जानिए क्या है नए ज़माने की खेती: प्रिसिजन फार्मिंग

By: MeriKheti
Published on: 19-Apr-2021

नमस्कार किसान भाइयो, आज हम Merikheti.com में आपसे कुछ नई तकनीकी पर आधारित खेती की बात करेंगें. भाइयों अपने देश में जिस तरह से खेती होती है उससे आप सभी परचित हो. यहाँ आपको ज्ञान बांटने की जरूरत नहीं है. आज हम Precision farming के बारे में बात करेंगें. क्या है प्रिसिजन फार्मिंग और कितने किसान भाई इस तकनीक के बारे में जानते हैं? में समझता हूँ की हम में से ज्यादातर किसान भाई इसके बारे में नहीं जानते होंगें. जैसा की आप जानते हैं दिन प्रतिदिन हमारी खेती की जमीन कम होती जा रही है. खेती की जमीन पर अब कंक्रीट के जंगल बनते जा रहे हैं. खेती की जमीन कोई रबर तो है नहीं की उसको खींचा जा सके? अब इसमें सरकार और किसान दोनों को ही टेक्नोलॉजी का प्रयोग करना पड़ेगा तभी जाकर हम अपने देश के लिए पर्याप्त भोजन की व्यवस्था कर सकते हैं. खेती में टेक्नोलॉजी के प्रयोग को हम प्रिसिजन फार्मिंग (Precision agriculture) कहते हैं. हमारे देश में एक बड़ी सोच यह है की हम अपने पडोसी को देख कर काम करते हैं. वो कहते हैं ना जब किसी की बिजली चली जाये तो वो बस पडोसी की बिजली आ रही है या नहीं ये देखेगा और बस कुछ नहीं. अगर उसकी नहीं आ रही है तो कोई बात नहीं है, अगर उसकी आ रही है तो मेरी क्यों नहीं. यही बात हम अपने खेतों में लागू करते हैं. अगर पडोसी ने गेहूं करे हैं तो में भी गेंहूं ही करूँगा आलू या सरसों, सब्जी की फसल नहीं. जो नुकसान फायदा इसका होगा वही मेरा होगा. हमें इस सोच से निकल कर आगे जाना होगा और नई टेक्नोलॉजी को भी अपनी खेती में लाना होगा. इसी को प्रिसिजन फार्मिंग (Precision agriculture) कहते हैं.

क्या है नए ज़माने की खेती प्रिसिजन फार्मिंग?

प्रिसिजन फार्मिंग:

प्रिसिजन फार्मिंग (Precision agriculture) मतलब खेती में शुरुआत से लेकर अंत तक टेक्नोलॉजी का प्रयोग करना ही प्रिसिजन फार्मिंग (Precision agriculture) होता है. इसमें ना तो ज्यादा खाद चाहिए होता है और ना ही ज्यादा पानी. इसमें सेंसर की मदद से हमारी फसलों की जरूरत पता की जाती है उसके बाद उसी चीज को पौधे या फसल को लगाया जाता है. इसको शुरू करने से पहले मिटटी की जाँच कराइ जाती है उसके आधार पर उसमें क्या फसल बोई जाएगी ये तय किया जाता है. फिर मौसम, पानी, बैक्टीरिया आदि सभी बातों को ध्यान में रख के किसान अपनी फसल तय करता है. इससे किसान की लगत भी काम होती है तथा पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होता है. इसमें किसान भेड़चाल में आकर अपना पैसा बर्बाद होने से बचाता है. जैसे की अगर पड़ोसी ने 10 किलो बीघा का यूरिआ लगाया है तो वो भी इतना ही खाद अपने खेत में डालेगा. जो की अक्सर किसान भाई करते है. इस तकनीक से पौधे को जब पानी की आवश्यकता होती है तो पानी दिया जाता है, जब खाद की जरूरत होती है तो खाद दिया जाता है और वो भी पौधे की जड़ में पाइप की मदद से. तो इससे किसान की लागत कम आती है और उसका मुनाफा कई गुना बढ़ जाता है. ये भी पढ़ें : ग्रीनहाउस टेक्नोलॉजी में रोजगार की अपार संभावनाएं

कब शुरू हुआ प्रिसिजन फार्मिंग (Precision agriculture) ?

इस तरह की खेती अमेरिका में सन 1980 के दशक में हुई थी.धीरे धीरे अन्य देशों ने भी इसे करना शुरू किया. आज नीदरलैंड में आलू की खेती इसी विधि से की जा रही है. और वो आलू में अच्छा उत्पादन भी ले रहे हैं. हम भी इस तकनिकी का प्रयोग करके कम लागत में ज्यादा उत्पादन ले सकते हैं.

प्रिसिजन फार्मिंग के फायदे:

  1. प्रिसिजन फार्मिंग के बहुत सारे फायदे हैं. इसकी सहायता से हम फसल में रोग आने पर उसकी रोकथाम के लिए सेंसर की सहायता से समय से उपचार कर सकते हैं.
  2. इसकी सहायता से सीधे पौधों के जड़ों में पानी और कीटनाशक दे सकते हैं.
  3. इसकी सहायता से हम अपनी लागत कम कर सकते हैं तथा उत्पादन को बढ़ा सकते हैं. इससे किसान की आमदनी बढाती है तथा उसके जीवन स्तर में सुधार आता है.
  4. पानी का प्रयोग जरूरत के हिसाब से कर सकते हैं. पूरे खेत में पानी देने की आवश्यकता नहीं होती सीधे पेड़ों की जड़ों में पानी दे सकते हैं.
  5. फसल का उत्पादन अच्छी गुणवत्ता वाला होता है. इसके द्वारा उत्पादन की गई फसल के दाने सामान्य तरीके से उगाई गई फसल से ज्यादा चमकदार और अच्छे होते हैं.
  6. मिटटी की गुणवत्ता भी ख़राब नहीं होती है.
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भारत में इसके प्रयोग को लेकर चुनौतियां:

प्रिसिजन फार्मिंग पर किए गए कई रिसर्च से पता चलता है कि इसके लिए सबसे बड़ी चुनौती उचित शिक्षा और आर्थिक स्थिति है. भारत में 80 % छोटे किसान हैं जिनकी जोत आकार बहुत छोटा है. उनकी आर्थिक हैसियत भी उतनी अच्छी नहीं है जिससे की वो किसी भी टेक्नोलॉजी को बिना सरकार की सहायता से अपने खेत में इस्तेमाल कर सकें. एक अनुमान में कहा गया है कि 2050 तक दुनिया की आबादी करीब 10 अरब के पार पहुंच जाएगी. ऐसे में भारत के पास भी मौका है कि कृषि उत्पादन के मामले में अपनी पकड़ और भी ​मौजूद कर लें. इसके लिए सरकार को अपनी तरफ से किसानों को प्रशिक्षण देना होगा जिससे की आने वाली समस्या की तैयारी अभी से की जा सके.

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