद है। बुन्देलखण्ड, उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपद एवं राजस्थान आदि राज्यों में भी इसकी खेती की अच्छी संभावना है। मध्य प्रदेश में खरीफ सीजन की यह मुख्य फसल है।

किस्म का चयन

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जेएस-335 किस्म 95-100 दिन में पकती है। उपज 25-30 क्विंटल/हैक्टेयर, मध्यम प्रदेश एवं यूपी में बोने योग्य। यह किस्म जीवाणु झुलसा रोग प्रतिरोधी है। पीके 472 किस्म 125 दिन में तैयार होकर 35 कुंतल तक उपज देती है। यूपी में बानेे योग्य। जे.एस. 93-05 किस्म 110 दिन में 30 कुंतल तक उपज देती है। जड़ एवं पत्ती सडन के अलावा धब्बा अवरोधी यह किस्म मध्य प्रदेश, यूपी में बोने योग्य। पूसा 20 किस्म 115 दिन में 32 कुंतल तक उपज देती है। जेएस. 95-65 अगेती, 80-85 दिन पकाव अवधि तथा उपज 20-25 क्विंटल/हैक्टेयर। जेएस. 97-52 अवधि 100-110 दिन, उपज 25-30 क्विंटल/हैक्टेयर, सफेद फूल, पीला दाना, काली नाभी, रोग एवं कीट के प्रति सहनशील, अधिक नमी वाले क्षेत्रों के लिये उपयोगी। पीके 416 किस्म 120 दिन में तैयार होकर 35 कुंतल तक उत्पादन देती है। ब्लाइट से मध्यम, पीला विषाणु, जीवाणु झोंका अवरोधी। जेएस. 20-29 किस्म की अवधि 90-95 दिन तथा उपज 25-30 क्विंटल/हैक्टेयर है। बैंगनी फूल, पीला दाना, पीला विषाणु रोग, चारकोल राट, बेक्टेरिययल पश्चूल एवं कीट प्रतिरोधी बेक्टेरिययल पश्चूल एवं कीट प्रतिरोधी है। एनआरसी-7 किस्म 90-99 दिन में 25-35 क्विंटल/हैक्टेयर उपज देती है। वृद्धि, फलियां चटकने के लिए प्रतिरोधी, बैंगनी फूल, गर्डल बीडल और तना-मक्खी के लिए सहनशील है। एनआरसी-12 किस्म 96-99 दिन में 25-30 क्विंटल/हैक्टेयर उपज देती है। पीएस 1024 किस्म 120 दिन में 30 से 35 कुंतल उपज देती है। पूसा 16 किस्म 115 दिन में 25 से 35 कुंतल उपज देती है। जेएस 335 किस्म 110 दिन में 30 से 35 कुंतल उपज देती है। यह झुलसा अवरोधी है।

अंकुरण क्षमता:

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बुवाई के पूर्व बीज की अंकुरण क्षमता भीगी बोरी में 100 दाने भिगोकर अवश्य जांचें। यह (70%) अवश्य हो।

बीजोपचार:-

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हर फलस में कई तरह के रोगों के नियंत्रण हेतु बीज को थायरम या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज में मिलाएं अथवा थयरम 2.5 ग्राम अथवा थायोमिथाक्सेम 78 ws 3 ग्राम अथवा ट्राईकोडर्मा विर्डी 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें ।

जैविक कल्चर उपचार

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किसी भी दलहनी फसल के बीजों को राइजोबियम कल्चर (बे्रडी जापोनिकम) 5 ग्राम एवं पी.एस.बी.(स्फुर घोलक) 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बोने से कुछ घंटे पूर्व टीकाकरण करें ।

समय पर बुआई

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मैदानी क्षेत्रों में इसकी बुवाई का समय 20 जून से 10 जुलाई तक उपयुक्त रहता है। बुवाई 45 सेण्टीमीटर पर लाइनों में करनी चाहिए। बीज से बीज की दरी 3 से  सेण्टीमीटर रहनी चाहिए। कम फैलने वाली  किस्मों की बिजाई सघन एवं ज्यादा फैलने वाली किस्मों का बीज दूरी पर लगाएं।

उर्वरक प्रबंधन

उन्नत किस्मों के लिए 20 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस एवं 40 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर के हिसाब से उर्वरक डालें। बुवाई के 30 से 35 दिन बाद पौधा उखाडकर देखें। यादि पौधे की जड़ों में गृन्थियां नहीं बनी हैं तो फूल आने की अवस्था से पूर्व 30 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से नाइट्रोजन का बुरकाव करेंं।

बीज दर

बुवाई हेतु दानों के आकार के अनुसार बीज की मात्रा का निर्धारण करें । पौधों की संख्या 4 से-4.5 लाख/हैक्टेयर रखें । छोटे दाने वाली किस्मों का बीज 60-70 एवं मोटे दाने वालियों का 80-90 कि.ग्रा. प्रति हैक्टयर बाएं। बीज के साथ किसी भी प्रकार के रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग न करें । सल्फर की पूर्ति के लिए सल्फर, जिस्पसम या सिंगल सुपरफास्फेट का प्रयोग करेंं। जिंक की पूर्ति भी मृदा परीक्षण के आधार पर करें।

खरपतवार नियंत्रण

सोयाबीन की बुबाई के 24 घण्टे के अन्दर फ्लूक्लोरेनिल 45 ईसी सवा लीटर मात्रा 800 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। दूसरा उपाया बुवाई के तुरंत बाद एलाक्लोर 50 ईसी 4 लीटर उपरोक्तानुसार पानी में घोलकर छिड़काव करें। यदि खरपतवार नियंत्रित न हो तो 2 दिन बाद निकाई करेंं। बड़ी फसल में भी खरपतवार नियंणत्रण का ध्यान रखें।

फसल सुरक्षा

कीट एवं रोगों से फसल सुरक्षा आवश्यक हैै। फली छेदक कीट की रोकथाम हेतु क्लोरोपायरीफास 20 ईसी डेढ़ लीटर प्रति हैक्टेयर, ग्रीन सेमी लूपर, बिहार रोमिल सूंडी कीट की रोकथाम हेतु फसल में फूल आते समय क्यूनालफास 25 ईसी डेढ़ लीटर एक हजार लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। गर्डिट बिटिल अंदर ही अंदर पौधे को खाकर सुुखाता है। इससे बचाव के लिए फोरेट 10 जी की 10 किलोग्राम मात्रा खेत में मिलाएं। रोगों में पीला चितवर्ण रोग प्रमुख रूप से प्रभावित करता है। बचाव हेेतु मिथाइल ओ डिमेटान 25 ईसी एक लीटर या डाईमिथोएट 30 ईसी एक लीटर को पर्याप्त पानी में घोल बनाकर छिड़कें। सूत्रकृमि जनिम रोगों के नियंत्रण हेतु गर्मी की गहरी जुताई करें। अंतिम जोत में नीम की खली मिलाएं। इसके साथ 50 किलोग्राम सडी गोबर की खाद में एक किलोग्राम ट्राईकोडर्मा मिलाकर छांव में एक हफ्ते रखें। बाद में इसे खेत में बुकरें।

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