इन क्षेत्रों के किसान गेहूं की इन 15 किस्मों का उत्पादन करें

By: MeriKheti
Published on: 10-Oct-2023

आईसीएआर ने भारत में गेहूं की 15 नवीन किस्मों की पहचान की है। वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई किस्मों से देश में खाद्यान्न पैदावार में बढ़ोतरी होगी। साथ ही, किसानों के लिए गेहूं एवं जौ के लिए नई वैरायटी भी उपलब्ध होंगी। ICAR और कृषि से संबंधित बाकी संस्थान उन्नत किस्मों के साथ ही ज्यादा पैदावार के लिए निरंतर वैज्ञानिक खोजों की जानकारी किसानों तक पहुंचाते रहते हैं। इसी बीच वैज्ञानिकों ने गेंहूं की दो और जौ की एक नवीन किस्म की भी पहचान की है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह नवीन पहचानी गई किस्में उत्तर-पश्चिमी मैदानी इलाकों में दो अधिक उपज देने वाली किस्में हैं। गेहूं की दो पहचानी गईं किस्मों के नाम HD3386 एवं WH1402 हैं। गेहूं की पहचानी गई नवीन किस्में आईसीएआर-भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल ने महाराणा प्रताप कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, राजस्थान की मदद से विकसित की है।

ये भी पढ़ें:
गेहूं की उन्नत किस्में, जानिए बुआई का समय, पैदावार क्षमता एवं अन्य विवरण

भिन्न भिन्न किस्में भिन्न भिन्न क्षेत्रों में बंपर उत्पादन देंगी

वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई यह किस्में भारत में खाद्यान्न के उत्पादन में तो वृद्धि करेंगी। साथ ही, किसानों के लिए गेहूं व जौ के लिए नई प्रजाति भी उपलब्ध होंगी। गेहूं की GW547 किस्म की समय पर बिजाई की गई सिंचित भूमि के लिए। साथ ही, CG1040 और DBW359 को असिंचित भूमि के लिए पहचाना गया है। बतादें, कि इसके साथ-साथ प्रायद्वीप के प्रतिबंधित सिंचाई क्षेत्रों के लिए DBW359, NW4028, UAS478, HI8840 एवं HI1665 गेहूं की किस्मों को पहचाना गया है। वैज्ञानिकों का कहना है, कि माल्ट जौ किस्म DWRB219 की पहचान भी उत्तर-पश्चिम के सिंचित इलाकों के लिए जानी गई है।

ये भी पढ़ें:
गेहूं की यह नई किस्म मोटापे और डायबिटीज के लिए रामबाण साबित होगी

भारत के विभिन्न इलाकों के शोधकर्ताओं ने भाग लिया

आईसीएआर-आईआईडब्ल्यूबीआर, करनाल के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह के मुताबिक अखिल भारतीय गेहूं एवं जौ सम्मलेन में भारत के विभिन्न इलाकों के शोधकर्ताओं ने भाग लिया था। आईसीएआर किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) एवं निजी बीज कंपनियों के साथ नवीन जारी किस्मों DBW370, DBW371, DBW372, DBW316 और DDW55 की लाइसेंस प्रक्रिया भी आरंभ हो गई हैं। संस्थान के द्वारा बीजों के लिए चलाया जा रहा पोर्टल भी 15 सितंबर से आरंभ हो चुका है।

श्रेणी