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भारत सरकार ने मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किये तीन नए उत्कृष्टता केंद्र

भारत सरकार ने मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किये तीन नए उत्कृष्टता केंद्र

भारत दुनिया में मोटे अनाजों (Coarse Grains) का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, इसलिए भारत इस चीज के लिए तेजी से प्रयासरत है कि दुनिया भर में मोटे अनाजों की स्वीकार्यता बढ़े। 

इसको लेकर भारत ने साल 2018 को मिलेट्स ईयर के तौर पर मनाया था और साथ ही अब साल 2023 को संयुक्त राष्ट्र संघ इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (आईवायओएम/IYoM-2023) के तौर पर मनाएगा। इसका सुझाव भी संयुक्त राष्ट्र (United Nations) संघ को भारत सरकार ने ही दिया है, जिस पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने सहमति जताई है।

इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें देश के भीतर मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार ने देश में तीन नए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किये हैं, जो देश में मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ाने में सहायक होंगे, साथ ही ये उत्कृष्टता केंद्र देश में मोटे अनाजों के प्रति लोगों को जागरूक भी करेंगे।

  • इन तीन उत्कृष्टता केंद्रों में से पहला केंद्र बाजरा (Pearl Millet) के लिए  चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार (Chaudhary Charan Singh Haryana Agricultural University, Hisar) में स्थापित किया गया है। यह केंद्र पूरी तरह से बाजरे की खेती के लिए, उसके उत्पादन के लिए तथा उसके प्रचार प्रसार के लिए बनाया गया है, इसके साथ ही यह केंद्र लोगों के बीच बाजरे के फायदों को लेकर जागरूक करने का प्रयास भी करेगा।
  • इसी कड़ी में सरकार ने दूसरा उत्कृष्टता केंद्र भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद (Indian Institute of Millets Research (IIMR)) में स्थापित किया है। यह केंद्र ज्वार (Jowar) की खेती को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है। यह केंद्र देश भर में ज्वार की खेती के प्रति लोगों को जागरूक करेगा, साथ ही लोगों के बीच ज्वार से होने वाले फायदों को लेकर जागरूकता फैलाएगा।
  • इनके साथ ही तीसरा उत्कृष्टता केंद्र कृषि विज्ञान विश्विद्यालय, बेंगलुरु (University of Agricultural Sciences, GKVK, Bangalore) में स्थापित किया गया है। यह उत्कृष्टता केंद्र छोटे मिलेट्स जैसे कोदो, फॉक्सटेल, प्रोसो और बार्नयार्ड इत्यादि के उत्पादन और प्रचार प्रसार के लिए बनाया गया है।
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मोटे अनाजों में मुख्य तौर पर ज्वार, बाजरा, मक्का, जौ, फिंगर बाजरा और अन्य कुटकी जैसे कोदो, फॉक्सटेल, प्रोसो और बार्नयार्ड इत्यादि आते हैं, इन सभी को मिलाकर भारत में मोटा अनाज या मिलेट्स (Millets) कहते हैं। 

इन अनाजों को ज्यादातर पोषक अनाज भी कहा जाता है क्योंकि इन अनाजों में चावल और गेहूं की तुलना में 3.5 गुना अधिक पोषक तत्व पाए जाते हैं। मोटे अनाजों में पोषक तत्वों का भंडार होता है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद फायदेमंद होते हैं। 

मिलेटस में मुख्य तौर पर बीटा-कैरोटीन, नाइयासिन, विटामिन-बी6, फोलिक एसिड, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जस्ता आदि खनिजों के साथ विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। 

इन अनाजों का सेवन लोगों के लिए बेहद फायदेमंद होता है, इनका सेवन करने वाले लोगों को कब्ज और अपच की परेशानी होने की संभावना न के बराबर होती है। 

ये अनाज बेहद चमत्कारिक हैं क्योंकि ये अनाज विपरीत परिस्तिथियों में भी आसानी से उग सकते हैं, इनके उत्पादन के लिए पानी की बेहद कम आवश्यकता होती है। 

साथ ही प्रकाश-असंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन का भी इन अनाजों पर कोई ख़ास प्रभाव नहीं पड़ता, इसलिए इनका उत्पादन भी ज्यादा होता है और इन अनाजों का उत्पादन करने से प्रकृति को भी ज्यादा नुकसान नहीं होता। 

आज के युग में जब पानी लगातार काम होता जा रहा है और भूमिगत जल नीचे की ओर जा रहा है ऐसे में मोटे अनाजों का उत्पादन एक बेहतर विकल्प हो सकता है क्योंकि इनके उत्पादन में चावल और गेहूं जितना पानी इस्तेमाल नहीं होता। 

यह अनाज कम पानी में भी उगाये जा सकते हैं जो पर्यावरण के लिए बेहद अनुकूल हैं। मोटे अनाजों का उपयोग मानव अपने खाने के साथ-साथ जानवरों के खाने के लिए भी कर सकता है, इन अनाजों का उपयोग भोजन के साथ-साथ, पशुओं के लिए और पक्षियों के चारे के रूप में भी किया जाता है। ये अनाज हाई पौष्टिक मूल्यों वाले होते हैं जो कुपोषण से लड़ने में सहायक होते हैं।

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मोटे अनाजों का उत्पादन देश में कर्नाटक, राजस्थान, पुद्दुचेरी, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश इत्यादि राज्यों में ज्यादा किया जाता है, क्योंकि यहां की जलवायु मोटे अनाजों के उत्पादन के लिए अनुकूल है और इन राज्यों में मिलेट्स को आसानी से उगाया जा सकता है, 

इसके साथ ही इन राज्यों के लोग अब भी मोटे अनाजों के प्रति लगाव रखते हैं और अपनी दिनचर्या में इन अनाजों को स्थान देते हैं। इसके अलावा इन अनाजों का एक बहुत बड़ा उद्देश्य पशुओं के लिए चारे की आपूर्ति करना है। मोटे अनाजों के पेड़ों का उपयोग कई राज्यों में पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है, 

इनके पेड़ों को मशीन से काटकर पशुओं को खिलाया जाता है, इस मामले में हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश टॉप पर हैं, जहां मोटे अनाजों का इस उद्देश्य की आपूर्ति के लिए बहुतायत में उत्पादन किया जाता है। 

मोटे अनाजों के कई गुणों को देखते हुए सरकार लगतार इसके उत्पादन में वृद्धि करने का प्रयास कर रही है। जहां साल 2021 में 16.93 मिलियन हेक्टेयर में मोटे अनाजों की बुवाई की गई थी, 

वहीं इस साल देश में 17.63 मिलियन हेक्टेयर में मोटे अनाजों की बुवाई की गई है। अगर वर्तमान आंकड़ों की बात करें तो देश में हर साल 50 मिलियन टन से ज्यादा मिलेट्स का उत्पादन किया जाता है।

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इन मोटे अनाजों में मक्के और बाजरे का शेयर सबसे ज्यादा है। ज्यादा से ज्यादा किसान मोटे अनाजों की खेती की तरफ आकर्षित हों इसके लिए सरकार ने लगभग हर साल मोटे अनाजों के सरकारी समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी की है। इन अनाजों को सरकार अब अच्छे खासे समर्थन मूल्य के साथ खरीदती है। 

जिससे किसानों को भी इस खेती में लाभ होता है। बीते कुछ सालों में इन अनाजों के प्रचलन का ग्राफ तेजी से गिरा है। आजादी के पहले देश में ज्यादातर लोग मोटे अनाजों का ही उपयोग करते थे, लेकिन अब लोगों के खाना खाने का तरीका बदल रहा है, 

जिसके कारण लोगों की जीवनशैली प्रभावित हो रही है और लोगों को मधुमेह, कैंसर, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां तेजी से घेर रही हैं। इन बीमारियों की रोकथाम के लिए लोगों को अपनी थाली में मोटे अनाजों का प्रयोग अवश्य करना चाहिए, जिसके लिए सरकार लगातार प्रयासरत है। 

मोटे अनाजों के फायदों को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्हें 'सुपरफूड' बताया है। अब पीएम मोदी दुनिया भर में इन अनाजों के प्रचार के लिए ब्रांड एंबेसडर बने हुए हैं। 

"अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 की समयावधि तक कृषि मंत्रालय ने पूर्व में शुरू किए गए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन और प्राचीन तथा पौष्टिक अनाज को फिर से खाने के उपयोग में लाने पर जागरूकता फैलाने की पहल" से सम्बंधित सरकारी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें । 

पीएम नरेंद्र मोदी ने हाल ही में उज्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित हुए शंघाई सहयोग संगठन की बैठक को सम्बोधित करते हुए मोटे अनाजों को 'सुपरफूड' बताया था। 

उन्होंने अपने सम्बोधन में इन अनाजों से होने वाले फायदों के बारे में भी बताया था। पीएम मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन के विभिन्न नेताओं के बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलेट्स फूड फेस्टिवल के आयोजन की वकालत की थी। 

उन्होंने बताया था की इन अनाजों के उत्पादन के लिए कितनी कम मेहनत और पानी की जरुरत होती है। इन चीजों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार लगातार मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए और प्रचारित करने के लिए प्रयासरत है।

सरकार इस कारण से आगामी दिनों में मुफ्त राशन देना बंद कर सकती है

सरकार इस कारण से आगामी दिनों में मुफ्त राशन देना बंद कर सकती है

केंद्र सरकार की निःशुल्क राशन योजना इसी माह में समाप्त हो सकती है। इसकी वजह यह है, कि सरकार के पास वितरण करने हेतु बेहद सीमित अनाज उपलब्ध है। नतीजतन सरकार की निःशुल्क राशन योजना इसी महीने बंद होने की संभावना है। सरकार का यह भी कहना है, कि फिलहाल अनाज वितरण की कोई खास वजह निकट भविष्य में दिखाई भी नहीं दे रही है। साथ ही, खुले बाजार में गेहूं की कीमत में वृद्धि सरकार को विवश कर सकती है, कि वह अपने अनाज भंडारण से कुछ गेहूं बाजार में बेचे। जिससे आपूर्ति सामान्य हो सके एवं गेहूं के बढ़ते मूल्यों पर कुछ नियंत्रण किया जा सके।

गेंहू का कितना भाव बढ़ा है

विगत दो माह के चलते खुले बाजार में गेहूं का भाव १३ प्रतिशत से अधिक हो चुका है। लगभग दो माह पूर्व दिल्ली में गेहूं २५६० रुपए प्रति क्विंटल पर विक्रय किया जा रहा था। परंतु फिलहाल मूल्य २९०० रुपए से अधिक बना हुआ है और गेहूं के भावों में आयी इस वृद्धि से आटा भी महंगा हो गया है। गेहूं की वजह से आटे का भी महंगा होना सरकार के लिए समस्या खड़ी कर सकता है। इससे निपटने के लिए सरकार स्वयं के भंडारण से खुले बाजार में गेहूं विक्रय करना पड़ेगा।


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कुछ खबरों के अनुसार, यह दावा भी किया गया है, कि आगामी दिनों में सरकार स्वयं के भंडार से २०-३० लाख टन गेहूं खुले बाजार में विक्रय कर सकता है। यह भी ज्ञात रहे, कि केंद्र सरकार द्वारा मुफ्त राशन योजना पीएमजीकेएवाई (PMGKAY) के माध्यम से राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को अभी तक करीब ३.९१ लाख करोड़ रुपये की खाद्य सब्सिडी के साथ १,११८ लाख टन खाद्यान्न आवंटित किया है।
दुग्ध उत्पादन से मोटा मुनाफा लेने के लिए इन तीन गायों को पालें किसान

दुग्ध उत्पादन से मोटा मुनाफा लेने के लिए इन तीन गायों को पालें किसान

इस गाय की प्रतिदिन औसतन 12 से 20 लीटर दूध देने की क्षमता है। यदि आप इस गाय का बेहतर ढंग से देखभाल रखें तो यह पाया गया है, कि यह गाय प्रतिदिन 50 से 60 लीटर दूध भी दे सकती है। भारत में इस समय डेयरी का व्यवसाय बड़ी तीव्रता से फैलता जा रहा है। दूध के व्यापार से लोग प्रति माह लाखों का मुनाफा अर्जित कर रहे हैं। दरअसल, दुग्ध व्यवसाय को करने के लिए भी तकनीक एवं नॉलेज की काफी आवश्यकता होती है। यदि आप बेहतर मवेशियों के साथ यह व्यवसाय आरंभ करते हैं, तो आपको निश्चित तौर पर अच्छा-खासा मुनाफा मिलेगा। वर्ना आप इसमें उतना पैसा नहीं कमा पाएंगे। हम आपको आज इस लेख में बताएंगे कि आप किन तीन प्रजातियों की गायों को पाल कर एक माह में मोटा मुनाफा कमा सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि अब गाय पालन के लिए सरकार की तरफ से भी मदद मिलती है। मतलब कि आपको यह व्यवसाय चालू करने के लिए अत्यधिक निवेश भी नहीं करना पड़ेगा।

देश में दुग्ध उत्पादन की काफी आवश्यकता है

भारत में दुग्ध उत्पादन करना किसान और पशुपालकों के लिए फायदे का सौदा होता है। दुग्ध उत्पादन करने से आज भी देश के अधिकांश किसान अपनी आजीविका चलाते हैं। आजीविका को चलाने के लिए कृषि के साथ-साथ किसान पशुपालन कर दूध बेचकर आमदनी करते हैं। बतादें कि भारत में दूध की अच्छी खासी खपत है। इसलिए दूध की आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए बेहतर नस्ल के मवेशी पालना बेहद आवश्यक है।

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प्रथम नस्ल गिर गाय

गिर गाय भारत में सबसे अधिक दूध देने वाली गाय मानी जाती है। गिर नस्ल की गाय के थन काफी अधिक बड़े होते हैं। यह गाय गुजरात के गीर के जंगलों में मिलती हैं। दरअसल, वर्तमान में इसको संपूर्ण भारत में पाला जाने लगा है। यह गाय प्रति दिन औसतन 12 से 20 लीटर दूध देती है। परंतु, यदि आप इस गाय का बेहतर ढ़ंग से ध्यान रखते हैं तो ऐसा पाया गया है, कि यह गाय 50 से 60 लीटर दूध भी प्रति दिन दे सकती है। अब आप सोचिए यदि आप इस प्रकार की तीन चार गाय भी रखते हैं, तो प्रति माह केवल इनका दूध बेचकर कितना धन कमा सकते हैं।

द्वितीय स्थान पर लाल सिंधी गाय

यह लाल सिंधी गाय सिंध के इलाके में पाई जाती है। जो कि इसके नाम से ही पता चलता है। साथ ही, यह गाय दिखने में थोड़ी लाल रंग की होती है। इसलिए इस गाय को लाल सिंधी गाय कहा जाता है। आजकल यह गाय ओडिशा, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक और केरल में भी बड़ी मात्रा में पाली जाती है। उत्तर प्रदेश और बिहार में भी कुछ किसान इस गाय को पालने का कार्य कर रहे हैं। यह गाय प्रतिदिन 15 से 20 लीटर दूध देती है। हालांकि, यदि आपने इसकी बेहतर ढंग से देखभाल रखी तो यह प्रतिदिन 40 से 50 लीटर भी दूध दे सकती है।

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तृतीय स्थान पर साहिवाल गाय

बतादें कि तीसरे स्थान पर आने वाली साहिवाल गाय आपको मध्य प्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में काफी नजर पड़ती है। इन राज्यों में किसानों के मध्य यह गाय सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। औसतन यह गाय प्रति दिन 10 से 15 लीटर दूध देती है। परंतु, यदि आप इस गाय का अच्छे से खानपान और देखभाल रखेंगे तो यह आपको प्रतिदिन 30 से 40 लीटर भी दूध दे सकती है। इस गाय की सबसे अच्छी बात यह होती है, कि इसे कम जगह में भी आसानी से रखा जा सकता है। इसका अधिक ध्यान रखने की भी आवश्यता नहीं पड़ती।
जानें ग्राफ्टिंग विधि से खेती करने से कितने फायदे होते हैं

जानें ग्राफ्टिंग विधि से खेती करने से कितने फायदे होते हैं

सामान्य तौर पर सबका मानना है, कि एक पेड़ पर एक ही किस्म का फल प्राप्त होता है। परंतु, क्या आपको मालूम है कि एक ऐसी तकनीक है, जिसके माध्यम से हम एक पेड़ से बहुत सारे फल अर्जित कर सकते हैं। 

आइए इस लेख में आगे हम इसके बारे में विस्तार से जानेंगे। आपकी जानकारी के लिए बतादें कि कुछ लोगों को घरों में अथवा गार्डेन में विभिन्न प्रकार के पौधे लगाने का शौक होता है। 

गार्डेनिंग का शौक रखने वाले नर्सरी से विभिन्न किस्मों के पौधे लाकर अपने बगीचे में रोपते हैं। ऐसे शौकीन लोगों के लिए ग्राफ्टिंग तकनीक बेहद ही फायेदमंद साबित होती है। हालांकि, यह तकनीक कृषि क्षेत्र में भी काफी कारगर होती है।

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ग्राफ्टिंग एक ऐसी तकनीक है, जिसमें दो पौधों को जोड़ कर एक नया पौधा तैयार किया जाता है, जो मूल पौधे की तुलना में अधिक पैदावार प्रदान करता है। 

ग्राफ्टिंग विधि द्वारा तैयार किये गए पौधे की खासियत यह है कि, इसमें दोनों पौधों के गुण और विशेषताएं रहती हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें कि, ग्राफ्टिंग तकनीक का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के पौधों को तैयार करने के लिए किया जाता है। इस तकनीक का इस्तेमाल आम, जामुन, गुलाब, सेब एवं संतरे जैसे बहुत सारे बारहमासी पौधो पर किया जाता है।

ग्राफ्टिंग कितने प्रकार की होती है

  • एप्रोच ग्राफ्टिंग – Approach grafting
  • साइड ग्राफ्टिंग – Side grafting
  • स्प्लिस ग्राफ्टिंग – Splice grafting
  • सैडल ग्राफ्टिंग – Saddle grafting
  • फ्लैट ग्राफ्टिंग – Flat grafting
  • क्लेफ्ट ग्राफ्टिंग – Cleft grafting
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ग्राफ्टिंग किस प्रकार की जाती है

घर के गार्डेन में पौधों की ग्राफ्टिंग करना बेहद ही सुगम है। इसके साथ ही ग्राफ्टेड पौधे शीघ्रता से तैयार हो जाते हैं। गार्डन में पौधों की ग्राफ्टिंग करने के लिए जड़ वाले पौधे यानी कि रूट स्टॉक एवं सायन और कलम वाले पौधे को लिया जाता है। 

अब रूट स्टॉक और सायन को एक दूसरे से जोड़ने के लिए दोनों के सिरों को 1-5 इंच तक चाकू के माध्यम से तिरछा काटें। इसके उपरांत सायन के तिरछे कटे भाग को रूट भंडार के कटे हिस्से के ऊपर लगाते हैं। 

उसके पश्चात दोनों कटे हुए भागों को आपस में जोड़कर एक टेप की सहायता से बाँध देते हैं। इसके उपरांत रूट स्टॉक और सायन ऊतक आपस में जुड़ने लग जाते हैं। इस विधि के माध्यम से पौधों की उन्नति होनी चालू हो जाती है। इस तरह इस विधि द्वारा पौधों को विकसित कर सकते हैं।

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ग्राफ्टिंग तकनीक से खेती करने के लाभ

  • ग्राफ्टिंग तकनीक से तैयार पौधों का आकार बेशक छोटा हो परंतु, इनमें फल-फूल शीघ्र लगने लगते हैं।
  • ग्राफ्टिंग करने से पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ जाती है, इससे पौधों में रोग भी कम लग पाता है।
  • ग्राफ्टिंग से तैयार पौधों को अत्यधिक देखभाल की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
  • ग्राफ्टेड पौधों की गुणवत्ता एवं विशेषता बीजों द्वारा रोपे गए पौधों से बेहतर होती है।
  • ग्राफ्टिंग तकनीक का उपयोग करके हम फल तथा फूलों के पौधों को सहजता से तैयार कर सकते हैं।
  • ग्राफ्टिंग से तैयार पौधे से लगभग वर्षभर फूल अथवा फल अर्जित होते हैं।
  • ग्राफ्टिंग विधि से तैयार पौधों को घर पर गमले की मृदा में भी रोपा जा सकता है।