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Radish

मार्च माह में बागवानी फसलों में किये जाने वाले आवश्यक कार्य

मार्च माह में बागवानी फसलों में किये जाने वाले आवश्यक कार्य

किसानों द्वारा बीज वाली सब्जियों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। किसानों द्वारा सब्जियों में चेपा की निगरानी करते रहना चाहिए। यदि चेपा से फसल ग्रसित है तो इसको नियंत्रित करने के लिए 25 मिली इमेडाक्लोप्रिड को प्रति लीटर पानी में मिलाकर, आसमान साफ़ होने पर छिड़काव करें। पके फलों की तुड़ाई छिड़काव के तुरंत बाद न करें। पके फलों की तुड़ाई कम से कम 1 सप्ताह बाद करें। 

1. कद्दूवर्गीय सब्जियों की बुवाई भी इस माह में की जाती है। कद्दूवर्गीय सब्जियाँ जैसे खीरा, लौकी, करेला, तोरी, चप्पन कद्दू, पेठा, तरबूज और खरबूजा है। इन सभी सब्जियों की भी अलग अलग किस्में है। 

  • खीरा - जापानीज लोंग ग्रीन, पूसा उदय,पोइंसेटऔर पूसा संयोग। 
  • लौकी - पूसा सन्देश, पूसा हाइब्रिड, पूसा नवीन, पूसा समृद्धि, पूसा संतुष्टी और पीएसपीएल।
  • करेला - पूसा दो मौसमी ,पूसा विशेष पूसा हाइब्रिड। 
  • चिकनी तोरी - पूसा स्नेहा, पूसा सुप्रिया। 
  • चप्पन कद्दू - ऑस्ट्रेलियन ग्रीन, पैटी पेन, पूसा अलंकार। 
  • खरबूजा - हरा मधु,पंजाब सुनहरी,दुर्गापुरा मधु,लखनऊ सफेदा और पंजाब संकर। 

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2. भिन्डी और लोबिया की बुवाई भी इसी समय की जाती है। भिन्डी की अगेती बुवाई के लिए ए-4 और परभनी क्रांति जैसी किस्मों को अपनाया जा सकता है। लोबिया की उन्नत किस्में पूसा कोमल, पूसा सुकोमल और पूसा फागुनी जैसी किस्मों की बुवाई की जा सकती है। दोनों फसलों के बीज उपचार के लिए 2 ग्राम थीरम या केपटान से 1 किलोग्राम बीज को उपचारित करें। 

3. इस वक्त प्याज की फसल में हल्की सिंचाई करे। प्याज की फसल की इस अवस्था में किसी खाद और उर्वरक का उपयोग न करें। उर्वरक देने से केवल प्याज के वानस्पतिक भाग की वृद्धि होगी ना की प्याज की, इसकी गाँठ में कम वृद्धि होती है। थ्रिप्स के आक्रमण की निरंतर निगरानी रखे। थ्रिप्स कीट लगने पर 2 ग्राम कार्बारिल को 4 लीटर पानी में किसी चिपकने पदार्थ जैसे टीपोल की 1 ग्राम मात्रा को मिलाकर छिड़काव करें। लेकिन छिड़काव करते वक्त ध्यान रखे मौसम साफ होना चाहिए। 

4. गर्मियों के मौसम में होने वाली मूली की बुवाई के लिए यह माह अच्छा है। मूली की सीधी बुवाई के लिए तापमान भी अनुकूल है। इस मौसम में बीजों का अंकुरण अच्छा होता है। मूली की बुवाई के लिए बीज किसी प्रमाणित स्रोत से ही प्राप्त करें। 

5. लहसुन की फसल में इस वक्त ब्लोच रोग अथवा कीटों का भी आक्रमण हो सकता है। इससे बचने के लिए 2 ग्राम मेंकोजेब को 1 ग्राम टीपोल आदि के साथ मिलाकर छिड़काव करें। 

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6. इस मौसम में बैगन की फसल में फली छेदक कीट को नियंत्रित करने के लिए किसान इस कीट से ग्रस्त पौधों को एकट्ठा करके जला दे। यदि इस कीट का प्रकोप ज्यादा है तो 1 मिली स्पिनोसेड को 4 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दे। टमाटर की खेती में होने वाले फली छेदक कीटों को नियंत्रित करने के लिए इस उपाय को किया जा सकता है।

उद्यान 

इस माह में आम की खेती में किसी भी प्रकार के कीटनाशी का उपयोग ना करें। लेकिन आम के भुनगे का अत्यधिक प्रकोप होने पर 0.5 % मोनोक्रोटोफॉस के घोल का छिड़काव किया जा सकता है। आम में खर्रा रोग के प्रकोप होने पर 0.5 % डिनोकैप के घोल का छिड़काव किया जा सकता है। 

अंगूर, आड़ू और आलूबुखारा जैसे फलों में नमी की कमी होने पर सिंचाई करें। साथ ही मौसम को ध्यान में रखते हुए गेंदे की तैयार पौध की रोपाई करें। गेंदे की रोपाई करने से पहले खेत में खाद की उचित मात्रा डाले। गेंदे की रोपाई खेत में उचित नमी होने पर ही करें। खरपतवारो को खेत में उगने ना दे। समय समय पर खेत की नराई , गुड़ाई करते रहना चाहिए। 

मूली की सफल खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

मूली की सफल खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

मूली की फसल बीज बुवाई के 1 महीने की समयावधि में पककर तैयार हो जाती है। सलाद में एक विशेष स्थान रखने वाली मूली सेहत के लिए अत्यंत फायदेमंद और अहम महत्व रखती है। 

मूली की खेती हर जगह काफी आसानी से की जा सकती है। बतादें, कि मूली अधिक तापमान के प्रति सहनशील है, किन्तु सुगंध विन्यास और आकार के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। 

क्योंकि, तापमान ज्यादा होने की वजह से जड़ें कठोर और चरपरी हो जाती हैं। मूली की सफल खेती के लिए 10-15 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे अच्छा माना गया है। 

आज के वक्त में यह कहना कि सही नहीं होगा कि मूली केवल इसी मौसम में लगाई जाती है या लगाई जानी चाहिए। क्योंकि, मूली की उपलब्धता सर्दी, गर्मी और बरसात हर सीजन में बरकरार होती है।

मूली की खेती के लिए भूमि की तैयारी  

मूली की बेहतरीन पैदावार पाने के लिए रेतीली दोमट और दोमट मृदा ज्यादा उपयुक्त रहती है। मटियार भूमि मूली की फसल उत्पादकता के लिए अनुकूल नहीं होती है। 

क्योंकि, इसमें जड़ों का सही से विकास नहीं हो पाता है। बीज उत्पादन के लिए ऐसी जमीन का चुनाव करना चाहिए, जिसमें पानी के निकास की बेहतरीन व्यवस्था हो और फसल के लिए प्रर्याप्त मात्रा में जैविक पदार्थ उपलब्ध हो। 

मृदा गहराई तक हल्की, भुरभुरी व कठोर परतों से मुक्त होनी चाहिए। उसी खेत का चुनाव करें जिसमें विगत एक साल में बोई जाने वाली किस्म के अतिरिक्त कोई दूसरी किस्म बीज उत्पादन के लिए ना उगाई गई हो। 

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किसान भाई 5-6 जुताई कर खेत को बेहतर तरीके से तैयार करलें। मूली के लिए गहरी जुताई की आवश्यकता होती है। क्योंकि, इसकी जड़ें जमीन में गहरी हो जाती हैं। 

गहरी जुताई के लिए ट्रेक्टर या मृदा पलटने वाले हल से जुताई करें। इसके बाद दो बार कल्टीवेटर चलाएं, जुताई के बाद पाटा जरूर लगाएं।

मूली की फसल की बुवाई 

मूली एक ऐसी फसल है, जिसको वर्ष भर उगाया जा सकता है। फिर भी व्यवसायिक स्तर पर इसे मैदानों में सितंबर से जनवरी तक और पहाड़ों में मार्च से अगस्त तक बिजाई की जाती है। 

बतादें, कि साल भर मूली उगाने के लिए इसकी प्रजातियों के मुताबिक, उनकी बुवाई के समय का चयन किया जाता है। जैसे कि मूली की पूसा रश्मि पूसा हिमानी की बुवाई का समय मध्य सितम्बर है तथा जापानी सफेद एवं व्हाईट आइसीकिल किस्म की बुवाई का समय मध्य अक्टूबर है। 

वहीं, पूसा चैत्की की बुवाई मार्च के आखिरी समय में करते हैं और पूसा देशी किस्म कि बुवाई अगस्त माह के बीच में की जाती है। 

मूली की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक प्रबंधन 

मूली की शानदार पैदावार लेने के लिये खेत में 15 से 20 टन गोबर की सड़ी खाद बुवाई के 15 दिन पूर्व खेत में डाल देनी चाहिए। इसके अलावा 80 से 100 किग्रा नत्रजन, 40-60 किग्रा फास्फोरस और 80-90 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है। 

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नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के वक्त ही डाल देनी चाहिए। वहीं, बचे हुए आधे नत्रजन को दो बार में देना अत्यंत लाभकारी होता है। 

मूली की फसल में सिंचाई प्रबंधन   

वर्षा ऋतू की फसल में सिंचाई की कोई आवश्यकता नहीं है। परंतु, गर्मी वाली फसल में 4-5 दिन के अंदर सिंचाई करें। वहीं, सर्दी वाली फसल में 10 से 15 दिन के समयांतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। 

मूली की उन्नत किस्में इस प्रकार हैं ? 

बतादें, कि फसलों व सब्जियों की भाँति मूली की उत्तम उपज के लिए बीज का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण होता है। इसलिए किसान मूली के बीज का बहुत सोच समझकर चयन करें। 

मूली की उन्नत किस्मों में पंजाब सफेद, रैपिड रेड, व्हाइट टिप, पूसा हिमानी, पूसा चेतवी, पूसा रेशमी और हिसार मूली नं. 1 आदि प्रमुख किस्में हैं। पूसा चेतवी जहां मध्यम आकार की सफेद चिकनी मुलायम जड़ वाली है, वहीं यह अत्यधिक तापमान वाले समय के लिए भी अधिक अनुकूल पाई गई है। 

इसी प्रकार पूसा रेशमी भी काफी ज्यादा उपयुक्त है। साथ ही, अगेती किस्म के तोर पर अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसी प्रकार अन्य किस्में भी अपना विशेष महत्व रखती हैं और हर जगह, हर समय लगाई जा सकती हैं। 

मूली की फसल में लगने वाले रोग एवं प्रबंधन

मूली की फसल को एफिड, सरसों की मक्खी, पत्ती काटने वाली सूंडी ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। इसकी रोकथाम के लिए देसी गाय का मूत्र 5 लीटर लेकर 15 ग्राम के आकार के बराबर हींग लेकर पीस कर बेहतरीन ढ़ंग से मिलाकर घोल बनाना चाहिए प्रति 2 ली. पम्प के द्वारा तर-बतर कर छिड़काव करें।

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सफेद गेरुआ रोग: इसमें पत्ती के निचले स्तर पर सफेद फफोले बन जाते है।

रोकथाम: रिडोमिल एम. जेड..78 नामक फफूंदी नाशक को 2-2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

सफेद किट्ट: पत्तियों की निचली सतह पर सफेद पाउडर जैसे धब्बे दिखाई देते हैं। 

रोकथाम: बीज को बोने से पहले अच्छी तरीके से शोधित कर लेना चाहिए. बाविस्टीन, प्रोपीकोनाजोल 1.5-2 मिली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। 

झुलसा रोग: इस रोग में पत्तियों पर गोल.गोल छल्ले के रूप में धब्बे दिखाई पड़ते हैं।

रोकथाम: बीज को बाविस्टीन 1 से 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से सूचित करना चाहिए. मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

मूली की खेती (Radish cultivation in hindi)

मूली की खेती (Radish cultivation in hindi)

सब्जियां हमारे शरीर के लिए बहुत ही उपयोगी होती हैं। सब्जियों में विभिन्न विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व मौजूद होते हैं। जो हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करती हैं जिससे हमारा शरीर कार्य करने योग बनता है। 

उन सब्जियों में से एक मूली (Radish) भी है, जिनको खाने से हमें लाभ होता हैं। मूली की खेती की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे।

मूली की खेती

मूली की फसल किसानों के लिए बहुत ही उपयोगी होती है। यह कम लागत और कम समय में अच्छी उत्पादकता प्रदान करती है। जिससे किसानों को बड़े पैमाने पर इस फसल द्वारा फायदा पहुंचता है और किसान काफी अच्छे आय की प्राप्ति करते हैं।

भारत में मूली उत्पादन करने वाले कुछ मुख्य क्षेत्र है जैसे: पश्चिम बंगाल,असम, हरियाणा गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि क्षेत्रों में मूली की खेती काफी उच्च कोटि पर की जाती है। 

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मूली की ख़ेती के लिए उपयुक्त जलवायु

मूली की खेती करने के लिए सबसे उपयुक्त जलवायु ठंडी की होती हैं। ठंडी में मूली की फसल की अच्छी प्राप्ति होती है किसान ठंडी के मौसम में मूली की खेती कर बहुत ही अच्छा लाभ उठाते हैं। 

मूली की खेती के लिए 10 से 15 डिग्री सेल्सियस का तापमान बहुत ही ज्यादा उपयोगी होता है। कभी-कभी अधिक तापमान की वजह से मूली की जड़े कड़ी और कड़वी रह जाती है। 

इस प्रकार अधिक तापमान मूली की फसल के लिए उपयोगी नहीं है।किसानों द्वारा आप मूली की फसल को सालभर उगा सकते हैं पर उच्च मौसम ठंडी का है। 

मूली की ख़ेती के लिए भूमि को तैयार करना

मूली की ख़ेती के लिए भूमि का अच्छे से चयन कर लेना चाहिए। किसान मैदानी और पहाड़ी दोनों इलाकों में बुवाई की सलाह देते हैं। किसान मैदानी क्षेत्रों में मूली की बुवाई का उचित समय सितंबर से जनवरी तक का उपयुक्त समझते हैं।

वहीं दूसरी तरफ पहाड़ी इलाकों में मूली की बुवाई लगभग अगस्त के महीने तक होती है। मूली की खेती के लिए जीवांशयुक्त, दोमट मिट्टी या बलुई मिट्टी का इस्तेमाल करते हैं। 

खेती के लिए यह दोनों मिट्टी बहुत ही उपयोगी होती है। बुवाई करने के लिए मिट्टी के लिए सबसे अच्छा पीएच मान 6 पॉइंट 5 के आस पास रखना जरूरी होता है। 

मूली की बुवाई

मूली की बुवाई से पूर्व खेतों को अच्छी तरह से जुताई की बहुत आवश्यकता होती है।खेत की जुताई आप को कम से कम 6 से 5 बार करनी होती है तब जाकर खेत अच्छी तरह से तैयार होते हैं। 

मूली की फसल गहरी जुताई मांगती है क्योंकि इसकी जड़े भूमि में काफी अंदर तक जाती है। जब जताई हो जाए तो इनको ट्रैक्टर या मिट्टी पलटने वाले हल द्वारा भी जुताई की जाती है। 

इसके बाद किसान करीब दो से तीन बार कल्टीवेटर खेतों में चला कर भी जुताई करते हैं। जुताई हो जाने के बाद पाटा लगाना अनिवार्य है।

मूली की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक

मूली की ख़ेती के लिए किसान कुछ सामान्य प्रकार की खाद का इस्तेमाल करते हैं। जैसे: करीब 150 क्विंटल गोबर की खाद का यह फिर कम्पोस्ट का इस्तेमाल, नाइट्रोजन 100 किलो की मात्रा मे, स्फुर 50 किलो, 100 किलो लगभग पोटाश की आवश्यकता पड़ती है प्रति हेक्टेयर के हिसाब से, इन खादो को विभिन्न विभिन्न प्रकार से इस्तेमाल किया जाता है। 

जैसे: स्फुर,पोटाश, गोबर की खाद को खेत तैयार करते वक्त इस्तेमाल किया जाता है। बुवाई के लगभग 15 से 30 दिनों के बाद दो भागों में विभाजित कर नाइट्रोजन का इस्तेमाल किया जाता है।

मूली की ख़ेती के लिए सिंचाई

मूली की बुवाई, मूली की ख़ेती करते समय भूमि में नमी बरकरार रखना आवश्यक होता है। यदि भूमि नम नहीं है तो बुवाई करने के तुरंत बाद हल्की पानी से सिंचाई कर दें ताकि फसल उत्पादन हो सके। 

वर्षा ऋतु के मौसमों में मूली की फ़सल को सिंचाई देने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। वर्षा ऋतु में भूमि जल निकास की व्यवस्था को बनाए रखना आवश्यक होता है। मूली की फसल गर्मी में 4 से 5 दिन के अंदर सिंचाई मांगती है।

वहीं दूसरी ओर ठंडी के दिनों में मूली की फसल में 10 से 15 दिन के अंदर सिंचाई करना होता है। किसान आधी मेड़ की सिंचाई करते हैं इस प्रक्रिया द्वारा पूरी मेड़ में नमीयुक्त के साथ भुरभुरी पन बना रहता हैं।

मूली की फसल को कीट मुक्त रखने के उपाएं

मूली की फसल में विभिन्न विभिन्न प्रकार के कीट लग सकते हैं। फसल को कीट मुक्त बनाए रखने के लिए आपको खेत में खरपतवार की उचित व्यवस्था बनाए रखनी चाहिए। खेतों में समय समय पर आपको निराई गुड़ाई करते रहना जरूरी होता है। 

मूली की फसल के लिए गहरी जुताई करें और जब सबसे आखिरी जुताई करें, तो खाद-उर्वरक में 6 से 8 किलोग्राम फिप्रोनिल को खाद में भली प्रकार से मिलाकर खेतों में डालें। इन प्रतिक्रिया को अपनाने से खेतों में दीमक तथा कीटों से बचाव किया जाता है।

दोस्तों हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल मूलीकीखेती(Radish cultivation in hindi) काफी पसंद आया होगा। 

हमारे इस आर्टिकल के जरिए आपने विभिन्न विभिन्न प्रकार की जानकारी प्राप्त की होगी। यदि आप हमारी दी गई जानकारी से संतुष्ट हैं। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पर शेयर करें। धन्यवाद।

मूली की फसल को प्रभावित करने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम

मूली की फसल को प्रभावित करने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम

मूली का सेवन भारत के सभी हिस्सों में किया जाता है। आज हम आपको इसमें होने वाले रोगों के बचाव के बारे में बताते हैं। भारत के हर हिस्से में मूली की खेती की जाती है। इसकी खेती के लिए रेतीली भुरभुरी मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। मूली में विटामिन, कैल्शियम, कॉपर, मैग्नीश्यिम और कैल्सियम भरपूर मात्रा में मौजूद होती है। इसकी खेती के लिए मिट्टी की पीएच वैल्यू 6 से 8 के मध्य होनी चाहिए। आज हम आपको इसमें लगने वाले रोग एवं उनसे बचाव के विषय में आपको जानकारी देने जा रहे हैं।

बालदार सुंडी

यह रोग मूली में शुरुआत की अवस्था में ही लग जाता है। बालदार सुंडी रोग पौधों को पूरी तरह से खा जाता है। यह कीट पत्तियों सहित पूरी फसल का नुकसान कर देते हैं, जिससे पौधे अपना भोजन सूर्य के प्रकाश से ग्रहण नहीं कर पाते हैं। इसके बचाव के लिए क्विनालफॉस उर्वरक का उपयोग किया जाता है। यह भी पढ़ें:
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ह्वाइट रस्ट

इस प्रकार के कीट आकार में बेहद छोटे होते हैं। यह मूली के पत्तियों पर लगते हैं। यह कीट पत्तियों का रस चूसकर उसको पीले रंग का कर देते हैं। इस किस्म का रोग इस बदलते जलवायु परिवर्तन की वजह से ज्यादा देखने को मिल रहा है। इससे संरक्षण के लिए आप मैलाथियान उर्वरक की उचित मात्रा का छिड़काव मूली के पौधों पर कर सकते हैं।

झुलसा रोग

यह मौसम के मुताबिक लगने वाला रोग है। मूली में यह रोग जनवरी और मार्च महीने के मध्य लगता है। झुलसा रोग लगने से पौधों की पत्तियों पर काले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। साथ ही, मूली का रंग भी काला पड़ जाता है। इससे बचाव के लिए मैन्कोजेब तथा कैप्टन दवा का उचित मात्रा मे जल के घोल के साथ छिड़काव करने से इस रोग को रोका जा सकता है। यह भी पढ़ें: किसान भाई सेहत के लिए फायदेमंद काली मूली की खेती से अच्छी आमदनी कर सकते हैं

काली भुंडी रोग

यह भी पत्तियों में लगने वाला एक कवक रोग है। इसमें पौधों की पत्तियों में पानी कमी होने की वजह से यह सूख सी जाती हैं। यदि यह रोग अन्य मूली में लगता है, तो यह पूरी फसल में फैल जाता है। किसान को बहुत बड़ा नुकसान हो जाता है। इस रोग से पौधों को बचाने के लिए आप इसके लक्षण दिखते ही 6 से 10 दिन के समयांतराल पर मैलाथियान की उचित मात्रा का छिड़काव कर सकते हैं। उपरोक्त में यह सब मूली की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग हैं। इन रोगों की वजह से किसानों को काफी हानि का सामना करना पड़ता है।
जानिए मूली की खेती कैसे करें

जानिए मूली की खेती कैसे करें

मूली की खेती पूरे भारत वर्ष में की जाती है. इसकी खेती मैदानी इलाकों के साथ साथ पहाड़ी इलाकों में भी की जाती है. मूली (Radish) को सलाद, सब्जी , अचार के रूप में प्रयुक्त किया जाता है. इसको खाने से मनुष्य का स्वास्थ्य अच्छा रहता है. कहते हैं ना की स्वस्थ शरीर ही पहला सुख होता है. अगर आपका शरीर स्वस्थ नहीं है तो आपके पास कितनी भी धन दौलत हो आप उनका सुख नहीं भोग सकते हो. तो ईश्वर ने हमें सब्जियों के रूप में ऐसी ओषधियाँ दी है जिनको खाने से हम अपना शरीर बिलकुल स्वस्थ्य रख सकते हैं. इन्हीं सब्जियों में मूली भी एक सब्जी है. मूली एक जड़ वाली सब्जी है इसमें विटामिन सी एवं खनीज तत्व का अच्छा स्त्रोत है| मूली लिवर  एवं पीलिया मरीजों के लिए भी अच्छी बताई गई है. वैसे तो मूली वर्षभर उपयोग में ली जाती है किन्तु मूली को सर्दियों में ज्यादा प्रयोग में लाया जाता है. इसके पत्तों की सब्जी बनाई जाती है एवं इसके जड़ वाले हिस्से की सब्जी, सलाद, अचार और पराठा भी बनाया जाता है.

खेत की तैयारी:

जब हम मूली के लिए खेत की तैयारी करते हैं तो सबसे पहले हम उस खेत को गहरे वाले हल से जुताई करते हैं उसके बाद उसको कल्टीवेटर से 3 - 4 जुताई करके हलका पाटा लगा देते हैं. इसकी बुबाई अगर बेड बना करें तो ज्यादा सही रहता है. ये एक जड़ वाली फसल है तो इसको गहराई वाली और फोक मिटटी की आवश्यकता होती है. इसमें गोबर के खाद की मात्रा अच्छी खासी होनी चाहिए.

मूली की उन्नत किस्में:

मूली की फसल लेने के लिए ऐसी उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए, जो देखने में सुंदर व खाने में स्वादिष्ट हो, साथ ही अपने क्षेत्र की प्रचलित और अधिक पैदावार देने वाली होनी चाहिए| मूली की खेती मैदानी इलाकों में सितंबर से जनवरी तक और पहाड़ी इलाकों में मार्च से अगस्त तक आसानी से की जा सकती है| वैसे मूली की तमाम ऐसी एशियन और यूरोपियन किस्में उपलब्ध हैं, जो मैदानी व पहाड़ी इलाको में पूरे साल उगाई जा सकती है| इस लेख में मूली की उन्नत किस्मों की विशेषताएं और पैदावार की जानकारी का उल्लेख किया गया है| मूली की खेती की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मूली की उन्नत खेती कैसे करें



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मूली की उन्नत किस्में एवं कुछ एशियन किस्में:

मूली की कुछ किस्में ऐसी हैं जो की भारत के साथ साथ पड़ोस के और सामान वातावरण वाले देशों में भी उगाई जाती है. विवरण निचे दिया गया है: पूसा चेतकी- डेनमार्क जनन द्रव्य से चयनित यह किस्म पूर्णतया सफेद, मूसली, नरम, मुलायम, ग्रीष्म ऋतु की फसल में कम तीखी जड़ 15 से 22 सेंटीमीटर लम्बी, मोटी जड़, पत्तियां थोड़ी कटी हुई, गहरा हरा एवं उर्ध्वमुखी, 40 से 50 दिनों में तैयार, ग्रीष्म एवं वर्षा ऋतु हेतु उपयुक्त फसल (अप्रैल से अगस्त ) और औसत पैदावार 250 से 270 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है| जापानी सफ़ेद- इस किस्म की जड़ें सफ़ेद लम्बी 15 से 22 सेंटीमीटर बेलनाकार, कम तीखी मुलायम और चिकनी होती है| जड़ों का नीचे का भाग कुछ खोखला होता है| इसकी बुवाई का सर्वोत्तम समय 15 अक्तूबर से 15 दिसंबर तक है बोने के 45 से 55 दिन बाद फसल खुदाई के लिए तैयार और पैदावार क्षमता 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है| पूसा हिमानी- इस मूली की किस्म की जड़े 30 से 35 सेंटीमीटर लम्बी, मोटी, तीखी, अंतिम छोर गोल नहीं होते, सफेद एवं टोप हरे होते है| हल्का तीखा स्वाद और मीठा फ्लेवर, बोने के 50 से 60 दिन में परिपक्व, दिसम्बर से फरवरी में तैयार और औसत पैदावार 320 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त होती है. पूसा रेशमी- इसकी जड़ें 30 से 35 सेंटीमीटर लम्बी , मध्यम मोटाई वाली, लेकिन उपरी सिरे वाली, समान रूप से चिकनी और हलकी तीखी होती है| उपरी भाग मध्यम ऊंचाई वाला और हलके हरे रंग कि कटावदार पतियों वाला होता है| यह किस्म मध्य सितम्बर से अक्टूम्बर तक बुवाई के लिए उपयुक्त है बोने के 55 से 60 दिन बाद तैयार और उपज क्षमता 315 से 350 प्रति हेक्टेयर है| जौनपुरी मूली- यह उत्तर प्रदेश कि प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय किस्म है| यह 70 से 100 सेंटीमीटर लम्बी और 7 से 10 सेंटीमीटर मोटी होती है| इस किस्म का छिलका और गुदा सफ़ेद होता है| गुदा मुलायम, कम चरपरा और मीठा होता है| हिसार मूली न 1- इस मूली की उन्नत किस्म की जड़ें सीधी और लम्बी बढ़ने वाली होती है| जड़ें सफ़ेद रंग कि होती है, यह किस्म सितम्बर से अक्तूबर तक बोई जाती है| यह किस्म बोने के 50 से 55 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाती है| यह प्रति हेक्टेयर 225 से 250 क्विंटल तक उपज दे देती है| कल्याणपुर 1- इस मूली की उन्नत किस्म की जड़ें सफ़ेद चिकनी मुलायम और मध्यम लम्बी होती है| बोने के 40 से 45 दिन बाद यह खुदाइ के लिए तैयार हो जाती है| पूसा देशी- इस मूली की किस्म कि जड़ें सफ़ेद, मध्यम, मोटी 30 से 35 सेंटीमीटर लम्बी और बहुत चरपरी होती है| इसकी जड़ें नीचे कि ओर पतली होती है| पौधों का उपरी भाग मध्यम ऊंचाई वाला होता है और पत्तियां गहरे हरे रंग कि होती है| यह मध्य अगस्त से अक्टूम्बर के आरंभ तक बुवाई के लिए उत्तम किस्म है| यह बोने के 40 से 55 दिन बाद तैयार हो जाती है. पंजाब पसंद- यह जल्दी पकने वाली किस्म है, यह बिजाई के बाद 45 दिनों में कटाई के लिए तैयार होती हैं| इसकी जड़ें लम्बी, रंग में सफेद और बालों रहित होती है| इसकी बिजाई मुख्य मौसम और बे-मौसम में भी की जा सकती है| मुख्य मौसम में, इसकी औसतन पैदावार 215 से 235 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और बे-मौसम में 150 क्विंटल होती है| अन्य एशियन किस्में- चाइनीज रोज, सकुरा जमा, व्हाईट लौंग, के एन- 1, पंजाब अगेती और पंजाब सफेद आदि है| ये किस्में भी अच्छी पैदावार वाली और आकर्षक है| यूरोपियन किस्में व्हाईट आइसीकिल- यह मूली की किस्म ठंडी जलवायु के लिए उपयुक्त है| इसकी जड़ें सफ़ेद, पतली कम चरपरी और स्वादिष्ट होती है| इसकी जड़ें सीधी बढ़ने वाली होती है| जो नीचे के ओर पतली होती जाती है| इसे खेत में लम्बे समय तक रखने पर भी इसकी जड़ें खाने योग्य बनी रहती है| इसे 15 अक्टूम्बर से फ़रवरी तक कभी भी बो सकते है| इस किस्म कि मुली बोने के करीब 30 दिन बाद तैयार हो जाती है| रैपिड रेड व्हाईट टिपड- इस किस्म कि मूली का छिलका लाल रंग का होता है| जो थोड़ी सी सफेदी लिए होता है| जिसके कारण मुली देखने में अत्यंत आकर्षक लगती है| इसकी जड़ें छोटे आकार वाली होती है और उनका गुदा सफ़ेद रंग का होता है तथा मुली कम चरपरी होती है| इस किस्म कि बुवाई मध्य अक्टूम्बर से फ़रवरी तक कभी भी कि जा सकती है| इस किस्म कि मुली बोने के लगभग 25 से 30 दिन बाद तैयार हो जाती है| स्कारलेटग्लोब- यह मूली की अगेती किस्म है, जो बोने के 25 से 30 दिन बाद तैयार हो जाती है| इसकी जड़ें छोटी मुलायम और ग्लोब के आकार वाली होती है| इसकी जड़ें खाने में अत्यंत स्वादिष्ट लगती है| फ्रेंच ब्रेकफास्ट- यह भी मूली की एक अगेती किस्म है, यह किस्म बुवाई के 27 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाती है| जड़ें बड़े आकार में छोटी, मुलायम, गोलाकार तथा कम चरपरी होती है| जो खाने में अत्यंत स्वादिष्ट लगती है| मूली के बीज बनाने के तरीके: इसके अच्छे और तंदुरुस्त पौधों को चुन कर उसे पकने के लिए छोड़ देना चाहिए. जब ये पक जाएँ तो इन्हें काट कर अच्छे से सुखा लेना चाहिए. इसके बीजों को किसी सूखी हुई जगह पर रख लेना चाहिए.  
दिसंबर महीने में बोई जाने वाली इन सब्जियों से होगी बंपर कमाई, जाने कैसे।

दिसंबर महीने में बोई जाने वाली इन सब्जियों से होगी बंपर कमाई, जाने कैसे।

सर्दी का आगमन हो चुका है और इस व्यस्त मौसम के लिए किसानों के पास अपने खेत को तैयार करने का यह सही समय है। कई लोगों के लिए यह समय छुट्टियां मनाने और अपने प्रिय जनों के साथ समय बिताने का समय होता है, लेकिन किसानों के लिए सर्दी के इस मौसम में भी पूर्णमूल्यांकन और तैयारी करने का समय माना जाता है। दिसंबर के इस महीने को सब्जियों की खेती के लिए सबसे अनुकूल माना जाता है। मिट्टी में नमी और सर्द वातावरण के बीच किसान मूली, टमाटर, पालक, गोभी और बैगन की खेती कर अच्छे प्रोडक्शन के साथ बढ़िया मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। वैसे तो नई तकनीकों के कारण ऑफ सीजन में भी खेती करना आसान हो गया है, लेकिन प्राकृतिक वातावरण में उगने वाली सब्जियों की बात ही कुछ अलग होती है।


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यदि आप सोचते हैं, कि ज्यादातर स्वादिष्ट सब्जी गर्मियों के दौरान उगाई जाती हैं। जब आप के बगीचे में सब कुछ खिला हुआ होता है, तो आप गलत हैं। सर्दी अपने साथ स्वादिष्ट हरी सब्जियों की भरमार लेकर आती है, जिन्हें आप अपने बगीचे में काफी आसानी से उगा सकते हैं। इस मौसम में उगने वाली सब्जियां न केवल स्वाद में अच्छी होती हैं, बल्कि पोषण प्रदान करने के अलावा कई तरह से फायदेमंद भी होती हैं। सब्जी की खेती निश्चित रूप से एक लाभदायक व्यापार है और यह सिर्फ बड़े किसानों के लिए नहीं है। यह छोटे और सीमांत किसानों के लिए भी लाभदायक है। एक छोटे पैमाने के सब्जी के खेत में सालभर कमाई की संभावना होती है। खुले आसमान में खेती के अलावा आप ग्रीन हाउस में भी इस सीजन में सब्जियां उगा सकते हैं। किसान अगर कुछ खास बातों का ध्यान रखकर के सीजनल सब्जियों की खेती करें तो अच्छी उत्पादकता के साथ-साथ बढ़िया मुनाफा आराम से हासिल कर सकता है। दिसंबर के महीने में बोई जाने वाली जिन सब्जियों की जानकारी हम आपको देने जा रहे हैं, उससे आपको कई गुना फायदा मिलेगा।

फूलगोभी की खेती

फूलगोभी सर्दियों की सबसे महत्वपूर्ण और लोकप्रिय सब्जियों में से एक है और यह भारतीय कृषि में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सर्दियों के इस मौसम में गोभी वर्गीय सब्जियां जैसे फूलगोभी ब्रोकली पत्ता गोभी की खेती करना बहुत ही आसान होता है। क्योंकि इन दिनों मिट्टी में नमी और वातावरण में सर्दी होती है, जिससे नेचुरल प्रोडक्शन लेने में मदद मिलती है। किसान चाहे तो गोभी की खेती ग्रीन हाउस में भी कर सकते हैं, एक्सपर्ट की बात करें तो 75 से 80 क्विंटल प्रति एकड़ तक का उत्पादन सर्दियों के मौसम में गोभी का होता है। जिसे आप आसानी से इस मौसम में उगा कर और नजदीकी बाजार में बेचकर बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं।


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बैगन की खेती

बैगन की खेती करने के लिए भी यह महीना बड़ा ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इन दिनों किसान बैगन की खेती करके लाखों रुपए कमाते हैं, बैगन की सब्जी भारतीय जन समुदाय में बहुत प्रसिद्ध है। विश्व में सबसे ज्यादा बैगन चीन में उगाया जाता है, बैगन उगाने के मामले में भारत का दूसरा स्थान है। बैगन विटामिन और खनिजों का भी अच्छा स्रोत है। वैसे तो इसकी खेती पूरे साल की जाती है, लेकिन इस मौसम में बैगन की खेती करना किसानों के लिए आसान होता है। क्योंकि मिट्टी में नमी के कारण और मौसम में ठंड के कारण किसानों को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है। एक्सपर्ट की राय की बात करें, तो एक हेक्टेयर में करीब साड़े 400 से 500 ग्राम बीज डालने पर लगभग 300 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का बैगन का उत्पादन आसानी से मिल जाता है।

टमाटर की खेती

टमाटर विश्व में सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाली सब्जी है। भारतीय पकवानों में टमाटर का अपना एक विशेष स्थान है। इसे सब्जी बनाने से लेकर सलाद सूप चटनी और ब्यूटी प्रोडक्ट के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। इसकी खेती भारत में बड़े पैमाने पर होती है कई किसान टमाटर की खेती कर बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं अगर आप एक हेक्टेयर में भी टमाटर की खेती करते हैं तो आप 800 से 1200 क्विंटल तक का उत्पादन कर सकते है। ज्यादा पैदावार पैदावार के कारण किसानों को लागत से ज्यादा मुनाफा होता है। एक्सपर्ट की राय की बात करें तो अगर आप एक हेक्टेयर में टमाटर की खेती करते हैं तो आपको लगभग 15लाख रुपए तक की कमाई होगी।


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गाजर-मूली की खेती

मूली और गाजर भारत के लगभग हर क्षेत्र में उगाए जाते हैं, इनका उपयोग सब्जियों के अलावा अचार और मिठाई बनाने के लिए भी किया जाता है। सर्दी के मौसम में इनकी डिमांड बहुत ज्यादा होती है। इसकी खेती करके लागत बहुत ही कम लगती है, अगर वही हम बात कमाई की करें, तो किसान गाजर और मूली को 1 हेक्टेयर में लगभग 150 क्विंटल तक का उत्पादन कर सकते है। विशेष तौर पर सर्दी का मौसम है, गाजर और मूली की खेती करने के लिए उपयुक्त माना जाता है। गर्मी के मौसम में अगर आप गाजर और मूली को उपजाना चाहते हैं, तो आपको भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। तो किसान इस तरह की सब्जियों की खेती इस सर्दी के मौसम में करके बंपर पैदावार के साथ बंपर कमाई आसानी से अर्जित कर सकते है।
इस तरह से मूली की खेती करने से किसान जल्द ही हो सकते हैं मालामाल

इस तरह से मूली की खेती करने से किसान जल्द ही हो सकते हैं मालामाल

भारत में ज्यादातर किसान पारंपरिक खेती करते हैं। जिसमें वो रबी, खरीफ, दलहन और तिलहन की फसलें उगाते हैं। इन फसलों के उत्पादन में लागत ज्यादा आती है जबकि मुनाफा बेहद कम होता है। ऐसे में सरकार ने किसानों की सहायता करने के लिए बागवानी मिशन को लॉन्च किया है। जिसमें सरकार किसानों को बागवानी फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है ताकि किसान ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा पाएं और उनकी इनकम में बढ़ोत्तरी हो। बागवानी फसलों की खेती में लागत बेहद कम आती है, इसलिए इनमें मिलने वाला मुनाफा ज्यादा होता है। सरकार के विशेषज्ञों का मानना है कि बागवानी फसलों से किसानों की इनकम में बढ़ोत्तरी हो सकती है। अगर किसान भाई मूली की खेती करें तो वो बेहद कम समय में अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। मूली विटामिन से भरपूर होती है। इसमें मुख्यतः विटामिन सी पाया जाता है। साथ ही मूली फाइबर का एक बड़ा स्रोत है। ऐसे में यह इम्यूनिटी बूस्टर का काम करता है। मूली की खेती भारत में किसी भी मौसम में की जा सकती है।

मूली की खेती के लिए मिट्टी का चयन

सामान्यतः मूली की खेती हर तरह की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है। लेकिन भुरभुरी, रेतली दोमट मिट्टी में इसके शानदार परिणाम देखने को मिलते हैं। भारी और ठोस मिट्टी में मूली की खेती करने से बचना चाहिए। इस तरह की मिट्टी में मूली की जड़ें टेढ़ी हो जाती हैं। जिससे बाजार में मूली के उचित दाम नहीं मिलते। मिट्टी का चयन करते समय ध्यान रखें कि इसका पीएच मान 5.5 से 6.8 के बीच होना चाहिए।

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ऐसे करें जमीन की तैयारी

सबसे पहले खेत की अच्छे से जुताई कर लें। खेत में ढेलियां नहीं होनी चाहिए। जुताई के समय खेत में 10 टन प्रति एकड़ के हिसाब से गोबर की सड़ी हुई खाद डालें।  प्रत्येक जोताई के बाद सुहागा अवश्य फेरें।

मूली की बुवाई

मूली के बीजों की बुवाई पंक्तियों में या बुरकाव विधि द्वारा की जाती है। अच्छी पैदावार के लिए बीजों को 1.5 सेंटीमीटर गहराई पर बोएं। बुवाई के दौरान ध्यान रखें कि पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेंटीमीटर होनी चाहिए और पौध से पौध की दूरी 7.5 सेंटीमीटर होनी चाहिए। एक एकड़ खेत में बुवाई के लिए 5 किलोग्राम बीजों की जरूरत होती है। मिट्टी के बेड पर बुवाई करने पर मूली की जड़ों का शानदार विकास होता है।

मूली की फसल में सिंचाई

गर्मियों के मौसम में मूली की फसल में हर 6 से 7 दिन बाद सिंचाई करें। सर्दियों के मौसम में 10 से 12 दिनों के अंतराल में सिंचाई करना चाहिए। मूली की फसल में जरूरत से ज्यादा सिंचाई नहीं करना चाहिए। ज्यादा सिंचाई करने से जड़ों का आकार बेढंगा और जड़ों के ऊपर बालों की वृद्धि बहुत ज्यादा हो जाती है। गर्मियों के मौसम में कटाई के पहले हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इससे मूली ताजा दिखती है। साथ ही खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था करनी चाहिए।

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फसल की कटाई

मूली की फसल बुवाई के 40 से 60 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई पौधे को हाथों से उखाड़कर की जाती है। उखाड़ने के बाद मूली को धोएं और उनके आकार के अनुसार अलग कर लें। इसके बाद इन्हें टोकरियों और बोरियों में भरकर मंडी में भेज दें।

मूली की खेती में इतनी हो सकती है कमाई

भारत के विभिन्न राज्यों में मूली की अलग-अलग किस्मों की खेती की जाती है। जिनका उत्पादन भी अलग-अलग होता है। भारत में मुख्यतः पूसा देसी, पूसा चेतकी, पूसा हिमानी, जापानी सफेद, गणेश सिंथेटिक और पूसा रेशमी किस्म की मूली की किस्मों का चुनाव किया जाता है। ये किस्में बहुत जल्दी तैयार हो जाती हैं। एक हेक्टेयर खेत में मूली की खेती करने पर किसान भाई 250 क्विंटल तक की पैदावार ले सकते हैं। जिससे वो 2 लाख रुपये बेहद आसानी से कमा सकते हैं।
किसान भाई सेहत के लिए फायदेमंद काली मूली की खेती से अच्छी आमदनी कर सकते हैं

किसान भाई सेहत के लिए फायदेमंद काली मूली की खेती से अच्छी आमदनी कर सकते हैं

काली मूली में एंटीऑक्सीडेंट प्रचूर मात्रा में पाया जाता है, जो हमारे दिल को स्वस्थ और निरोगी रखने में सहायक होती है। इसके भीतर रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का भी कमाल का गुण विघमान होता है। शर्दियों के महीनों में किसान लाल मूली की बुवाई करना उपयुक्त रहता है। बतादें, कि दिसंबर से लगाकर फरवरी तक का महीना इसकी खेती के लिए काफी अनुकूल होता है। इसके लिए समुचित जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। बरसात के मौसम में मूली की फसल बुआई के तकरीबन 35 से 45 दिन के अंदर मंडियों में बेचने योग्य पककर तैयार हो जाते हैं। अनुमानुसार, मूली का औसतन उत्पादन 80 से 105 क्विंटल प्रति एकड़ और बीज 4.5 क्विंटल प्रति एकड़ होते हैं।

क्या काली मूली की खेती किसी विशेष ढ़ंग से की जाती है

काली
मूली की खेती भी एकदम सफेद मूली की भांति की जाती है। बतादें कि यह काली मूली बिल्कुल शलजम की तरह होती है। इसका बाहरी भाग बिल्कुल काला होता है। वहीं, आंतरिक रूप से यह भी आम मूली की भांति सफेद होती है। परंतु, स्वाद में बेहद असमानता होती है। खेती के संबंध में देखा जाए तो आमतौर पर इसकी खेती शर्दियों में अधिक होती है। परंतु, आजकल किसान इसे पूरे वर्षभर उत्पादित करते हैं। बाजार में यह सफेद मूली से कहीं अधिक महंगी बेची जाती है। भारत समेत संपूर्ण विश्व के अंदर इसकी मांग विगत कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ी है। इसके पीछे की मुख्य वजह इसमें विघमान पोषक तत्व हैं। ये भी देखें: मूली की खेती (Radish cultivation in hindi)

आखिर काली मूली के क्या-क्या लाभ होते हैं

ब्लैक रैडिश यानी कि काली मूली लोगों के शरीर के लिए एक रामबाण है। काली मूली में एंटीऑक्सीडेंट की प्रचूर मात्रा उपलब्ध रहती है, जो कि हमारे दिल को स्वस्थ और सेहतमंद रखती है। बतादें, कि इसके भीतर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का भी कमाल का गुण होता है। इसके अंदर उपस्थित थियामिन,विटामिन-ई, प्रोटीन, विटामिन-बी 6 जैसे पोषक तत्व हमारे शरीर को अंदर से सशक्त बनाते हैं। कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है, कि काली मूली हमें कब्ज में भी सहूलियत और आराम प्रदान करती है। इसके अंदर मौजूद मैंगनीज, फोलेट, आइसोटीन और सोर्बिटोल कब्ज को आपसे दूर रखने में अहम सहायक भूमिका अदा करते हैं।