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चावल

भारतीय कृषि निर्यात में 10% प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई

भारतीय कृषि निर्यात में 10% प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई

APEDA द्वारा जारी कृषि निर्यात के आंकड़ों के अनुसार, भारत के कृषि निर्यात में 10% प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। इसमें सर्वाधिक प्रभाव गेहूं के ऊपर पड़ा है। इसकी मांग 90% प्रतिशत से अधिक कम हुई है। एग्रीकल्चरल प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) द्वारा कृषि निर्यात के आंकड़े जारी किए हैं। इनके मुताबिक कृषि उत्पादों के भारत के निर्यात में चालू वित्त वर्ष 2023-24 की अप्रैल-नवंबर अवधि के दौरान 10% प्रतिशत की कमी दर्ज हुई है। इसकी वजह अनाज शिपमेंट में कमी को बताया गया है। APEDA द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल-नवंबर 2023-24 की अवधि में कृषि निर्यात 15.729 बिलियन डॉलर रहा, जो विगत वर्ष की समान अवधि के 17.425 डॉलर के मुकाबले में 9.73% प्रतिशत कम है।

बासमती चावल के शिपमेंट में काफी बढ़ोतरी दर्ज की गई है 

सऊदी अरब और ईराक जैसे खरीदारों द्वारा अधिक खरीदारी की वजह से बासमती चावल के शिपमेंट में विगत वर्ष की समान अवधि के मुकाबले में 17.58 फीसद की वृद्धि के साथ 3.7 बिलियन डॉलर की बढ़ोतरी दर्ज की गई, जो कि 2.87 बिलियन डॉलर थी। मात्रा के रूप से बासमती चावल का निर्यात विगत वर्ष की समान अवधि के 27.32 लाख टन से 9.6% प्रतिशत बढ़कर 29.94 लाख टन से अधिक हो गया है। 

गेंहू का 98% प्रतिशत निर्यात कम रहा है 

साथ ही, घरेलू उपलब्धता में सुधार और मूल्य वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए सरकार द्वारा विगत वर्ष जुलाई में लगाए गए निर्यात प्रतिबंधों की वजह से गैर-बासमती चावल शिपमेंट में एक चौथाई की कमी आई है। अप्रैल से नवंबर माह तक गैर-बासमती चावल का निर्यात 3.07 अरब डॉलर रहा, जो बीते साल के 4.10 अरब डॉलर से ज्यादा है। 

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मात्रा के संदर्भ में गैर-बासमती शिपमेंट विगत वर्ष की समान अवधि के 115.7 लाख टन की अपेक्षा में 33% प्रतिशत कम होकर 76.92 लाख टन रह गया है। गेहूं का निर्यात विगत वर्ष के 1.50 अरब डॉलर के मुकाबले 98% प्रतिशत कम होकर 29 मिलियन डॉलर रहा। अन्य अनाज निर्यात पिछले साल की समान अवधि के 699 मिलियन डॉलर की तुलना में 38 प्रतिशत कम होकर 429 मिलियन डॉलर पर रहा।

बासमती उत्पादक किसानों को सरकार के इस कदम से झेलना पड़ रहा नुकसान

बासमती उत्पादक किसानों को सरकार के इस कदम से झेलना पड़ रहा नुकसान

भारत संपूर्ण दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल का निर्यातक देश है। यह अपनी पैदावार का लगभग 80 प्रतिशत निर्यात कर देता है। साल 2022-23 में भारत ने तकरीबन 4.6 मिलियन टन बासमती चावल का निर्यात किया है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं पंजाब की मंडियों में बासमती धान की आवक चालू हो गई है। परंतु, इस बार कृषकों को विगत वर्ष की तुलना में बासमती धान का कम भाव मिल रहा है। किसानों का यह कहना है, कि उन्हें इस वर्ष बासमती धान की बिक्री में काफी हानि हो रही है। किसानों की मानें, तो उन्हें इस बार प्रति क्विंटल 400 से 500 रुपये कम प्राप्त हो रहे हैं। साथ ही, किसानों का यह आरोप है, कि केंद्र सरकार द्वारा बासमती चावल के मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 1,200 डॉलर प्रति टन निर्धारित करने के चलते उन्हें काफी हानि उठानी पड़ रही है।

भारत दुनिया में सबसे बड़ा बासमती निर्यातक देश है

भारत दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल का निर्यातक देश है। यह अपनी पैदावार का 80 प्रतिशत बासमती चावल निर्यात करता है। ऐसी स्थिति में इसका भाव निर्यात के कारण से चढ़ता-उतरता रहता है। यदि बासमती चावल का मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 850 डॉलर प्रति टन से ज्यादा हो जाएगा, तो ऐसी स्थिति में व्यापारियों को काफी नुकसान होगा। इससे किसानों को भी काफी नुकसान उठाना पड़ेगा। क्योंकि व्यापारी किसानों से कम भाव पर बासमती चावल खरीदेंगे। इस मध्य खबर है, कि बासमती चावल की नवीन फसल 1509 किस्म की कीमतों में काफी गिरावट आई है। विगत सप्ताह इसके भाव में 400 रुपये प्रति क्विंटल की कमी दर्ज की गई।

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किसानों को वहन करना पड़ रहा घाटा

किसान कल्याण क्लब के अध्यक्ष विजय कपूर ने बताया है, कि मिलर्स और निर्यातक किसानों को सही भाव नहीं दे रहे हैं। वह किसानों से कम कीमत पर बासमती खरीदने के लिए काफी दबाव डाल रहे हैं। उनकी मानें तो यदि सरकार 15 अक्टूबर के पश्चात मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस वापस ले लेती है, तो किसानों को काफी अच्छा मुनाफा मिलेगा। उन्होंने कहा है, कि पंजाब के व्यापारी हरियाणा से कम भाव पर बासमती चावल की 1509 प्रजाति की खरीदारी कर रहे हैं। इससे किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।

किसानों को 1,000 करोड़ रुपये की हानि होगी

हरियाणा में कुल 1.7 मिलियन हेक्टेयर रकबे में से बासमती चावल की खेती की जाती है। इसमें से लगभग 40 प्रतिशत हिस्सेदारी 1509 किस्म की है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया के अनुसार, यदि इसी प्रकार बासमती का भाव मिलता रहा, तो किसानों को कुल मिलाकर 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा।
दून बासमती किस्म के चावल का स्वाद और उत्पादन कैसा होता है ?

दून बासमती किस्म के चावल का स्वाद और उत्पादन कैसा होता है ?

बतादें, कि तीव्रता से होते शहरीकरण की वजह से दून बासमती चावल विलुप्त हो रहा है। खबरों के मुताबिक, बीते सालों में इसकी खेती काफी घट गई है। दून बासमती, चावल की किस्म जो अपनी समृद्ध सुगंध और विशिष्ट स्वाद के लिए जानी जाती है। तेजी से लुप्त हो रही है।उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक दून बासमती चावल की खेती का रकबा बीते पांच सालों में 62% प्रतिशत तक घट गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, दून बासमती चावल की पैदावार 2018 में जहां 410 हेक्टेयर क्षेत्रफल में किया जा रहा था। वहीं 2022 में यह आंकड़ा महज 157 हेक्टेयर तक सिमट गया है। यही नहीं इस खेती के सिकुड़ते क्षेत्रफल के कारण किसानों ने भी अपने हाथ पीछे खींचना शुरू कर दिया है। 2018 में 680 किसान दून बासमती चावल पैदा कर रहे थे। पांच सालों में 163 किसानों ने बासमती चावल की खेती बंद कर दी है।

दून बासमती चावल की सुगंध और स्वाद कैसा होता है ?

अपनी विशिष्ट कृषि-जलवायु परिस्थितियों की वजह से यह चावल दून घाटी के लिए स्थानिक महत्व रखता है। इसके अलावा, चावल की यह प्रजाति केवल बहते पानी में ही पैदा होती है। यह चावल की “बहुत ही नाजुक” किस्म है। यह पूरी तरह से जैविक रूप से उत्पादित अनाज है, रासायनिक उर्वरकों या कीटनाशकों का उपयोग करने पर इसकी सुगंध और स्वाद खो जाता है। 

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दून बासमती, चावल की एक दुर्लभ किस्म होने के अतिरिक्त देहरादून की समृद्ध विरासत का एक महत्वपूर्ण भाग है। दून बासमती को दून घाटी में चावल उत्पादकों द्वारा विकसित किया गया था। दून बासमती चावल एक वक्त में बड़े क्षेत्रफल पर उगाया जाता था, जो अब एक विशाल शहरी क्षेत्र के तौर पर विकसित हो चुका है। अब दून बासमती चावल की खेती उंगलियों पर गिने जा सकने वाले कुछ ही क्षेत्रों तक ही सीमित है।

यह किस्म बड़ी तीव्रता से विलुप्त हो रही है 

तेजी से बढ़ते शहरीकरण के कारण घटती कृषि भूमि जैसे कई कारणों से चावल की विशिष्ट किस्म तीव्रता से विलुप्त हो रही है। विपणन सुविधाओं का अभाव और सब्सिडी न मिलने जैसी वजहों ने दून बासमती चावल को विलुप्त होने की कगार पर पहुंचा दिया हैं। बासमती चावल की विभिन्न अन्य प्रजातियां दून बासमती के नाम पर बेची जा रही हैं। दून बासमती के संरक्षण एवं प्रचार-प्रसार के लिए सरकार को महत्वपूर्ण कदम उठाने की आवश्यकता है।

गेहूं के फर्जी निर्यात की जांच कर सकती है सीबीआई

गेहूं के फर्जी निर्यात की जांच कर सकती है सीबीआई

गेहूं के फर्जी निर्यात की जांच कर सकती है सीबीआई : अब गेहूं निर्यात से पहले कागजों का होगा भौतिक सत्यापन

नई दिल्ली। गेहूं के निर्यात में हो रही धांधली पर
विदेश व्यापार निदेशालय (डीजीएफटी) (Directorate General of Foreign Trade (DGFT)) ने बड़ा फैसला लिया है। क्षेत्रीय अधिकारियों को कहा है कि गेहूं निर्यात के लिए पंजीकरण प्रमाण पत्र (आरसी) जारी करने से पहले उसके कागजातों का भौतिक सत्यापन होगा। वाणिज्य मंत्रालय के आदेश पर इसकी शुरुआत हो रही है। अब देश बाहर गेहूं भेजने वालों को 13 मई या उससे पहले के लेटर ऑफ क्रेडिट (एलओसी) के साथ विदेशी बैंक के साथ हुई बातचीत की तारीख भी बतानी होगी। किसी तरह की गड़बड़ी पाई गई तो सीबीआई जांच कराई जाएगी। डीजीएफटी ने कहा कि सरकार ने 13 मई को गेंहू के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था। लेकिन उसके पहले जिन निर्यातकों ने एलओसी हांसिल किया है। वे गेहूं का निर्यात कर पाएंगे।

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जरूरत होने पर पेशेवर एजेंसी से ली जाएगी मदद

- डीजीएफटी ने कहा है कि निर्यातकों को मंजूरी मिली हो, या मंजूरी प्रक्रिया में चल रहे हों। दोनों की स्थितियों में निर्यातकों के कागजातों का भौतिक सत्यापन किया जाएगा। और जरूरत हुई तो पेशेवर एजेंसी की मदद ली जाएगी। मामले की जांच आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) से भी कराई जाएगी। और इसमें बैंकर गलत पाए गए तो उन पर कार्यवाई की जाएगी।

चावल निर्यात पर नहीं होगी पाबंदी : सरकार

- बढ़ती महंगाई के चलते आशंका जताई जा रही थी कि गेहूं के बाद चावल निर्यात पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है। लेकिन अब सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि चावल के निर्यात पर कोई पाबंदी नहीं होगी। सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में चावल गोदामों में और निजी व्यापारियों के पास चावल का पर्याप्त भंडार है। घरेलू स्तर पर चावल के दाम भी नियंत्रण में हैं। इसलिए चावल के निर्यात पर पाबंदी लगाने की कोई योजना नहीं है। गेहूं और चीनी के निर्यात पर सख्ती के बीच कयास लगाए जा रहे थे कि सरकार चावल निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा सकती है। लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं होगा।

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चावल कारोबारियों ने रोके सौदे

- गेहूं व चीनी के निर्यात पर सख्ती देख चावल कारोबारियों ने भी विदेश से होने वाले सौदे रोक दिए हैं। आंशका जताई जा रही थी कि गेहूं व चीनी के बाद चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लग सकता है। लेकिन अब सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि चावल निर्यात पर कोई पाबंदी नहीं लगेगी। सरकार के इस निर्णय के बाद चावल कारोबारियों ने राहत की सांस ली है। ------ लोकेन्द्र नरवार
गेहूं निर्यात पर पाबंदी से घबराए व्यापारी, चावल निर्यात के लिए कर रहे बड़ी डील

गेहूं निर्यात पर पाबंदी से घबराए व्यापारी, चावल निर्यात के लिए कर रहे बड़ी डील

नई दिल्ली। भारत सरकार द्वारा बीते 14 मई को गेहूं निर्यात पर पाबंदी लगा दी गई थी। जिसके बाद देश के बड़े व्यापारी घबराए हुए हैं। हालांकि व्यापारियों को सरकार से उम्मीद है कि बंदरगाहों पर पड़े गेहूं को निर्यात की मंजूरी मिलेगी। लेकिन गेहूं निर्यात पर पाबंदी फिलहाल बनी रहेगी। उधर गेहूं निर्यात पर पाबंदी से घबराए बडे व्यापारियों ने चावल निर्यात के लिए डील शुरू कर दी है। अब चावल व्यापारियों ने खरीददारी बढ़ाने और लंबी अवधि की डिलीवरी के लिए ऑर्डर दिए जा रहे हैं। भारत में भारत शीर्ष चावल निर्यातक है। ऐसे में व्यापारियों को यह भी चिंता सता रही है कि कहीं भारत चावलों की शिपमेंट को भी प्रतिबंधित न कर दे। अगर ऐसा हुआ था चावल व्यापारी बड़े घाटे में रहेंगे। इससे अच्छा है कि अभी से चावल निर्यात की डील फाइनल कर दी जाए। जिससे भविष्य में कोई परेशानी खड़ी न हो।

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बता दें कि पिछले दो सप्ताह में व्यापारियों ने जून से सितंबर तक शिपमेंट के लिए 10 लाख टन चावल निर्यात के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं। और कांट्रैक्ट पर हस्ताक्षर करने के बाद जल्दी से लेटर ऑफ क्रेडिट (एलसी) खोल रहे हैं ताकि कांट्रैक्ट में तय मात्रा को जल्दी से बाहर भेजा जा सके। फिर भले ही भारत सरकार चावल निर्यात को प्रतिबंधित कर दे।

96 लाख टन के लिए कॉन्ट्रैक्ट

- व्यापारी पहले ही इस साल लगभग 96 लाख टन चावल का निर्यात कर चुके हैं। अतिरिक्त 10 लाख टन के कॉन्ट्रैक्ट इस 96 लाख टन के ऊपर किए गए हैं। आने वाले महीनों के दौरान अन्य खरीदारों के लिए उपलब्ध अनाज की मात्रा को कम किया जा सकता है क्योंकि लोडिंग शेड्यूल पूरा हो जाएगा। डेकन हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार भारत के सबसे बड़े चावल निर्यातक सत्यम बालाजी के कार्यकारी निदेशक हिमांशु अग्रवाल ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय व्यापारियों ने अगले तीन से चार महीनों के लिए प्री-बुकिंग की और सभी ने लगातार कारोबार सुनिश्चित करने के लिए एलसी खोले। -----

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गेहूं पर प्रतिबंध और चावल की खरीद

- भारत ने पिछले महीने अचानक गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। जबकि कुछ दिनों पहले कहा गया था कि इस साल रिकॉर्ड शिपमेंट का टार्गेट है।

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सरकार ने चीनी निर्यात पर भी सीमा तय कर दी। चीनी निर्यात ने इस बार तमाम रिकॉर्ड तोड़े हैं। भारत एक टॉप वैश्विक गेहूं निर्यातक नहीं है, लेकिन यह ब्राजील के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चीनी निर्यातक है। इन निर्यात प्रतिबंधों ने अटकलें लगाईं कि भारत चावल के शिपमेंट को भी सीमित कर सकता है, हालांकि सरकारी अधिकारियों ने कहा कि भारत ऐसा करने की योजना नहीं है क्योंकि उसके पास पर्याप्त चावल का स्टॉक है और स्थानीय कीमतें राज्य द्वारा निर्धारित समर्थन मूल्य से कम हैं। मगर व्यापारी घबरा गए थे। इसलिए उन्होंने पहले ही चावल की निर्यात डील कर दी, क्योंकि प्रतिबंध लगने पर पहले से की गयी डील को पूरा करने की छूट मिल जाती है।

वैश्विक चावल व्यापार में भारत का हिस्सा

- वैश्विक चावल व्यापार में भारत का हिस्सा 40% से अधिक है। भारत के गेहूं प्रतिबंध के कारण बंदरगाहों पर बड़ी मात्रा में अनाज फंस गया था क्योंकि सरकार ने केवल एलसी द्वारा समर्थित कॉन्ट्रैक्ट के तहत आने वाले अनाज को भेजने की अनुमति दी थी। आम तौर पर लोग जहाज को नॉमिनेट करते समय एलसी खोलते हैं। इस बार व्यापारियों ने सभी चावल अनुबंधों के लिए एलसी खोले, इसलिए यदि निर्यात पर प्रतिबंध भी लगे, तो कम से कम अनुबंधित मात्रा वाले चावल को बाहर भेजा जा सकेगा। ------- लोकेन्द्र नरवार
गेहूं की बुवाई हुई पूरी, सरकार ने की तैयारी, 15 मार्च से शुरू होगी खरीद

गेहूं की बुवाई हुई पूरी, सरकार ने की तैयारी, 15 मार्च से शुरू होगी खरीद

देश में महंगाई चरम पर है. सब्जी और दाल के साथ आटे के दाम भी आसमान छू रहे हैं. बढ़ी हुई महंगाई ने आम आदमी के बजट और जेब दोनों पर डाका डाल दिया है. इन बढ़े हुए दामों ने केंद्र सरकार को भी परेशान कर रखा है. वहीं बात महंगे गेहूं की करें तो, अब इसके दाम कम हो सकते हैं. आम जनता के लिए यह बड़ी राहत भरी खबर हो सकती है. देश में कई बड़े राज्यों में गेहूं की बुवाई का काम हो चुका है. बताया जा रहा है कि इस साल बुवाई रिकॉर्ड स्तर पर की गयी है. हालांकि भारत के बड़े हिस्से में गेहूं की बुवाई की जाती है. जिसके बाद केंद्र सरकार 15 मार्च से गेहूं खरीद का काम शुरू कर देगी. इसके अलावा इसे जमीनी स्तर पर परखने के लिए खाका भी तैयार किया जा रहा है.

आटे की कीमतों पर लगेगी लगाम

हाल ही में केंद्र सरकार ने गेहूं और आटे की कीमतों पर लगाम लगाने के लिए खुले बाजार में लगभग तीस लाख टन गेहूं बेचने की योजना का ऐलान किया था. बता दें ई-नीलामी के तहत बेचे जाने वाले गेहूं को उठाने और फिर उसे आटा मार्केट में लाने के बाद उसकी कीमतों में कमी आना तय है.
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जानकारी के लिए बता दें कि, OMSS  नीति के तहत केंद्र सरकार FCI को खुले बाजार में पहले निर्धारित कीमतों पर अनाज खास तौर पर चावल और गेहूं बेचने की अनुमति देती है. सरकार के ऐसा करने का लक्ष्य मांग ज्यादा होने पर आपूर्ति को बढ़ाना है और खुले बाजार मनें कीमतों को कम करना है. भारत में गेहूं की पैदावार पिछले साल यानि की 2021 से 2022 में 10 करोड़ से भी ज्यादा टन था. गेहूं की पैदावार की कमी की राज्यों में अचानक बदले मौसम, गर्मी और बारिश की वजह से हुई. जिसके बाद गेहूं और गेहूं के आटे के दामों में उछाल आ गया.
इस राज्य में 24 लाख टन गेहूं की खरीद बढ़ी, क्या इससे किसानों को होगा फायदा

इस राज्य में 24 लाख टन गेहूं की खरीद बढ़ी, क्या इससे किसानों को होगा फायदा

पंजाब राज्य सरकार की तरफ से अंदाजा लगाया जा रहा है, कि प्रदेश में इस वर्ष विगत वर्ष के मुकाबले गेहूं की खरीद में इजाफा किया जाएगा। विगत वर्ष जहां आंकड़ा 96.47 करोड़ के करीब रहा था। इसबार वह आंकड़ा काफी ज्यादा रहेगा। भारत के बहुत सारे राज्यों में गेहूं कटाई चल रही है। किसान गेहूं को काटकर तत्काल मंडी लेकर पहुंच रहे हैं। किसान भाई सर्व प्रथम मौसम के रुझान को भांप रहा है। एक-दो दिन पूर्व आई बरसात ने गेहूं काट रहे किसानों की चिंता को बढ़ा दिया है। उधर, केंद्र एवं राज्य सरकार भी गेहूं खरीद पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं। केंद्र सरकार एजेंसियों के माध्यम से गेहूं खरीद का डाटा इकठ्ठा कर रही है। साथ ही, राज्य सरकार भी मंडी के स्तर से गेहूं के आंकड़ों की अपडेट ले रही हैं। खरीद केंद्रों पर किसानों को किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत न हो सके। इसका भी विशेष रूप से ध्यान रखा जा रहा है। गेहूं खरीद को लेकर पंजाब से राहत भरा समाचार सुनने को सामने आया है। यहां गेहूं की धुआँधार खरीद होने का अंदाजा लगाया गया है। इससे यह बिल्कुल साफ है, कि किसान भी गेहूं बेचकर अच्छी-खासी आमदनी कर सकते हैं।

पंजाब में इतने करोड़ टन गेहूं की खरीद होने की संभावना

पंजाब की मंडियों में भी गेहूं पहुंचाया जा रहा है। अधिकारी भी गेहूं खरीदने में पूरी तेयारी से जुटे हुए हैं। फिलहाल, पंजाब सरकार के अधिकारी ने कहा है, कि मौजूदा रबी सत्र में गेहूं की खरीद काफी अच्छी होने की संभावना है। खरीद का आंकड़ा 1.2 करोड़ टन पहुंचने का अंदाजा है। जबकि विगत वर्ष गेहूं खरीद 96.47 लाख टन रही थी। लगभग 24 लाख टन का इजाफा दर्ज किया जा रहा है।

पंजाब में लगभग 14 लाख हेक्टेयर फसल को हुई हानि

पंजाब में मौसमिक अनियमितताओं के चलते बेमौसम हुई बारिश से तकरीबन 14 हैक्टेयर फसल पर काफी असर पड़ा है। वर्तमान में सांसद राघव चडढा की तरफ से भी प्रभावित किसानों की सहायता करने के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखा था। प्रदेश सरकार के अधिकारियों ने बताया है, कि राज्य में समकुल 34.90 लाख हेक्टेयर में फसल की बुआई की गई है, वहीं इसमें से 14 लाख हेक्टेयर फसल काफी प्रभावित हो चुकी है। जो कि अपने आप में एक बड़ा हिस्सा है। राज्य के कृषि विभाग द्वारा 47.24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अथवा 19 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत पैदावार की संभावना व्यक्त की गई है। इसी आधार पर आंकड़ा भी निकाला गया है।

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पंजाब के इन जनपदों को बेमौसम बारिश ने काफी प्रभावित किया है

ओलावृष्टि के साथ तीव्र हवाओं की वजह से पंजाब के मोगा, फाजिल्का, पटियाला और मुक्तसर सहित पंजाब के बहुत से अन्य इलाकों में भी गेंहू के साथ अन्य फसलें भी काफी प्रभावित हुई हैं। हालाँकि, सहूलियत की बात यह है, कि केंद्र सरकार की एजेंसियों के माध्यम से 18 फीसद तक भीगे, सिकुड़े और टूटे गेंहू के लिए छूट दे दी है। नतीजतन कृषकों को अत्यधिक हानि वहन नहीं करनी पड़ेगी। लेकिन, किसान भाइयों की यही अरदास है, कि गेंहू विक्रय से पूर्व बारिश ना हो जाए।
गेहूं और चावल की पैदावार में बेहतरीन इजाफा, आठ वर्ष में सब्जियों का इतना उत्पादन बढ़ा है

गेहूं और चावल की पैदावार में बेहतरीन इजाफा, आठ वर्ष में सब्जियों का इतना उत्पादन बढ़ा है

मिनिस्ट्री ऑफ स्टैटिक्स एंड प्रोग्राम इंप्लीमेंटेशन के आंकड़ों के अनुरूप, भारत में चावल एवं गेहूं की पैदावार में बंपर इजाफा दर्ज किया गया है। 2014-15 के 4.2% के तुलनात्मक चावल और गेहूं की पैदावार 2021-22 में बढ़कर 5.8% पर पहुंच चुकी है। भारत में आम जनता के लिए सुखद समाचार है। किसान भाइयों के परिश्रम की बदौलत भारत ने खाद्य पैदावार में बढ़ोतरी दर्ज की है। पिछले 8 वर्ष के आकड़ों पर गौर फरमाएं तो गेहूं एवं चावल की पैदावार में बंपर बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है, जो कि किसान के साथ- साथ सरकार के लिए भी एक अच्छा संकेत और हर्ष की बात है। विशेष बात यह है, कि सरकार द्वारा बाकी फसलों की खेती पर ध्यान केंद्रित किए जाने के उपरांत चावल और गेहूं की पैदावार में वृद्धि दर्ज की गई है।

आजादी के 75 सालों बाद भी तिलहन व दलहन पर आत्मनिर्भर नहीं भारत

व्यावसायिक मानकीकृत के अनुसार, भारत गेंहू और चावल का निर्यात करता है। विशेष रूप से भारत बासमती चावल का सर्वाधिक निर्यातक देश है। ऐसी स्थिति में सरकार चावल एवं गेंहू को लेकर बेधड़क रहती है। हालाँकि, स्वतंत्रता के 75 वर्षों के उपरांत भी भारत तिलहन एवं दाल के संबंध में आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है। मांग की आपूर्ति करने के लिए सरकार को विदेशों से दाल एवं तिलहन का आयात करने पर मजबूर रहती है। इसी वजह से दाल एवं खाद्य तेलों का भाव सदैव अधिक रहता है। इसकी वजह से सरकार पर भी हमेशा दबाव बना रहता है।

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ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार वक्त - वक्त पर किसानों को गेंहू - चावल से ज्यादा तिलहन एवं दलहन की पैदावार हेतु प्रोत्साहित करती रहती है। जिसके परिणामस्वरूप भारत को चावल और गेंहू की भांति तिलहन एवं दलहन के उत्पादन के मामले में भी आत्मनिर्भर किया जा सके।

बागवानी के उत्पादन में भी 1.5 फीसद का इजाफा

मिनिस्ट्री ऑफ स्टैटिक्स एंड प्रोग्राम इंप्लीमेंटेशन के आंकड़ों के अनुसार, भारत में गेहूं एवं चावल की पैदावार में बंपर इजाफा दर्ज किया गया है। साल 2014-15 के 4.2% के तुलनात्मक चावल और गेहूं की पैदावार 2021-22 में बढ़कर 5.8% पर पहुंच चुकी है। इसी प्रकार फलों और सब्जियों की पैदावार में भी 1.5 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई है। फिलहाल, भारत में कुल खाद्य उत्पादन में फल एवं सब्जियों की भागीदारी बढ़कर 28.1% पर पहुंच चुकी है।

एक माह के अंतर्गत 11 रुपये अरहर दाल की कीमत बढ़ी

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि वर्तमान में दाल की कीमतें बिल्कुल बेलाम हो गई हैं। विगत एक माह के अंतर्गत कीमतों में 5 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। दिल्ली राज्य में अरहर दाल 126 रुपये किलो हो गया है। जबकि, एक माह पूर्व इसकी कीमत 120 रुपये थी। सबसे अधिक अरहर दाल जयपुर में महंगा हुआ है। यहां पर आमजन को एक किलो दाल खरीदने के लिए 130 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। साथ ही, एक माह पूर्व यह दाल 119 रुपये किलो बेची जा रही थी। मतलब कि एक माह के अंतर्गत अरहर दाल 11 रुपये महंगी हो चुकी है।
बासमती चावल ने अन्य चावलों को बाजार से बिल्कुल गायब कर दिया है

बासमती चावल ने अन्य चावलों को बाजार से बिल्कुल गायब कर दिया है

बतादें, कि आजकल लोग बासमती चावलों की सुगंध से मोहित हो जाते हैं। यदि उन्होंने एक बार भी गोविन्द भोग चावलों की सुगंध सूंघ ली तो दंग हो जाएंगे। यदि आज आप भारत में किसी से जानकारी लेंगे कि कौन सा चावल सबसे अच्छा होता है, तो सामने वाला व्यक्ति बिना वक्त लिए सोचकर बोल देगा बासमती। परंतु क्या ये सत्य है? क्या केवल बासमती ही एक ऐसा चावल है जो सबसे अच्छा है? शायद नहीं क्योंकि, भारत में एक वक्त में ऐसी कई सारी चावल की प्रजातियां थीं, जो अपने स्वाद एवं सुगंध के लिए संपूर्ण विश्व में मशहूर थीं।

गोविन्द भोग चावल की सुगंध अच्छी होती है

जो लोग आज बासमती चावलों की खुशबू से मोहित हो जाते हैं, अगर उन्होंने एक बार भी गोविन्द भोग चावलों की खुशबू सूंघ ली तो हैरान हो जाऐंगे। इस चावल की सुगंध ऐसी होती है, कि यदि ये किसी के घर में पक रहा हो तो सारे मोहल्ले को भनक पड़ जाती है, कि किसी के यहां गोविन्द भोग चावल पक रहा है। यह चावल पश्चिम बंगाल के पूर्वी जनपद में बहने वाली नदी दक्षिण बेसिन के किनारे वाले इलाकों में पैदा की जाती है। वर्तमान में भारत के अंदर यह चावल पश्चिम बंगाल के हुगली, बांकुरा, पुरुलिया और बीरभूम में पैदा किया जाता है। साथ ही, बिहार के कैमूर एवं छत्तीसगढ़ के सरगुजा में भी इस चावल की खेती की जाती है। ये भी पढ़े: धान की किस्म पूसा बासमती 1718, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा

सुगंध के मामले में काला नमक चावल को कोई टक्कर नहीं दे सकता

वर्तमान दौर में यदि किसी भारतीय से काला नमक कहा जाए तो वो नमक वाला काला नमक समझेगा। परंतु, एक वक्त पर काला नमक चावल की किस्म संपूर्ण भारत में लोकप्रिय थी। इस चावल को किसी विशेष अवसर पर ही पकाया जाता था। क्योंकि, ये बेहद महंगा होता है। ऐसा कहा जाता है, कि गोविन्द भोग चावल की सुगंध को किसी चावल की सुगंध मात दे सकती है तो वो काला नमक ही है। ये चावल विशेष रूप से नेपाल के कपिलवस्तु और उसके समीपवर्ती पूर्वी उत्तर प्रदेश के तराई वाले क्षेत्रों में पैदा किया जाता है। इस चावल की प्रसिद्धि एक वक्त पर इतनी थी, कि इसे संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य और कृषि संगठन ने संसार के विशिष्ट मतलब कि खास चावलों की सूची में स्थान दिया है।

काले चावल का बुद्ध से क्या संबंध है

ऐसा कहा जाता है, कि यह चावल स्वयं महात्मा बुद्ध ने किसानों को दिया था। बतादें कि इसके पीछे एक कहानी है, कि एक बार जब महात्मा बुद्ध लुम्बिनी के जंगलों से गुजर रहे थे, तो उन्होंने वहां के ग्रामीणों को काला नमक चावल के बीज देते हुए कहा था, कि इन बीजों से पैदा होने वाले चावल की सुगंध तुम्हें मेरी स्मृति दिलाती रहेगी। आप विचार करिए कि अभी तो हमने आपको केवल दो चावल की किस्मों के विषय में बताया है। हालाँकि, इस प्रकार की विभिन्न प्रजातियां भारत में पैदा की जाती थीं। फिलहाल, यह आहिस्ते-आहिस्ते बासमती की वजह से विलुप्त होती जा रही हैं।
पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

हमारे देश में धान की खेती बहुत बड़ी मात्रा में की जाती है। धान की कई प्रकार की किस्में होती हैं जिनमें से एक किस्म PB1886 है। भारतीय किसान धान की इस किस्म की रोपाई 15 जून के पहले कर सकते हैं। 

जो 20 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच पककर तैयार हो जाती है। हमारे देश में कृषि को अधिक उन्नत बनाने के लिए सरकार की तरफ से नए नए बीज विकसित किए जा रहे हैं। 

और फसलों को और अधिक लाभदायक बनाने के लिए कृषि शोध संस्थानों की तरफ से फसलों की नई नई किस्में विकसित की जा रही हैं। यह किस्म न केवल फसलों की पैदावार में वृद्धि करती है। बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि करती हैं।

पूसा बासमती की नई किस्म PB 1886

इसी कड़ी में पूसा ने बासमती चावल की एक नई किस्म विकसित की है, जिसका नाम PB1886 है। बासमती चावल की यह किस्म किसानों के लिए फायदेमंद हो सकती है। 

यह किस्म बासमती पूसा 6 की तरह विकसित की गई है। जिसका फायदा भारत के कुछ राज्यों के किसानों को मिल सकता है। 

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रोग प्रतिरोधी है बासमती की यह नई किस्म :

बासमती की यह नई किस्म रोग प्रतिरोधी बताई जा रही है। बासमती चावल की खेती में कई बार किसानों को बहुत अधिक फायदा होता है तो कई बार उन्हें नुकसान का भी सामना करना पड़ता है।

धान की फसल को झौंका और अंगमारी रोग बहुत अधिक प्रभावित करते हैं। अगर हम झौंका रोग की बात करें इस रोग के कारण धान की फसल के पत्तों में छोटे नीले धब्बे पड़ जाते हैं और यह धब्बे नाव के आकार के हो जाने के साथ पूरी फसल को बर्बाद कर देते हैं। 

इस वजह से किसान को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही अंगमारी रोग के कारण धान की फसल की पत्ती ऊपर से मुड़ जाती है, धीरे-धीरे फसल सूखने लगती है और पूरी फसल बर्बाद हो जाती है।

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 उपरोक्त इन दोनों कारणों को देखते हुए पूसा ने इस बार धान की एक नई प्रकार की किस्म विकसित की है कि यह दोनों रोगों से लड़ सके। 

इसके साथ ही पूसा द्वारा यह समझाइश दी गई है कि पूसा की इस किस्म को बोने के बाद कृषक किसी भी प्रकार की कीटनाशक दवाओं का छिड़काव न करें। 

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इन क्षेत्रों के लिए है धान की यह किस्म लाभदायक :

धान की यह किस्म क्षेत्र की जलवायु के हिसाब से विकसित की गई है। इसलिए इसका प्रभाव केवल कुछ ही क्षेत्रों में हैं। जहां की जलवायु इस किस्म के हिसाब से अनुकूल नहीं हैं, उस जगह इस किस्म की धान नहीं होती है। 

उषा की तरफ से मिली जानकारी के अनुसार वैज्ञानिक डॉक्टर गोपालकृष्णन ने बासमती PB1886 की किस्म विकसित की है जो कि कुछ ही क्षेत्रों में प्रभावशाली है। 

पूसा के अनुसार यह किस्में हरियाणा और उत्तराखंड की जलवायु के अनुकूल है इसलिए वहां के किसानों के लिए यह किस्म फायदेमंद हो सकती है। 

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 इस किस्म के पौधों को 21 दिन के लिए नर्सरी में रखने के बाद रोपा जा सकता है। इसके साथ ही किसान भाई इस फसल को 1 से 15 जून के बीच खेत में रोप सकते हैं। 

जो कि नवंबर महीने तक पक कर तैयार हो जाती है। इसलिए इस फसल की कटाई नवंबर में हीं की जानी चाहिए।

ठंडे पानी से पकने वाला बिहार का 'मैजिक चावल' होता है शुगर फ्री, होती है खूब कमाई

ठंडे पानी से पकने वाला बिहार का 'मैजिक चावल' होता है शुगर फ्री, होती है खूब कमाई

पटना। आमतौर पर असम की ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर माजुला द्वीप में 'मैजिक धान' की खेती होती है। लेकिन इन दिनों बिहार में 'मैजिक चावल' ने धमाल मचा रखा है। मैजिक चावल की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। बिहार के बगहा के रहने वाले विजय गिरी ने मैजिक धान की खेती की शुरुआत की थी। विजय गिरी ने सबसे पहले एक एकड़ जमीन में इसकी रोपाई की। और पहली ही साल में इसने अपना मैजिक दिखाना शुरू कर दिया। अब अच्छी पैदावार हो रही है। इसमें रासायनिक खाद की जरूरत नहीं होती है। यह ठंडे पानी से पकाया जाता है।

विजय गिरी के बारे में जानें

- ठंडे पानी से पकने वाले मैजिक चावल की खेती करने वाले विजय गिरी का नाम आज देश के चर्चित किसानों में लिया जा रहा है। इनको खेती में विभिन्न प्रकार के प्रयोग करने का जूनून रहता है। कभी ब्लैक व्हिट तो कभी ब्लैक राइस की खेती करके विजय गिरी चर्चाओं में रहते हैं। विजय गिरी के साथ किसान अवधेश सिंह भी मैजिक चावल की खेती कर रहे हैं। magic dhaan ki kheti

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मैजिक चावल को पकाने के लिए नहीं चाहिए गैस चूल्हा

- मैजिक धान की खासियत है कि इसको पकाने के लिए किसी रसोई गैस अथवा चूल्हे की जरूरत नहीं होती है। यह चावल सामान्य पानी में ही रखने पर 45-60 मिनट के अंदर भात बनकर तैयार हो जाता है। इसका बाजार भाव 40 से 60 रुपये प्रतिकिलो होता है। इसको खेत में पककर तैयार होने में 150-160 दिन लगते हैं।

शुगर फ्री होता है मैजिक चावल

किसान विजय गिरी ने मैजिक चावल की शुरुआत करके तमाम किसानों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है। यह मैजिक धान पूरी तरह शुगर फ्री होता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट व प्रोटीन की मात्रा सामान्य चावल के मुकाबले अधिक होती है। इस वर्ष मैजिक धान की खेती का रकवा बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है। ------ लोकेन्द्र नरवार
मेडागास्कर की इस पद्धति का इस्तेमाल कर उगाएं धान, उपज होगी दोगुनी

मेडागास्कर की इस पद्धति का इस्तेमाल कर उगाएं धान, उपज होगी दोगुनी

बदलते वक्त के साथ भारतीय वैज्ञानिकों के अलावा विश्व के कई वैज्ञानिकों की मदद से खेती की नई तकनीकों का भी विकास होता हुआ दिखाई दिया है। धान उत्पादन की कई नई तकनीक आज के समय युवा किसानों को आकर्षित कर रही है, इन्हीं तकनीकों में एक सबसे लोकप्रिय तकनीक है- जिसे मेडागास्कर पद्धति (Madagascar technique) के नाम से जाना जाता है। भारत में कुछ किसान इसे 'श्री विधि' (System of Rice Intensification-SRI या श्री पद्धति) के नाम से भी जानते है। वैसे तो यह पद्धति 1980 के दशक से लगातार इस्तेमाल में लाई जा रही है।

धान उत्पादन की मेडागास्कर विधि

इस पद्धति का नाम मेडागास्कर द्वीप पर पहली बार परीक्षण करने की वजह से मेडागास्कर पद्धति रखा गया है। भारत में लगभग साल 2000 के बाद प्रचलन में आई यह पद्धति, दक्षिण के राज्यों जैसे कि तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में काफी लोकप्रिय रही है। यह बात तो हम जानते है कि नई तकनीकों के प्रयोग के साथ पानी के कम इस्तेमाल को एक महत्वपूर्ण समाधान के रूप में देखा जाता है। श्री पद्धति में भी धान उत्पादन के दौरान पानी का बहुत ही कम इस्तेमाल किया जाता है। वैसे तो हम जानते हैं, कि पारंपरिक खेती में धान के पौधों को पानी से भरे हुए खेतों में उगाया जाता है, लेकिन इस तकनीक में पौधों की जड़ों में बस थोड़ी सी नमी की मात्रा बराबर बनाकर रखनी होगी और पारंपरिक खेती की विधि की तुलना में इस विधि से दो से ढाई गुना तक अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इस विधि का सबसे बड़ा फायदा यह है, कि इसमें धान के पौधों को सावधानीपूर्वक और बिना कीचड़ वाली परिस्थिति में रोपा जाता है, जैसे कि परंपरागत धान की खेती में पौधों को 21 दिन के बाद लगाया जाता है, जबकि इसमें जल्दी उत्पादन को ध्यान रखते हुए उन्हें 10 दिन के बीच में ही बोया जाता है।


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पौधों के बीच में रहने वाले जगह का भी पर्याप्त ध्यान रखना होगा।

किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि जब तक आपके धान से बाली बाहर नहीं निकल आती है, तब तक खेत को थोड़ा बहुत नमी के साथ सूखा रखा जाता है और उसमें पानी बिल्कुल भी नहीं भरा जाता है। जब भी धान के पौधे की कटाई का समय आता है उससे लगभग 25 दिन पहले खेत में पानी पूरी तरीके से निकाल दिया जाना चाहिए, इसीलिए इस विधि का इस्तेमाल करने से पहले आपको अपने खेत की पानी निकासी की व्यवस्था की पर्याप्त जांच कर लेनी होगी।

मेडागास्कर पद्धति में खाद अनुपात व नर्सरी की तैयारी

मेडागास्कर पद्धति में जैविक खाद का इस्तेमाल सर्वाधिक किया जाता है।


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धान की रोपाई होने के बाद लगभग 10 दिन से ही खरपतवार निकालने की शुरुआत की जानी चाहिए और कम रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल की वजह से आपको कम से कम 2 बार निराई करनी होगी। इस पद्धति के तहत, खरीफ मौसम की फसल के लिए जून महीने के शुरुआत में बीज की बुवाई करनी चाहिए और उसके बाद निरंतर समय अंतराल पर ध्यान से निराई का कार्य करना चाहिए। इस विधि की एक और खास बात यह है कि इसमें नर्सरी तैयार करने के लिए 300 से 400 वर्ग फुट का क्षेत्र ही काफी पर्याप्त माना जाता है। नर्सरी में छोटी क्यारियां बनाई जाती है और इनके एक कोने पर नाली लगाई जाती है, जिससे कि पानी की निकासी सुचारू रूप से हो सके। यदि आप खुद से नर्सरी तैयार करने में सक्षम नहीं हैं, तो इस विधि से तैयार होने वाले धान के लिए बाजार से भी बीज खरीदा जा सकता है, इसके लिए आपको प्रति हेक्टेयर में लगभग 5 किलोग्राम तक बीज डालने की आवश्यकता होगी। जब आपके पास बीज आ जाएंगे तो उन्हें नर्सरी में रोप कर पर्याप्त प्रबंधन, जैसे कि नर्सरी पैड का उचित प्रबंधन और उत्तम खाद की परत का इस्तेमाल, साथ ही ध्यान पूर्वक दिया गया पानी जैसी बातों का ध्यान रखकर रोपण किया जा सकता है। इस विधि के लिए किसान भाइयों को परंपरागत खेती की तुलना में कुछ ज्यादा अलग करने की जरूरत नहीं है, परन्तु खेत के समतलीकरण पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए। आपको 2 से 3 मीटर की दूरी पर क्यारियां बनानी होगी, इसके बाद बिना पानी भरे हुए खेत में नमी को बरकरार रखते हुए 1 घंटे के अंदर की पहले से तैयार हुई नर्सरी का रोपण शुरू कर दें। एक जगह पर एक बार में दो से तीन पौधे ही लगाने चाहिए, सभी किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि यदि आप अपने खेतों में धान की रोपाई जुलाई के पहले सप्ताह में करते हैं, तो 25 से 30% तक अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार तैयार हुए धान की पौध में उचित मात्रा में पोषक तत्व और उर्वरकों की भी आवश्यकता होगी, जिसके लिए जैविक खाद, जैसे कि गोबर खाद, बायोगैस खाद आदि का इस्तेमाल किया जा सकता है। यदि आप रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो एजोटोबेक्टर कल्चर (Azotobacter culture) की सहायता ले सकते हैं।


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जैविक खाद की दर को 8 से 10 टन प्रति हेक्टेयर से बनाकर रखें और अपने खेत की मिट्टी में पोषक तत्वों की जांच करवाने के बाद नाइट्रोजन, सल्फर और पोटाश को पर्याप्त मात्रा में मिलाकर खरपतवार का नियंत्रण किया जा सकता है। किसान भाई ध्यान रखें कि यदि आपने खेत में पानी भरने दिया तो वहां पर काफी ज्यादचारा और कचरा हो जाएगा। इस चारे को काटने के लिए अलग से मेहनत और मजदूरी के पैसे भी आपके बजट को बढ़ा सकते हैं, इसलिए आप कोनोवीडर (CONO WEEDER)का इस्तेमाल कर खरपतवार को निकाल सकते हैं और वक्त रहते हुए अपने खेत में मनचाही उपज प्राप्त कर सकते है। आशा करते हैं कि, श्री विधि के तहत धान उत्पादन की खेती हमारे किसान भाइयों को भविष्य में अच्छा मुनाफा कमा कर दे पाएगी और ऊपर बताई गई जानकारी का इस्तेमाल कर आप भी अपने छोटे से खेत में अच्छी पैदावार कर पाएंगे।