जलवायु परिवर्तन के कारण किसान फिलहाल फसल की बुवाई करने से पूर्व कई बार विचार विमर्श कर रहे हैं। दरअसल, किसान अब कम संसाधन और कम खर्च में अधिक उत्पादन देने वाली फसलों की खेती करने की दिशा में चल रहे हैं। अब ऐसी स्थिति में हम किसानों को खेजड़ी की खेती की जानकारी देने जा रहे हैं। जो कि असिंचित क्षेत्रों में भी सुगमता से की जा सकती है। इस खेजड़ी की खेती पर सूखे एवं अकाल जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों का भी कोई फरक नहीं पड़ता है।
खेजड़ी की फसल दलहन में शामिल है
दलहन फसलों में से शम्मिलित एक खेजड़ी अत्यंत अहम फसल है। जिसमें कई सारे औषधीय गुण भी मौजूद हैं। बदलते समय में उपयोगी फसलों की खेती अधिकांश तौर पर की जा रही है। ऐसी स्थिति में खेजड़ी की खेती मुनाफेमंद साबित हो सकती है। इसकी मुख्य वजह यह है, कि खेजड़ी की पकी सांगरीयों में तकरीबन 8-15 प्रतिशत शर्करा, 8-12 प्रतिशत रेशा, 8-15 प्रोटीन, 40-50 प्रतिशत कार्बोहाइडे्रट, 2-3 प्रतिशत वसा, 0.4-0.5 प्रतिशत कैल्सियम, 0.2-0.3 प्रतिशत लौह तत्व के अतिरिक्त बाकी सारे भी सुक्ष्म तत्व मौजूद होते हैं। जो कि मानव समेत पशुओं की सेहत के लिए भी काफी ज्यादा गुणकारी मानी जाती है। खेजड़ी से उत्तम कोटि की गुणवत्ता वाली पत्तियां भी प्राप्त होती हैं। जो राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में पशुपालन का प्रमुख आधार होती हैं। इस वजह से खेजड़ी की खेती से किसान काफी मोटी कमाई कर सकते हैं।
खेजड़ी की खेती के लिए कैसी मिट्टी होनी चाहिए
खेजड़ी के पेड़ प्रमुख रूप से मरु क्षेत्रों में मिलने वाली क्षारीय भूमि, बालू रेत और रेत के टीलों में अच्छी उन्नति करती है।
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खेजड़ी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
खेजड़ी एक उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र का पौधा है। जो कि सूखा रोधी गुणों के अतिरिक्त सर्दियों में पड़ने वाले पाले साहित ही गर्मियों के उच्च तापमान को सुगमता से सहन कर लेता है।
बुवाई से पहले ऐसे करें भूमि की तैयारी
बुवाई से पहले खेत को हल के साथ 3 से 4 बार जुताई करके तैयार करना चाहिए। जमीन को सुविधाजनक आकार के हिस्सों में विभाजित करके मुख्य एवं उप चैनल निर्धारित करते हैं। उसके बाद 5 मीटर x 5 मीटर की दूरी पर 45 सेमी x 45 सेमी x 45 सेमी आकार के गड्ढे खोदे जाते हैं। उनको 1:1 के अनुपात में शीर्ष मृदा एवं अच्छे ढंग से विघटित गोबर की खाद से भरा जाता है।
सिंचाई प्रबंधन किस तरह किया जाए
ज्यादा से ज्यादा विकास और उपज प्राप्त करने के लिए मासिक सिंचाई की आवश्यकता रहती है। परंतु, पानी की कमी वाले इलाकों में बिना किसी सिंचाई के सिर्फ बरसात के पानी के सहारे भी फसल अच्छी उन्नति कर सकती है।
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इस तरह करें नर्सरी की तैयारी
बीज से तैयार पौधों में अंकुरण क्षमता 90 प्रतिशत तक होती है, जिसके लिए एक हेक्टेयर हेतु तकरीबन 20 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। सर्व प्रथम 15 से 20 मिनट हेतु सल्फ्युरिक एसिड के साथ बीज को उपचारित करना चाहिए। उसके बाद मई के दौरान 2.0 सेमी गहराई पर पॉलीबैग में बोया जाता है। पौधे अंकुरित होने के उपरांत इनको कहीं और स्थापित किया जा सकता है। जुलाई और अगस्त महीने में तैयार गड्डो में एक महीने पुरानी रोपण को प्रत्यारोपित कर सकते हैं।