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गन्ना किसानों के लिए बड़ी खुशखबरी, 15 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ सकती हैं गन्ने की एफआरपी

गन्ना किसानों के लिए बड़ी खुशखबरी, 15 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ सकती हैं गन्ने की एफआरपी

नई दिल्ली। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक की गई। बैठक में गन्ने की एफआरपी यानि उचित व लाभकारी मूल्य (Fair and Remunerative Price - FRP) बढाने के लिए निर्णय लिया गया। बताया जा रहा है कि गन्ना की एफआरपी में 15 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी करने की सिफारिशें हुईं हैं। सम्भवतः जल्दी ही इसे पारित किया जाएगा। जानकारों की मानें तो बीते साल 2021 में गन्ने की एफआरपी 290 रुपए प्रति क्विंटल थीं, जो अब बढ़कर 305 रुपये प्रति क्विंटल हो जाएगी। बीते वित्तीय वर्ष में इसमें केवल 5 रुपये की वृद्धि हुई थी। गन्ने पर बढ़ाई जा रही एफआरपी आगामी 1 अक्तूबर से 30 सितंबर 2023 तक के लिए तय की जाएगी। इससे लाखों किसानों को फायदा मिलना तय है।

गन्ना नियंत्रण आदेश 1966 के तहत तय होती है एफआरपी

- प्रदेश सरकार गन्ना नियंत्रण आदेश 1966 के तहत गन्ने की एफआरपी तय करती है। इसके लिए कृषि लागत और मूल्य आयोग सिफारिश करता है। एफआरपी के अंतर्गत चीनी मिल किसानों से न्यूनतम भाव पर गन्ना खरीदता है।



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देश के कई राज्यों को नहीं मिलेगा एफआरपी का फायदा

- सरकार के इस फैसले से देश के कई राज्यों में गन्ना किसानों को फायदा नहीं मिलेगा। देश में सबसे ज्यादा गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश है। लेकिन यूपी के गन्ना किसानों को एफआरपी पर बढ़ी हुई कीमत का लाभ नहीं मिलेगा। क्योंकि यूपी में एफआरपी पहले से ही ज्यादा है।

मंहगाई को देखते हुए बढ़नी चाहिए एफआरपी

- भले ही सरकार ने गन्ना की एफआरपी 15 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की है। लेकिन किसान इसे मंहगाई की तुलना में काफी कम मान रहे हैं। किसानों के कहना है कि मंहगाई के हिसाब से ही एफआरपी बढ़नी चाहिए। क्योंकि खाद, पानी, बीज और कीटनाशक दवाओं के साथ-साथ मेहनत-मजदूरी भी लगातार बढ़ रही है।



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घट रहा है गन्ना की खेती का रकबा

- उत्तर प्रदेश में पिछले कई सालों से गन्ना की खेती का रकबा लगातार घटता जा रहा है। चीनी मिलों से, गन्ना का बकाया भुगतान समय से न मिलना और दूसरी फसलों में अच्छा मुनाफा होने के चलते किसानों का गन्ना से मोहभंग होता जा रहा है।
गन्ना किसानों को दिवाली के तोहफे के रूप में मिलेंगे सरकार से ९०० रूपए प्रति हेक्टेयर

गन्ना किसानों को दिवाली के तोहफे के रूप में मिलेंगे सरकार से ९०० रूपए प्रति हेक्टेयर

सरकार द्वारा दिवाली के त्यौहार को खुशनुमा बनाने के लिए गन्ना (ganna; sugarcane) किसानों के लिए उपहार के रूप में ९०० रूपये प्रति हेक्टेयर का अनुदान दिया जायेगा। यह अनुदान किसानों के लिए अत्यंत उपयोगी होगा, साथ ही किसान अपनी फसल के लिए उर्वरक आदि आसानी से खरीद सकते हैं। भारत चीनी उत्पादन में सर्वश्रेष्ठ देश बन कर उभरा है, इसके साथ ही चीनी के उत्पादन में बेहद वृद्धि आयी है। सरकार द्वारा गन्ना किसानों का भुगतान समय से कर दिया गया है, जिससे गन्ना उत्पादन करने वाले किसानों को किसी संकट से न जूझना पड़े। गन्ना किसानों को ९०० रूपए प्रति हेक्टेयर की मदद से जरूरी दवाएं एवं अन्य उर्वरक खरीदने के लिए आर्थिक बल मिलेगा, त्यौहार के समय सरकार द्वारा गन्ना किसानों के लिए यह बेहद बड़ी खुशखबरी दी गयी है।


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गन्ना किसानों को अनुदान किस कार्यक्रम के अंतर्गत दिया जायेगा ?

गन्ना किसानों को सरकार अनुदान की रकम "पेड़ी प्रबंधन कार्यक्रम" एवं "बीज भूमि उपचार कार्यक्रम" के माध्यम से प्रदान की जाएगी, अनुदान की राशि प्रति हेक्टेयर ९०० रूपए है। पूर्व में गन्ना रसायनों के कुल खर्च का लगभग ५० प्रतिशत अनुदान ही मिलता था, जिसकी धन राशि ५०० रूपये होती थी। जबकि पेड़ी गन्ना की फसल सुरक्षा के लिए १५० रुपए, मतलब ५० फ़ीसदी अनुदान दिया जाता था। सरकार की तरफ से अब किसानों को अधिक अनुदान मिलेगा, जिससे गन्ना किसानों को अच्छी पैदावार करने के लिए काफी मदद मिलेगी।

रसायन के उपयोग से गन्ने की खेती

गन्ने की खेती एक उम्दा किस्म की फसल है, जिसको उत्पादित करने के लिए किसान को असामान्य मेहनत और देखरेख करने की आवश्यकता होती है। साथ ही कीट व रोगों से बचाने के लिए गन्ना किसानों को बेहतर किस्म के कीटनाशकों की आवश्यकता होती है, जिनके प्रयोग से किसान गन्ने की फसल को अच्छी तरह पैदा कर सकें और अच्छा खासा मुनाफा अर्जित कर सकें। किसान मिट्टी की उत्तम जाँच कराते है जिससे गन्ने की फसल पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़ सके।
भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की इन तीन प्रजातियों को विकसित किया है

भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की इन तीन प्रजातियों को विकसित किया है

गन्ना उत्पादन के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश माना जाता है। फिलहाल भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की 3 नई प्रजातियां तैयार करली गई हैं। इससे किसान भाइयों को बेहतरीन उत्पादन होने की संभावना रहती है। भारत गन्ना उत्पादन के संबंध में विश्व में अलग स्थान रखता है। भारत के गन्ने की मांग अन्य देशों में भी होती है। परंतु, गन्ना हो अथवा कोई भी फसल इसकी उच्चतम पैदावार के लिए बीज की गुणवत्ता अच्छी होनी अत्यंत आवश्यक है। शोध संस्थान फसलों के बीज तैयार करने में जुटे रहते हैं। हमेशा प्रयास रहता है, कि ऐसी फसलों को तैयार किया जाए, जोकि बारिश, गर्मी की मार ज्यादा सहन कर सकें। मीडिया खबरों के मुताबिक, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की 3 नई ऐसी ही किस्में तैयार की गई हैं। यह प्रजातियां बहुत सारी प्राकृतिक आपदाओं को सहने में सक्षम होंगी। साथ ही, किसानों की आमदनी बढ़ाने में भी काफी सहायक साबित होंगी।

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जानकारी के लिए बतादें कि गन्ने की इस प्रजाति की बुवाई हरियाणा, पश्चिमी उत्त्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और राजस्थान में की जा सकती है। यहां के मौसम के साथ-साथ मृदा एवं जलवायु भी इस प्रजाति के लिए उपयुक्त है। साथ ही, इसका रंग भी हरा एवं मोटाई थोड़ी कम है। इससे प्रति हेक्टेयर 82.8 टन उपज मिल जाती है। इसके रस में शर्करा 17 फीसद, पोल प्रतिशत केन की मात्रा 13.22 प्रतिशत है।

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इस किस्म की बुवाई उत्तर प्रदेश में की जा सकती है। इस हम प्रजाति के गन्ना के रंग की बात करें तो हल्का पीले रंग का होता है। यदि उत्पादन की बात की जाए तो एक हेक्टेयर में इसका उत्पादन 95 टन गन्ना हांसिल होगा। इसके अंतर्गत 18.60 प्रतिशत शर्करा, पोल प्रतिशक 14.55 प्रतिशत है। किसान इससे अच्छी उपज हांसिल सकते हैं।

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अनुसंधान संस्थान द्वारा लंबे परिश्रम के उपरांत यह किस्म तैयार की है। इसके रस में 17.65 प्रतिशत शर्करा एवं पोल प्रतिशत केन की मात्रा 13.42 प्रतिशत है। इस किस्म के गन्ने की लंबाई थोड़ी कम और मोटी ज्यादा है। इस गन्ने की बुवाई उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा में की जा सकती है। यहां का मौसम इस प्रजाति के लिए उपयुक्त माना जाता है। इसका रंग भी हल्का पीला होता है। अगर उत्पादन की बात की जाए, तो यह प्रति हेक्टेयर 91.5 टन उत्पादन मिलेगी।यह किस्म लाल सड़न रोग से लड़ने में समर्थ है।
बंदरगाहों पर फंसे 12 लाख टन गेहूं निर्यात को मंजूरी दे सकती है सरकार

बंदरगाहों पर फंसे 12 लाख टन गेहूं निर्यात को मंजूरी दे सकती है सरकार

नई दिल्ली। देश में गेहूं निर्यात पर पाबंदी लगने के बाद विभिन्न बंदरगाहों पर गेहूं फंस हुआ है। बंदरगाहों पर फंसे लाखों टन गेहूं को सरकार निर्यात की मंजूरी दे सकती है। कई बंदरगाहों पर गेहूं का भंडार लगा हुआ है। इस जिसके खराब होने की पूरी संभावना है। जिसे देखते हुए केन्द्र सरकार 12 लाख टन गेहूं निर्यात की मंजूरी देने जा रही है। सरकार के इस निर्णय से तमाम बड़े व्यापारियों को राहत मिलने के आसार हैं

- 14 मई को लगा थी गेहूं निर्यात पर पाबंदी

- वैश्विक स्तर पर गेहूं के बढ़ते भाव के चलते केन्द्र सरकार ने बीते 14 मई को सरकार ने गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगाई थी। तभी से देश के विभिन्न बंदरगाहों पर कई लाख टन गेहूं पड़ा हुआ है। बारिश और मानसून के खराब मौसम के समय यह गेहूं खराब हो सकता है। जिसके चलते सरकार यह निर्णय लेने जा रही है।

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चीनी निर्यात ने तोड़ा रिकॉर्ड -चीनी निर्यात ने इस बार तमाम रिकॉर्ड तोड़े हैं। मई महीने के अंत तक देश 86 लाख टन चीनी का निर्यात चुका है। पिछले वित्तीय वर्ष 2020-21 में 70 लाख टन चीनी का निर्यात किया गया था। जबकि पिछले वित्तीय वर्ष में 3.11 करोड़ रूपए का निर्यात हुआ था। ----- लोकेन्द्र नरवार
चीनी के मुख्य स्त्रोत गन्ने की फसल से लाभ

चीनी के मुख्य स्त्रोत गन्ने की फसल से लाभ

दोस्तों, आज हम बात करेंगे गन्ने के विषय में, गन्ना एक बहुत ही महत्वपूर्ण फसल है। गन्ना भारत की सबसे आवश्यक वाणिज्यिक फसलों में से एक माना जाता है। चीनी का मुख्य स्त्रोत गन्ने को ही माना जाता है। सबसे ज्यादा चीनी उत्पाद करने वाला देश भारत है। गन्ने की खेती से किसानों का आय निर्यात का साधन बना रहता है, गन्ने की फसल किसानों को रोजगार देती है। गन्ने की फसल से विदेशों में उच्च दाम की प्राप्ति होती है। गन्ने की फसल से जुड़ी आवश्यक बातों को जानने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जुड़े रहे।

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गन्ने की फ़सल के लिए भूमि का चयन

गन्ने की फसल की अच्छी प्राप्ति के लिए सर्वप्रथम अच्छी भूमि का चयन करना बहुत ही ज्यादा आवश्यक होता है। वैसे सभी प्रकार की मिट्टियां भूमि के लिए उचित है, परंतु दोमट मिट्टी सबसे अच्छी और सर्वोत्तम मानी जाती है। मिट्टी पलटने वाले हल द्वारा लगभग दो से तीन बार जुताई करनी चाहिए। खेतों में आड़ी तिरछी जुताई करना उचित होगा। खेतों में जुताई करने के बाद मिट्टियों को भुरभुरा कर लेना आवश्यक होता है। पाटा चला कर भली प्रकार से भूमि को समतल कर ले। बीज बोने के पश्चात आपको जल निकास की व्यवस्था को बनाए रखना आवश्यक है।

गन्ने की बुवाई का सही समय

किसी भी फसल को बोते समय आपको सही समय का चुनाव करना बहुत ही जरुरी होता है। यदि आप सही समय पर सही बुवाई करेंगे, तो आप की फसल ज्यादा उत्पाद करेगी। किसानों के अनुसार गन्ने की फसल के लिए सबसे उत्तम समय अक्टूबर और नवंबर के बीच का होता है, क्योंकि इस समय गन्ने की पैदावार अच्छी होती है और यह महीना सबसे सर्वोत्तम माना जाता है। वैसे गन्ने की बुवाई के लिए आप बसंत कालीन फरवरी और मार्च का महीना भी चुन सकते हैं।

गन्ने की फ़सल के लिए बीज की मात्रा/ बोने का तरीका

गन्ने की फसल की बुवाई करने के लिए लगभग एक लाख 25 हज़ार के करीब आंखें प्रति हेक्टर गन्ने के टुकड़े कुछ इस प्रकार छोटे-छोटे करें, कि इनमें से दो से तीन आंखें नजर आए। गन्ने के किए गए इन टुकड़ों को आपको 2 ग्राम प्रति लीटर कार्बेंन्डाजिम के घोल में 10 से 20 मिनट तक डूबा कर अच्छी तरह से रखना है। इन गन्ने के टुकड़ों को आपको नालियों में रखकर मिट्टी से अच्छी तरह से ढक देना है, उसके बाद खेतों में हल्की सी सिंचाई कर दें। किसानों के अनुसार गन्ने की फसल का बीज रोपण करने का यह सबसे उत्तम तरीका है।

गन्ने की फ़सल के लिए उर्वरक की मात्रा

गन्ने की फसल के लिए किसान 300 कि. नत्रजन का प्रयोग करते हैं। वहीं दूसरी ओर लगभग 650 किलो यूरिया तथा 80 किलो स्फुर का इस्तेमाल करते हैं। सुपरफास्फेट 500 कि0 , पोटाश 90 किलो और 150 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति हेक्टर के हिसाब से प्रयोग करते हैं। स्फुर और पोटाश की मात्रा का प्रयोग खेतों में बुवाई के समय गरेडों में दिया जाता है। वही नत्रजन का इस्तेमाल फसल बोने के बाद अंकुरण आने के टाइम पर इस्तेमाल किया जाता है। अंकुरण आने के बाद खेतों में हल्की मिट्टी चढ़ाएं। यदि नत्रजन आपके पास नहीं है तो गोबर की खाद या हरी खाद का भी इस्तेमाल कर सकते है। यह दोनों खाद फसलों के लिए लाभदायक होती है।

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गन्ने की फ़सल के लिए निंदाई गुड़ाई

जैसा कि हम सब जानते हैं, गन्ने की फसल किसानों के लिए कितनी उपयोगी होती है। भारत देश में गन्ना सबसे ज्यादा उत्पादन होता है चीनी के मुख्य स्त्रोत के तौर पर। इस प्रकार किसानों को गन्ने की फसल की सुरक्षा करने के लिए विभिन्न विभिन्न तरह से निराई गुड़ाई करते रहना जरूरी है। गन्ने की फसल बोने के बाद, 4 हफ्तों तक खरपतवार की रोकथाम करना बहुत जरूरी होता है, इसलिए तीन से चार दिन बाद निंदाई करना महत्वपूर्ण होता है। गन्ने में अंकुरण आने से पहले रसायनिक नियंत्रण के द्वारा अट्राजिन 160 ग्राम प्रति एकड़ 325 लीटर पानी में अच्छी तरह से घोलकर पूरे खेतों में छिड़काव करना आवश्यक है। खेतों में खरपतवार की स्थिति के लिए लगभग 2 से 4 डी सोडियम साल्ट 400 ग्राम प्रति एकड़ 325 लीटर पानी में घोल का छिड़काव करना चाहिए। ध्यान रखें, जब आप यह छिड़काव करें तो खेतों में नमी बनी रहना जरूरी है।

गन्ने की फ़सल में मिट्टी चढ़ाने की प्रतिक्रिया

किसानों के अनुसार गन्ने की फसल गिरने का भय होता है इसीलिए रीजर का इस्तेमाल कर मिट्टी चढ़ाना चाहिए। मिट्टी अलग-अलग प्रकार से खेतों में चढ़ाई जाती है। यदि किसानों ने अक्टूबर और नवंबर के बीच में बुवाई की होगी, तो पहली मिट्टी फरवरी-मार्च में चढ़ाई जाती है। गन्ने की फसल में आखरी मिट्टी चढ़ाने की प्रक्रिया मई के महीने में की जाती है और जब गन्ने में कल्ले फूटने लगे तब मिट्टी चढ़ाने की प्रक्रिया नहीं की जाती।

गन्ने की फसल की सिंचाई

गन्ने की फसल की सिंचाई किसान शीतकाल में 15 दिन के अंदर करते हैं तथा ज्यादा गर्मी में आठ से 10 दिन के अंदर सिंचाई की प्रक्रिया को शुरू कर देते हैं। किसान खेतों में सिंचाई की मात्रा को और कम करने के लिए कभी-कभी गरेड़ों का भी इस्तेमाल करते हैं। इन गरेड़ों में गन्ने की सूखी पत्तियों को 4 से 6 मोटी बिछावन चढ़ाई जाती है। गर्मी के मौसम में पानी की मात्रा कम होने के वक्त एक गरेड़ छोड़ कर सिंचाई करना शुरू करें।

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गन्ने की फ़सल की बंधाई की प्रक्रिया

किसान गन्ने को गिरने से सुरक्षित रखने के लिए, गन्ने की डंडी या तने को सूखी पत्तियों द्वारा अच्छे से बांध देते हैं। इस पत्तियों द्वारा गन्ने बांधने की प्रक्रिया से गन्ने गिरने नहीं पाते और पूरी तरह से सुरक्षित रहते हैं। किसान अगस्त के आखिरी महीने या सितंबर महीने में गन्ने बांधने की प्रक्रिया को शुरू करते हैं। हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह आर्टिकल "चीनी के मुख्य स्त्रोत गन्ने की फसल से लाभ" पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में गन्ने से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक जानकारियां मौजूद है, जो आपके बहुत काम आ सकती हैं। यदि आप हमारी दी गई जानकारियों से संतुष्ट हैं, तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ और सोशल मीडिया पर शेयर करते रहें। धन्यवाद।
अब जल्द ही चीनी के निर्यात में प्रतिबन्ध लगा सकती है सरकार

अब जल्द ही चीनी के निर्यात में प्रतिबन्ध लगा सकती है सरकार

भारत में खाद्य चीजों की कमी होने का ख़तरा मंडरा रहा है, इसलिए सरकार ने पहले ही गेहूं और टूटे हुए चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। अब केंद्र सरकार एक और कमोडिटी पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है, वो है चीनी।

सरकार चीनी के निर्यात (cheeni ke niryat, sugar export) पर जल्द ही फैसला ले सकती है क्योंकि इस साल खराब मौसम और कम बरसात की वजह से प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में गन्ने का उत्पादन कम हुआ है, 

साथ ही कवक रोग के कारण गन्ने की बहुत सारी फसल खराब हो गई है। उत्तर प्रदेश में इस साल सामान्य से 43 फीसदी कम बरसात हुई है।

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इस बात का अनुमान लगाया जा रहा है कि इस साल सरकार चीनी मिलों को 50 लाख टन चीनी निर्यात करने की अनुमति ही प्रदान करेगी, इसके बाद देश में होने वाले उत्पादन और खपत का आंकलन करने के बाद आगे की समीक्षा की जाएगी। 

इसके पहले केंद्र सरकार 24 मई को ही चीनी निर्यात को प्रतिबन्धी श्रेणी में स्थानान्तरित कर चुकी है। सरकार इस साल चीनी उत्पादन को लेकर बेहद चिंतित है। 

सरकार के अधिकारी इस बात पर विचार कर रहे हैं कि घरेलू बाजार में चीनी की आपूर्ति और मांग में किस प्रकार से सामंजस्य बैठाया जाए। फिलहाल कुछ राज्यों में इस साल अच्छी बरसात हुई है। 

इन प्रदेशों में गन्ने की खेती के लिए पानी की उपलब्धता लगातार बनी हुई है, जिससे महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु के गन्ने के उत्पादन में वृद्धि हुई है, इससे अन्य राज्यों में कम उत्पादन की भरपाई होने की संभावना बनी हुई है। 

साल 2021-22 में चीनी का उत्पादन 360 लाख टन के रिकॉर्ड को छू चुका है, साथ ही इस दौरान चीनी का निर्यात 112 लाख टन के रिकॉर्ड स्तर पर रहा।

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सूत्र बताते हैं कि चीनी के उत्पादन के मामलों में सरकार जल्द ही निर्णय ले सकती है, जल्द ही सरकार 50 लाख टन की प्रारंभिक मात्रा की अनुमति दे सकती है। 

भारतीय चीनी मिलें जल्द से जल्द चीनी का निर्यात करके ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के मूड में हैं, क्योंकि अभी इंटरनेशनल मार्केट में चीनी की उपलब्धता ज्यादा नहीं है। 

चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक देश ब्राज़ील अप्रैल से लेकर नवम्बर तक इंटरनेशनल मार्केट में चीनी सप्प्लाई करता है। जिससे इंटरनेशनल मार्केट में चीनी की उपलब्धता ज्यादा हो जाती है और चीनी का वो भाव नहीं मिलता जिस भाव का मिलें अपेक्षा करती हैं। 

इसके साथ ही इस मौसम में चीनी मिलें निर्यात करने के लिए इसलिए इच्छुक हैं क्योंकि इस सीजन में चीनी की कीमत ज्यादा मिलती है। इस समय इंटरनेशनल मार्केट में चीनी की वर्तमान बोली लगभग 538 डॉलर प्रति टन लगाई जा रही है।

यह सौदा चीनी को घरेलू बाजार में बेचने से ज्यादा लाभ देने वाला है क्योंकि चीनी को घरेलू बाजार में बेचने पर मिल मालिकों को 35,500 रुपये प्रति टन की ही कीमत मिल पाती है।

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जबकि महाराष्ट्र में यह कीमत घटकर 34000 रूपये प्रति टन तक आ जाती है, जिसमें मिल मालिकों को उतना फायदा नहीं हो पाता जितना कि इंटरनेशनल मार्केट में निर्यात करने से होता है। 

इसलिए मिल मालिक ज्यादा से ज्यादा चीनी का भारत से निर्यात करना चाहते हैं। लेकिन सरकार घरेलू जरूरतों को देखते हुए जल्द ही इस निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाने का फैसला ले सकती है।

भारत द्वारा चीनी निर्यात पर प्रतिबन्ध से कई सारे शक्तिशाली देशों में चीनी उत्पाद हुए महंगे

भारत द्वारा चीनी निर्यात पर प्रतिबन्ध से कई सारे शक्तिशाली देशों में चीनी उत्पाद हुए महंगे

पूरी दुनिया में भारत चीनी का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। आमतौर पर देखा जाता है कि यदि भारत में चीनी की पैदावार कम होती है, तो इसका प्रभाव दुनिया पर भी पड़ता दिखता है। अमेरिका के चीनी बाजार मेें इस बार इस बैन का अच्छा खासा प्रभाव देखने को मिल रहा है। 

भारत विभिन्न खाद्य पदार्थों को निर्यात कर विभिन्न देशों का भरण-पोषण करने की भूमिका निभा रहे हैं। साथ ही, चावल, गेहूं, दाल सहित बहुत सारे खाद्य उत्पादों की आपूर्ति भारत से विदेशों में की जाती है। 

आटे की भाव अधीक महंगा होते देख गेहूं निर्यात प्रतिबंधित किया गया था। वहीं, बहुत सारे देशों में गेहूं की समस्या सामने देखने को मिली थी। 

भारत द्वारा चीनी निर्यात पर भी प्रतिबंधित कर रखा है। इसका प्रभाव भी अब देखने को मिल रहा है। वैश्विक महाशक्ति के रूप में माने जाने वाले देश में भी भारत की वजह से चीनी महंगी हो चुकी है।

अमेरिका में चीनी के दामों में रिकॉर्ड वृद्धि

भारत द्वारा चीनी के निर्यात पर रोक लगाने का प्रभाव अमेरिका पर देखने को मिला है। अमेरिका में चीनी के भावों में रिकॉर्ड की वृद्धि दाखिल की गई है। 

न्यूयार्क में चीनी 6 वर्ष के रिकॉर्ड स्तर पर महंगी हो चुकी है। चीनी के बढ़ते भावों से स्थानीय लोगों का भी काफी बजट डगमगा चुका है। ध्यान देने योग्य बात यह है, कि चीनी पर महंगाई का प्रभाव केवल न्यूयार्क ही नहीं बाकी देशों में भी देखने को मिल रहा है। 

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चीनी महँगाई में हुई काफी बढ़ोत्तरी

चीनी के बढ़ते दामों से न्यूयॉर्क में कच्ची चीनी की कीमत 2.2 प्रतिशत बढ़कर 23.46 सेंट प्रति पाउंड पर पहुंच गए हैं। यह अक्टूबर 2016 के उपरांत से सर्वाधिक दर्ज किया जा चुका है। 

इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) की तरफ से भी इसको लेकर बयान जारी किया गया है। इस्मा ने भी चीनी पैदावार में गिरावट होने की बात कही है।

भारत में चीनी उत्पादन में आई गिरावट

जानकारी के लिए बतादें, कि इस्मा की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, कि सितंबर में समाप्त हुए विपणन वर्ष 2022-23 की प्रथम छमाही में देश में चीनी की पैदावार घटी है। 

भारत में चीनी उत्पादन 299.6 लाख टन दर्ज किया गया है। वहीं, विपणन वर्ष 2021-22 की प्रथम छमाही में भारत में 309.9 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था।

केंद्र सरकार ने भी चिंता व्यक्त की है

केंद्रीय खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा द्वारा भी गिरावट हुए चीनी पैदावार की आशंका पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने बोला था, कि सितंबर में समाप्त होने वाले साल में भारत चीनी निर्यात करने की मंजूरी दे सकता है। 

हालाँकि, इस बार पैदावार में गिरावट होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। भारत घरेलू खपत को लेकर काफी सजग दिखाई दे रही है।

दालचीनी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी (How to Grow Cinnamon)

दालचीनी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी (How to Grow Cinnamon)

आज हम आपको मसालों में सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली दालचीनी के बारे में बताने जा रहे हैं। दालचीनी के अंदर विघमान कई सारे औषधीय गुण लोगों के स्वास्थ्य के लिए काफी लाभकारी होते हैं। बतादें, कि कोरोना काल में दालचीनी का इस्तेमाल काफी बढ़ गया। दालचीनी की मांग विगत कई सालों से बाजार में सदैव अच्छी-खासी बनी रहती है। अब ऐसी स्थिति में किसान इसकी खेती से काफी अच्छा लाभ उठा सकते हैं। चलिए आपको दालचीनी की खेती से संबंधित कुछ अहम जानकारी देते हैं। दालचीनी दक्षिण भारत का एक प्रमुख पेड़ है। इस वृक्ष की छाल का दवाई और मसालों के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। दालचीनी एक छोटा सदाबहार पेड़ होता है, जो कि 10–15 मीटर ऊँचा होता है। दालचीनी की खेती दक्षिण भारत के तमिलनाडू एवं केरल में इसका उत्पादन किया जाता है। दालचीनी के छाल का इस्तेमाल हम मसालों के तौर पर करते हैं। इस पौधे की पत्तियों का इस्तेमाल हम तेजपत्ते के तौर पर करते हैं।

दालचीनी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु एवं मृदा

दालचीनी एक उष्णकटिबंधीय पेड़ की श्रृंखला में आता है। यह पौधा ग्रीष्म एवं आर्द्र जलवायु को आसानी से झेलने की क्षमता रखता है। इस जलवायु की वजह से पौधे का विकास और छाल की नकल बेहतर होती है। इस वजह से इसे नारियल एवं सुपारी के बागों में उत्पादित किया जा सकता है। परंतु, आवश्यकता से अधिक छाया दालचीनी को प्रभावित कर देती है। साथ ही, पेड़ भी कीटों की बली चढ़ जाते हैं। इस फसल को मध्यम जलवायु में खुले मैदान में अलग से भी पैदा किया जा सकता है। यह भी पढ़ें: इस औषधीय पेड़ की खेती से किसान जल्द ही हो सकते हैं मालामाल, लकड़ी के साथ छाल की मिलती है कीमत

दालचीनी की खेती के लिए भूमि की तैयारी एवं रोपण

दालचीनी के रोपण हेतु जमीन को साफ करके 50 से.मी.X50 से.मी. के गड्ढे 3 मी.X 3मी. के फासले पर खोदना चाहिए। इन गड्ढों में रोपण से पूर्व कम्पोस्ट और ऊपरी मिट्टी को भर देते हैं। दालचीनी के पौधों को जून-जुलाई में रोपित करना अच्छा होता है, क्योंकि पौधे को स्थापित होने में मानसून का फायदा मिल जाता है। 10-12 माह पुराने बीज द्वारा उत्पादित पौधे, अच्छी तरह मूल युक्त कतरनें अथवा एयर लेयर का उपयोग रोपण में करना चाहिए। 3-4 बीज द्वारा उत्पादित पौधे, मूल युक्त कतरनें या एयर लेयर पति गड्ढे में रोपण करना चाहिए। कुछ मामलों में बीजों को सीधे गड्ढे में डाल कर उसे कम्पोस्ट और मृदा से भर देते हैं । शुरूआती सालों में पौधों के अच्छे स्वास्थ्य और उपयुक्त विकास के लिए आंशिक छाया प्रदान करनी चाहिए। जून, जुलाई माह में तैयार किए गए गड्ढों के मध्य में दालचीनी का पौधरोपण करना चाहिए। इस दौरान एक बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि रोपण के पश्चात बारिश का पानी बंधा में इकठ्ठा ना हो।

दालचीनी की किस्में

अगर हम दालचीनी की किस्मों की बात करें तो कोंकण कृषि विश्वविद्यालय द्वारा साल 1992 में कोंकण तेज की खोज और प्रचार-प्रसार किया है। यह किस्म छाल और पत्तियों से तेल निकालने के लिए बेहतर मानी जाती है। दालचीनी में 6.93 प्रतिशत यूजेनॉल, 3.2 प्रतिशत तेल और 70.23 प्रतिशत सिनामोल्डेहाइड मौजूद होता है। यह भी पढ़ें: चंदन के समान मूल्यवान इन पेड़ों की लकड़ियां बेचकर होश उड़ाने वाला मुनाफा हो सकता है

दालचीनी के पेड़ के लिए उर्वरक

दालचीनी के पेड़ में प्रथम वर्ष 5 किलो खाद या कम्पोस्ट, 20 ग्राम नाइट्रेट (40 ग्राम यूरिया), 18 ग्राम फास्फोरस (115 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट), 25 ग्राम पोटाश (45 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश) ड़ाली जाए। इस उर्वरक की मात्रा प्रति वर्ष इसी प्रकार बढ़ानी चाहिए एवं 10 वर्ष के पश्चात 20 किलो खाद अथवा कम्पोस्ट, 200 ग्राम नाइट्रोजन (400 ग्राम यूरिया), 180 ग्राम फॉस्फोरस (सिंगल सुपर फास्फेट का 1 किलो 100 ग्राम) डालें। , 250 ग्राम पोटाश (पोटाश का 420 ग्राम म्यूरेट) देना उचित होता है।

दालचीनी के पेड़ों लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम

बीजू अगंमारी

यह रोग डिपलोडिया स्पीसीस द्वारा पौधों में पौधशाला के दौरान होता है। कवक के द्वारा तने के चहुंओर हल्के भूरे रंग के धब्बे हो जाते हैं। अत: पौधा बिल्कुल नष्ट हो जाता है। इस रोग की रोकथाम करने के लिए 1% प्रतिशत बोर्डियो मिश्रण का छिड़काव किया जाता है।

भूरी अगंमारी

यह रोग पिस्टालोटिया पालमरम की वजह से होता है। इसके प्रमुख लक्षणों में छोटे सफेद रंग का धब्बा होता है, जो कुछ समय के पश्चात स्लेटी रंग का होकर भूरे रंग का किनारा बन जाता है। इस रोग पर सहजता से काबू करने के लिए 1% प्रतिशत बोर्डियो मिश्रण का छिड़काव करना चाहिए। यह भी पढ़ें: वरुण नामक ड्रोन 6 मिनट के अंदर एक एकड़ भूमि पर छिड़काव कर सकता है

कीट दालचीनी तितली

दालचीनी तितली (चाइलेसा कलाईटिया) नवीन पौधों एवं पौधशाला का प्रमुख कीट माना जाता है। आमतौर पर यह मानसून काल के पश्चात नजर आता है। इस का लार्वा कोमल और नई विकसित पत्तियों को खाता है। अत्यधिक ग्रसित मामलों में पूरा पौधा पत्ती विहीन हो जाता है और केवल पत्तियों के मध्य की उभरी हुई धारी ही बचती है। इसकी वयस्क बड़े आकर की तितली होती है एवं यह दो तरह की होती है। पहले बाहरी सतह पर सफेद धब्बे नुमा काले भूरे रंग के पंखों और दूसरी के नील सफेद निशान के काले रंग के पंख उपस्थित होते हैं। पूरी तरह से विकसित लार्वा तकरीबन 2.5 से.मी. लम्बे पार्श्व में काली धारी समेत हल्के पीले रंग का होता है। इस कीट को काबू में करने के लिए कोमल और नई विकसित पत्तियों पर 0.05% क्वानलफोस का छिड़काव करना फायदेमंद होता है।

लीफ माइनर

लीफ माइनर (कोनोपोमोरफा सिविका) मानसून काल के दौरान पौधशाला में पौधों को काफी ज्यादा नुकसान पहुँचाने वाला प्रमुख कीट माना जाता है। इसका वयस्क चमकीला स्लेटी रंग का छोटा सा पतंगा होता है। इसका लार्वा प्रावस्था में हल्के स्लेटी रंग का उसके उपरांत गुलाबी रंग का 10 मि.मीटर लम्बा होता है। यह कोमल पत्तियों की ऊपरी और निचली बाह्य आवरण (इपिडरमिस) के उतकों को खाकर उस पर छाले जैसा निशान छोड़ देते हैं। ग्रसित पत्ती मुरझाकर सिकुड़ जाती हैं एवं पट्टी पर बड़ा सा छेद भी बन जाता है। इस कीट पर नियंत्रण पाने हेतु नवीन पत्तों के निकलने पर 0.05% क्वनालफोस का छिड़काव करना काफी अच्छा होता है। सुंडी और बीटल भी दालचीनी के नए पत्तों को प्रभावी तौर पर खाते हैं। क्वनालफोस 0.05% को डालने से इसको भी काबू में कर सकते हैं।

पर्ण चित्ती एवं डाई बैंक

पर्ण चित्ती और डाई बैक रोग कोलीटोत्राकम ग्लोयोस्पोरियिड्स की वजह से होता है। पत्तियों की पटल पर छोटे गहरे सफेद रंग के धब्बे आ जाते हैं, जो नाद में एक दूसरे से मिलके अनियमित धब्बा तैयार करते हैं। कई बार देखा गया है, कि पत्तों के संक्रमित हिस्से पर छेड़ जैसा निशान नजर आता है। इसके पश्चात संपूर्ण पत्ती भाग संक्रमित हो जाता है। इतना ही नहीं यह संक्रमण तने तक फैलकर डाई बैक की वजह बनता है। इस रोग की रोकथाम करने के लिए संक्रमित शाखाओंं की कटाई-छटाई एवं 1% बोर्डियो मिश्रण का छिड़काव किया जाता है।
मथुरा जनपद में बंद पड़ी छाता चीनी मिल को योगी सरकार ने फिर से शुरू किया

मथुरा जनपद में बंद पड़ी छाता चीनी मिल को योगी सरकार ने फिर से शुरू किया

हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई मंत्रिपरिषद की बैठक में मथुरा जनपद की बंद पड़ी छाता चीनी मिल की भूमि पर 3000 टीडीसी क्षमता की नई चीनी मिल और 60 केएलपीडी क्षमता की आसवानी एवं लॉजिस्टिक हब वेयरहाउसिंग कंपलेक्स की स्थापना के लिए गन्ना एवं चीनी मिल विभाग द्वारा प्रस्ताव पर मुहर लग गई है। बतादें कि मथुरा की बंद पड़ी इस चीनी मिल की स्थापना से चीनी मिल क्षेत्र का चहुँमुखी विकास के साथ-साथ प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार का सृजन भी होगा। साथ ही, इससे प्रदेश की आर्थिक उन्नति को भी बल मिलेगा। प्रदेश के चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास मंत्री लक्ष्मीनारायण चौधरी ने बताया कि चीनी मिल एवं आसमानी प्लांट तथा अन्य परियोजनाओं के संचालन हेतु जनशक्ति का नियोजन भी किया जाएगा। गन्ना मंत्री ने कहा है, कि इस बंद पड़ी चीनी मिल की जमीन पर पूर्व में प्रस्ताव किया गया था। यह भी पढ़ें: भारत द्वारा चीनी निर्यात पर प्रतिबन्ध से कई सारे शक्तिशाली देशों में चीनी उत्पाद हुए महंगे

नवीन चीनी मिल की स्थापना बंद पड़ी मिल की जगह पर ही होगी

चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास मंत्री लक्ष्मीनारायण चौधरी ने बताया प्रस्तावित परियोजना वर्तमान में उपलब्ध नवीनतम तकनीकी पर आधारित है। जिसके अंतर्गत उच्च दबाव के बायलर, नया दक्ष मिलिंग प्लांट, इंसीडेंटल कोजनरेशन हेतु उपयुक्त टर्बो जनरेटिंग सेट, ब्वॉयलिंग हाउस में उच्च क्षमता वाली मशीनरी की स्थापना एवं वी-हैवी शिरे से इथेनॉल की पैदावार के लिए 60 के.एल.पी.डी क्षमता की आसवानी तथा लॉजिस्टिक हब वेयरहाउसिंग कांप्लेक्स की स्थापना हेतु राष्ट्रीय सहकारी शक्कर कारखाना संघ लिमिटेड नई दिल्ली से डीपीआर तैयार कराया गया है।

नवीन चीनी मिल से रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे

मथुरा के छाता में बंद पड़ी चीनी मिल के स्थान पर नवीन चीनी मिल के चालू होने से रोजगार के दरवाजे खुलेंगे। चीनी मिल और विभागों के नियंत्रण समन्वय एवं पर्यवेक्षण के लिए केंद्रीकृत वेतनमान समूह 'क' व 'ख' अधिकारियों की तैनाती वर्तमान में कार्यरत अधिकारियों की उपलब्धता /पदोन्नति/ प्रतिनियुक्ति /संविदा के माध्यम से की जाएगी। प्रशासन, लेखा ,लैब ,विक्रय, क्राइम ऑफिस, स्टोर ,विधि में वेज बोर्ड वेतनमान के समरूप पदों पर आउटसोर्सिंग एजेंसी के माध्यम से कर्मियों को संविदा पर तैनात करने का कार्य भी होगा। यह भी पढ़ें: चीनी के मुख्य स्त्रोत गन्ने की फसल से लाभ

नवीन चीनी मिल स्थापना से लाखों किसान होंगे लाभांवित

गन्ना मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने बताया है, कि मथुरा की बंद पड़ी छाता चीनी मिल और विवादित भूमि पर 300 टीडीसी क्षमता की नई चीनी मिल 60 केएलपीजी क्षमता की आसवनी एवं लॉजिस्टिक हब वेयरहाउसिंग कंपलेक्स की स्थापना होनी है। चीनी मिल से जुड़ी परियोजना की प्रस्तावित लागत 47846.85 लाख के सापेक्ष प्रयोजना रचना एवं मूल्यांकन प्रभाग द्वारा परीक्षण करते हुए पब्लिक इन्वेस्टमेंट बोर्ड की बैठक में विचार के लिए प्रस्तुत किया गया। 21 मार्च 2023 को पीआईबी की संपन्न हुई बैठक में विचार विमर्श के पश्चात परियोजना को 46129.96 लाख के खर्च पर संस्तुति करने हेतु निर्देश दिए गए। यह चीनी मिल राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-2 पर छाता रेलवे स्टेशन से 500 मीटर की दूरी पर मौजूद है। साथ ही, इस मिल के समीप 43.3 हेक्टेयर रकबे की जमीन भी उपलब्ध है। साथ ही, इससे 10 लाख किसानों को सीधे तौर पर फायदा मिलेगा और हजार से अधिक युवाओं को रोजगार भी प्राप्त होगा। साथ ही, व्यापार में इजाफा होगा।
देशवासियों को त्योहारी सीजन में नहीं लगेगा महंगाई का झटका - खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा

देशवासियों को त्योहारी सीजन में नहीं लगेगा महंगाई का झटका - खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा का कहना है कि महंगाई पर रोकथाम करने के लिए केंद्र सरकार भरपूर प्रयास कर रही है। खाद्य पदार्थों की जमाखोरी करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा रही है। केंद्र और राज्य सरकार की टीमें जगह-जगह पर छापेमारी कर रही हैं। दरअसल, त्योहारी सीजन की शुरुआत होने से पूर्व महंगाई की रोकथाम करने के लिए केंद्र सरकार ने सारी तैयारी कर ली है। अब ऐसे में आम जनता को महंगाई को लेकर चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। गणेश चतुर्थी, दुर्गा पूजा एवं दिवाली पर समुचित कीमत पर खाद्य पदार्थ मिलेंगे। केंद्र सरकार ने बताया है, कि उसके पास चीनी का पर्याप्त भंडार है। अब जनता को त्योहारी सीजन में चीनी की कमी नहीं होगी। बाजार में चीनी की आपूर्ति मांग के हिसाब से होती रहेगी, जिससे कि कीमतें नियंत्रित रहें। उन्होंने कहा कि सरकारी भंडार में अभी चीनी का 85 लाख टन स्टॉक मौजूद है। ऐसे में आम जनता को महंगाई को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं है।

गन्ने की पैदावार पर कोई प्रभाव नहीं होगा

संजीव चोपड़ा का कहना है, कि गेहूं के भाव आर्टिफिशियल तरीके से अधिक हो रहे हैं। परंतु, शीघ्र ही इसके ऊपर भी नियंत्रण पा लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि ऐसी अफवाह है कि इस वर्ष औसत से कम बरसात दर्ज होने से गन्ने की पैदावार में गिरावट आ सकती है। परंतु, यह बिल्कुल सच नहीं है। उनके कहने के अनुसार तो गन्ने के उत्पादन में किसी तरह की गिरावट नहीं आएगी।

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चावल की कीमतों में हुई 10% प्रतिशत बढ़ोत्तरी

उन्होंने कहा कि अफवाह की वजह से ही चावल के भाव 10% प्रतिशत तक बढ़े हैं। परंतु,, फसल सीजन 2023-24 में धान की बेहतरीन पैदावार होगी। अब ऐसी स्थिति में बाजार के अंदर नवीन चावल आने से कीमतों में गिरावट आएगी। उन्होंने कहा है, कि गेहूं पर भंडारण सीमा कम की गई है। किसानों को चावल के भाव में बढ़ोत्तरी होने पर बेहद खुशी का अनुभव भी हुआ। क्योंकि, धान एक खरीफ की फसल है। इस खरीफ फसल की कटाई के लिए उपयुक्त समय आ गया है। खरीफ की फसल चावल की कटाई का समय चल रहा है। अब ऐसे में यदि चावल की कीमत बढ़ेगी तो निश्चित रूप से किसानों को काफी लाभ मिलेगा।

भारत में धान का कितना उत्पादन होता है

भारत धान उत्पादन के मामले में दूसरे नंबर पर आने वाला देश है। भारत द्वारा विदेशों तक चावल का निर्यात किया जाता है। विश्वभर में भारत चावल की खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करता है। भारत के ऊपर बहुत सारे देश निर्भर होते हैं। यदि भारत में चावल की पैदावार कम होती है तो उससे पूरे विश्वभर की खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है। भारत को चावल की विभिन्न किस्मों के उत्पादन के लिए काफी जाना जाता है। भारत से नेपाल चावल के लिए काफी हद तक आश्रित रहता है।
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी की महंगाई ने तोड़ा 12 साल का रिकॉर्ड

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी की महंगाई ने तोड़ा 12 साल का रिकॉर्ड

महंगाई से केवल भारत की जनता ही परेशान नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व में महंगाई से हाहाकार मचा हुआ है। महंगाई का आलम यह है, कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी 12 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। एक वर्ष में यह 48 प्रतिशत महंगी हो गई है। चीनी की बढ़ती कीमत से संपूर्ण विश्व में लोगों की रसोई का बजट डगमगा गया है। सप्लाई और डिमांड में भारी अंतराल आने की वजह से चीनी की कीमत 12 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी है। 19 सितंबर को चीनी की कीमत बढ़कर 27.5 डॉलर पर पहुंच गई। ऐसे में कहा जा रहा है, कि इस वर्ष अभी तक चीनी की कीमत में लगभग 30 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। विशेष बात यह है, कि चीनी की बढ़ती कीमत से अमेरिका भी बचा नहीं है। यहां पर आज भी चीनी 27 डॉलर के लगभग कारोबार कर रही है।

संपूर्ण विश्व में महँगाई बढ़ गई है

व्यवसाय विशेषज्ञों का कहना है, कि भारत में चीनी का उत्पादन प्रभावित होने से केवल इंडिया ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में महंगाई बढ़ गई है। तकरीबन सभी देशों में चीनी की कीमत सातवें आसमान पर पहुंच गई है। हालांकि, भारत में केंद्र सरकार ने त्योहारी सीजन को देखते हुए चीनी की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए कमर कस ली है। सरकार 13 लाख टन चीनी का कोटा खुले बाजार में जारी कर सकती है।

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निरंतर सरकार चीनी की निगरानी कर रही है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि एग्रीमंडी के को-फाउंडर हेमंत शाह का कहना है कि विगत दो महीने से सरकार निरंतर चीनी की मॉनिटर कर रही है। सरकार समय-समय पर एक्शन भी ले रही है। सरकार का यही प्रयास है, कि दुर्गा पूजा और दिवाली जैसे त्योहार के दौरान बाजार में चीनी की सप्लाई प्रभावित न हो, जिससे कीमतें नियंत्रण में रहें।

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एक वर्ष में चीनी 48 प्रतिशत महंगी हो चुकी है

जानकारी के अनुसार, सूखे एवं कम बारिश की वजह से भारत के साथ- साथ थाईलैंड में भी चीनी के उत्पादन में गिरावट देखने को मिली है। इसके चलते चीनी की कीमतों में इजाफा हो रहा है। वहीं, ब्राजील में चीनी की बेहतरीन पैदावार हुई है। इसके बावजूद भी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमत बढ़ती ही जा रही है। विगत एक हफ्ते के अदंर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी 0.22 प्रतिशत महंगी हुई है। साथ ही, बीते 1 महीने में चीनी की कीमत में 13 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं, 1 साल में यह 48 प्रतिशत महंगी हो गई है।
केंद्र सरकार ने त्यौहार आने से पहले महंगाई पर लगाम लगाने की तैयारी पूरी की

केंद्र सरकार ने त्यौहार आने से पहले महंगाई पर लगाम लगाने की तैयारी पूरी की

केंद्र सरकार ने दुर्गा पूजा एवं दीपावली जैसे त्यौहार आने से पूर्व महंगाई पर लगाम लगाने का सारा प्रबंध कर लिया था। सरकार का ध्यान आम जनता के साथ साथ किसान भाइयों के ऊपर पर ही है। इसी कारण से केंद्र ने रोज किस्म की प्याज की एक्सपोर्ट ड्यूटी हटा दी है। केंद्र सरकार ने प्याज उत्पादक किसानों के फायदे में बड़ा निर्णय लिया है। उसने प्याज पर से निर्यात ड्यूटी हटा दी है। इससे लाखों किसानों ने सहूलियत की सांस ली है। ऐसा कहा जा रहा है, कि केंद्र सरकार के इस निर्णय से किसानों को काफी लाभ मिलेगा। उन्हें अब प्याज का अच्छा भाव मिल सकेगा। वहीं, वित्त मंत्रालय ने प्याज पर से एक्सपोर्ट ड्यूटी हटाए जाने को लेकर एक अधिसूचना भी जारी कर दी है। विशेष बात यह है, कि केंद्र सरकार ने सिर्फ बेंगलुरु रोज किस्म के प्याज पर से एक्सपोर्ट ड्यूटी हटाई है। सरकार ने जारी नोटिफिकेशन में कहा है, कि कुछ शर्तों के साथ एक्सपोर्ट की मंजूरी दी गई है। सरकार का मानना है, कि उसके इस निर्णय से प्याज उत्पादक किसानों को सीधा लाभ मिलेगा।

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प्याज किस भाव पर बिक रही है

दरअसल, केंद्र सरकार ने प्याज की बढ़ती कीमतों पर रोक लगाने के लिए बीते अगस्त माह में प्याज के निर्यात पर 40 प्रतिशत ड्यूटी लगाई थी। तब सरकार ने कहा था कि महंगाई को काबू करने के लिए उसने यह निर्णय लिया है। 31 दिसंबर 2023 तक प्याज पर 40 प्रतिशत एक्सपोर्ट ड्यूटी जारी रहेगी। सरकार को आशा थी, कि ऐसा करने से देश से प्याज का निर्यात कम हो जाएगा। इससे प्याज का भंडारण बढ़ जाएगा। ऐसे में प्याज की कीमतों में गिरावट चालू हो जाएगी। हालांकि, सरकार के इस निर्णय से प्याज की कीमतों में कुछ गिरावट आई है। 40 रुपये किलो मिलने वाला प्याज वर्तमान में 30 से 35 रुपये किलो बिक रहा है।

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प्याज की सप्लाई इन देशों में होती है

बतादें, कि बेंगलुरु रोज किस्म की विदेशों में काफी ज्यादा मांग है। इसका सबसे ज्यादा निर्यात थाईलैंड, ताइवान, मलेशिया और सिंगापुर जैसे देशों में होता है। साथ ही, कर्नाटक के बागबानी आयुक्त से निर्यात किये जाने वाले बेंगलुरु रोज प्याज और उसकी गुणवत्ता को लेकर निर्यातक को प्रमाणपत्र दिखाना पड़ेगा। क्योंकि, सरकार ने प्रमाणपत्र दिखाना अनिवार्य कर दिया है।