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potato cultivation

विश्व का सबसे महंगा आलू कहाँ उगाया जाता है ?

विश्व का सबसे महंगा आलू कहाँ उगाया जाता है ?

आज हम आपको बताऐंगे आलू की बेहतरीन किस्म के बारे में। विश्व का सबसे महंगा आलू फ्रांस का ले बोनोटे अपने अलहदा स्वाद की वजह से विश्व के सबसे महंगे आलू के तौर पर जाना जाता है। यह 50,000 से लेकर 90,000 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकता है। आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है। क्योंकि, यह स्वाद में अव्वल स्थान पर आता है। आलू हम सबकी जिंदगी में विशेष स्थान रखता है। बतादें, कि कभी सब्जी तो कभी स्नैक्स के तौर पर इसका भर-भरकर उपयोग होता है।  सामान्यतः आलू का पूरी साल उपभोग किया जाता है। क्योंकि, इसकी कीमत कम होती है। साथ ही, हर किसी व्यंजन के साथ यह घुलमिल सकता है। फिलहाल, फुटकर में इसकी कीमत 10 से 15 रुपये प्रति किलो है। साथ ही, वर्ष भर यह अधिक से अधिक 20 से 50 रुपये के मध्य ही बिकता है। परंतु, क्या आपको जानकारी है, कि आलू की एक ऐसी भी किस्म है, जो सोने-चांदी की कीमत पर आती है। 

ले बोनोटे आलू की पैदावार किस देश में की जाती है

हम जिस आलू की बात कर रहे हैं, उस किस्म का नाम
ले बोनोटे Le Bonnotte है। यह किस्म केवल फ्रांस के अंदर ही उगाया जाता है। इस एक किलो आलू की कीमत इतनी अधिक है, कि किसी भी मध्यमवर्गीय परिवार के घर का वर्षभर का राशन जाए। यह 50,000 रुपये से लेकर 90,000 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत पर बिक्रय किया जाता है। अब इसमें चकित करने वाली बात यह है, कि इतना महंगा होने के बावजूद ले बोनोटे की खूब खरीदारी होती रहती है। इसकी वजह है, इसकी कम पैदावार। वर्षभर में इसका उत्पादन मई एवं जून के मध्य ही होता है। बेशक इसकी कीमत सातवें आसमान पर है। परंतु, तब भी लोग इसको खरीदकर खाने के लिए सदैव तैयार रहते हैं। 

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आलू की पैदावार कितनी होती है

आलू की इस किस्म के आलू के स्वाद को जो चीज सबसे हटकर बनाती है। वह है, इसकी विशेष प्रकार की खेती, जो कि केवल 50 वर्ग मीटर की रेतीली जमीन पर की जाती है। इसको उगाने के लिए खाद के तौर पर समुद्री शैवाल का उपयोग किया जाता है। पारंपरिक तौर पर अटलांटिक महासागर के लॉयर क्षेत्र के तट के फ्रांसीसी द्वीप नोइमोर्टियर पर इसका उत्पादन होता है। खेती के उपरांत आलू का चयन करने के लिए लगभग 2500 लोग सात दिन तक लगे रहते हैं।10,000 टन आलू की फसल में से केवल 100 टन ही ला बोनेटे उत्पादित होते हैं।

इस किस्म का आलू कैसा होता है ?

यदि हम ला बोनेटे के स्वाद पर नजर डालें तो इसमें नींबू के साथ नमक एवं अखरोट का भी स्वाद होता है, जो और किसी आलू के अंदर नहीं पाया जाता है। यह काफी मुलायम एवं नाज़ुक होते हैं। ऐसा कहा जाता है, कि इसको सामान्य तौर पर उबालकर ही निर्मित किया जाता है। इसको मक्खन और समुद्री नमक के साथ परोसा जाता है। यह आकार में काफी छोटे होते हैं। साथ ही, गोल्फ की गेंद के आकार से बड़े नहीं होते। वहीं, अगर इनके गूदे की बात करें, तो मलाईदार सफेद होता है। इस आलू की कीमत इसकी उपलब्धता के अनुरूप प्रति वर्ष होती है। परंतु, आज तक यह 50,000 से 90,000 रुपये प्रति किलो के बीच ही बिक्रय किया गया है।
आलू का समुचित मूल्य ना मिलने पर लागत निकाल पाना भी हुआ मुश्किल

आलू का समुचित मूल्य ना मिलने पर लागत निकाल पाना भी हुआ मुश्किल

आलू की कीमत बेहद कम होने से सपा नेता शिवपाल सिंह यादव ने राज्य सरकार पर सीधा निशाना साधा है। उन्होंने एक ट्वीट के जरिए से कहा है, कि "सरकार का 650 रुपये प्रति क्विंटल की दर से आलू खरीदने का फरमान नाकाफी है"। बेहतरीन पैदावार होने की वजह से इस बार उत्तर प्रदेश के साथ-साथ विभिन्न राज्यों में आलू के भाव में काफी गिरावट देखने को मिली है। इससे किसानों को लाभ तो दूर की बात है, फसल पर किया गया खर्च निकालना भी असंभव सा हो गया है। साथ ही, बहुत सारे किसान भाई कीमतों में आई गिरावट की वजह से आलू कोल्ड स्टोर में रखना सही समझ रहे हैं। भाव में बढ़ोतरी होने पर वह आलू बेचेंगे। ऐसी स्थिति में कोल्ड स्टोर के अंदर भी जगह का अभाव हो गया है। फिलहाल, किसान आलू की कीमत को निर्धारित करने के लिए सरकार से मांग की जा रही है। साथ ही, आलू का निर्यात शुरू करने के लिए भी स्वीकृति देने की गुहार की जा रही है।

आलू की लागत तक नहीं निकाल पा रहे किसान

मीडिया खबरों के मुताबिक, पश्चिम बंगाल और बिहार में आलू की मांग में गिरावट होने की वजह से भी उत्तर प्रदेश में आलू के भाव में कमी देखने को मिली है। साथ ही, निर्यात ना होने की वजह से राज्य के
कोल्ड स्टोर के अंदर आलू को रखने के लिए समुचित जगह का भी अभाव हो गया है। इन परिस्थितियों में किसान भाई सरकार से आलू का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने की मांग कर रहे हैं। किसानों ने बताया है, कि आलू का भाव कम होने की वजह से फसल पर किया गया खर्च निकालना भी कठिन सा हो रहा है। मुख्य रूप से कर्ज लेकर कृषि करने वाले किसान काफी घाटा सहकर आलू बेच रहे हैं। क्योंकि उनके पास कोल्ड स्टोर का किराया तक वहन करने की आर्थिक स्थिति नहीं है।

बाजार में फिलहाल आलू का क्या भाव है

हालांकि, उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से आलू का भाव निर्धारित कर दिया गया है। सरकार द्वारा ऐलान किया गया है, कि फिलहाल राज्य में 650 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से आलू की खरीद की जाएगी। परंतु, इसके उपरांत भी किसानों के चेहरे मायूस दिखाई दे रहे हैं। किसानों ने बताया है, कि प्रति क्विंटल आलू पर किया गया खर्च 800 रुपये के करीब है। अब इस परिस्थिति में हम आलू का विक्रय 650 रुपये क्विंटल किस तरह कर सकते हैं। बतादें, कि उत्तर प्रदेश की मंडियों में फिलहाल आलू का भाव 400 रुपये से 500 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से चल रहा है, जो किसान भाइयों के सिर दर्द की वजह बना हुआ है।

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सरकार का 650 रुपये प्रति क्विंटल की दर से आलू खरीदने का फरमान नाकाफी है : शिवपाल यादव

साथ ही, 650 रुपये प्रति क्विंटल आलू का भाव निर्धारित करने पर सपा नेता शिवपाल सिंह यादव ने राज्य सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने ट्वीट के माध्यम से कहा है, कि "सरकार का 650 रुपये प्रति क्विंटल के मूल्य से आलू खरीदने का फरमान नाकाफी है। उन्होंने कहा कि 2500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से बीज खरीदने वाले किसानों के लिए यह समर्थन मूल्य मजाक है। ऐसे में सरकार को न्यूनतम 1500 रुपए प्रति पैकेट की दर से आलू की खरीद करनी चाहिए।"

आलू का समुचित भाव ना मिलने पर निराश किसान ने सड़क पर फेंके आलू

बतादें कि इस वर्ष बिहार और पश्चिम बंगाल में भी आलू का बेहतरीन उत्पादन हुआ है। ऐसी स्थिति में ये दोनों राज्य उत्तर प्रदेश से आलू का आयात नहीं कर रहे हैं। आपको यह भी बतादें कि स्वयं बिहार के किसान भी आलू की कीमतों में आई गिरावट के चलते आलू सड़कों पर ही फेंक रहे हैं। शुक्रवार के दिन बिहार के बेगूसराय में एक हताश किसान ने आलू की समुचित कीमत न मिलने की वजह से 25 क्विंटल आलू को सड़क पर ही फेंक दिया था।
बिहार के वैज्ञानिकों ने विकसित की आलू की नई किस्म

बिहार के वैज्ञानिकों ने विकसित की आलू की नई किस्म

बिहार के लखीसराय में कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने आलू की एक नई किस्म विकसित की है। आलू की इस किस्म को "पिंक पोटैटो" नाम दिया गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आलू की इस किस्म में अन्य किस्मों की अपेक्षा रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा है। साथ ही आलू की इस किस्म में बरसात के साथ शीतलहर का भी कोई खास असर नहीं पड़ेगा। फिलहाल इसकी खेती शुरू कर दी गई है। वैज्ञानिकों को इस किस्म में अन्य किस्मों से ज्यादा उपज मिलने की उम्मीद है।

आलू की खेती के लिए ऐसे करें खेत का चयन

ऐसी जमीन जहां पानी का जमाव न होता हो, वहां
आलू की खेती आसानी से की जा सकती है। इसके लिए दोमट मिट्टी सबसे ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है। साथ ही ऐसी मिट्टी जिसका पीएच मान 5.5 से 5.7 के बीच हो, उसमें भी आलू की खेती बेहद आसानी से की जा सकती है।

खेती की तैयारी

आलू लगाने के लिए सबसे पहले खेत की तीन से चार बार अच्छे से जुताई कर दें, उसके बाद खेत में पाटा अवश्य चलाएं ताकि खेत की मिट्टी भुरभुरी बनी रहे। इससे आलू के कंदों का विकास तेजी से होता है।

आलू कि बुवाई का समय

आलू मुख्यतः साल में दो बार उगाया जाता है। पहली बार इसकी बुवाई जुलाई माह में की जाती है, इसके बाद आलू को अक्टूबर माह में भी बोया जा सकता है। बुवाई करते समय किसान भाइयों को ध्यान रखना चाहिए कि बीज की गोलाई 2.5 से 4 सेंटीमीटर तक होना चाहिए। साथ ही वजन 25 से 40 ग्राम होना चाहिए। बुवाई करने के पहले किसान भाई बीजों को अंकुरित करने के लिए अंधरे में फैला दें। इससे बीजों में अंकुरण जल्द होने लगता है। इसके बाद स्वस्थ्य और अच्छे कंद ही बुवाई के लिए चुनना चाहिए। ये भी पढ़े: हवा में आलू उगाने की ऐरोपोनिक्स विधि की सफलता के लिए सरकार ने कमर कसी, जल्द ही शुरू होगी कई योजनाएं आलू की बुवाई कतार में करनी चाहिए। इस दौरान कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर होनी चाहिए जबकि पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर होनी चाहिए।

आलू की फसल में सिंचाई

आलू की खेती में सिंचाई की जरूरत ज्यादा नहीं होती। ऐसे में पहली सिंचाई फसल लगने के 15 से 20 दिनों के बाद करनी चाहिए। इसके बाद 20 दिनों के अंतराल में थोड़ी-थोड़ी सिंचाई करते रहें। सिंचाई करते वक्त ध्यान रखें कि फसल पानी में डूबे नहीं।

आलू की खुदाई

आलू की फसल 90 से लेकर 110 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है। फसल की खुदाई के 15 दिन पहले सिंचाई पूरी तरह से बंद कर देनी चाहिए। खुदाई से 10 दिन पहले ही आलू की पतियों को काट दें। ऐसा करने से आलू की त्वचा मजबूत हो जाती है। खुदाई करने के बाद आलू को कम से कम 3 दिन तक किसी छायादार जगह पर खुले में रखें। इससे आलू में लगी मिट्टी स्वतः हट जाएगी।
इस आलू की कीमत सोने से भी महंगी, जानिए इसकी कीमत

इस आलू की कीमत सोने से भी महंगी, जानिए इसकी कीमत

आज हम आपको इस लेख में ले बोनोटे आलू के बारे में जानकारी देने वाले हैं। वहीं, अगर इसकी उत्पत्ति की बात की जाए तो नोइरमौटियर द्वीप पर हुई है। विगत 200 साल से फ्रांस में इसकी खेती हो रही है। इसका नाम एक स्थानी किसान बेनोइट बोनोटे के नाम पर रखा गया है। बतादें कि ऐसा कहा जाता है, कि किसान बेनोइट बोनोटे ने सर्वप्रथम इसकी खेती चालू की थी। आलू की सब्जी का सेवन करना हर किसी को पसंद है। इसकी खेती तकरीबन पूरे भारत में की जाती है। यह एक ऐसा खाद्य पदार्थ है, जो कि पूरे वर्ष बाजार में असानी से मिल जाता है। इसकी कीमत सदैव 20 से 30 रुपये किलो ही रहती है। परंतु, कभी- कभी भारत में आलू 50-60 रुपये किलो भी हो जाता है। इससे महंगाई बढ़ जाती है। सरकार के ऊपर दवाब अधिक बढ़ जाता है। साथ ही, लोगों के किचन का बजट भी खराब हो जाता है। क्या आपको जानकारी है कि विश्व में आलू की एक ऐसी भी प्रजाति है, जिसकी कीमत काफी ज्यादा होती है। इस किस्म के एक किलो आलू खरीदने के लिए आपको हजारों रुपये का खर्चा करना पड़ेगा।

केवल फ्रांस में ही ले बोनोटे का उत्पादन होता है

विशेष बात यह है, कि आलू की इस किस्म का नाम ले बोनोटे है। इसकी खेती केवल फ्रांस में होती है। ऐसा कहा जाता है, कि इसकी कीमत एक तोले सोने से भी ज्यादा होती है। ऐसी स्थिति में आम भारतीय परिवार इस एक किलो आलू की कीमत में कई माह का राशन खरीद सकता है। आम तौर पर विश्व के धनवान लोग ही इस आलू का सेवन करते हैं। क्योंकि गरीब व्यक्ति एक किलो आलू खरीदने की जगह एक तोला सोना खरीद लेगा, जो कि बाद में बेहतरीन रिटर्न देगा। ये भी पढ़े: Potato farming: आलू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी ले बोनोटे आलू इस वजह से इतना महंगा है, क्योंकि इसकी खेती फ्रांस के सीमित इलाकों में ही की जाती है। एक किलो ले बोनोटे की कीमत 50,000 से 90,000 रुपये के मध्य होती है। मतलब कि इतने रुपये में आप भारत में बहुत टन आलू खरीद सकते हैं। ऐसे ले बोनोटे आलू खाने में काफी स्वादिष्ट होता है। इसकी खेती केवल अटलांटिक महासागर में मौजूद फ्रांसीसी द्वीप नोइर्मौटियर पर ही होती है। बतादें, कि ले बोनोटे आलू को हाथ से भी काटा जाता है।

ले बोनोटे का सेवन मक्खन एवं नमक के साथ किया जाता है

इसकी काफी कम पैदावार होती है और यह सिर्फ मई व जून महीने के दौरान ही बाजार में मिलता है। एक किलो ले बोनोटे आलू की बिक्री अब तक सर्वाधिक 90048 रुपये में हुई है। यही कारण है, कि यह ट्रफल्स अथवा कैवियार जैसे बहुत से खाद्य उत्पादों की तुलना में ज्यादा महंगा है। ऐसा कहा जाता है, कि अनूठा स्वाद ले बोनोटे आलू को और ज्यादा महंगा बनाता है। बतादें, कि सामान्य आलू की भांति इसकी सब्जी नहीं बनाई जाती है। ले बोनोटे आलू को पहले पानी में उबाला जाता है। इसके उपरांत मक्खन और नमक के साथ मिलाकर सेवन किया जाता है। ये भी पढ़े: सीड प्लॉट तकनीक से गुणवत्तापूर्ण आलू बीज एवं बेहतरीन उत्पादन हांसिल करें

ले बोनोटे की पारंपरिक विधि से खेती की जाती है

ले बोनोटे आलू की पारंपरिक तरीकों के माध्यम से ही खेती की जाती है। किसान भाई इसकी रोपाई अपने हाथों से ही किया करते हैं। मतलब कि इसकी खेती में मशीन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। यह आलू सामान्य आलू की अपेक्षा आकार में काफी छोटा होता है। इसका छिलका भी काफी पतला होता है। साथ ही, काफी मुलायम भी होता है। अब ऐसे में आप इसे आसानी से हाथों से भी काट सकते हैं।
इस फसल की बढ़ती माँग से किसानों को होगा अच्छा मुनाफा

इस फसल की बढ़ती माँग से किसानों को होगा अच्छा मुनाफा

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि एक हेक्टेयर में करीब 25 टन शकरकंद का उत्पादन होता होता है। यदि किसान इसकी कीमत 10 रुपए किलो के हिसाब से भी मानें तो एक एकड़ से उत्पादक न्यूनतम 1.25 लाख रुपए अर्जित कर सकते हैं। वर्तमान में विश्वभर में भारत से बहुत सारे उत्पाद व वस्तुएं निर्यात की जाती रही हैं, शकरकंद उनमें से एक है। आलू की भाँति दिखने वाला शकरकंद की भारत सहित विश्वभर में माँग की जाती है। दरअसल, विश्वभर में शकरकंद निर्यातकों की सूचि में भारत छठवें स्थान पर है, परंतु जिस प्रकार से किसान इसके उत्पादन पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। इस हिसाब से बहुत जल्द भारत चीन को पछाड़कर निर्यातकों की सूचि में प्रथम स्थान हासिल प्राप्त करलेगा। बतादें, कि देश के बहुत सारे राज्यों में शकरकंद का उत्पादन बेहतरीन तरीके से किया जा रहा है एवं किसान इसकी फसल से अच्छा खासा लाभ भी उठा पा रहे हैं। आगे हम इस लेख में शकरकंद के उत्पादन से कैसे अधिक मुनाफा कमा पाएंगे इस विषय में हम चर्चा करेंगे। शकरकंद का उत्पादन करने हेतु सर्वप्रथम उत्पादक द्वारा स्वयं की भूमि का मृदा परीक्षण करना होगा। यदि किसान के भूमि की मृदा अत्यंत कठोर एवं पथरीली है अथवा किसान के खेत में जलभराव जैसी दिक्कत भी है, ऐसे में कृषकों हेतु शकरकंद का उत्पादन करना अच्छा नहीं होगा। साथ ही, यदि आपके खेत की मृदा का पीएच मान 5.8 से 6.8 के मध्य है, तो आप शकरकंद का उत्पादन करना बेहद आसानी से कर सकते हैं। शकरकंद का उत्पादन करने के दौरान सिंचाई का अत्यधिक ध्यान केंद्रित करना अत्यंत आवश्यक है। यदि किसानों ने ग्रीष्म ऋतु में शकरकंद के पौधे लगाए हैं, उस समय रोपाई के तुरंत उपरांत सिंचाई नहीं करनी चाहिए। किसान भाई ध्यान रखें कि सिंचाई सप्ताह में केवल एक बार ही हो। यदि बरसात का मौसम है, तो किसान बिल्कुल भी शकरकंद में बिल्कुल पानी न लगाएं।

किसान खाद किस तरह से लगाएं

वर्तमान दौर में यदि आप किसी भी फसल का उत्पादन कर रहे हैं, याद रहे कि आपकी फसल का उत्पादन खेतों में दिए गए खाद की गुणवत्ता एवं मात्रा एक अहम भूमिका निभाती है। यदि कृषक शकरकंद का उत्पादन कर रहे हैं, तो किसानों को निज खेतों में नाइट्रोजन, फॉस्फोसर एवं पोटाश का समुचित मात्रा में उपयोग करना चाहिए। साथ ही, यदि आपकी जमीन अत्यधिक अम्लीय है, ऐसी स्थिति में कृषकों को मैग्निशियन सल्फेट, जिंकोसल्फेट एवं बोरोन का उपयोग करना होगा। ऐसे उर्वरकों को किसान कृषि वैज्ञानिक एवं कृषि विशेषज्ञों के दिशा निर्देशानुसार ही समुचित मात्रा में दें।


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कितनी होगी पैदावार

आज के समय में फसल उत्पादकों हेतु बेहतरीन फसल का चुनाव सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण बात है। किसानों को जिस फसल से अत्यधिक लाभ हो सके एवं उनके द्वारा किये गए व्यय को निकालकर वह अच्छी आमंदनी भी अर्जित कर सकें। हालाँकि, शकरकंद की बात की जाए तो यह फसल काफी अच्छी आमंदनी करने में सहायक साबित होती है। उत्पादन की बात करें तो एक हेक्टेयर में तकरीबन 25 टन शकरकंद की पैदावार होती है। किसान कम से कम 10 रुपए किलो भी शकरकंद का मूल्य रखें उस गणित से एक एकड़ में उत्पादन कर किसान न्यूनतम 1.25 लाख रुपए का लाभ अर्जित कर सकते हैं।