किन्नू और संतरे की फसल के रोग और उनकी रोकथाम | Merikheti

किन्नू और संतरे की फसल के रोग और उनकी रोकथाम

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किन्नू और संतरे की फसल कई रोगों से ग्रषित होती है। इन रोगों की जानकारी और रोकथाम निम्नलिखित हैं :

1. गमोसिस (Gummosis)

इसके लक्षण पत्तियों के पीलेपन के रूप में प्रकट होते हैं, इसके बाद छाल का चटकना और अधिक मात्रा में सतह पर गोंद लगना। संक्रमण का मुख्य स्रोत संक्रमित रोपण सामग्री है। गम्भीर संक्रमण के कारण छाल पूरी तरह से सड़ जाती है और करधनी के कारण पेड़ सूख जाता है।

प्रभाव

पौधा आमतौर पर भारी रूप से फूलों से खिलता है और फल बनने से पहले ही मर जाता है। ऐसे मामलों में, रोग को फुट रूट या कॉलर-रूट कहा जाता है। ये रोग उन स्थानों पर ज्यादा आता है, जहाँ पर खेत में अधिक पानी खड़ा रहता है।

उपाय

उपाय जैसे पर्याप्त जल निकासी का प्रबंधन करना, साथ ही उचित स्थल का चयन, रिंग विधि का उपयोग अपनाकर और पेड़ के तने को पानी के संपर्क से बचाना है। वैकल्पिक रूप से रोग के हिस्सों को एक तेज चाकू से खुरच कर निकाल देना चाहिए इसके बाद कटी हुई सतह को मर्क्यूरिक क्लोराइड (0.1%) या पोटेशियम परमैंगनेट के घोल से कीटाणुरहित कर देना चाहिए। जमीनी स्तर से 1 मीटर ऊपर तने की पेंटिंग रोग को नियंत्रित करने में मदद करता है। साथ ही, रिडोमिल एमजेड 72 @ 2.75 ग्राम/ली का छिड़काव और ड्रेंचिंग करें या एलियट (2.5 ग्राम/लीटर) रोग को नियंत्रित करने में प्रभावी है।

2. स्कैब या वेरिकोसिस

प्रारंभिक अवस्था में घाव पत्तियों की निचली सतह पर छोटे अर्ध-पारभासी छिद्र के रूप में दिखाई देते हैं। अंत में पत्तियां झुर्रीदार, टूटी हुई और जल जाती हैं। फलों पर, घाव गहरे बने होते हैं, जो आखिर में मिल कर पूरे फलों को खराब कर देते हैं।

उपाय

रोगग्रस्त पत्तियों, टहनियों और फलों को एकत्र कर नष्ट कर देना चाहिए। कार्बेन्डाजिम 0.1% का छिड़काव करना काफी प्रभावी है।

3. कंकेर

ये रोग पत्ती, टहनी और फलों को प्रभावित करता है। पत्ते पर घाव आमतौर पर पीले रंग के साथ गोलाकार होते हैं और ये खोखले होते हैं व पत्तीयों के दोनों किनारों पर दिखाई देते हैं। ज्यादा बीमारी फैलाने पर फलों पर भी धब्बे बन जाते हैं। फलों पर धब्बे बनने के कारण बाजार मूल्य को कम करते हैं। ये रोग लीफ मायनर के द्वारा फैलता है, तो हमें सब से पहले इस किट को नियंत्रण करना होगा।

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उपाय

इस बीमारी के उपचार के लिए स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 500-1000 पीपीएम या फाइटोमाइसिन 2500 पीपीएम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.2% को पानी के साथ घोल बनाकर 15 के अंतराल पर छिड़काव करें। नया फल आने से पहले लीफ माइनर को नियंत्रित करने के लिए किसी भी कीटनाशी का प्रयोग करें। मानसून की शुरुआत से पहले संक्रमित टहनियाँ की कटाई – छँटाई जरूर करें।

4. हरितमा रोग

इस रोग के लक्षण पत्तियों का झड़ना, पौधे पर बहुत कम पत्तियां रह जाना और पत्तियां छोटी हो जाती हैं। टहनियाँ आगे से पीछे की ओर सूखने लग जाती हैं। पौधे पर बिना मौसम के फूल आ जाते हैं, जो फल बनते हैं वो छोटे होते हैं या पकने के बाद भी हरे ही रह जाते हैं। ये एक विषाणू जनक रोग है और ये रोग सिट्रस सिल्ला नामक कीट के द्वारा फलता है। इस के लिए सब से पहले इस कीट को नियंत्रित करें। इस को नियंत्रित करने के लिए फॉस्फॅमिडों 25 ML या पैराथीओन 25ML या इमिडाक्लोप्रिड कीटनाशक का प्रयोग 10 लीटर पानी की दर से मिला कर पौधे के ऊपर स्प्रे करें। टेट्रासाइक्लिन 500 पीपीएम का स्प्रे भी रोग के रोकथाम में बहुत उपयोगी है।

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