बोनसाई के पेड़ उगा सौमिक दास बने लखपति वातावरण शुद्धि में भी किया योगदान
सौमिक दास (Saumik Das) ने बोनसाई(Bonsai) एवं पेनजिंग(Penjing) के पेड़ उगाकर वातावरण को प्रदुषण और गर्मी से बचाने की सराहनीय पहल शुरू की है। आज वह ३० लाख तक पौधे उगाकर लाखों की आय कर रहे हैं, साथ ही पेंजिंग और बोंजाई की खेती का ३०० से अधिक लोगों को "ग्रो ग्रीन बोनसाई फार्म" (Grow Green Bonsai Farm) के तहत प्रशिक्षण दे उनकी आय का स्त्रोत बनाया है।
दिल्ली का प्रदुषण चरम सीमा पर रहता है, क्योंकि वहां गाँव की अपेक्षा में पेड़ों की संख्या बेहद कम है। इसलिए दिल्ली में प्रदुषण एवं गर्मी देहात से अधिक होती है, इन सब समस्याओं को देखते हुए सौमिक दास ने अपने ही घर में बोन्साई पेनजिंग (Bonsai Penjing) के हजारों पेड़ उगाकर कीर्तिमान स्थापित किया है। उनके पेड़ों की बिक्री ३५ लाख रुपये तक की सीमा तक पंहुच चुकी है, जिसमे उन्होंने खुद के घर में २००० के करीब बोनसाई और पेंजिंग के पेड़ उगा रखे हैं। बतादें की बोनसाई के वृक्ष तापमान को १० डिग्री तक कम कर देते हैं, एवं वातावरण को शुद्ध रखने में काफी मददगार साबित होते हैं। पेड़ पौधे ऑक्सीजन के मुख्य स्त्रोत होते हैं, जो कार्बन डाई ऑक्साइड को खुद संचय करके हमको प्राणवायु देते हैं, इसलिए जनजीवन को स्वस्थ्य बनाने के लिए वृक्षारोपण अधिक मात्रा में करना एवं पेड़ पौधों का संरक्षण करना बेहद आवश्यक है।
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सौमिक दास को कैसे बोनसाई के पेड़ों को लगाने का विचार आया ?
बोनसाई का पेड़ घरों की शोभा बढ़ाता है, जिसको विदेशों में ज्यादातर लोग अपने घरों के अंदर लगाते हैं। सौमिक दास ने बोनजाई के पेड़ को सर्वप्रथम दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम(Talkatora Indoor Stadium) में एक मैच के दौरान देखा था। बोनजाई के पेड़ ने सौमिक दास को बहुत आकर्षित किया जिससे प्रभावित होकर सौमिक दास ने बोनजाई के पेड़ों को उगाकर तैयार करना शुरू कर दिया। जिसके लिए सौमिक दास ने पेंजिंग विधि की जानकारी विदेश से ली, क्योंकि बोंजाई के पेड़ों का प्रचलन हिंदुस्तान में उपलब्ध नहीं था। बोंजाई के पेड़ का जीवनकाल लगभग ५०० साल तक होता है, साथ ही इसको तैयार करने में काफी समय लगता है। बोंजाई के पेड़ को लगाकर वातावरण शुद्ध एवं ठंडा रख सकते हैं।
बोनजाई के पेड़ की क्या विशेषता है ?
बोनजाई का पेड़ वातावरण को शीतल बनाने और शुद्ध रखने में बेहद सहायक होता है। इसकी शुरुआत जापान से हुई है, जिसकी सुरक्षा पॉलीहाउस के माध्यम से की जाती है। इसके लिए किसी भी अन्य उर्वरक या कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया जाता, लेकिन यह तैयार होने में काफी समय लगाता है। बोनजाई के पेड़ की कीमत ७०० से लेकर ढ़ाई लाख तक होती है। कई देशों में इसको गुडलक ट्री(Good Luck Tree) भी बोलते हैं। बोनजाई का पेड़ न केवल वातावरण को अच्छा बनाता है, बल्कि घरों के सौंदर्यीकरण में भी इसकी अहम भूमिका होती है। लोग अपने घरों को सजाने के लिए भी बोनसाई के पेड़ों को लगाते हैं।
पॉलीहाउस - बाहर से[/caption]
पॉलीहाउस निर्माण कार्य[/caption]
इसके अलावा पॉलीहाउस को हमेशा समतल धरातल पर ही बनाना चाहिए और पॉलीहाउस का स्थान अपने आसपास के समतल धरातल से थोड़ा ऊपर उठा हुआ होना चाहिए। इसके लिए या तो आप कोई ऐसी जगह निश्चित कर सकते हैं जो ऊपर उठी हुई हो, या फिर अपने खेत की ही समतल जगह पर मिट्टी का जमाव कर स्थान को ऊपर उठा सकते है।
पॉलीघर या पॉलीहाउस -भीतर से (Polyhouse - inside view)[/caption]
कृषि वैज्ञानिकों की राय में पोली हाउस में कार्बन डाइऑक्साइड के अधिक सांद्रण की वजह से उत्पाद अधिक तैयार होते हैं और परंपरागत तरीके से की जाने वाली खुली खेती की तुलना में पॉलीहाउस में लगभग 2 गुना तक उत्पाद प्राप्त हो सकते हैं।
वर्तमान में पॉलीहाउस में मशीनीकरण के बेहतर इस्तेमाल की वजह से फर्टिलाइजर का छिड़काव और पानी की नियमित सिंचाई स्वचालित रूप से ही हो रही है, इसी वजह से किसान भाइयों की मजदूरी में लगने वाली लागत कम खर्च होती है।
हालांकि इन सभी फायदों के अलावा पॉलीहाउस फार्मिंग के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हैं, जैसे कि पॉलीहाउस को बनाना और पूरी तरह सेट अप करना काफी खर्चीला होता है। इसके अलावा पॉलीहाउस विधि से होने वाली कृषि की निरंतर निगरानी रखनी होती है और तापमान या नमी में थोड़े से बदलाव होने की वजह से ही फसल का नुकसान हो सकता है। पॉलीहाउस को चलाने के लिए किसी स्किल्ड सुपरवाइजर की आवश्यकता होती है और किसान भाइयों को कई प्रकार का तकनीकी ज्ञान हासिल करना होता है।
खुले पर्यावरण से मिलने वाले कई पोषक तत्व और हवा में उपलब्ध कई सूक्ष्म पोषक तत्व पॉलीहाउस फार्मिंग में पौधे तक नहीं पहुंच पाते हैं, इसीलिए इस विधि में उर्वरक और कीटनाशक का अधिक इस्तेमाल किया जाता है जो कि जैविक खेती की तरफ बढ़ते भारतीय किसानों की सोच के लिए नकारात्मक असर देता है।
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