एक गाय के गोबर और गौमूत्र से 30 एकड़ जमीन के लिए खाद तैयार किया जा सकता है। श्रेष्ठ प्राकृुुुुुतिक उत्पादन लिया जा सकता है। उत्पाद की बाजिव कीमत मिलने और उपज में गिरावट के बाद भी आधुुनिक खेती से मुकाबले पैसा मिल सकता है। उपभोक्ताओं को भी रसायन मुक्त सस्ते खाद्य उत्पाद मुहैया कराए जा सकते हैं। जैविक एवं प्राकृतिक खेती जैसे विचार इसी दिशा में काम को आगे बढ़ा रहे हैं।
अब पंजाब के बाद आधुनिक खेती के मामले में अग्रणी राज्य हरियाणा के हर गांव में प्राकृृतिक खेती की दिशा में अलख जगाने का काम तेज हो गया है। जीरो बजट खेती के जनक और प्रयोगधर्मी सुभाष पालेकर को हरियाणा बुलाकर विशेष प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने की तैयारी सरकार ने कर ली है। प्रशिक्षण शिविर में महिलाओं की 50 फीसदी भागीदारी रहेगी। इसके लिए सरकार ने गुजरात के खेडा जिले में एक दल को भेजकर प्राकृतिक खेती के विचार की हकीकत जानकर सुझाव मांगे थे। इस पर दल द्वारा सहमति जताने के बाद यह कदम बढ़ाया गया है। कृषि मंत्री जेपी दलाल की विशेष दिलचस्पी के चलते विभाग ने इसकी विस्तृत कार्ययोजना तैयार की है।
प्राकृतिक खेती में एक गाय से 30 एकड़ खेत को जैविक खाद मिल सकती है इसके अलावा खेत में लगने वाले पानी को भी 70 फीसदी तक बचाया जा सकता है। गाय के गोबर और गौमूत्र का उपयोग करने से खेतों की जलधारण क्षमता बढ़ जाती है। जमीन पानी कम सोखती है। यादि सोखती भी है तो वह जल्दी से सूखता नहीं है। हरियाणा के कई इलाकों में जल स्तर 20 मीटर से भी ज्यादा नीचे चला गा है। प्राकृतिक खेती से इसकी गिरावट भी रुकेगी।
हर गांव में होगा एक मास्टर ट्रेनर
इस परियोजना को परवान चढ़ाने के लिए छोटी जोत वाले किसान, युवा और महिलाओं को प्राथमिकता दी जाएगी। हर गांव में एक मास्टर ट्रेनर तैयार किया जाएगा ताकि वह इस काम को गांव में रहकर ही सही तरीके से अंजाम दिला सके। हरियाणा में करीब 36 लाख हेक्टेयर में खेती की जाती है। इसमें बहुत कम एरिया में ही जैविक खेती होती है।
सरकार की रुचि के मद्दे नजर अफसर भी इस दिशा में तेजी दिखा रहे हैं। वह इस काम को मूर्तरूप् देने वाले हर बिन्दु पर काम कर रहे हैं।
आदरणीय मलिक साहब एक गाय के गोबर और गोमूत्र से 30 एकड़ के लिए खाद बनाने की प्रक्रिया से जुड़े सवाल के विषय में अवगत कराना है कि यह हरियाणा सरकार की ओर से की गई पहल है।रही बात एक गाय से साल भर में कंप्लीट खाद जिसमें सारे मिनरल्स,कार्बन,सूक्ष्म पोषक तत्व,नाइट्रोजन,फास्फोरस,पोटाश आदि तत्वों की मौजूदगी वाला खाद बनने की प्रक्रिया बिल्कुल अलग है जो ज्यादातर गांव में अख्तियार नहीं की जाती।इसके अलावा जिस तरह की खाद का जिक्र आलेख में है उसे कहीं जीवामृत कहीं घन जीवामृत कहा जाता है जिससे सभी तत्वों की पूर्ति नहीं होती लेकिन कई महत्वपूर्ण तत्व मिल जाते हैं।गांव में लोग पशु नहीं पालना चाहते तो खाद कहां से आए।अनुर्वर होती जमीन को गोमूत्र,गोबर,गुड दाल का चूर्ण गूलर या पीपल के पौधे के नीचे की मिट्टी का घोल एक माह सड़ाकार डालने वाली प्रक्रिया वाले खाद को साल भर में 30 एकड़ से भी ज्यादा के लिए तैयार किया जा सकता है लेकिन इसे कंप्लीट खाद नहीं कहा जा सकता।इसके बाद भी यह रसायनिक खादों के साथ-साथ डालने से काफी बेहतर परिणाम दे सकता है।देश के प्रधानमंत्री पद्म श्री सुभाष पालेकर जी की जीरो बजट खेती को अपनाने की सलाह देते हैं वही डीजी आईसीएआर इसे चैलेंज करते हुए दिखते हैं।किसानों ने परंपरागत ज्ञान को मिश्रा दिया है और आधुनिक विज्ञान और तकनीकी आजादी के 7 दशक बाद भी उन तक पहुंची नहीं है।