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किसान ने बिना डीजल-पेट्रोल और बिजली के उपयोग से चलने वाला ट्रेक्टर तैयार किया

किसान ने बिना डीजल-पेट्रोल और बिजली के उपयोग से चलने वाला ट्रेक्टर तैयार किया

भारत में हम बचपन से एक शब्द सुनते आ रहे हैं, जिसका नाम है जुगाड़। भारतीय लोग जुगाड़ करने के मामले में सबसे ज्यादा माहिर होते हैं। इसी कड़ी में एक किसान ने जुगाड़ करके एक ऐसा ट्रेक्टर बनाया है, जो कि आजकल चर्चा में है। इस ट्रेक्टर का नाम HE ट्रेक्टर है। बतादें कि यह ट्रेक्टर किसान भाइयों के बजट से में आता है। वहीं, इसको चलाना काफी सरल और सहज होता है। जैसा कि हम जानते हैं, कि आज के समय में ट्रेक्टर किसानों के लिए किसी मित्र से कम नहीं है। यह खेत के हर तरह के कार्य को बड़ी ही सुगमता से पूरा करने की शक्ति रखता है। परंतु, आज भी भारत में बहुत सारे ऐसे किसान भी हैं, जो कि एक उत्तम खेती करने के लिए पर्याप्त धन तक नहीं जुटा पा रहे हैं। अब ऐसे में वह खेती-किसानी के लिए ट्रेक्टर कैसे खरीद सकते हैं।

संजीत ने जुगाड़ के जरिए बनाया अद्भुत ट्रेक्टर

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि आर्थिक तौर पर कमजोर किसान भाइयों की सहायता करने लिए बिहार के पश्चिम चंपारण के नौतन ब्लॉक के धुसवां गांव के 28 वर्षीय किसान संजीत ने देसी जुगाड़ के जरिए एक बेहतरीन ट्रेक्टर का निर्माण किया है। इससे किसानों की विभिन्न प्रकार की समस्याओं को मिनटों में दूर किया जा सकता है। अब आप यह सोच रहें होंगे कि इसकी कीमत और लागत भी बाजार में मिलने वाले ट्रैक्टर की भाँति ही होगी। परंतु, ऐसी कोई बात नहीं है। यह ट्रैक्टर किसानों के बजट में आता है। साथ ही, इसको बनाने के लिए आपको ज्यादा खर्चा भी नहीं करना पड़ता। दरअसल, यह ट्रैक्टर संजीत ने कबाड़ के इस्तेमाल से तैयार किया है, जिसे चलाने के लिए डीजल-पेट्रोल और बिजली कुछ भी नहीं लगती है। आपको यह केवल साइकिल की भांति ही चलाना होता है। ये भी देखें: कम जोत वाले किसानों के लिए कम दाम और अधिक शक्ति में आने वाले ट्रैक्टर

संजीत ने इस ट्रेक्टर का नाम HE रखा है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि संजीत द्वारा स्वयं के इस कबाड़ से निर्मित ट्रेक्टर का नाम HE रखा है। HE का अर्थ ह्यूमन एनर्जी ट्रेक्टर होता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, संजीत ने अपने इस ट्रेक्टर को निर्मित करने हेतु संजीत को लगभग 1 माह का वक्त लगा। फिलहाल, वह इसको किसानों की मदद के लिए उपयोग कर रहे हैं। बतादें कि संजीत के इस आविष्कार के लिए उन्हें अवार्ड भी प्राप्त हो चुका है।

HE ट्रेक्टर की विशेषताएं

  • किसान द्वारा इसमें विभिन्न प्रकार की विशेषताएं दी गई हैं। जो इसको एक बेहतर ट्रेक्टर बनाती हैं।
  • इस ट्रेक्टर के एलईडी बल्बों के लिए 5000 एमएएच पावर की एक चार्जेबल बैटरी की व्यवस्था की गई है।
  • इसके अतिरिक्त इसमें 4 फॉरवर्ड एवं 1 रिवर्स गियर भी होता है। जो इसको खेत के साथ-साथ सड़कों पर भी आसानी से चलाया जा सकता है।
  • इस ट्रेक्टर को कुछ इस प्रकार से तैयार किया गया है, कि यह ट्रैक्टर करीब 600 किलोग्राम तक का वजन आसानी से उठा सकता है।
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HE ट्रेक्टर की खासियत

  • HE ट्रैक्टर की सबसे अच्छी खासियत यह है, कि इसको चलाने के लिए आपको पेट्रोल-डीजल अथवा बिजली की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इसके लिए आपको अपनी खुद की शक्ति लगानी है, जैसे कि आप साइकिल चलाते समय लगाते हैं।
  • यह ट्रैक्टर तकरीबन 5 से 10 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से दौड़ सकता है।
  • यह HE ट्रैक्टर सहजता से खेत में 2.5 से 3 इंच गहराई तक मृदा की जुताई करने हेतु समर्थ है।
बाजरे की खेती को विश्व गुरु बनाने जा रहा है भारत, प्रतिवर्ष 170 लाख टन का करता है उत्पादन

बाजरे की खेती को विश्व गुरु बनाने जा रहा है भारत, प्रतिवर्ष 170 लाख टन का करता है उत्पादन

बदलते परिवेश और खेती की बढ़ती लागत को देखते हुए किसान लगातार इस बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि कौन सी फसल उगाएं। हालांकि, मोटे अनाज उगाना किसानों की चिंताओं को दूर करने का एक शानदार तरीका हो सकता है। मोटे अनाज की खेती, जैसे कि बाजरा (Pearl Millet), जब से संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को बाजरा वर्ष (इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (आईवायओएम/IYoM-2023)) के रूप में घोषित किया है, बाजरे की खेती और मांग दोनों बढ़ गयी है।
इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें
[caption id="attachment_10437" align="alignleft" width="300"]बाजरे के बीज (Bajra Seeds) बाजरे के बीज[/caption] हैदराबाद में भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान (भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान (Indian Institute of Millets Research), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत ज्वार तथा अन्य कदन्नों पर बुनियादी एवं नीतिपरक अनुसंधान में व्यस्त एक प्रमुख अनुसंधान संस्थान है) के अनुसार, भारत 170 लाख टन से अधिक मोटे अनाज का उत्पादन करता है। यह एशिया के 80 प्रतिशत और वैश्विक उत्पादन का 20 प्रतिशत हिस्सा है। यह लगभग 131 देशों में उगाया जाता है और 600 मिलियन एशियाई और अफ्रीकी लोगों इसको भोजन के रूप मे उपयोग करते है । [caption id="attachment_10434" align="alignright" width="188"]बाजरा (Bajra) बाजरा (Pearl Millet)[/caption] सबसे पुराने खाद्य पदार्थों में से एक बाजरा भी है, किसान कई वर्षों से मिश्रित खेती के तरीकों का उपयोग करके बाजरा उगा रहे हैं। आंध्र प्रदेश के मेडक में किसान एक ही भूखंड पर 15 से 30 विभिन्न किस्मों की फसल की खेती करते हैं, जिसमें विभिन्न प्रकार के बाजरा, दाल और जंगली खाद्य पदार्थ शामिल हैं। हाल के वर्षों में लाखों के संख्या मे लोग इसको अपनी दैनिक आहार में अनाज के अनुपात में मोटे अनाज जैसे बाजरा के उपयोग को प्राथमिकता दे रहे हैं। लोग रोगों से निपटने के लिए स्वास्थ्य जागरूकता में वृद्धि के परिणामस्वरूप बाजरे के सेवन को एक विकल्प के रूप मे तैयार कर रहे हैं। बाजरा को 'सुपरफूड' के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, क्योंकि इनमें फाइबर और प्रोटीन जैसे मैक्रोन्यूट्रिएंट्स के साथ-साथ कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे विटामिन और खनिजों की उच्च मात्रा होती है। ज्वार, बाजरा, फिंगर बाजरा, फॉक्सटेल बाजरा आदि अनाज 'सुपरफूड' बाजरा के उदाहरण हैं। ये सुपरफूड मधुमेह, मोटापा और हृदय रोग जैसी पुरानी बीमारियों से पीड़ित लोगों की मदद कर सकते हैं। यह पाचन में भी सहायता करता है और भी बहुत समस्याओं से निजात दिलाता है |

प्राचीन और पौष्टिक अनाज उत्पादन को बढ़ावा

केंद्र सरकार ने प्राचीन और पौष्टिक भारतीय अनाज के उपयोग को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है। सरकार के अभियान से खेत मालिकों को लाभ होगा और खाने वालों का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। 2023 के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा विश्वव्यापी अनाज वर्ष घोषित किया गया है। भारत के नेतृत्व में और 70 से अधिक देशों द्वारा समर्थित संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का उपयोग इसे पारित करने के लिए किया गया था। यह बाजरा के महत्व, टिकाऊ कृषि में इसकी भूमिका और दुनिया भर में एक बढ़िया और शानदार भोजन के रूप में इसके लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद करेगा। [caption id="attachment_10436" align="alignleft" width="300"]बाजरे की रोटी (Bajre ki roti) बाजरे की रोटी[/caption] 170 लाख टन से अधिक के बाजरे के उत्पादन के साथ, भारत एक वैश्विक बाजरा केंद्र बनने की ओर अग्रसर है। एशिया में उत्पादित बाजरा का 80% से अधिक इस क्षेत्र में उगाया जाता है। ये अनाज भोजन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पहले पौधों में से एक थे और सिंधु सभ्यता में खोजे गए थे। यह लगभग 131 देशों में उगाया जाता है और लगभग 600 मिलियन एशियाई और अफ्रीकी लोगों का पारंपरिक भोजन है।

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भारत सरकार ने बाजरा उत्पादन और खपत को बढ़ावा देने के लिए 2018 को राष्ट्रीय बाजरा वर्ष घोषित किया।  संयुक्त राष्ट्र (United Nations) महासभा ने हाल ही में सर्वसम्मति से 2023 को "अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष" घोषित करने के लिए बांग्लादेश, केन्या, नेपाल, नाइजीरिया, रूस और सेनेगल के सहयोग से भारत द्वारा शुरू किए गए एक प्रस्ताव को अपनाया। भारत ने 2023 पालन के लिए तीन प्राथमिक लक्ष्यों की पहचान की है:

i. खाद्य सुरक्षा और पोषण में बाजरा के योगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाना;

ii. बाजरे के उत्पादन, उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार की दिशा में काम करने के लिए राष्ट्रीय सरकारों सहित प्रेरक हितधारक;

iii. बाजरा अनुसंधान और विकास और विस्तार सेवाओं में निवेश में वृद्धि के लिए सुधार करना।

देश की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने में मदद करने के लिए बाजरा को वर्षों से भारत की खाद्य सुरक्षा लाभ योजनाओं में शामिल किया गया है। मोटे अनाज अफ्रीका में 489 लाख हेक्टेयर भूमि पर उगाए जाते हैं, वार्षिक उत्पादन लगभग 423 लाख टन है। केंद्र सरकार के अनुसार, भारत मोटे अनाज (138 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में) का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। ऐसी स्थिति में, किसानों को मोटे अनाज की खेती के विकल्पों के बारे में पता होना चाहिए, जैसे कि बाजरा की खेती, जिसका उपयोग आर्थिक लाभ उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है।


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(Bajra Farming information in hindi)

बाजरा उत्पादन के प्रति जागरूकता

बाजरा के स्वास्थ्य लाभों को उजागर करने और जन जागरूकता बढ़ाने के लक्ष्य के साथ 5 सितंबर को 'भारत का धन, स्वास्थ्य के लिए बाजरा' विषय के साथ एक पेंटिंग प्रतियोगिता शुरू हुई। प्रतियोगिता का समापन 5 नवंबर, 2022 को होगा। अब तक, सरकार का दावा है कि उसे बहुत सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। 10 सितंबर, 2022 को बाजरा स्टार्टअप इनोवेशन चैलेंज (Millet Startup Innovation Challenge) शुरू किया गया था। millet startup innovation challenge  
"अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष 2023 के उपलक्ष में वित्त एवं कृषि मंत्री व सीएम के आतिथ्य में कॉन्क्लेव
 (Millets Conclave 2022), और मिलेट स्टार्टअप इनोवेशन चैलेंज" 
से सम्बंधित सरकारी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए,
 यहां क्लिक करें : https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1854884
https://twitter.com/nstomar/status/1563471184464715779?ref_src=twsrc%5Etfw%7Ctwcamp%5Etweetembed%7Ctwterm%5E1563471184464715779%7Ctwgr%5E256261f5a04f0ab375ae464d14642d51ee55205a%7Ctwcon%5Es1_&ref_url=https%3A%2F%2Fpib.gov.in%2FPressReleaseIframePage.aspx%3FPRID%3D1854884
"अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 की समयावधि तक कृषि मंत्रालय ने पूर्व में शुरू किए गए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन
 और प्राचीन तथा पौष्टिक अनाज को फिर से खाने के उपयोग में लाने पर जागरूकता फैलाने की पहल" से सम्बंधित सरकारी
 प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें
यह पहल युवाओं को मौजूदा बाजरा पारिस्थितिकी तंत्र की समस्याओं के लिए तकनीकी और व्यावसायिक समाधान प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित करती है। यह नवाचार प्रतियोगिता 31 जनवरी 2023 तक खुली रहेगी। बाजरा और इसके लाभों के बारे में प्रश्न पूछने वाले माइटी मिलेट्स क्विज (Mighty Millets Quiz) को हाल ही में लॉन्च किया गया था, और इसे जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली है। क्विज का आयोजन कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा किया जा रहा है, क्विज में प्रवेश करने के इच्छुक प्रतिभागी यहाँ क्लिक करें। यह प्रतियोगिता 20 अक्टूबर 2022 को समाप्त होगी, इससे लोगों की बाजरे और मोटे अनाज के बारे में समझ बढ़ेगी। Mighty Millets Quiz बाजरे के महत्व के बारे में एक ऑडियो गीत और वृत्तचित्र फिल्म के लिए एक प्रतियोगिता भी जल्द ही शुरू की जाएगी। अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष 2023 लोगो और स्लोगन प्रतियोगिता पहले ही शुरू हो चुकी है। विजेताओं की घोषणा शीघ्र ही की जाएगी। भारत सरकार जल्द ही ऐतिहासिक अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष 2023 के उपलक्ष्य में लोगो ( Logo ) और नारा जारी करेगी। लक्ष्य मोटे अनाज को किसी भी तरह से लोकप्रिय बनाना है।


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वेदों में भी बाजरा उत्पादन का चर्चा

यजुर्वेद में बाजरे के उपयोग के साक्ष्य मिले है। बाजरे की खेती से किसानों को काफी लाभ हो सकता है। बाजरा या मोटा अनाज भी आपकी सेहत के लिए अच्छा होता है, इसमें बाजरा सबसे लोकप्रिय है। [caption id="attachment_10440" align="aligncenter" width="1024"]भारत का राज्यवार बाजरा नक्शा (from https://agricoop.nic.in/sites/default/files/Crops.pdf) भारत का राज्यवार बाजरा नक्शा[/caption] बाजरा कई प्रकार की किस्मों में भी आता है। प्रियंगु (लोमड़ी की पूंछ वाला बाजरा, Priyangu ), स्यामक (काली उंगली बाजरा, shyamak) और अनु (बार्नयार्ड बाजरा) ये सब बाजरे की महत्वपूर्ण किस्म है। यजुर्वेद में भी उपमहाद्वीप के कई क्षेत्रों में बाजरा के उपयोग के प्रमाण मिलते हैं। बाजरा 1500 ईसा पूर्व से बहुत पहले उगाया और खाया जाता था। मोटे अनाज खाने वालों के बीच लोकप्रिय बाजरे की किस्में रागी (मोती बाजरा), ज्वार (ज्वार उर्फ द ग्रेट बाजरा), और प्रियांगु (फॉक्स टेल बाजरा) हैं।
इन 8 योजनाओं से बढ़ेगी किसानों की स्किल, सरकार दे रही है मौका

इन 8 योजनाओं से बढ़ेगी किसानों की स्किल, सरकार दे रही है मौका

सरकार की तरफ से किसानों के हित में कई काम किया जा रहे हैं. ताकि किसानों को फायदा मिल सके. इसी तर्ज पर सरकार अब किसानों को उनकी स्किल डेवलपमेंट (skill Development) के कई मौके दे रही है. जिसके लिए सरकार 8 योजनाएं भी लायी है. इससे किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी. भारत के कृषि उत्पादन की बात करें, तो यह 310 मिलियन टन से भी ज्यादा का है. वहीं बागवानी उत्पादन भी 330 मिलियन टन से ज्यादा होने लगा है. ऐसा माना जा रहा है कि, यह अब तक के 50 सालों में सबसे बड़ी उपलब्धी है. जिसे लगातार आगर बढ़ाते रहने के साथ साथ किसानों की आमदनी बढाने के लिए स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम बेहद जरूरी है. कृषि क्षेत्र में सरकार की स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम्स (Development Program) के बारे में हर किसान को जानकारी होनी चाहिए. देश के कई राज्यों में अनगिनत किसान हैं, जिनमें युवा और बुजुर्ग दोनों ही किसान शामिल है. उन्होंने पिछले कुछ सालों में कई सरकारी स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम्स (Skill Development Program) में हिस्सा भी लिया और अपनी उपज और आमदनी दोनों बढ़ाई है.

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नोएडा प्राधिकरण के इस फैसले से किसानों में खुशी की लहर भारत में सबसे महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्र है. जहां करीब 50 फीसद आबादी काम के लिए खेती पर ही निर्भर है. ऐसे में मदद के लिए सरकार ने भी किसानों और उनकी उपज में सुधार लाने का जिम्मा उठाया है. ऐसे में किसान भाइयों के सामने भी चुनौतियां कम नहीं हैं. संसाधनों में कमी के साथ साथ पुराणी घिसी पीटी तकनीक और मौसम में बदलाव उनकी परेशानियों को बढ़ाने के लिए काफी हैं. इन्हीं कारणों की वजह से उन्हें आधुनिक खेती से जुड़ी तकनीकों के बारे में बताने के लिए इस तरह के प्रोग्राम्स की शुरुआत की गयी है. जिनक मुख्य लक्ष्य किसानों को खेती में नई तकनीक के इस्तेमाल और उनके विकास में मदद करना है. हालांकि आधुनिक तकनीकों को अपनाने के लिए किसानों को खास तरह की मदद देना और उनकी आमदनी बढ़ाने में मदद करना का लक्ष्य भी इस प्रोग्राम के जरिये भारत सरकार ने रखा है.

यहां जानिए सरकार की 8 बड़े योजनाएं

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना

साल 2015 में इस कार्यक्रम की शुरुआत कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय ने की थी. इस कार्यक्रम का लक्ष्य कई क्षेत्रों से करीब एक करोड़ लोगों को प्रशिक्षित करने का है. इस योजना से सम्बंधित जैविक खेती, डेयरी फार्मिंग और फूड प्रोसेसिंग (Food processing) से जुड़ी जानकारी दी जाती है. इसके अलावा ग्रामीण युवाओं को बिजनेस के लिए जरूरी स्किल सिखाकर रोजगार को बढ़ाना है.

दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना

इस योजना की शुरुआत साल 2014 में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने की थी. इस प्रोग्राम का लक्ष्य ग्रामीण युवाओं के साथ साथ गरीब परिवारों को रोजगार के अवसर देने हैं. इसके अलावा खेती से सम्बंधित स्किल से जुड़े बागवानी और कृषि वानिकी और पशुपालन में ट्रेनिंग देने पर है.

कौशल भारत कार्यक्रम

साल 2015 में भारत सरकार ने इस कार्यक्रम की शुरुआत की थी. इसका लक्ष्य 2022 तक 40 करोड़ लोगों को स्किल की ट्रेनिंग देनी थी. इस कार्यक्रम के तहत खेती सही कई क्षेत्रों में ट्रेनिगं दी जाती है. इस प्रोग्राम का उद्देश्य प्रोडक्शन और आदमनी के स्तर में सुधार के लिए वर्कफोर्स तैयार करना होता है.

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भारतीय कृषि कौशल परिषद

खेती के सेक्टर में सरकार ने एक नई पहल की शुरुआत की है. जिसमें वर्कफोर्स के स्किल्स में सुधार करना है. सरकार की यह योजना एक गैर-लाभकारी संगठन है. जिसे साल 2013 में खेती में कई तरह की नौकरी के लिए भूमिकाओं के लिए लायक मानकों को विकसित करने के लिए स्थापित किया गया था. इसके तहत किसानों को खेती के मामले में उनकी स्किल और नॉलेज में सुधार किया जाएगा साथ ही सर्टिफिकेट कोर्स भी करवाया जाएगा.

स्टार्ट अप विलेज एंटरप्रेन्योरशिप प्रोग्राम

साल 2015 में शुरू हुए इस प्रोग्राम का लक्ष्य उद्यमियों को खेती समेत कई क्षेत्रों में अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए मदद करना है और पैसे भी देना है. इस कार्यक्रम के तहत अपने व्यवसायों को बढ़ाने और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाने हैं.

नेशनल सेंटर फॉर मैनेजमेंट ऑफ एग्रीकल्चर एक्सटेंशन -हैदराबाद

सरकार द्वारा शुरू की गयी यह बेहद जरूरी पहल है, जिससे कृषि और किसानों के कौशल में सुधार हो सके. इस योजना को कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत साल 1987 में स्थापित किया गया था. इस योजना के अंतर्गत किसानों के कौशल और ज्ञान को बढ़ाने के लिए प्रोग्राम्स किये जाते हैं.

परम्परागत कृषि योजना

साल 2015 में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने इस कार्यक्रम की शुरुआत की थी. इसका उद्देश्य जैविक खेती करने के तरीकों के लिए किसानों की उचित मदद और आर्थिक मदद करना है. जिससे देश में जैविक खेती को बढ़ावा मिल सके.

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना

साल 2007 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की शरुआत की थी. इस योजना के अंतर्गत कृषि विकास में तेजी लाने के साथ साथ किसानों की इनकम बढ़ाना है. साथ ही अन्य राज्यों और केंद्र शाशित प्रदेशों को मदद करना है. इसके अलाव सरकार की इस योजना का उद्देश्य कृषि के अलावा सम्बद्ध क्षेत्रों में सार्वजिनक निवेश को बढ़ाना है.

इन बातों को समझना सबसे ज्यादा जरूरी

  • किसान भाई चाहें तो अपनी फसलों के साथ साथ कृषि उत्पादों का डाइवर्सिफिकेशन कर अपनी इनकम बढ़ा सकते हैं.
  • नई खेती की तकनीकों को इन प्रोग्राम्स के माध्यम से सीखकर कई बड़ी गलतियों से बचा जा सकता है.
  • आजकल का समय बदल रहा है, ऐसे में इस बदलते हुए समय में आपको हर सरकारी योजनाएं और सरकारी कि तरफ से मुहैया कराई जा रही सब्सिडी के बारे में जानकारी ले सकते हैं.
  • आप चाहें तो एग्रीकल्चर और हार्टीकल्चर की बढ़ती डिमांड को देखते हुए प्रोडक्ट प्लानिंग कर सकते हैं.
हैदराबाद में सब्जियों के अवशेष से बन रहा जैविक खाद, बिजली और ईंधन, पीएम मोदी ने की प्रशंसा

हैदराबाद में सब्जियों के अवशेष से बन रहा जैविक खाद, बिजली और ईंधन, पीएम मोदी ने की प्रशंसा

हैदराबाद की बोवेनपल्ली सब्जी मंडी आजकल खूब सुर्खियां बटोर रही है। यहां मंडी व्यापारियों की कोशिशों पर बेकार अथवा बची हुई अशुद्ध सब्जियों के उपयोग से जैविक खाद, बिजली और जैव-ईंधन निर्मित किया जा रहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसकी प्रशंसा की है। आजकल ऑर्गेनिक वेस्ट मैनेजमेंट अच्छी खासी आमदनी का स्त्रोत बनता जा रहा है। इसके चलते पर्यावरण को संरक्षण देने में भी विशेष मदद प्राप्त हो रही है। साथ ही, आजकल लोग ऑर्गेनिक वेस्ट के जरिए खूब मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। यह किसान भाइयों के लिए एक उन्नति का जरिया बनता जा रहा है। आजकल हैदराबाद की बोवेनपल्ली मंडी के अंदर भी कुछ इसी प्रकार का ऑर्गेनिक वेस्ट मैनेजमेंट प्रोजेक्ट चल रहा है। यहां पर मंडी में बची हुई अथवा बेकार सब्जियों से हरित ऊर्जा बनाई जा रही है। बोवेनपल्ली मंडी में सब्जियों के अवशेष को उपयोग करके बिजली, जैविक खाद, जैविक ईंधन निर्माण कार्य चल रहा है। मंडी व्यापारियों के नवाचार एवं सफल कोशिशों से प्रभावित होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रशंसा की है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सराहनीय कार्य की खूब प्रशंसा की है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में बोवेनपल्ली सब्जी मंडी के व्यापारियों के नवोन्मेषी विचारों की खूब प्रशंसा की है। पीएम मोदी ने बताया है, कि ज्यादातर सब्जी मंडियों में सब्जियां खराब हो जाती हैं, जिससे असुरक्षित खाद्यान हालात उत्पन्न हो जाएंगे। ऐसे में समस्या का निराकरण करने हेतु हैदराबाद की बोवेनपल्ली सब्जी मंडी व्यापारियों द्वारा इस अवशेष से हरित ऊर्जा निर्मित करने का निर्णय लिया गया है। यह भी पढ़ें: एशिया की सबसे बड़ी कृषि मंडी भारत में बनेगी, कई राज्यों के किसानों को मिलेगा फायदा मंडी में फल एवं सब्जियों के प्रत्येक औंस अवशेषों द्वारा 500 यूनिट बिजली एवं 30 किलो जैव ईंधन बनाया जा रहा है। यहां उत्पादित होने वाली विघुत आपूर्ति प्रशासनिक भवन, जल आपू्र्ति नेटवर्क, स्ट्रीट लाइट्स और 170 स्टाल्स को की जा रही है। साथ ही, ऑर्गेविक वेस्ट से निर्मित जैव ईंधन को बाजार में स्थित रेस्त्रा, ढ़ाबे अथवा व्यावसायिक रसोईयों में भेजा जा रहा है। यहां विघुत के जरिए मंडी की कैंटीन प्रकाशित की जा रही है। साथ ही, यहां का चूल्हा तक भी प्लांट के ईंधन के जरिए जल रहा है। जानकारी के लिए बतादें, कि बोवेनपल्ली मंडी में प्रतिदिन 650-700 यूनिट विघुत खपत होती है। उधर, प्रतिदिन 400 यूनिट बिजली पैदा करने के लिए 7-8 टन फल एवं सब्जियों के अवशेषों की जरूरत पड़ती है। यह मंडी के जरिए ही प्राप्त हो जाती है। इस प्रकार मंडी का वातावरण साफ-स्वच्छ और स्वस्थ रहता है। आज बोवेनपल्ली मंडी में स्थापित बायोगैस संयंत्र हेतु हैदराबाद की दूसरी मंडियों द्वारा भी जैव कचरा एकत्रित किया जाता है।

महिलाओं के लिए भी रोजगार के नवीन अवसर उत्पन्न हुए हैं

हैदराबाद की बोवेनपल्ली सब्जी मंडी में स्थापित बायोगैस प्लांट से वर्तमान में बहुत सारे लोगों को रोजगार का अवसर मिला है। यहां पर सब्जी बेचने वाले एवं अन्य लोग भी जैव कचरे को एकत्रित कर प्लांट में पहुँचाते हैं। साथ ही, प्लांट में पहुँचाए गए जैव कचरे की कचरे को अलग करने, कटाई-छंटाई करने, मशीन चलाने व प्लांट प्रबंधन का काम महिलाएं देख रही हैं। मंडी अधिकारियों के अनुसार, बायोगैस प्लांट में प्रतिदिन 10 टन अवशेष एकत्रित किया जाता है। यदि अनुमान के अनुसार बात करें तो इस अवशेष से एक वर्ष में 6,290 किग्रा. कार्बन डाई ऑक्साइड निकलती है। जो कि पर्यावरण एवं लोगों के स्वास्थ्य हेतु बिल्कुल सही नहीं है। इस चुनौती एवं समस्या को मंडी व्यापारियों ने संज्ञान में लिया है। इसका बायोगैस प्लांट को स्थापित करके संयुक्त समाधान निकाल लिया गया है। यह भी पढ़ें: पंजाब के गगनदीप ने बायोगैस प्लांट लगाकर मिसाल पेश की है, बायोगैस (Biogas) से पूरा गॉंव जला रहा मुफ्त में चूल्हा तेलंगाना राज्य की राजधानी हैदराबाद की इस बोवेनपल्ली मंडी में बायोगैस प्लांट को चालू करने का श्रेय जैव प्रौद्योगिकी विभाग एवं कृषि विपणन तेलंगाना विभाग, गीतानाथ को जाता है। यहीं बायोगैस प्लांट वित्त पोषित है। इस बायोगैस प्लांट को व्यवस्थित रूप से चलाने में सीएसआईआर-आईआईसीटी के वैज्ञानिकों का मार्गदर्शन शम्मिलित है। यहीं की पेटेंट तकनीक के माध्यम से बायोगैस संयंत्र की स्थापना की गई है।
पंजाब के गगनदीप ने बायोगैस प्लांट लगाकर मिसाल पेश की है, बायोगैस (Biogas) से पूरा गॉंव जला रहा मुफ्त में चूल्हा

पंजाब के गगनदीप ने बायोगैस प्लांट लगाकर मिसाल पेश की है, बायोगैस (Biogas) से पूरा गॉंव जला रहा मुफ्त में चूल्हा

पंजाब के गगनदीप सिंह ने भारत में नवाचार डेयरी किसान के टूर पर मिसाल कायम कर रहे हैं। गगनदीप का 150 गाय के डेयरी फार्म (Dairy farm) सहित बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) भी है, जिसके जरिये वह अपने गांव की प्रत्येक आवश्यकता को पूर्ण कर रहे हैं, प्रतिदिन भारत से एक नवीन हुनर सामने आता दिख रहा है। सर्वाधिक नवाचार कृषि जगत में देखने को मिल रही है। एक इनोवेटिव आइडिया किसानों के साथ-साथ पूरे गांव के हालात परिवर्तित कर देते है। 

वर्तमान दौर में हमारे मध्य ऐसे बहुत से किसान उपलब्ध हैं, जो खुद के इनोवेटिव आइडिया की वजह से स्वयं तो आत्मनिर्भर हुए ही हैं साथ ही अपने पूरे गांव एवं किसानों के प्रति सामाजिक दायित्व को निभाते हुए बेहतरीन कार्य कर रहे हैं। इसमें सबसे विशेष जो बात है वह ये कि गगनदीप का Innovation पर्यावरण सुरक्षित रखने में बेहद सहायक साबित हो रहा है।

इस लेख में हम आगे गगनदीप के सराहनीय Innovative Idea के बारे में और गगनदीप के बारे में जानेंगे जिसने गाँव की तकदीर ही बदल दी। बतादें कि गगनदीप सिंह के डेयरी फार्म में लगभग 150 गौवंश मौजूद है। इन गौवंशों से ना केवल दूध उत्पादन लिया जा रहा है, जबकि गाय के गोबर द्वारा उत्तम मुनाफा कमा रहा है। गगनदीप सिंह ने डेयरी फार्म के सहित एक बायोगैस संयंत्र स्थापित किया गया है, जिसमें गाय के गोबर के एकत्रित करके बायोगैस एवं जैविक खाद निर्मित की जा रही है। 

बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) द्वारा उत्पन्न गैस के माध्यम से आज पूरा गांव अपना चूल्हा चला रहा है। दूसरी तरफ अतिरिक्त बचे गोबर के अवशेष द्वारा जैविक खाद तैयार कर किसानों को उपलब्ध किया जा रहा है। गगनदीप द्वारा Innovative Idea का यह प्रभाव है, कि वर्तमान में गांव के किसी भी घर में रसोई गैस का सिंलेंडर नहीं है। गाँव के लोग बायोगैस प्लांट द्वारा उत्पन्न गैस से मुफ्त में भोजन बनाते हैं। 

पूरा गाँव जला रहा मुफ्त में चूल्हा

गोबर को धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक सोना कहा जाता है। इसके द्वारा ना केवल मृदा की उर्वरक शक्ति बढ़ रही है, साथ ही पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी यह काफी सुरक्षित है। पंजाब राज्य के रूपनगर निवासी गगनदीप सिंह द्वारा इसी गोबर का उचित प्रयोग करके पूरे गांव को समृद्ध एवं सुखी बना दिया है। आपको जानकारी हेतु बतादें कि गगनदीप सिंह द्वारा स्वयं 150 गाय के डेयरी फार्म सहित 140 क्यूबिक मीटर का भूमिगत बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) निर्मित किए हैं, जहां से एक पाइपलाइन को भी निकाल दिया गया है। इस ​पाइपलाइन द्वारा गांव के प्रत्येक व्यक्ति को बायोगैस का कनेक्शन दे दिया गया है। वर्तमान में इस पाइपलाइन कनेक्शन के माध्यम से प्रत्येक रसोई को 6 से 7 घंटे प्रतिदिन खाना निर्मित करने हेतु बायोगैस उपलब्ध करायी जाती है।

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इस गैस को पूर्णतयः निःशुल्क उपलब्ध कराया जा रहा है, इससे गांव के प्रत्येक घर में सिलेंडर का 800 से 1000 रुपये का व्यय खत्म हो गया है। कोरोना महामारी के मध्य, जब भारत में रसोई गैस की आपूर्ति हेतु काफी दिक्कत हो रही थी, उस समय गगनदीप के गांव का प्रत्येक चूल्हा बिना किसी दिक्कत के प्रज्वलित हो रहा था। 

किसानों को भी हो रहा है फायदा

जानकारी हेतु बतादें, कि गगनदीप सिंह द्वारा स्वयं के डेयरी फार्म के नीचे भूमिगत नालियां स्थापित की हैं, जिनके माध्यम से गाय के गोबर तथा गौमूत्र को पानी सहित बायोगैस प्लांट में पहुँचाया जाता है। बायोगैस प्लांट में स्वचालित तरीके से कार्य होता रहता है। प्लांट के ऊपरी स्तर से निकलने वाली गैस को रसोईयों में भेजा जाता है। शेष बचा हुआ गोबर एवं अवशेष (स्लरी) गड्ढों में जमा हो जाता है।

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यह स्लरी किसानों के लिए बेची जाती है, इससे किसान जैविक खाद निर्मित कर खेती में उपयोग करते हैं। पहले किसानों द्वारा रासायनिक उर्वरकों हेतु जो व्यय किया जाता था, इस खाद की वजह से उस समस्त खर्च की बचाया जा रहा है। इसकी वजह से किसान पर्यावरण के संरक्षण के लिए जैविक खेती की तरफ अग्रसर होने की प्रेरणा मिली है। 

बायोगैस प्लांट स्थापित करने के लिए सरकार दे रही अनुदान

वर्तमान भारत में 53 करोड़ से अधिक पशुधन हैं, जिनसे प्रतिदिन 1 करोड़ टन गोबर मिलती है। अगर किसान एवं पशुपालक इसी गोबर का समुचित उपयोग किया जाए तो अपनी आमदनी को कई गुना बढ़ाया जा सकता है। आपको बतादें कि गोबर की शक्ति का सबसे ज्यादा फायदा यह है, कि वर्तमान में सरकार भी बड़े बायोगैस प्लांट स्थापित करने हेतु सब्सिडी प्रदान करती है। ऐसे गोबर गैस प्लांट में 55 से 75 प्रतिशत मीथेन का उत्सर्जन विघमान होता है, जिसका उपयोग भोजन निर्मित करने से लेके गाड़ी चलाने हेतु भी किया जाता है।