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भेड़, बकरी, सुअर और मुर्गी पालन के लिए मिलेगी 50% सब्सिडी, जानिए पूरी जानकारी

भेड़, बकरी, सुअर और मुर्गी पालन के लिए मिलेगी 50% सब्सिडी, जानिए पूरी जानकारी

अगर आप भी भेड़, बकरी, सुअर या मुर्गी पालन से जुड़े काम में इच्छुक हैं और इनसे जुड़ा व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं, तो आप भी इस योजना का लाभ ले सकते हैं। इसके अंतर्गत आपको 50% की सब्सिडी दी जाती है। 

हमारे देश में काफी लोग अभी भी पालतू पशुओं को पालते हैं जो उनकी जीविका का प्रमुख स्रोत है। देश में एसे ही पशुपालकों को बढ़ावा देने के साथ साथ उन्हें उचित रोजगार देने की व्यवस्था इस योजना में की गई है। 

केंद्र सरकार ने इस मिशन को नेशनल लाइवस्टॉक मिशन (National Livestock Mission) नाम से शुरु किया है।

इस मिशन के तहत अपना फार्म शुरु करने वाले किसानों को पशुपालन विभाग की तरफ से 50% सब्सिडी का प्रावधान है। 

उत्तराखंड लाइवस्टॉक डेवलपमेंट बोर्ड के अपर प्रबंधक डॉ विशाल शर्मा इस योजना के बारे में अपनी राय देते हुए कहते हैं, "ये छोटे पशुओं जैसे कि भेड़, बकरी और सुअर के लिए के लिए योजना है, इसमें कोई भी पशुपालक अपना कारोबार शुरू करना चाहता हो तो वो इसका लाभ ले सकता है।" 

इस योजना में अगर कोई पशुपालक भेड़ या बकरी पालने का इच्छुक है तो उसे 500 मादा बकरी के साथ ही 25 नर भी पालने होगें। 

अगर कोई भी व्यक्ति इस योजना का लाभ उठाना चाहता है तो वह भारत सरकार की वेबसाइट https://nlm.udyamimitra.in/ पर जाकर इसमें आवेदन कर सकता है।

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इस योजना में आगे डॉ. विशाल बताते हैं, "अगर आप इसके लिए फॉर्म भरते हैं और किसी बैंक की डिटेल सबमिट करते हैं तो उस बैंक अकाउंट में मिलने वाली कुल राशि की आधी राशि होनी चाहिए, 

जैसे कि अगर आपका प्रोजेक्ट 20 लाख का है तो आपके खाते में 10 लाख रुपए होने चाहिए, अगर आपके खाते में आधी राशि नहीं है तो इसके लिए आप बैंक से लोन भी ले सकते हैं।" 

लोन मिलने के बाद आपको आवेदन करते समय इसकी डिटेल भी सबमिट करनी होगी और अगर किसी कारणवश आपको लोन नहीं मिलता तो इसकी जानकारी आपको ऑनलाइन आवेदन करते समय देनी होगी। 

आपका फॉर्म ऑनलाइन सबमिशन के बाद उत्तराखंड के देहरादून मुख्यालय पर वरिष्ठ अधिकारी उसकी जांच करते हैं कि आपके द्वारा दिए गए सभी आंकड़े सही हैं। 

अगर आपके द्वारा दिए गए आंकड़े सही हैं तो उसे प्रिंसिपल सहमति दी जाएगी। इसके बाद आपके दस्तावेज बैंक के पास पुनः जांच के लिए जाएंगे, जिसे बैंक वेरीफाई करेगा की आपके द्वारा दी गई जानकारी सही है या नहीं। 

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इसके बाद आगे डॉ. शर्मा आगे कहते हैं, "वहां बैंक सब चेक करने के बाद आपका आवेदन एक बार फिर हमारे पास आ जाएगा, जो समिति के पास आएगा, 

वहां से सबमिट होने के बाद पशुपालन व डेयरी मंत्रालय, फिर भारत सरकार के पास जाएगा, इसके बाद आपके आवेदन में जिस बैंक की डिटेल भरी है वो बैंक सीधे लाभार्थी के खाते में 50% राशि भेज देगा।

भेड़ों का पालन करने से पहले इनकी नस्लों के बारे में जरूर जानें

भेड़ों का पालन करने से पहले इनकी नस्लों के बारे में जरूर जानें

भेड़ों का पालन मुख्य रूप से ऊन उत्पादन के लिए किया जाता है। भेड़ ऊन उत्पादन का सबसे अच्छा स्त्रोत है। आज हम आपको भेड़ों की कुछ नस्ल जैसे कि गद्दी, मारवाड़ी, मांड्या, नेल्लोर और दक्कनी भेड़ के संबंध में जानकारी देंगे। किसान भेड़ पालन अपने मोटे मुनाफे के साथ-साथ अपनी दैनिक आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए करते हैं। परंतु, भेड़ पालन करने से पूर्व आपको अच्छी तरह इनकी नस्लों की जानकारी होनी जरूरी होती है। भेड़ों में भी बहुत सारी नस्लें ऐसी होती हैं, जो ज्यादा कीमत की ऊन की पैदावार करने के साथ ही दूध उत्पादन के लिए पाली जाती हैं।

इन नस्लों की भेड़ों के बारे में जानें

गद्दी नस्ल की भेड़

इस नस्ल की भेंड़ आकार में छोटी होती हैं। ये जम्मू के बहुत सारे क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इस नस्ल को पालने की प्रमुख वजह ऊन है। इस नस्ल के नर भेड़ के सींग होते हैं और मादा सींग रहित होती हैं। इस नस्ल का ऊन काफी चमकदार होता है। बतादें, कि प्रति भेड़ से औसतन 1.15 किलोग्राम वार्षिक उत्पादन किया जा सकता है, जिसे सामान्यतः वर्ष भर में तीन बार काटा जाता है।

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दक्कनी नस्ल की भेड़

यह नस्ल आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु एवं राजस्थान में पाई जाती है। इन भेड़ों को ऊन उत्पादन के लिए पाला जाता है। भेड़ की यह नस्ल भूरे और काले रंग की होती है। ये ऊन उत्पादन के लिए शानदार भेड़ें हैं। इस नस्ल की हर एक भेड़ तकरीबन 5 किलोग्राम वार्षिक ऊन उत्पादित करती है। यह ऊन निम्न गुणवत्ता का होता है, जो मुख्य रूप से बालों और रेशों के मिश्रण से बना होता है। दरअसल, इसका इस्तेमाल प्रमुख तौर पर मोटे कंबल निर्मित करने के लिए किया जाता है।

मांड्या नस्ल की भेड़

यह अधिकांश कर्नाटक के मांड्या जनपद में पाए जाने वाली नस्ल हैं। यह भेड़ सफेद रंग की होती हैं। परंतु, कभी-कभी हल्के भूरे मुंह के साथ भी पाई जाती है। इस नस्ल का आकार छोटा होता है। नर भेड़ का औसत वजन तकरीबन 35 किलोग्राम तक होता है। वहीं, मादा भेड़ का वजन तकरीबन 25 किलोग्राम तक होता है।

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नेल्लोर नस्ल की भेड़

नेल्लोर नस्ल की भेड़ मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कुछ हिस्सों में पाई जाती है। यह छोटे बालों के साथ आकार में लंबी होती हैं। यह नस्ल भारत की बाकी सभी नस्लों में सबसे ऊंची है। साथ ही, यह दिखने में बकरी के जैसी होती है। नेल्लोर नस्ल की भेड़ के कान लंबे और झुके हुए होते हैं। नर भेड़ का औसत शारीरिक वजन 36-38 किलोग्राम होता है। मादा भेड़ का वजन अच्छे फार्म प्रबंधन के साथ 28-30 किलोग्राम हो जाता है। इस नस्ल का चेहरा लंबा, कान लंबे होते हैं और शरीर घने छोटे बालों से ढका होता है। इस नस्ल की ज्यादातर भेड़ें लाल रंग की दिखाई देती है, इस वजह से लोग इन्हें नेल्लोर रेड कहते हैं।

मारवाड़ी नस्ल की भेड़

मारवाड़ी नस्ल की भेड़ के पैर लंबे, काला चेहरा और उभरी हुई नाक होती है। पूंछ छोटी और नुकीली होती है। यह नस्ल प्रमुख तौर पर राजस्थान के जोधपुर और जयपुर जनपदों के कुछ इलाकों में पाई की जाती है। ये भेड़ें उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ जनपदों और महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में भी पाई जाती हैं।
कम लागत में किसान इस पशु को पालकर हो सकते हैं मालामाल, सरकार दे रही है 50% सब्सिडी

कम लागत में किसान इस पशु को पालकर हो सकते हैं मालामाल, सरकार दे रही है 50% सब्सिडी

किसान पारंपरिक खेती से परेशान होकर अब पशुपालन की तरफ रुख कर रहे हैं। पारंपरिक खेती में किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। आपको यह भी बता दें कि केंद्र व राज्य सरकार पशुपालन के लिये बहुत सारी सुविधाएँ व सब्सिडी भी दे रही है, जिससे किसानों को पशु पालन करना और भी आसान हो रहा है। आपको यह भी बता दें कि जिन किसानों के पास भूमि काफी कम है, वहाँ पशुपालन कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। किसानों को यह पता नहीं है कि कौन से पशु को पालने में उनको ज्यादा मुनाफा मिलेगा। आज इस लेख में हम आपको बताएंगे कि पारंपरिक पशुपालन के अलावा इन पशुओं को पालने से आपको मिल सकता है बेहतर मुनाफा।

भेड़ पालन क्यों हो रहा है लोकप्रिय

देशभर में गाय, भैंस, बकरी के अलावा अभी जो सबसे ज्यादा पशु पालन हो रहा है, वह है भेड़ (sheep) पालन। आए दिन भेड़ पालन (Sheep rearing) में किसान काफी रुचि ले रहे हैं, इसका मुख्य कारण यह है कि भेड़ पालने में खर्च भी कम लगता है और मुनाफा भी अच्छा खासा हो जाता है। किसानों में भेड़ पालन लोकप्रिय होने का महत्वपूर्ण कारण यह है कि इसके खाने के लिए चारा की उपलब्धता भी काफी आसान है। अधिकांश भेड़ हरी पत्तियाँ व घास का सेवन करती हैं, जिससे किसानों को कम लागत में भी उसके लिए चारा उपलब्ध कराना आसान होता है।

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किसानों के बीच इसका लोकप्रिय होने का सबसे मुख्य कारण यह है, कि उसके हर एक चीज़ का प्रयोग नए नए उत्पाद को बनाने में किया जाता है। जैसे उसके बालों का प्रयोग ऊन (wool) बनाने में किया जाता है, वहीं उसके चमड़े का प्रयोग बहुत सारे उत्पादों को बनाने के लिए भी किया जाता है। इतना ही नहीं इसके अलावा भी भेड़ों के दूध की बाजार में अच्छी कीमत किसानों को मिल जाती है, जिससे किसान की आय पहले की तुलना में और भी अधिक बढ़ जाता है।

सरकार दे रही है सब्सिडी

गौरतलब हो कि भेड़ पालन के लिए केंद्र सरकार के तरफ से भी अनेकों प्रकार की सब्सिडी किसानों के लिए उपलब्ध है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि नेशनल लाइव स्टॉक मिशन के तहत केंद्र सरकार भेड़ पालन पर 50% तक की सब्सिडी की सुविधा किसानों को दे रही है। इतना ही नहीं इसके अलावा भी विभिन्न राज्य सरकारे अपने राज्य में भेड़ पालन के लिए अनेकों प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध करा रही है, जिससे अभी भेड़ पालन किसानों के बीच काफी लोकप्रिय बना हुआ है।

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कम लागत में शुरू करें व्यवसाय

आपको यह भी बता दें कि किसान लगभग ₹1,00,000 से भी व्यवसाय को शुरू कर सकते हैं। आपको यह भी बताते चलें कि बाजार में एक भेड़ की कीमत लगभग ₹8000 के आसपास है। भेड़ की ऊन (wool) की बनी हुई कपड़े की मांग काफी ज्यादा है, क्योंकि ठंडे प्रदेश में यह काफी उपयोगी होता है। आपको बता दें की इसके बने हुए कपड़े काफी गर्व होता है, जिसको अत्यधिक ठंड में उपयोग किया जाता है। आपको यह भी बता दें की भेड़ के ऊन का कंबल लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है। इसके ऊन के अलावा इसका मांस और इसका दूध भी बाजार में अच्छा मूल्य देता है, जिससे किसानों का रुझान इसके तरफ काफी बढ़ रहा है। इतना ही नहीं भेड़ के द्वारा निकला हुआ गोबर भी काफी उर्वरक माना जाता है, जिसको किसान अपने खेतों में प्रयोग कर फसल को भी अच्छा उगा सकते हैं, जिससे भी किसान को काफी लाभ मिलेगा। भेड़ के गोबर की कीमत बाजार में काफी अच्छी है, क्योंकि इसमें उर्वरक शक्ति अधिक पायी जाती है, जिसका प्रयोग बड़े बड़े किसान अपने खेती के लिए करते हैं।
इन नस्लों की भेड़ पालने से पशुपालक जल्द ही हो सकते हैं मालामाल

इन नस्लों की भेड़ पालने से पशुपालक जल्द ही हो सकते हैं मालामाल

भारत में भेड़ पालन एक लोकप्रिय पशुपालन उद्योग है। भेड़ को दूध, मांस और ऊन के उत्पादन के लिए पाला जाता है। भेड़ पालन से देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बनते हैं और इससे ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। यह काम किसान भाई खेती बाड़ी के साथ ही करते हैं जिससे उन्हें अतिरिक्त आमदनी हो जाती है। भेड़ पालन का काम ज्यादातर छोटे और सीमांत किसान करते हैं। भेड़ों की मौत के बाद उनकी खाल की भी बाजार में अच्छी खासी मांग रहती है। भेड़ की खाल से जूते, चप्पल और हैंड बैग जैसी चीजें बनाई जाती हैं। इन दिनों भारत में किसानों के द्वारा कई नस्लों की भेड़ें पाली जाती हैं। जिनका उपयोग ज्यादातर ऊन उत्पादन में किया जाता है। इनमें जैसलमेरी, मंडियां, छोटा नागपुरी शहाबाबा, मारवाड़ी, बेकानेरी, मालपुरा, कोरिडायल रामबुतु और मैरिनो प्रमुख हैं। इन सभी प्रजातियों की भेड़ें किसी भी प्रकार के मौसम में रह सकती हैं, जिससे पशुपालकों को इनको पालने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी होती है। पशुपालकों द्वारा ऐसा कई बार कहा जाता है कि उन्हें भेड़ पालन में उचित मुनाफा नहीं होता है, इसलिए आज हम आपको भेड़ों की ऐसी नस्लों के बारे में बताने जा रहे हैं जिससे किसान भाई रातोंरात मालामाल बन सकते हैं।

अविकालीन भेड़

यह भेड़ उन्नत किस्म के ऊन का उत्पादन करती है। जिसका उपयोग कालीन बनाने में किया जाता है। इस भेड़ से प्राप्त होने वाला ऊन बेहद पतला होता है। अगर इसके वार्षिक उत्पादन की बात करें तो यह भेड़ एक साल में 2 से लेकर 2.5 किलो तक ऊन दे सकती है। इस नस्ल की भेड़ का पालन करके किसान भाई अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। ये भी पढ़े: कृषि में गाय, भेड़, बकरी, चींटी, केंचुआ, पक्षी, पेड़ों का महत्व

अविवस्त्र भेड़

यह सबसे ज्यादा ऊन देने वाली भेड़ की नस्ल है। यह एक साल में 4 किलोग्राम से ज्यादा ऊन दे सकती है। इसके साथ ही इस भेड़ का वजन भी तेजी से बढ़ता है। ऐसे में इसका मांस बेंचकर भी पशुपालक अच्छी खासी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। इस भेड़ का वजन एक साल के भीतर 23 किलोग्राम तक हो सकता है।

चौकला भेड़

यह बेहद वजनी भेड़ होती है, जिसका वजन 32 से लेकर 40 किलोग्राम तक हो सकता है। यह भेड़ एक साल में 2.5 किलोग्राम ऊन का उत्पादन कर सकती है। इस नस्ल की भेड़ में सींग नहीं होते। यह ज्यादातर राजस्थान के सीकर, झुंझुनू और चुरू जिले में पाई जाती है। ये भी पढ़े: हरियाणा में 39 वें राज्य स्तरीय पशु मेले का आयोजन किया जा रहा है इनके अलावा भारत में लोही, कूका, गुरेज, नुरेज, हसन, नैल्लोर, जालौनी, शाहवादी, बजीरी, बैलारी, जालौनी, भाकरवाल, मागरा, काठियावाड़ी, भादरवाल और दक्कनी नस्ल की भेड़ें भी पाई जाती हैं।