गेहूं का उत्पादन करने वाले किसान भाई इन रोगों के बारे में ज़रूर रहें जागरूक

By: MeriKheti
Published on: 11-Jan-2023

सर्दियों के मौसम में लगभग पूरे उत्तर भारत में गेहूं की फसल लगाई जाती है। इस फसल के लिए सर्दियां काफी अच्छी मानी गई है। गेहूं का अच्छा उत्पादन किसानों को मार्किट में इससे अच्छे दाम दिवा सकता है। लेकिन अगर कहीं आपकी फसल में किसी ना किसी तरह के कवक जनित व अन्य रोग लग जाएं तो ये गेहूं को बर्बाद भी कर सकते हैं। ऐसे में आपके मुनाफे में कमी तो होती ही है साथ ही आपको परेशानी का सामना भी करना पड़ता है। किसानों को इन सभी तरह के रोगों से सावधान रहने की जरूरत है। देश के ज्यादातर हिस्सों में गेहूं की बुवाई पूरी हो चुकी है और कुछ हिस्सों में इसकी बुवाई होना बाकी भी है। एक्सपर्ट की माने तो ये पाला आलू, सरसों समेत अन्य रबी फसलों के लिए नुकसान पहुंचाता है। वहीं अधिक सर्दी पड़ना गेंहूँ की सेहत के लिए बेहद लाभकारी है। आलू कम सिंचाई वाली फसल है। इसलिए फसल में अधिक पानी होना इसे कई बार नुकसान पहुंचाता है। आइए आज हम जानते हैं, कि और कौन-कौन से रोग गेहूं को नुकसान पहुंचाते हैं।

करनाल बंट रोग

यह गेहूं में होने वाला काफी प्रमुख रोग है। इस रोग की उपज मानी जाए तो यह रोग मृदा, बीज एवं वायु जनित रोग है। गेंहूँ में होने वाला करनाल बंट टिलेटिया इंडिका नामक कवक से पैदा होता है। इसे आंशिक बंट कहा जाता है। इस रोग के होने पर फसल पर लगने वाली बाली के अंदर काला बुरादा भर जाता है। ऐसा होने से पूरी फसल एकदम खराब हो जाती है और उससे सड़ी हुई मछली जैसी बदबू आती है। यह रोग ट्राईमिथाइल एमीन के कारण होता है। यह गेहूं के बड़े क्षेत्र को प्रभावित करता है। इसलिए इस रोग को गेहूं का कैंसर भी कहा जाता है।

अनावृत कंड रोग

यह रोग भी काफी मात्रा में इस फसल को प्रभावित करता है। गेहूं में होने वाला प्रमुख रोग अनावृत कंड लूज स्मट के नाम से भी जाना जाता है। यह बीज जनित रोग है। इसका सबसे बड़ा कारण अस्टीलेगो न्यूडा ट्रिटिसाई नामक कवक है। इस रोग में गेहूं के पौधों की सारी बालियां काली होने लगती है। एक बार बालियां काली हो जाने के बाद में पौधा सूख जाता है। यह बड़े फसली क्षेत्र को प्रभावित करता है, इसके होने पर गेहूं की उत्पादकता तेेजी से घटती है। ये भी देखें: गेहूं की फसल का समय पर अच्छा प्रबंधन करके कैसे किसान अच्छी पैदावार ले सकते हैं।

चूर्णिल आसिता रोग

चूर्णिल आसिता मृदा एवं हवा से होने वाला रोग है। इसका प्रमुख कारण ब्लूमेरिया ट्रिटिसाई नामक कवक है। इस रोग के होने पर पौधों की पत्ती, पर्णव्रतों और बालियों पर सफेद चूर्ण जम जाता है। बाद में यह पूरे पौधे पर फैल जाता है। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बंद होने के कारण पौधे की मौत हो जाती है।

लीफ ब्लाइट रोग

यह रोग मुख्यत: बाईपोलेरिस सोरोकिनियाना नामक कवक से पैदा होता है। यह रोग सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है। लेकिन इस रोग का प्रकोप नम तथा गर्म जलवायु वाले उत्तर पूर्वी क्षेत्र में अधिक होता है। इस रोग में फसल की पत्तियों पर भूरे रन के धब्बे बनने शुरू हो जाते हैं। जो फसल के उत्पादन को प्रभावित करते हैं। ये भी देखें: गेहूं की फसल में पत्तियों का पीलापन कर रहा है किसानों को परेशान; जाने क्या है वजह

फुट रांट रोग

यह रोग ज्यादा तापमान वाले हिस्से जैसे मध्य प्रदेश, गुजरात तथा कर्नाटक में ज्यादा फसलों को प्रभावित करता है और सोयाबीन-गेहूं फसल चक्र में अधिक होता है। यह रोग स्क्लरोसियम रोलफसाई नामक कवक से होता है, जो कि संक्रमित भूमि में पाया जाता है। इसमें पौधों की जड़ के ऊपर काले और सफ़ेद फफूंद लगने लगते हैं। जो पौधे की जड़ को ही सड़ा देता है और रोगी पौधा मर जाता है।

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