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जानिए कैसे अपने मोबाइल फोन से निकालें खसरा खतौनी और जमीन के नक्शे

जानिए कैसे अपने मोबाइल फोन से निकालें खसरा खतौनी और जमीन के नक्शे

उत्तर प्रदेश में सपा सरकार के दौर में खसरा—खतौनी के लिए तहसीलों से किसानों की भीड़ कम करने का जतन शुरू हुआ। सरकार की मंशा के अनुरूप खतौनी तो ऑनलाइन मिल जाती हैं लेकिन खसरा एवं नक्शे भाजपा सरकार के कार्यकाल के सालों गुजरने के बाद भी नहीं निकल पाते। कारण यह है कि अफसरों का इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं है। अफसर ही क्यों ध्यान दें जब सरकार का ही ध्यान नहीं है। इस सुविधा से किसान अपने एन्ड्रायड मोबाइल से घर बैठे अपनी खेती की जमीन की स्थिति का जब चाहे तब परीक्षण कर सकते हैं। खरीद—बिक्री के समय भी इससे आसानी रहती है। सपा सरकार में सूबे में राजस्व अभिलेखों को ऑनलाइन अपलोड करने का काम शुरू हुआ। इस काम के लिए जिन एजेंसियों को सरकार ने काम सोंपा उनके द्वारा प्रारंभ में तेजी से काम किया गया। इसका परिणाम यह रहा कि खतौनी ऑनलाइन हो गईं लेकिन नक्शों को अपलोड करने का काम नहीं हो पाया। प्रदेश के कई जनपदों में यह काम अधर में ही अटका है। सरकार की शिथिलता के चलते अफसर भी इस ओर ध्यान नहीं देते। कारण यह है कि अब किसान खतौनी ऑनलाइन होने के बाद भी नक्शे के लिए तहसीलों की ओर दौड़ते हैं। खसरे के मामले में भी यही स्थिति है। वीआईपी श्रेणी के मथुरा जनपद में भी कई तहसीलों के जमीनों के नक्शे अपलोड नहीं हो पाए हैं। प्रारंभिक तौर पर सपा शासन में शहरी क्षेत्र में लोकवाणी एवं गांवों में जनसेवा केन्द्र खोले गए। इससे हजारों हजार युवाओं को रोजगार मिला। इन केन्द्रों के माध्यम से ग्रामीण बच्चों को जाति, आय, निवास आदि प्रमाण पत्र की आनलाइन सुविधा घर के नजदीक मिलने लगी। khasra khatauni

कैसे निकालें खतौनी

यूपी भूलेख upbhulekh.gov.in गूगल में जाके कोई भी सर्च कर सकता है। इसके बाद बेबसाइट पर जनपद का कॉलम आएगा। जनपद में क्लिक करने के बाद तहसील पर क्लिक करना होता है। तहसील पर क्लिक करने के साथ ही तहसील क्षेत्र में पड़ने वाले गांवों का नाम अल्फाबेटिकल आधार पर आने लगता है। किसान के गांव का नाम जिस श्रेणी में आता हो उस पर क्लिक करने के साथ ही भूलेख का विकल्प आ जाात है। इसमें नाम से, खसरा नंबर से एवं खाता नंबर से जिससे भी व्यक्ति देखना चाहे जमीन का विवरण देख सकता है।
डाकुओं को आश्रय देने वाली जमीन पर आज हो रही है ककोड़ा की खेती

डाकुओं को आश्रय देने वाली जमीन पर आज हो रही है ककोड़ा की खेती

इटावा के बीहड़ में होने वाली ककोड़ा यानी खेखसा की खेती के बारे विस्तार से जानिए

इटावा। आज हम आपको
ककोड़ा या कर्कोट की खेती (इन नामों से भी जाना जाता है : कंटोला, खेकसी, खेखसा) (kakoda, kantola, Khekhasa, kheksi) (वानस्पतिक नाम : Momordica dioica) के बारे में विस्तार से बताएंगे। उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में बीहड़ जंगल हैं। बारिश के दिनों में इस बीहड़ क्षेत्र में एक खास किस्म की सब्जी पाई जाती है, जिसे यहां के स्थानीय किसान तोड़कर शहर में बेचकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। कभी डांकुओं को आश्रय देने वाली इस जमीन पर आज ककोड़ा की खेती अपने पैर जमा रही है।

काफी स्वादिष्ट होती है ककोड़ा की सब्जी

- आमतौर पर बारिश के दौरान ही ककोड़ा की सब्जी उगती है। जो काफी स्वादिष्ट होती है। इसमें विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व मिलते हैं। बताया जाता है कि इनका नियमित सेवन करने से कई रोगों से छुटकारा मिलता है। इसीलिए इसे एक औषधीय सब्जी के नाम से भी जाना जाता है।
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डायबिटीज के रोगियों के लिए रामबाण है ककोड़ा

- तमाम औषधियों से भरपूर ककोड़ा की सब्जी डायबिटीज के रोगियों के लिए रामबाण दवा है। कई नामी चिकित्सकों के दावा है कि ककोड़ा के नियमित सेवन से डायबिटीज पर कंट्रोल किया जा सकता है। आंखों की रोशनी बढ़ाने में भी ककोड़ा काफी लाभदायक है। शरीर के कई महत्वपूर्ण रोगों में ककोड़ा औषधि के रूप में काम करती है

ककोड़ा में मिलते हैं ये पोषक तत्व

- आयुर्वेद के जानकारों की मानें तो ककोड़ा की सब्जी में कई तरह के पोषक तत्व मिलते हैं, जिनका नियमित सेवन मनुष्य के लिए बेहद लाभकारी है। ककोड़ा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फाइबर के साथ-साथ कई अन्य प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं।
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अधिक बारिश में बढ़ती है पैदावार

- ककोड़ा की सब्जी बारिश के दिनों में अच्छी पैदावार देती है। जितना ज्यादा बारिश होगी, यह सब्जी उतनी ही बेहतर उपज देती है। बारिश के दिनों में यहां के स्थानीय किसानों में ककोड़ा की सब्जी को लेकर खासा उत्साह दिखाई दे रहा है।
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बीहड़ में हर रोज बढ़ रहा है खेती का क्रेज

- इटावा के बीहड़ों में खेती करने के लिए किसानों में हर रोज क्रेज बढ़ रहा है। यहां अब खेती का चलन शुरू हो गया है। बीहड़ और चम्बल क्षेत्र में अच्छी बारिश के दौरान ककोड़ा की अच्छी पैदावार हो रही है, जिससे किसानों में खुशी का माहौल है। ----- लोकेन्द्र नरवार
बिना लागात लगाये जड़ी बूटियों से किसान कमा रहा है लाखों का मुनाफा

बिना लागात लगाये जड़ी बूटियों से किसान कमा रहा है लाखों का मुनाफा

खेती में नवीन तकनीकों को प्रयोग में लाने के अतिरिक्त किशोर राजपूत ने देसी धान की 200 किस्मों को विलुप्त होने से बचाव किया है, जिनको देखने आज भारत के विभिन्न क्षेत्रों से किसान व कृषि विशेषज्ञों का आना जाना लगा रहता है। भारत में सुगमता से प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। खेती में होने वाले व्यय को कम करके बेहतर उत्पादन प्राप्त करने हेतु आज अधिकाँश किसानों द्वारा ये तरीका आजमा रहे हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ के एक युवा किसान के माध्यम से वर्षों पूर्व ही प्राकृतिक खेती आरंभ कर दी थी। साथ ही, गौ आधारित खेती करके जड़ी-बूटियां व औषधीय फसलों की खेती की भी शुरूआत की थी। किशोर राजपूत नामक इस युवा किसान की पूरे भारतवर्ष में सराहनीय चर्चा हो रही है। शून्य बजट वाली इस खेती का ये नुस्खा इतना प्रशिद्ध हो चूका है, कि इसकी जानकारी लेने के लिए दूरस्थित किसानों का भी छत्तीसगढ़ राज्य के बेमेतरा जनपद की नगर पंचायत नवागढ़ में ताँता लगा हुआ है। अब बात करते हैं कम लागत में अच्छा उत्पादन देने वाली फसलों के नुस्खे का पता करने वाले युवा किसान किशोर राजपूत के बारे में।


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किशोर राजपूत को खेती किसानी करना कैसे आया

आमतौर पर अधिकाँश किसान पुत्र अपने पिता से ही खेती-किसानी के गुड़ सीखते हैं। यही बात किशोर राजपूत ने कही है, किशोर पिता को खेतों में अथक परिश्रम करते देखता था, जो उसके लिए एक प्रेरणा का स्त्रोत साबित हुआ। युवा का विद्यालय जाते समय रास्ते में पेड़-पौधों, पशु-पक्षी, हरियाली बहुत आकर्षित करती थी। किशोर ने कम आयु से ही खेतों की पगडंडियों पर मौजूद जड़ी-बूटियों के बारे में रुचि लेना और जानना शुरू कर दिया। बढ़ती आयु के दौरान किशोर किसी कारण से 12वीं की पढ़ाई छोड़ पगडंडियों की औषधियों के आधार पर वर्ष २००६ से २०१७ एक आयुर्वेदित दवा खाना चलाया। आज किशोर राजपूत ने औषधीय फसलों की खेती कर भारत के साथ साथ विदेशों में भी परचम लहराया है, इतना ही नहीं किशोर समाज कल्याण हेतु लोगों को मुफ्त में औषधीय पौधे भी देते हैं।

किशोर ने कितने रूपये की लागत से खेती शुरू की

वर्ष २०११ में स्वयं आधार एकड़ भूमि पर किशोर नामक किसान ने प्राकृतिक विधि के जरिये औषधीय खेती आरंभ की। इस समय किशोर राजपूत ने अपने खेत की मेड़ों पर कौच बीज, सर्पगंधा व सतावर को रोपा, जिसकी वजह से रिक्त पड़े स्थानों से भी थोड़ा बहुत धन अर्जित हो सके। उसके उपरांत बरसाती दिनों में स्वतः ही उत्पादित होने वाली वनस्पतियों को भी प्राप्त किया, साथ ही, सरपुंख, नागर, मोथा, आंवला एवं भृंगराज की ओर भी रुख बढ़ाया। देखते ही देखते ये औषधीय खेती भी अंतरवर्तीय खेती में तब्दील हो गई व खस, चिया, किनोवा, गेहूं, मेंथा, अश्वगंधा के साथ सरसों, धान में बच व ब्राह्मी, गन्ने के साथ मंडूकपर्णी, तुलसी, लेमनग्रास, मोरिंगा, चना इत्यादि की खेती करने लगे। प्रारंभिक समय में खेती के लिए काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, आरंभ में बेहतर उत्पादन न हो पाना, लेकिन समय के साथ उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है।
बंगाल में सीएम ममता बनर्जी कराएंगी अफीम की खेती, विरोधियों से भी मांगा साथ

बंगाल में सीएम ममता बनर्जी कराएंगी अफीम की खेती, विरोधियों से भी मांगा साथ

अफ़ीम (Opium or opium poppy (ओपियम पॉपी); वैज्ञानिक नाम : lachryma papaveris) की खेती देश भर में बैन है. लेकिन 4 राज्यों को अफीम की खेती करने की छूट मिली हुई है. लेकिन अब इन 4 से 5 राज्य की गिनती बढ़ाने में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जुट चुकी हैं. ताजा मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री इन दिनों राज्य में अफीम की खेती की मांग कर रही हैं, जिसके लिए उन्होंने केंद्र को एक पत्र भी लिखा है. ममता बनर्जी की मानें तो आमतौर पर खसखस या पोस्त दाना इन दिनों इतना ज्यादा महंगा हो गया है कि राज्य में उनकी खरीद हो पाना मुश्किल है.

खाद्य बजट पर चर्चा के दौरान कही बात

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा में खाद्य बजट पर चर्चा के दौरान अपनी बात कही. उन्होंने ये भी कहा कि, बंगाल में पोस्तो यानि की खसखस के बिना सब अधूरा है. क्योंकि बंगालियों के खाने का यह अहम हिस्सा है. आलू पोस्तो बंगालियों का सबसे पसंददीदा खाना है. साथ ही पोस्तो बड़ा भी बंगाली खूब चाव से खाते हैं. ममता बनर्जी ने कहा कि, बंगालियों के खाने में हर दिन ये मेन्यु में होता है, उसके बाद भी इसकी खेती आखिर पश्चिम बंगाल में क्यों नहीं की जाती. अगर इसकी खेती दूसरे राज्य में हो सकती है, तो बंगाल में करने में क्या हर्ज है? सीएम ममता बनर्जी ने कहा कि, हम इसकी खेती कृषि फार्म में करेंगे , क्योंकि हमारे पास पहले से ही कई फार्म उपलब्ध हैं. इतना ही नहीं, उन्होंने ये भी कहा कि, हम पश्चिम बंगाल में अफीम उगा सकते हैं, जिस पर उन्होंने विरोधियों से समर्थन मांगा.


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ख़ास है आलू पोस्तो और पोस्तो बड़ा

आलू पोस्तो और पोस्तो बड़ा पश्चिम बंगाल के बंगालियों के लिए बेहद कास व्यंजन है. यहां पर आलू के साथ खसखस को पीसकर सब्जी बनाई जाती है. जिसे आलू पोस्तो कहते हैं. यह सब्जी बंगाल के ज्यादातर घरों में बनाई जाती है. लेकिन पश्चिम बंगाल में पोस्तो की कीमत काफी ज्यादा है, जिस वजह से हर कोई इसे खरीद नहीं सकता. इसके आलवा पोस्तो का बड़ा भी पोस्तो को पीसकर तैयार किया जाता है. बंगाल की यह दोनों पारम्परिक डिशेज हैं, जिस वजह से सीएम ने पोस्तो की खेती राज्य में करने की बात कही.

आसमान छू रहे खसखस के दाम

बंगाल में खसखस एक हजार रुपये किलो तक बिक रहा है. जिसे लेकर सीएम ममता बनर्जी ने कहा कि अन्य राज्यों से भारी कीमत में पोस्त दाना खरीदना पड़ रहा है. जिस वजह से सीएम ममता बनर्जी ने बंगाल में अफीम की खेती करने के लिए केंद्र को एक पत्र लिखा है. उनका कहना है कि, राज्य में अफीम उगाएंगे तो हम उन्हें एक हजार के बजार सौ रुपये प्रति किलो की दर पर खरीद सकेंगे.

पोस्तो नहीं है ड्रग्स

विरोधी दलों से समर्थन मांगते हुए ममता बनर्जी ने कहा कि, फैसला लें और केंद्र को पत्र लिखें, क्योंकि पोस्तो को ड्रग नहीं है. पोस्त महंगा है, क्योंकि इसकी खेती कुछ ही राज्यों में की जाती है. लेकिन अफीम खेती से बंगाल के लोग इससे बने व्यंजनों का स्वाद चख पाएंगे और किसानों को मुनाफा भी होगा.
कृषि क्षेत्र में तकनीक का उपयोग कर इस राज्य में बड़े पैमाने पर क्राप सर्वेक्षण

कृषि क्षेत्र में तकनीक का उपयोग कर इस राज्य में बड़े पैमाने पर क्राप सर्वेक्षण

उत्तर प्रदेश राज्य में -खसरा एप के माध्यम से किसानों को सहायता मिलेगी। यूपी के कृषि मंत्री का कहना है, कि कृषि में तकनीक का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है।  कृषि क्षेत्र में तकनीकी इस्तेमाल में बीते कुछ दिनों में बेहद बड़ा है। इसी कड़ी में फिलहाल उत्तर प्रदेश में -खसरा एप का आरंभ किया गया है। एप की शुरुआत पर राज्य के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही का कहना है, कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री किसानों के फायदों का ख्याल रख रहे हैं। साथ ही, किसानों के लिए विभिन्न योजनाऐं भी जारी की जा रही हैं। आगे इस लेख में हम आपको बताऐंगे कि ये -खसरा एप क्या है एवं यह कृषकों के लिए किस तरह लाभकारी है।

कृषि क्षेत्र में तकनीक का अधिकतम प्रयोग - सूर्य प्रताप शाही 

कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही का कहना है, कि कृषि क्षेत्र में तकनीक का अधिक से अधिक उपयोग हो रहा है। इसके अंतर्गत समस्त फसलों का डिजिटल सर्वेक्षण कराया जा रहा है। उनका कहना है, कि एग्रीस्टैक योजना के अंतर्गत -खसरा पड़ताल भारत सरकार की एक परिवर्तनकारी परियोजना है। इसका मकसद भारत के कृषि पारिस्थितिकी तंत्र का डिजिटल प्रारूप तैयार करना है। ये भी पढ़ें:
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पायलट योजना के तहत डिजिटल क्राप सर्वे  

कृषि मंत्री का कहना है, कि खरीफ 2023 में राज्य के कुल गाटा संख्या 7.87 करोड़ के 20 फीसद गाटा को सम्मिलित करने के लिए पायलट योजना के तौर पर 21 जनपदों में पूरी तरह से और 54 जिलों में 10 ग्राम पचांयतों में डिजिटल क्राप सर्वे का काम शुरू किया गया। योजना के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा तैयार की गई मोबाइल एप के जरिए से राज्य के 21 जनपदों सुल्तानपुर, वाराणसी, जौनपुर, प्रतापगढ़, मिर्जापुर, मुरादाबाद, जालौन, चित्रकूट, फर्रुखाबाद, अयोध्या, चंदौली, झांसी, बस्ती, हरदोई, देवरिया, गोरखपुर, भदोही, संत कबीर नगर, औरैया, महोबा और हमीरपुर में खरीफ 2023 में 1,15,89,645 गाटों का सर्वेक्षण हुआ।

उत्तर प्रदेश के कितने जनपदों में सर्वेक्षण किया जाऐगा 

रबी सीजन 2023-24 में राज्य के समस्त जनपदों में शत-प्रतिशत फसल सर्वेक्षण का काम -खसरा पड़ताल के जरिए से किया जाना सुनिश्चित किया गया है। इस प्रक्रिया को मोबाइल एप के जरिए किया गया है। राज्य के 75 जनपदों में 110221 राजस्व ग्राम हैं, जिनमें 7 करोड़ 87 लाख 73 हजार 211 गाटे हैं, जिनमें से 95270 का जिओ रेफरेंस नक्शा है। इनमें 6 करोड़ 69 लाख 37 हजार 766 जिओ रेफरेंस गाटा शामिल हैं, जिनमें -खसरा पड़ताल की आवश्यकता है। सर्वे राज्य के समस्त 75 जनपदों में होगा और 15 फरवरी तक पूर्ण होगा। राजस्व विभाग के समस्त लेखपालों एवं कृषि विभाग के तकनीकी सहायकों, बीटीएम, एटीएम और पंचायत सहायकों को इस कार्य में सर्वेयर के तौर पर काम करना होगा।