Ad

चीन

गन्ना किसानों के लिए बड़ी खुशखबरी, 15 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ सकती हैं गन्ने की एफआरपी

गन्ना किसानों के लिए बड़ी खुशखबरी, 15 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ सकती हैं गन्ने की एफआरपी

नई दिल्ली। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक की गई। बैठक में गन्ने की एफआरपी यानि उचित व लाभकारी मूल्य (Fair and Remunerative Price - FRP) बढाने के लिए निर्णय लिया गया। बताया जा रहा है कि गन्ना की एफआरपी में 15 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी करने की सिफारिशें हुईं हैं। सम्भवतः जल्दी ही इसे पारित किया जाएगा। जानकारों की मानें तो बीते साल 2021 में गन्ने की एफआरपी 290 रुपए प्रति क्विंटल थीं, जो अब बढ़कर 305 रुपये प्रति क्विंटल हो जाएगी। बीते वित्तीय वर्ष में इसमें केवल 5 रुपये की वृद्धि हुई थी। गन्ने पर बढ़ाई जा रही एफआरपी आगामी 1 अक्तूबर से 30 सितंबर 2023 तक के लिए तय की जाएगी। इससे लाखों किसानों को फायदा मिलना तय है।

गन्ना नियंत्रण आदेश 1966 के तहत तय होती है एफआरपी

- प्रदेश सरकार गन्ना नियंत्रण आदेश 1966 के तहत गन्ने की एफआरपी तय करती है। इसके लिए कृषि लागत और मूल्य आयोग सिफारिश करता है। एफआरपी के अंतर्गत चीनी मिल किसानों से न्यूनतम भाव पर गन्ना खरीदता है।



ये भी पढ़ें:
चीनी के मुख्य स्त्रोत गन्ने की फसल से लाभ

देश के कई राज्यों को नहीं मिलेगा एफआरपी का फायदा

- सरकार के इस फैसले से देश के कई राज्यों में गन्ना किसानों को फायदा नहीं मिलेगा। देश में सबसे ज्यादा गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश है। लेकिन यूपी के गन्ना किसानों को एफआरपी पर बढ़ी हुई कीमत का लाभ नहीं मिलेगा। क्योंकि यूपी में एफआरपी पहले से ही ज्यादा है।

मंहगाई को देखते हुए बढ़नी चाहिए एफआरपी

- भले ही सरकार ने गन्ना की एफआरपी 15 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की है। लेकिन किसान इसे मंहगाई की तुलना में काफी कम मान रहे हैं। किसानों के कहना है कि मंहगाई के हिसाब से ही एफआरपी बढ़नी चाहिए। क्योंकि खाद, पानी, बीज और कीटनाशक दवाओं के साथ-साथ मेहनत-मजदूरी भी लगातार बढ़ रही है।



ये भी पढ़ें:
गन्ने की आधुनिक खेती की सम्पूर्ण जानकारी

घट रहा है गन्ना की खेती का रकबा

- उत्तर प्रदेश में पिछले कई सालों से गन्ना की खेती का रकबा लगातार घटता जा रहा है। चीनी मिलों से, गन्ना का बकाया भुगतान समय से न मिलना और दूसरी फसलों में अच्छा मुनाफा होने के चलते किसानों का गन्ना से मोहभंग होता जा रहा है।
गन्ना किसानों को दिवाली के तोहफे के रूप में मिलेंगे सरकार से ९०० रूपए प्रति हेक्टेयर

गन्ना किसानों को दिवाली के तोहफे के रूप में मिलेंगे सरकार से ९०० रूपए प्रति हेक्टेयर

सरकार द्वारा दिवाली के त्यौहार को खुशनुमा बनाने के लिए गन्ना (ganna; sugarcane) किसानों के लिए उपहार के रूप में ९०० रूपये प्रति हेक्टेयर का अनुदान दिया जायेगा। यह अनुदान किसानों के लिए अत्यंत उपयोगी होगा, साथ ही किसान अपनी फसल के लिए उर्वरक आदि आसानी से खरीद सकते हैं। भारत चीनी उत्पादन में सर्वश्रेष्ठ देश बन कर उभरा है, इसके साथ ही चीनी के उत्पादन में बेहद वृद्धि आयी है। सरकार द्वारा गन्ना किसानों का भुगतान समय से कर दिया गया है, जिससे गन्ना उत्पादन करने वाले किसानों को किसी संकट से न जूझना पड़े। गन्ना किसानों को ९०० रूपए प्रति हेक्टेयर की मदद से जरूरी दवाएं एवं अन्य उर्वरक खरीदने के लिए आर्थिक बल मिलेगा, त्यौहार के समय सरकार द्वारा गन्ना किसानों के लिए यह बेहद बड़ी खुशखबरी दी गयी है।


ये भी पढ़ें: अब जल्द ही चीनी के निर्यात में प्रतिबन्ध लगा सकती है सरकार

गन्ना किसानों को अनुदान किस कार्यक्रम के अंतर्गत दिया जायेगा ?

गन्ना किसानों को सरकार अनुदान की रकम "पेड़ी प्रबंधन कार्यक्रम" एवं "बीज भूमि उपचार कार्यक्रम" के माध्यम से प्रदान की जाएगी, अनुदान की राशि प्रति हेक्टेयर ९०० रूपए है। पूर्व में गन्ना रसायनों के कुल खर्च का लगभग ५० प्रतिशत अनुदान ही मिलता था, जिसकी धन राशि ५०० रूपये होती थी। जबकि पेड़ी गन्ना की फसल सुरक्षा के लिए १५० रुपए, मतलब ५० फ़ीसदी अनुदान दिया जाता था। सरकार की तरफ से अब किसानों को अधिक अनुदान मिलेगा, जिससे गन्ना किसानों को अच्छी पैदावार करने के लिए काफी मदद मिलेगी।

रसायन के उपयोग से गन्ने की खेती

गन्ने की खेती एक उम्दा किस्म की फसल है, जिसको उत्पादित करने के लिए किसान को असामान्य मेहनत और देखरेख करने की आवश्यकता होती है। साथ ही कीट व रोगों से बचाने के लिए गन्ना किसानों को बेहतर किस्म के कीटनाशकों की आवश्यकता होती है, जिनके प्रयोग से किसान गन्ने की फसल को अच्छी तरह पैदा कर सकें और अच्छा खासा मुनाफा अर्जित कर सकें। किसान मिट्टी की उत्तम जाँच कराते है जिससे गन्ने की फसल पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़ सके।
भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की इन तीन प्रजातियों को विकसित किया है

भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की इन तीन प्रजातियों को विकसित किया है

गन्ना उत्पादन के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश माना जाता है। फिलहाल भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की 3 नई प्रजातियां तैयार करली गई हैं। इससे किसान भाइयों को बेहतरीन उत्पादन होने की संभावना रहती है। भारत गन्ना उत्पादन के संबंध में विश्व में अलग स्थान रखता है। भारत के गन्ने की मांग अन्य देशों में भी होती है। परंतु, गन्ना हो अथवा कोई भी फसल इसकी उच्चतम पैदावार के लिए बीज की गुणवत्ता अच्छी होनी अत्यंत आवश्यक है। शोध संस्थान फसलों के बीज तैयार करने में जुटे रहते हैं। हमेशा प्रयास रहता है, कि ऐसी फसलों को तैयार किया जाए, जोकि बारिश, गर्मी की मार ज्यादा सहन कर सकें। मीडिया खबरों के मुताबिक, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की 3 नई ऐसी ही किस्में तैयार की गई हैं। यह प्रजातियां बहुत सारी प्राकृतिक आपदाओं को सहने में सक्षम होंगी। साथ ही, किसानों की आमदनी बढ़ाने में भी काफी सहायक साबित होंगी।

कोलख 09204

जानकारी के लिए बतादें कि गन्ने की इस प्रजाति की बुवाई हरियाणा, पश्चिमी उत्त्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और राजस्थान में की जा सकती है। यहां के मौसम के साथ-साथ मृदा एवं जलवायु भी इस प्रजाति के लिए उपयुक्त है। साथ ही, इसका रंग भी हरा एवं मोटाई थोड़ी कम है। इससे प्रति हेक्टेयर 82.8 टन उपज मिल जाती है। इसके रस में शर्करा 17 फीसद, पोल प्रतिशत केन की मात्रा 13.22 प्रतिशत है।

ये भी पढ़ें:
इस राज्य में किसानों को 50 प्रतिशत छूट पर गन्ने के बीज मुहैय्या कराए जाऐंगे

कोलख 14201

इस किस्म की बुवाई उत्तर प्रदेश में की जा सकती है। इस हम प्रजाति के गन्ना के रंग की बात करें तो हल्का पीले रंग का होता है। यदि उत्पादन की बात की जाए तो एक हेक्टेयर में इसका उत्पादन 95 टन गन्ना हांसिल होगा। इसके अंतर्गत 18.60 प्रतिशत शर्करा, पोल प्रतिशक 14.55 प्रतिशत है। किसान इससे अच्छी उपज हांसिल सकते हैं।

कालेख 11206

अनुसंधान संस्थान द्वारा लंबे परिश्रम के उपरांत यह किस्म तैयार की है। इसके रस में 17.65 प्रतिशत शर्करा एवं पोल प्रतिशत केन की मात्रा 13.42 प्रतिशत है। इस किस्म के गन्ने की लंबाई थोड़ी कम और मोटी ज्यादा है। इस गन्ने की बुवाई उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा में की जा सकती है। यहां का मौसम इस प्रजाति के लिए उपयुक्त माना जाता है। इसका रंग भी हल्का पीला होता है। अगर उत्पादन की बात की जाए, तो यह प्रति हेक्टेयर 91.5 टन उत्पादन मिलेगी।यह किस्म लाल सड़न रोग से लड़ने में समर्थ है।
बंदरगाहों पर फंसे 12 लाख टन गेहूं निर्यात को मंजूरी दे सकती है सरकार

बंदरगाहों पर फंसे 12 लाख टन गेहूं निर्यात को मंजूरी दे सकती है सरकार

नई दिल्ली। देश में गेहूं निर्यात पर पाबंदी लगने के बाद विभिन्न बंदरगाहों पर गेहूं फंस हुआ है। बंदरगाहों पर फंसे लाखों टन गेहूं को सरकार निर्यात की मंजूरी दे सकती है। कई बंदरगाहों पर गेहूं का भंडार लगा हुआ है। इस जिसके खराब होने की पूरी संभावना है। जिसे देखते हुए केन्द्र सरकार 12 लाख टन गेहूं निर्यात की मंजूरी देने जा रही है। सरकार के इस निर्णय से तमाम बड़े व्यापारियों को राहत मिलने के आसार हैं

- 14 मई को लगा थी गेहूं निर्यात पर पाबंदी

- वैश्विक स्तर पर गेहूं के बढ़ते भाव के चलते केन्द्र सरकार ने बीते 14 मई को सरकार ने गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगाई थी। तभी से देश के विभिन्न बंदरगाहों पर कई लाख टन गेहूं पड़ा हुआ है। बारिश और मानसून के खराब मौसम के समय यह गेहूं खराब हो सकता है। जिसके चलते सरकार यह निर्णय लेने जा रही है।

ये भी पढ़ें: रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भारत ने क्यों लगाया गेंहू पर प्रतिबंध, जानिए संपूर्ण व्यौरा
चीनी निर्यात ने तोड़ा रिकॉर्ड -चीनी निर्यात ने इस बार तमाम रिकॉर्ड तोड़े हैं। मई महीने के अंत तक देश 86 लाख टन चीनी का निर्यात चुका है। पिछले वित्तीय वर्ष 2020-21 में 70 लाख टन चीनी का निर्यात किया गया था। जबकि पिछले वित्तीय वर्ष में 3.11 करोड़ रूपए का निर्यात हुआ था। ----- लोकेन्द्र नरवार
चीनी के मुख्य स्त्रोत गन्ने की फसल से लाभ

चीनी के मुख्य स्त्रोत गन्ने की फसल से लाभ

दोस्तों, आज हम बात करेंगे गन्ने के विषय में, गन्ना एक बहुत ही महत्वपूर्ण फसल है। गन्ना भारत की सबसे आवश्यक वाणिज्यिक फसलों में से एक माना जाता है। चीनी का मुख्य स्त्रोत गन्ने को ही माना जाता है। सबसे ज्यादा चीनी उत्पाद करने वाला देश भारत है। गन्ने की खेती से किसानों का आय निर्यात का साधन बना रहता है, गन्ने की फसल किसानों को रोजगार देती है। गन्ने की फसल से विदेशों में उच्च दाम की प्राप्ति होती है। गन्ने की फसल से जुड़ी आवश्यक बातों को जानने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जुड़े रहे।

गन्ने की आधुनिक खेती की सम्पूर्ण जानकारी

गन्ने की फ़सल के लिए भूमि का चयन

गन्ने की फसल की अच्छी प्राप्ति के लिए सर्वप्रथम अच्छी भूमि का चयन करना बहुत ही ज्यादा आवश्यक होता है। वैसे सभी प्रकार की मिट्टियां भूमि के लिए उचित है, परंतु दोमट मिट्टी सबसे अच्छी और सर्वोत्तम मानी जाती है। मिट्टी पलटने वाले हल द्वारा लगभग दो से तीन बार जुताई करनी चाहिए। खेतों में आड़ी तिरछी जुताई करना उचित होगा। खेतों में जुताई करने के बाद मिट्टियों को भुरभुरा कर लेना आवश्यक होता है। पाटा चला कर भली प्रकार से भूमि को समतल कर ले। बीज बोने के पश्चात आपको जल निकास की व्यवस्था को बनाए रखना आवश्यक है।

गन्ने की बुवाई का सही समय

किसी भी फसल को बोते समय आपको सही समय का चुनाव करना बहुत ही जरुरी होता है। यदि आप सही समय पर सही बुवाई करेंगे, तो आप की फसल ज्यादा उत्पाद करेगी। किसानों के अनुसार गन्ने की फसल के लिए सबसे उत्तम समय अक्टूबर और नवंबर के बीच का होता है, क्योंकि इस समय गन्ने की पैदावार अच्छी होती है और यह महीना सबसे सर्वोत्तम माना जाता है। वैसे गन्ने की बुवाई के लिए आप बसंत कालीन फरवरी और मार्च का महीना भी चुन सकते हैं।

गन्ने की फ़सल के लिए बीज की मात्रा/ बोने का तरीका

गन्ने की फसल की बुवाई करने के लिए लगभग एक लाख 25 हज़ार के करीब आंखें प्रति हेक्टर गन्ने के टुकड़े कुछ इस प्रकार छोटे-छोटे करें, कि इनमें से दो से तीन आंखें नजर आए। गन्ने के किए गए इन टुकड़ों को आपको 2 ग्राम प्रति लीटर कार्बेंन्डाजिम के घोल में 10 से 20 मिनट तक डूबा कर अच्छी तरह से रखना है। इन गन्ने के टुकड़ों को आपको नालियों में रखकर मिट्टी से अच्छी तरह से ढक देना है, उसके बाद खेतों में हल्की सी सिंचाई कर दें। किसानों के अनुसार गन्ने की फसल का बीज रोपण करने का यह सबसे उत्तम तरीका है।

गन्ने की फ़सल के लिए उर्वरक की मात्रा

गन्ने की फसल के लिए किसान 300 कि. नत्रजन का प्रयोग करते हैं। वहीं दूसरी ओर लगभग 650 किलो यूरिया तथा 80 किलो स्फुर का इस्तेमाल करते हैं। सुपरफास्फेट 500 कि0 , पोटाश 90 किलो और 150 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति हेक्टर के हिसाब से प्रयोग करते हैं। स्फुर और पोटाश की मात्रा का प्रयोग खेतों में बुवाई के समय गरेडों में दिया जाता है। वही नत्रजन का इस्तेमाल फसल बोने के बाद अंकुरण आने के टाइम पर इस्तेमाल किया जाता है। अंकुरण आने के बाद खेतों में हल्की मिट्टी चढ़ाएं। यदि नत्रजन आपके पास नहीं है तो गोबर की खाद या हरी खाद का भी इस्तेमाल कर सकते है। यह दोनों खाद फसलों के लिए लाभदायक होती है।

ये भी पढ़ें:
गन्ने के गुड़ की बढ़ती मांग

गन्ने की फ़सल के लिए निंदाई गुड़ाई

जैसा कि हम सब जानते हैं, गन्ने की फसल किसानों के लिए कितनी उपयोगी होती है। भारत देश में गन्ना सबसे ज्यादा उत्पादन होता है चीनी के मुख्य स्त्रोत के तौर पर। इस प्रकार किसानों को गन्ने की फसल की सुरक्षा करने के लिए विभिन्न विभिन्न तरह से निराई गुड़ाई करते रहना जरूरी है। गन्ने की फसल बोने के बाद, 4 हफ्तों तक खरपतवार की रोकथाम करना बहुत जरूरी होता है, इसलिए तीन से चार दिन बाद निंदाई करना महत्वपूर्ण होता है। गन्ने में अंकुरण आने से पहले रसायनिक नियंत्रण के द्वारा अट्राजिन 160 ग्राम प्रति एकड़ 325 लीटर पानी में अच्छी तरह से घोलकर पूरे खेतों में छिड़काव करना आवश्यक है। खेतों में खरपतवार की स्थिति के लिए लगभग 2 से 4 डी सोडियम साल्ट 400 ग्राम प्रति एकड़ 325 लीटर पानी में घोल का छिड़काव करना चाहिए। ध्यान रखें, जब आप यह छिड़काव करें तो खेतों में नमी बनी रहना जरूरी है।

गन्ने की फ़सल में मिट्टी चढ़ाने की प्रतिक्रिया

किसानों के अनुसार गन्ने की फसल गिरने का भय होता है इसीलिए रीजर का इस्तेमाल कर मिट्टी चढ़ाना चाहिए। मिट्टी अलग-अलग प्रकार से खेतों में चढ़ाई जाती है। यदि किसानों ने अक्टूबर और नवंबर के बीच में बुवाई की होगी, तो पहली मिट्टी फरवरी-मार्च में चढ़ाई जाती है। गन्ने की फसल में आखरी मिट्टी चढ़ाने की प्रक्रिया मई के महीने में की जाती है और जब गन्ने में कल्ले फूटने लगे तब मिट्टी चढ़ाने की प्रक्रिया नहीं की जाती।

गन्ने की फसल की सिंचाई

गन्ने की फसल की सिंचाई किसान शीतकाल में 15 दिन के अंदर करते हैं तथा ज्यादा गर्मी में आठ से 10 दिन के अंदर सिंचाई की प्रक्रिया को शुरू कर देते हैं। किसान खेतों में सिंचाई की मात्रा को और कम करने के लिए कभी-कभी गरेड़ों का भी इस्तेमाल करते हैं। इन गरेड़ों में गन्ने की सूखी पत्तियों को 4 से 6 मोटी बिछावन चढ़ाई जाती है। गर्मी के मौसम में पानी की मात्रा कम होने के वक्त एक गरेड़ छोड़ कर सिंचाई करना शुरू करें।

ये भी पढ़ें:
ऐसे मिले धान का ज्ञान, समझें गन्ना-बाजरा का माजरा, चखें दमदार मक्का का छक्का

गन्ने की फ़सल की बंधाई की प्रक्रिया

किसान गन्ने को गिरने से सुरक्षित रखने के लिए, गन्ने की डंडी या तने को सूखी पत्तियों द्वारा अच्छे से बांध देते हैं। इस पत्तियों द्वारा गन्ने बांधने की प्रक्रिया से गन्ने गिरने नहीं पाते और पूरी तरह से सुरक्षित रहते हैं। किसान अगस्त के आखिरी महीने या सितंबर महीने में गन्ने बांधने की प्रक्रिया को शुरू करते हैं। हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह आर्टिकल "चीनी के मुख्य स्त्रोत गन्ने की फसल से लाभ" पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में गन्ने से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक जानकारियां मौजूद है, जो आपके बहुत काम आ सकती हैं। यदि आप हमारी दी गई जानकारियों से संतुष्ट हैं, तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ और सोशल मीडिया पर शेयर करते रहें। धन्यवाद।
भारत से टूटे चावल भारी मात्रा में खरीद रहा चीन, ये है वजह

भारत से टूटे चावल भारी मात्रा में खरीद रहा चीन, ये है वजह

भारत सरकार इस साल चावल के निर्यात पर आंशिक प्रतिबंध लगा सकती है, आइए जानते है क्यों? हाल ही मे ग्लोबल फूड मार्केट मे खाद्य सामग्री की कमी आई है और इसका ज्यादा असर चावल की सप्लाई पर हुआ है। खाद्य सामग्री मे आई इस कमी का प्रमुख कारण रूस -यूक्रेन युद्ध है, इस युद्ध की वजह से खाद्य सामग्री, ग्लोबली जिस स्तर पर पहुंचनी चाहिए थी, उस स्तर पर उपलब्ध नही हो पा रही है। इसका काफी बड़ा प्रभाव चीन फूड मार्केट पर पड़ा है।


ये भी पढ़ें:
असम के चावल की विदेशों में भारी मांग, 84 प्रतिशत बढ़ी डिमांड
चीन वो देश है जहां चावल की सालाना खपत 16 करोड़ टन है, लेकिन चीन मे कुल चावल का उत्पादन करीब 14 करोड़ टन होता है। मांग और उत्पादन के बीच के इस गैप को भरने के लिए चीन बाकी का चावल विदेशों से आयात करता है। अब इस बार खरीफ की फसल पर मौसम का विपरीत प्रभाव पड़ने के कारण इसका उत्पादन कम हो पाया है।


ये भी पढ़ें:
हल्के मानसून ने खरीफ की फसलों का खेल बिगाड़ा, बुवाई में पिछड़ गईं फसलें
साथ ही साथ चीन में चावलों का अधिक मात्रा में उपयोग वाइन और नूडल्स बनाने मे होता है। इसके साथ ही चीन मे टूटे चावल खाने का ट्रेंड भी है, जिस वजह से वहां चावल की खपत ज्यादा होती है। यही कारण है कि इस बार चीन, भारत से चावल आयात करने वाले देशों के बीच मे एक प्रमुख खरीदार के रूप मे उभर कर सामने आया है। वैसे चीन भारत से हर साल चावल नहीं खरीदता, लेकिन ग्लोबल मार्केट में चावल की उपलब्धता कम होने की वजह से मजबूरी में चीन को भारत से चावल खरीदने पड़ रहे हैं। अक्सर ग्लोबल मार्केट में टूटे चावल की बिक्री कम होती है, लेकिन जब खाने की कमी हो तो टूटे चावल भी बिक जाते हैं। ऐसा ही कुछ इस बार हुआ है और चीन ने भारी मात्रा में भारत से टूटे चावल खरीदे हैं। अब चूंकि खाद्य सामग्री की कमी वैश्विक स्तर पर आई हुई है। इसलिए इस बात को ध्यान मे रखते हुए और हाल के दिनों में घरेलू सप्लाई मे आई कुछ कमी को देखते हुए भारत सरकार चावल एक्सपोर्ट पर कुछ प्रतिबंध लगा सकती है। गौर करने वाली बात है कि भारत दुनिया का 40 फीसदी चावल का एक्सपोर्ट करता है। ऐसे में अगर चावल के एक्सपोर्ट पर बैन लग गया तो दुनिया में हड़कंप मच सकता है।
अब जल्द ही चीनी के निर्यात में प्रतिबन्ध लगा सकती है सरकार

अब जल्द ही चीनी के निर्यात में प्रतिबन्ध लगा सकती है सरकार

भारत में खाद्य चीजों की कमी होने का ख़तरा मंडरा रहा है, इसलिए सरकार ने पहले ही गेहूं और टूटे हुए चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। अब केंद्र सरकार एक और कमोडिटी पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है, वो है चीनी।

सरकार चीनी के निर्यात (cheeni ke niryat, sugar export) पर जल्द ही फैसला ले सकती है क्योंकि इस साल खराब मौसम और कम बरसात की वजह से प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में गन्ने का उत्पादन कम हुआ है, 

साथ ही कवक रोग के कारण गन्ने की बहुत सारी फसल खराब हो गई है। उत्तर प्रदेश में इस साल सामान्य से 43 फीसदी कम बरसात हुई है।

ये भी पढ़ें: चीनी के मुख्य स्त्रोत गन्ने की फसल से लाभ 

इस बात का अनुमान लगाया जा रहा है कि इस साल सरकार चीनी मिलों को 50 लाख टन चीनी निर्यात करने की अनुमति ही प्रदान करेगी, इसके बाद देश में होने वाले उत्पादन और खपत का आंकलन करने के बाद आगे की समीक्षा की जाएगी। 

इसके पहले केंद्र सरकार 24 मई को ही चीनी निर्यात को प्रतिबन्धी श्रेणी में स्थानान्तरित कर चुकी है। सरकार इस साल चीनी उत्पादन को लेकर बेहद चिंतित है। 

सरकार के अधिकारी इस बात पर विचार कर रहे हैं कि घरेलू बाजार में चीनी की आपूर्ति और मांग में किस प्रकार से सामंजस्य बैठाया जाए। फिलहाल कुछ राज्यों में इस साल अच्छी बरसात हुई है। 

इन प्रदेशों में गन्ने की खेती के लिए पानी की उपलब्धता लगातार बनी हुई है, जिससे महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु के गन्ने के उत्पादन में वृद्धि हुई है, इससे अन्य राज्यों में कम उत्पादन की भरपाई होने की संभावना बनी हुई है। 

साल 2021-22 में चीनी का उत्पादन 360 लाख टन के रिकॉर्ड को छू चुका है, साथ ही इस दौरान चीनी का निर्यात 112 लाख टन के रिकॉर्ड स्तर पर रहा।

ये भी पढ़ें: गन्ना किसानों के लिए बड़ी खुशखबरी, 15 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ सकती हैं गन्ने की एफआरपी 

सूत्र बताते हैं कि चीनी के उत्पादन के मामलों में सरकार जल्द ही निर्णय ले सकती है, जल्द ही सरकार 50 लाख टन की प्रारंभिक मात्रा की अनुमति दे सकती है। 

भारतीय चीनी मिलें जल्द से जल्द चीनी का निर्यात करके ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के मूड में हैं, क्योंकि अभी इंटरनेशनल मार्केट में चीनी की उपलब्धता ज्यादा नहीं है। 

चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक देश ब्राज़ील अप्रैल से लेकर नवम्बर तक इंटरनेशनल मार्केट में चीनी सप्प्लाई करता है। जिससे इंटरनेशनल मार्केट में चीनी की उपलब्धता ज्यादा हो जाती है और चीनी का वो भाव नहीं मिलता जिस भाव का मिलें अपेक्षा करती हैं। 

इसके साथ ही इस मौसम में चीनी मिलें निर्यात करने के लिए इसलिए इच्छुक हैं क्योंकि इस सीजन में चीनी की कीमत ज्यादा मिलती है। इस समय इंटरनेशनल मार्केट में चीनी की वर्तमान बोली लगभग 538 डॉलर प्रति टन लगाई जा रही है।

यह सौदा चीनी को घरेलू बाजार में बेचने से ज्यादा लाभ देने वाला है क्योंकि चीनी को घरेलू बाजार में बेचने पर मिल मालिकों को 35,500 रुपये प्रति टन की ही कीमत मिल पाती है।

ये भी पढ़ें: गन्ने के गुड़ की बढ़ती मांग : Ganne Ke Gud Ki Badhti Maang
 

जबकि महाराष्ट्र में यह कीमत घटकर 34000 रूपये प्रति टन तक आ जाती है, जिसमें मिल मालिकों को उतना फायदा नहीं हो पाता जितना कि इंटरनेशनल मार्केट में निर्यात करने से होता है। 

इसलिए मिल मालिक ज्यादा से ज्यादा चीनी का भारत से निर्यात करना चाहते हैं। लेकिन सरकार घरेलू जरूरतों को देखते हुए जल्द ही इस निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाने का फैसला ले सकती है।

मध्य प्रदेश: लहसुन की फसल को खेत में जलाने पर मजबूर हुए किसान, वहीं चीन से आयात हो रहा लहसुन

मध्य प्रदेश: लहसुन की फसल को खेत में जलाने पर मजबूर हुए किसान, वहीं चीन से आयात हो रहा लहसुन

इस साल देश में लहसुन (Garlic) का बंपर उत्पादन हुआ है, जिसके कारण बाजार में लहसुन की भरपूर उपलब्धता है। जरुरत से ज्यादा सप्लाई होने के कारण इन दिनों किसानों को लहसुन के मन मुताबिक़ दाम नहीं मिल पा रहे हैं। मध्य प्रदेश की कई मंडियों में तो यह हालात हो चुके हैं कि आढ़तिये लहसुन की फसल को कौड़ियों के दाम खरीदने के लिए तैयार हैं। इन सभी घटनाक्रमों को देखते हुए प्रदेश के लहसुन किसान निराश होते जा रहे हैं। अब किसानों ने अपनी लहसुन की फसल को खुले में फेंकना शुरू कर दिया है, तो कई किसान अपनी फसल को नदी में फेंक आए हैं। बीते दिनों इस प्रकार के घटनाक्रमों के वीडियो सोशल मीडिया में खूब वायरल हुए हैं। अगर कृषि उपज मंडी में लहसुन के वर्तमान भाव की बात करें यह मात्र 2 से 5 रूपये प्रति किलो के भाव से बिक रहा है। जबकि इसी समय पिछले साल लहसुन का भाव 25-30 रूपये प्रति किलो था। लहसुन का गिरता हुआ भाव किसानों के लिए एक बड़ी क्षति है, जिसके कारण किसान पूरी तरह से निराश हो चुके हैं। अभी खबर आई है कि मध्य प्रदेश के मंदसौर में कई किसानों ने लहसुन की फसल के पर्याप्त दाम न मिलने के कारण उसमें आग लगा दी। इस मामले में किसानों का कहना है कि मौजूदा लहसुन के भाव इनपुट लागत और बाजारों तक परिवहन लागत को भी कवर नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए वो इस फसल को बेवजह घर में नहीं रखना चाहते।


ये भी पढ़ें: भोपाल में किसान है परेशान, नहीं मिल रहे हैं प्याज और लहसुन के उचित दाम

चीन से आयात हो रहा है भारत में लहसुन

एक तरफ भारतीय किसानों को लहसुन के पर्याप्त दाम नहीं मिल पा रहे हैं, वहीं चीन से बड़ी मात्रा में भारत में लहसुन आयात किया जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण चीनी लहसुन में बड़े बल्ब का होना है। भारतीय बाजार में इन दिनों बड़े बल्ब वाली लहसुन दिनोंदिन फेमस होती जा रही है। जिसके कारण ग्राहक देशी लहसुन की अपेक्षा बड़े बल्ब वाली लहसुन खरीदना ज्यादा पसंद करते हैं। इसका एक बहुत बड़ा कारण यह भी है कि चीनी लहसुन के बल्ब बड़े होने के कारण इनको छीलना बेहद आसान होता है। भारत में लहसुन की पर्याप्त कीमत न मिलने का एक बहुत बड़ा कारण लहसुन के रकबे में लगतार वृद्धि भी है। जिसके कारण उत्पादन बढ़ा है और बाजार में डिमांड उस रूप से नहीं बढ़ी, जिससे लहसुन के दाम धरातल पर आ गए। अगर पिछले 3 सालों में गौर करें तो पूरे देश में लहसुन के रकबे में 15 से 20 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हुई है। जिन किसानों ने भी लहसुन की खेती में अच्छी मेहनत की है तथा इनपुट लागत के रूप में बड़ी रकम लगाई है, वो अब निराश हो चले हैं। राजस्थान के कोटा और झालावाड़ के लहसुन किसानों का कहना है कि उन्होंने पहले तो लहसुन की खेती में अच्छी खासी रकम खर्च कर दी है, उसके बाद लहसुन को 6 माह तक स्टोर करने में भी पैसा लगाया है। अब इसके विक्रय से लागत निकाल पाना भी मुश्किल हो रहा है। जिसके कारण किसानों के सामने एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई है।
तैयार हुई चावल की नई किस्म, एक बार बोने के बाद 8 साल तक ले सकते हैं फसल

तैयार हुई चावल की नई किस्म, एक बार बोने के बाद 8 साल तक ले सकते हैं फसल

दुनिया की बढ़ती हुई जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए दुनिया भर के कृषि वैज्ञानिक अनाज की नई-नई किस्में विकसित करने में लगे हुए हैं। ताकि दुनिया भर में रहने वाली 8 अरब से ज्यादा जनता को खाना खिलाया जा सके। इसी कड़ी में चीन के कृषि वैज्ञानिकों ने हाल ही में चावल की एक नई किस्म विकसित की है। जिसे PR23 नाम दिया गया है। चीनी कृषि वैज्ञानिकों का दावा है, कि चावल की इस किस्म की रोपाई करने के बाद लगातार 8 साल तक फसल ली जा सकती है। वैज्ञानिकों ने बताया है, कि चावल की इस किस्म के पेड़ की जड़ें बहुत ज्यादा गहरी होती हैं। जो चावल के पेड़ को मजबूती प्रदान करती हैं। चावल की PR23 किस्म की फसल की कटाई करने के बाद दोबारा से चावल का पौधा जड़ों से ऊपर निकल आता है। पौधे के ऊपर निकालने की रफ्तार भी पहले वाले पेड़ के समान होती है। जिससे इसमें समय से बीज लगते हैं और किसान को समय पर फसल प्राप्त हो जाती है।

इस किस्म को विकसित करने में क्रॉस ब्रीडिंग का हुआ है उपयोग

चीनी वैज्ञानिकों ने इस किस्म को विकसित करने के लिए क्रॉस ब्रीडिंग का सहारा लिया है। उन्होंने PR23 प्रजाति को विकसित करने के लिए अफ्रीकी चावल ओरिजा सैटिवा (Oryza sativa) का प्रयोग किया है। यह बारहमासी चावल है, जिसने PR23 प्रजाति को विकसित करने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया है। कृषि वैज्ञानिकों ने बताया है, कि चावल की इस किस्म को इस तरह से तैयार किया गया है, जिससे इसमें खाद की जरूरत कम से कम हो। अगर उपज की बात करें तो यह चावल एक हेक्टेयर जमीन में 6.8 टन तक उत्पादित हो जाता है। साथ ही इसकी खेती करने के लिए किसानों को अन्य चावल के मुकाबले कम खर्च करना पड़ता है।


ये भी पढ़ें:
पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

लंबे समय से चल रही थी इस चावल पर रिसर्च

चावल की इस किस्म को विकसित करना चीन के लिए मील का पत्थर साबित हुआ है। क्योंकि चावल की इस किस्म को विकसित करने के लिए चीनी कृषि वैज्ञानिक साल 1970 से लगातार रिसर्च कर रहे थे। ज्यादातर रिसर्च चीन की युन्नान अकादमी में की गई है। शुरुआती दिनों में चीनी कृषि वैज्ञानिकों को इसमें सफलता हासिल नहीं हुई थी। लेकिन लगातार कोशिश करने के बाद वैज्ञानिकों ने 1990 के दशक में बारहमासी चावल विकसित करने में कुछ सफलता पाई थी। इसके बाद अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान ने एक रिसर्च शुरू की, जिसमें चीनी वैज्ञानिक फेंगयी हू ने बारहमासी चावल को विकसित करने पर काम किया था। धन की कमी के कारण साल 2001 में अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान ने रिसर्च को बंद कर दिया। लेकिन फेंगयी हू ने हार नहीं मानी। वो लगातार चावल की इस किस्म को विकसित करने में लगे रहे। इस दौरान उन्होंने द लैंड इंस्टीट्यूट, कंसास और यूएसए का बहुमूल्य सहयोग से युन्नान विश्वविद्यालय में अपनी रिसर्च जारी रखी। जिसके परिणामस्वरूप फेंगयी हू चावल की PR23 किस्म को विकसित करने में सफल हुए। अब यह किस्म चीन के किसानों को उत्पादन के लिए दे दी गई है। चावल की PR23 किस्म के साथ चीन किसान अब निश्चिंत होकर खेती कर सकेंगे।
‘सुपर काऊ’ से फिर फेमस हुआ चीन, इस मामले में छोड़ा दुनिया को पीछे

‘सुपर काऊ’ से फिर फेमस हुआ चीन, इस मामले में छोड़ा दुनिया को पीछे

सुपर काऊ का नामा सुनते ही सभी के जहन में गाय से जुड़ा कोई ना कोई ख्याल जरूर आ रहा हो होगा. तो आपको बता दें कि, आपका यह ख्याल कुछ हद तक सही भी है. लेकिन आप उस जगह तक सोच भी नहीं सकते जिस जगह तक चीन ने कर दिखाया है. क्योंकि इस मामले में चीन ने दुनिया को पीछे छोड़ दिया है. चीनी साइंटिस्ट ने तीन सुपर काऊ का एक अनोखा क्लोन बनाया है, जो सोच से भी ज्यादा दूध देगी. हालांकि चीन ने अपने डेयरी उद्योग को बढ़ाने कजे लिए इस क्लोन को बनाया है. जानकारी के मुताबिक इस क्लोन को नार्थ वेस्ट यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड फॉरेस्ट्री साइंस एंड टेक्नोलॉजी के साइंटिस्टों ने बनाया है. इस क्लोन से लगभग तीन बछिया का जन्म नये साल से पहले निंग्जिया क्षेत्र में हुआ. साइंटिस्टों के मुताबिक यह सभी बछियाँ जब मां बनेंगे तो कम से कम 16 से 18 टन तक दूध देंगे. यानियो यह तीनों बछियाँ सुपर काऊ बनकर अपनी पूरे जीवन में सौ टन दूध देंगे. बताया जा रहा है कि, क्लोन किये गये इन बछियों में से सबसे पहली बछिया 30 दिसंबर को ऑपरेशन के जरिये हुआ था. जिसका वजह आम बछियों की तुलना में ज्यादा था.

आसान नहीं इन्हें पालना

जानकारी के मुताबिक साइंटिस्टों ने ज्यादा दूध देने वाली गायों के कानों की कोशिकाओं की मदद से कुल 120 भ्रूण बनाए. जिसके बाद उन्हें सेरोगेट गायों में रखा गया. हालांकि साइंटिस सुपर काऊ के जन्म को सक्सेस बता रहे हैं. जो चीन में डेयरी उत्पादकों को बढ़ाएंगे ही साथ में मालामाल भी कर देंगे. सुपर काऊ का प्रजनन जल्दी बंद हो जाता है. जिसके बाद उन्हें पलना मुश्किल हो सकता है. ये भी देखें: बिना गाय और भैंस पालें शुरू करें अपना डेयरी सेंटर

सुपर काऊ का बनेगा झुंड

चीन में आधे से ज्यादा डेयरी गायों को विदेश से मंगाया जाता है. ऐसे में विदेशी गायों पर निर्भरता कम करने के लिए सुपर काऊ का क्लोन बनाया गया है. ऐसे में चीन सुपर काऊ का झुंड बनाने की तैयारी कर रहा है, जिसमें एक हजार से ज्यादा सुपर काऊ शामिल होंगी. इतना ही नहीं चीन आने वाले दो से तीन सालों में ऐसा करने में सफल भी हो जाएगा. जानकारी के लिए बता दें कि, अमेरिका समेत कई देशों में ज्यादा दूध के उत्पादन के लिए जानवरों के साथ क्लोन को पैदा करते हैं. लेकिन चीन ने पिछले कुछ सालों में जानवरों के क्लोन में बड़ी उपलब्धी हासिल की है. इससे पहले चीन ने पहला क्लोन आर्कटिक भेड़िया भी बनाया था. चीन में क्लोन जानवरों की वजह से कईदेशों के जानवरों को खतरा हो सकता है, इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता.
भारत द्वारा चीनी निर्यात पर प्रतिबन्ध से कई सारे शक्तिशाली देशों में चीनी उत्पाद हुए महंगे

भारत द्वारा चीनी निर्यात पर प्रतिबन्ध से कई सारे शक्तिशाली देशों में चीनी उत्पाद हुए महंगे

पूरी दुनिया में भारत चीनी का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। आमतौर पर देखा जाता है कि यदि भारत में चीनी की पैदावार कम होती है, तो इसका प्रभाव दुनिया पर भी पड़ता दिखता है। अमेरिका के चीनी बाजार मेें इस बार इस बैन का अच्छा खासा प्रभाव देखने को मिल रहा है। 

भारत विभिन्न खाद्य पदार्थों को निर्यात कर विभिन्न देशों का भरण-पोषण करने की भूमिका निभा रहे हैं। साथ ही, चावल, गेहूं, दाल सहित बहुत सारे खाद्य उत्पादों की आपूर्ति भारत से विदेशों में की जाती है। 

आटे की भाव अधीक महंगा होते देख गेहूं निर्यात प्रतिबंधित किया गया था। वहीं, बहुत सारे देशों में गेहूं की समस्या सामने देखने को मिली थी। 

भारत द्वारा चीनी निर्यात पर भी प्रतिबंधित कर रखा है। इसका प्रभाव भी अब देखने को मिल रहा है। वैश्विक महाशक्ति के रूप में माने जाने वाले देश में भी भारत की वजह से चीनी महंगी हो चुकी है।

अमेरिका में चीनी के दामों में रिकॉर्ड वृद्धि

भारत द्वारा चीनी के निर्यात पर रोक लगाने का प्रभाव अमेरिका पर देखने को मिला है। अमेरिका में चीनी के भावों में रिकॉर्ड की वृद्धि दाखिल की गई है। 

न्यूयार्क में चीनी 6 वर्ष के रिकॉर्ड स्तर पर महंगी हो चुकी है। चीनी के बढ़ते भावों से स्थानीय लोगों का भी काफी बजट डगमगा चुका है। ध्यान देने योग्य बात यह है, कि चीनी पर महंगाई का प्रभाव केवल न्यूयार्क ही नहीं बाकी देशों में भी देखने को मिल रहा है। 

यह भी पढ़ें: चीनी और गेहूं की कीमत में आई कमी से आमजन में खुशी की लहर

चीनी महँगाई में हुई काफी बढ़ोत्तरी

चीनी के बढ़ते दामों से न्यूयॉर्क में कच्ची चीनी की कीमत 2.2 प्रतिशत बढ़कर 23.46 सेंट प्रति पाउंड पर पहुंच गए हैं। यह अक्टूबर 2016 के उपरांत से सर्वाधिक दर्ज किया जा चुका है। 

इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) की तरफ से भी इसको लेकर बयान जारी किया गया है। इस्मा ने भी चीनी पैदावार में गिरावट होने की बात कही है।

भारत में चीनी उत्पादन में आई गिरावट

जानकारी के लिए बतादें, कि इस्मा की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, कि सितंबर में समाप्त हुए विपणन वर्ष 2022-23 की प्रथम छमाही में देश में चीनी की पैदावार घटी है। 

भारत में चीनी उत्पादन 299.6 लाख टन दर्ज किया गया है। वहीं, विपणन वर्ष 2021-22 की प्रथम छमाही में भारत में 309.9 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था।

केंद्र सरकार ने भी चिंता व्यक्त की है

केंद्रीय खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा द्वारा भी गिरावट हुए चीनी पैदावार की आशंका पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने बोला था, कि सितंबर में समाप्त होने वाले साल में भारत चीनी निर्यात करने की मंजूरी दे सकता है। 

हालाँकि, इस बार पैदावार में गिरावट होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। भारत घरेलू खपत को लेकर काफी सजग दिखाई दे रही है।

मोटे अनाज (मिलेट) की फसलों का महत्व, भविष्य और उपयोग के बारे में विस्तृत जानकारी

मोटे अनाज (मिलेट) की फसलों का महत्व, भविष्य और उपयोग के बारे में विस्तृत जानकारी

भारत के किसान भाइयों के लिए मिलेट की फसलें आने वाले समय में अच्छी उपज पाने हेतु अच्छा विकल्प साबित हो सकती हैं। आगे इस लेख में हम आपको मिलेट्स की फसलों के बारे में अच्छी तरह जानकारी देने वाले हैं। मिलेट फसलें यानी कि बाजरा वर्गीय फसलें जिनको अधिकांश किसान मिलेट अनाज वाली फसलों के रूप में जानते हैं। मिलेट अनाज वाली फसलों का अर्थ है, कि इन फसलों को पैदा करने एवं उत्पादन लेने के लिए हम सब किसान भाइयों को काफी कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता। समस्त मिलेट फसलों का उत्पादन बड़ी ही आसानी से लिया जा सकता है। जैसे कि हम सब किसान जानते हैं, कि सभी मिलेट फसलों को उपजाऊ भूमि अथवा बंजर भूमि में भी पैदा कर आसान ढ़ंग से पैदावार ली जा सकती है। मिलेट फसलों की पैदावार के लिए पानी की जरुरत होती है। उर्वरक का इस्तेमाल मिलेट फसलों में ना के समान होता है, जिससे किसान भाइयों को ज्यादा खर्च से सहूलियत मिलती है। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि हरित क्रांति से पूर्व हमारे भारत में उत्पादित होने वाले खाद्यान्न में मिलेट फसलों की प्रमुख भूमिका थी। लेकिन, हरित क्रांति के पश्चात इनकी जगह धीरे-धीरे गेहूं और धान ने लेली और मिलेट फसलें जो कि हमारी प्रमुख खाद्यान्न फसल हुआ करती थीं, वह हमारी भोजन की थाली से दूर हो चुकी हैं।

भारत मिलेट यानी मोटे अनाज की फसलों की पैदावार में विश्व में अव्वल स्थान पर है

हमारा भारत देश आज भी मिलेट फसलों की पैदावार के मामले में विश्व में सबसे आगे है। इसके अंतर्गत मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, झारखंड, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में किसान भाई बड़े पैमाने पर मोटे अनाज यानी मिलेट की खेती करते हैं। बतादें, कि असम और बिहार में सर्वाधिक मोटे अनाज की खपत है। दानों के आकार के मुताबिक, मिलेट फसलों को मुख्यतः दो हिस्सों में विभाजित किया गया है। प्रथम वर्गीकरण में मुख्य मोटे अनाज जैसे बाजरा और ज्वार आते हैं। तो उधर दूसरे वर्गीकरण में छोटे दाने वाले मिलेट अनाज जैसे रागी, सावा, कोदो, चीना, कुटुकी और कुकुम शम्मिलित हैं। इन छोटे दाने वाले, मिलेट अनाजों को आमतौर पर कदन्न अनाज भी कहा जाता है।

ये भी पढ़ें:
सेहत के साथ किसानों की आय भी बढ़ा रही रागी की फसल

वर्ष 2023 को "अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष" के रूप में मनाया जा रहा है

जैसा कि हम सब जानते है, कि वर्ष 2023 को “अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष” के रूप में मनाया जा रहा है। भारत की ही पहल के अनुरूप पर यूएनओ ने वर्ष 2023 को मिलेट वर्ष के रूप में घोषित किया है। भारत सरकार ने मिलेट फसलों की खासियत और महत्ता को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2018 को “राष्ट्रीय मिलेट वर्ष” के रूप में मनाया है। भारत सरकार ने 16 नवम्बर को “राष्ट्रीय बाजरा दिवस” के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।

मिलेट फसलों को केंद्र एवं राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर से बढ़ावा देने की कोशिशें कर रही हैं

भारत सरकार द्वारा मिलेट फसलों की महत्ता को केंद्र में रखते हुए किसान भाइयों को मिलेट की खेती के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है। मिलेट फसलों के समुचित भाव के लिए सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा किया जा रहा है। जिससे कि कृषकों को इसका अच्छा फायदा मिल सके। भारत सरकार एवं राज्य सरकारों के स्तर से मिलेट फसलों के क्षेत्रफल और उत्पादन में बढ़ोत्तरी हेतु विभिन्न सरकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। जिससे किसान भाई बड़ी आसानी से पैदावार का फायदा उठा सकें। सरकारों द्वारा मिलेट फसलों के पोषण और शरीरिक लाभों को ध्यान में रखते हुए ग्रामीण एवं शहरी लोगों के मध्य जागरूकता बढ़ाने की भी कोशिश की जा रही है। जलवायु परिवर्तन ने भी भारत में गेहूं और धान की पैदावार को बेहद दुष्प्रभावित किया है। इस वजह से सरकार द्वारा मोटे अनाज की ओर ध्यान केन्द्रित करवाने की कोशिशें की जा रही हैं।

मिलेट यानी मोटे अनाज की फसलों में पोषक तत्व प्रचूर मात्रा में विघमान रहते हैं

मिलेट फसलें पोषक तत्वों के लिहाज से पारंपरिक खाद्यान गेहूं और चावल से ज्यादा उन्नत हैं। मिलेट फसलों में पोषक तत्त्वों की भरपूर मात्रा होने की वजह इन्हें “पोषक अनाज” भी कहा जाता है। इनमें काफी बड़ी मात्रा में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन-E विघमान रहता है। कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन कैल्शियम, मैग्नीशियम भी समुचित मात्रा में पाया जाता है। मिलेट फसलों के बीज में फैटो नुत्त्रिएन्ट पाया जाता है। जिसमें फीटल अम्ल होता है, जो कोलेस्ट्राल को कम रखने में सहायक साबित होता है। इन अनाजों का निमयित इस्तेमाल करने वालों में अल्सर, कोलेस्ट्राल, कब्ज, हृदय रोग और कर्क रोग जैसी रोगिक समस्याओं को कम पाया गया है।

मिलेट यानी मोटे अनाज की कुछ अहम फसलें

ज्वार की फसल

ज्वार की खेती भारत में प्राचीन काल से की जाती रही है। भारत में ज्वार की खेती मोटे दाने वाली अनाज फसल और हरे चारे दोनों के तौर पर की जाती है। ज्वार की खेती सामान्य वर्षा वाले इलाकों में बिना सिंचाई के हो रही है। इसके लिए उपजाऊ जलोड़ एवं चिकिनी मिट्टी काफी उपयुक्त रहती है। ज्वार की फसल भारत में अधिकांश खरीफ ऋतु में बोई जाती है। जिसकी प्रगति के लिए 25 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस तक तापमान ठीक होता है। ज्वार की फसल विशेष रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु में की जाती है। ज्वार की फसल बुआई के उपरांत 90 से 120 दिन के समयांतराल में पककर कटाई हेतु तैयार हो जाती है। ज्वार की फसल से 10 से 20 क्विंटल दाने एवं 100 से 150 क्विंटल हरा चारा प्रति एकड़ की उपज है। ज्वार में पोटैशियम, फास्पोरस, आयरन, जिंक और सोडियम की भरपूर मात्रा पाई जाती है। ज्वार का इस्तेमाल विशेष रूप से उपमा, इडली, दलिया और डोसा आदि में किया जाता है।

बाजरा की फसल

बाजरा मोटे अनाज की प्रमुख एवं फायदेमंद फसल है। क्योंकि, यह विपरीत स्थितियों में एवं सीमित वर्षा वाले इलाकों में एवं बहुत कम उर्वरक की मात्रा के साथ बेहतरीन उत्पादन देती हैं जहां अन्य फसल नहीं रह सकती है। बाजरा मुख्य रूप से खरीफ की फसल है। बाजरा के लिए 20 से 28 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूल रहता है। बाजरे की खेती के लिए जल निकास की बेहतर सुविधा होने चाहिए। साथ ही, काली दोमट एवं लाल मिट्टी उपयुक्त हैं। बाजरे की फसल से 30 से 35 क्विंटल दाना एवं 100 क्विंटल सूखा चारा प्रति हेक्टेयर की पैदावार मिलती है। बाजरे की खेती मुख्य रूप से गुजरात, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में की जाती है। बाजरे में आमतौर पर जिंक, विटामिन-ई, कैल्शियम, मैग्नीशियम, कॉपर तथा विटामिन-बी काम्प्लेक्स की भरपूर मात्रा उपलब्ध है। बाजरा का उपयोग मुख्य रूप से भारत के अंदर बाजरा बेसन लड्डू और बाजरा हलवा के तौर पर किया जाता है।

रागी (मंडुआ) की फसल

विशेष रूप से रागी का प्राथमिक विकास अफ्रीका के एकोपिया इलाके में हुआ है। भारत में रागी की खेती तकरीबन 3000 साल से होती आ रही है। रागी को भारत के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न मौसम में उत्पादित किया जाता है। वर्षा आधारित फसल स्वरुप जून में इसकी बुआई की जाती है। यह सामान्यतः आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, बिहार, तमिलनाडू और कर्नाटक आदि में उत्पादित होने वाली फसल है। रागी में विशेष रूप से प्रोटीन और कैल्शियम ज्यादा मात्रा में होता है। यह चावल एवं गेहूं से 10 गुना ज्यादा कैल्शियम व लौह का अच्छा माध्यम है। इसलिए बच्चों के लिए यह प्रमुख खाद्य फसल हैं। रागी द्वारा मुख्य तौर पर रागी चीका, रागी चकली और रागी बालूसाही आदि पकवान निर्मित किए जाते हैं।

कोदों की फसल

भारत के अंदर कोदों तकरीबन 3000 साल पहले से मौजूद था। भारत में कोदों को बाकी अनाजों की भांति ही उत्पादित किया जाता है। कवक संक्रमण के चलते कोदों वर्षा के बाद जहरीला हो जाता है। स्वस्थ अनाज सेहत के लिए फायदेमंद होता है। इसकी खेती अधिकांश पर्यावरण के आश्रित जनजातीय इलाकों में सीमित है। इस अनाज के अंतर्गत वसा, प्रोटीन एवं सर्वाधिक रेसा की मात्रा पाई जाती है। यह ग्लूटन एलजरी वाले लोगो के इस्तेमाल के लिए उपयुक्त है। इसका विशेष इस्तेमाल भारत में कोदो पुलाव एवं कोदो अंडे जैसे पकवान तैयार करने हेतु किया जाता है।

सांवा की फसल

जानकारी के लिए बतादें, कि लगभग 4000 वर्ष पूर्व से इसकी खेती जापान में की जाती है। इसकी खेती आमतौर पर सम शीतोष्ण इलाकों में की जाती है। भारत में सावा दाना और चारा दोनों की पैदावार के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह विशेष रूप से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार और तमिलनाडू में उत्पादित किया जाता है। सांवा मुख्य फैटी एसिड, प्रोटीन, एमिलेज की भरपूर उपलब्ध को दर्शाता है। सांवा रक्त सर्करा और लिपिक स्तर को कम करने के लिए काफी प्रभावी है। आजकल मधुमेह के बढ़ते हुए दौर में सांवा मिलेट एक आदर्श आहार बनकर उभर सकता है। सांवा का इस्तेमाल मुख्य तौर पर संवरबड़ी, सांवापुलाव व सांवाकलाकंद के तौर पर किया जाता है।

ये भी पढ़ें:
श्री अन्न का सबसे बड़ा उत्पादक देश है भारत, सरकार द्वारा उत्पादन बढ़ाने के लिए किए जा रहे हैं कई प्रयास

चीना की फसल

चीना मिलेट यानी मोटे अनाज की एक प्राचीन फसल है। यह संभवतः मध्य व पूर्वी एशिया में पाई जाती है, इसकी खेती यूरोप में नव पाषाण काल में की जाती थी। यह विशेषकर शीतोष्ण क्षेत्रों में उत्पादित की जाने वाली फसल है। भारत में यह दक्षिण में तमिलनाडु और उत्तर में हिमालय के चिटपुट इलाकों में उत्पादित की जाती है। यह अतिशीघ्र परिपक्व होकर करीब 60 से 65 दिनों में तैयार होने वाली फसल है। इसका उपभोग करने से इतनी ऊर्जा अर्जित होती है, कि व्यक्ति बिना थकावट महसूस किये सुबह से शाम तक कार्यरत रह सकते हैं। जो कि चावल और गेहूं से सुगम नहीं है। इसमें प्रोटीन, रेशा, खनिज जैसे कैल्शियम बेहद मात्रा में पाए जाते हैं। यह शारीरिक लाभ के गुणों से संपन्न है। इसका इस्तेमाल विशेष रूप से चीना खाजा, चीना रवा एडल, चीना खीर आदि में किया जाता है।