कृषि वैज्ञानिकों ने विकसित की सरसों की तीन नई उन्नत किस्में, जानें इनकी खासियत

Published on: 12-Oct-2023

सीएसएसआरआई (CSSRI) के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सोडिक मतलब कि क्षारीय भूमि इलाकों के लिए सरसों की तीन उन्नत किस्में सीएस-61, सीएस-62 और सीएस-64 विकसित की गई हैं। बतादें, कि विकसित की गई सरसों की ये तीनों किस्में कृषकों को वर्ष 2024 तक मिलेगी। भारत के किसानों को ज्यादा लाभ हांसिल कराने के लिए केंद्रीय मृदा एवं लवणता अनुसंधान संस्थान (CSSRI) ने सरसों की 3 नवीन उन्नत किस्मों को तैयार किया है। सरसों की इन तीनों बेहतरीन किस्मों से किसानों को ज्यादा उत्पादन मिलेगा। साथ ही, सरसों की इन तीनों किस्मों की खेती सोडिक अर्थात क्षारीय भूमि में भी सहजता से की जा सकेगी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वैज्ञानिकों के द्वारा विकसित की गई सरसों की तीनों प्रजातियां किसानों के हाथों में साल 2024 तक उपलब्ध हो पाऐंगी। दरअसल, हम बात कर रहे हैं, सीएस-61, सीएस-62 और सीएस-64 किस्मों के बारे में।

ये भी पढ़ें:
किसान सरसों की इस किस्म की खेती कर बेहतरीन मुनाफा उठा सकते हैं ज्ञात हो कि इन किस्मों से पूर्व भी कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा सरसों की कुछ लवण सहनशील किस्में सीएस-56, सीएस-58 और सीएस-60 किस्में तैयार की जा चुकी हैं, जो वर्तमान में किसानों को उपलब्ध कराई जा रही हैं। इसके साथ ही, सरसों के यह बीज कृषि विभागों व बीज संस्थानों के द्वारा बांटे जा रहे हैं।

सरसों की नवीन उन्नत किस्मों की खेती

केंद्रीय मृदा एवं लवणता अनुसंधान संस्थान में विकसित की गईं सरसों की बेहतरीन किस्में सीएस-61, सीएस-62 और सीएस-64 वैसे तो प्रत्येक इलाके में अच्छी पैदावार देंगी। परंतु, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और जम्मू, कश्मीर के क्षेत्रों में ज्यादा उपज प्रदान करेंगी। बतादें, कि इन तीनों किस्मों से किसान के खेतों में सरसों की फसल बेहतरीन ढ़ंग से लहलहाएगी। इसके अतिरिक्त बाजार में भी इसकी अच्छी-खासी कीमत मिल सकेगी।

ये भी पढ़ें:
सरसों की फसल में प्रमुख रोग और रोगों का प्रबंधन

सरसों की इन विकसित की गई उन्नत किस्मों की खूबियां

सरसों की इन तीनों उन्नत किस्मों की खेती ऐसे इलाकों के लिए वरदान का काम करेगी, जहां की मिट्टी में सरसों की खेती नहीं हो पाती है। सरसों की सीएस-61, सीएस-62 एवं सीएस-64 किस्म को ऐसे ही क्षेत्रों के लिए तैयार किया गया है, जिन इलाकों में आज भी सरसों की पैदावार नहीं होती है। वहां के किसान भाई भी इन किस्मों की सहायता से सरसों की फसल का फायदा उठा सकें। साथ ही, सरसों की यह तीनों नवीन किस्में प्रति हेक्टेयर तकरीबन 27 से 29 क्विंटल तक उत्पादन देंगी। वहीं, सोडिक मतलब की क्षारीय जमीन में यह किस्म प्रति हेक्टेयर 21 से 23 क्विंटल पैदावार प्रदान करेगी। इसके अतिरिक्त सरसों की इन किस्मों में तेल की मात्रा लगभग 41 फीसद तक रहेगी।

भारत के किन क्षेत्रों में सरसों की खेती नहीं होती है

भारत के बहुत से राज्यों में सरसों की खेती नहीं हो पाती है। जैसे कि हरियाणा एवं पंजाब के कुछ इलाकों में सरसों का उत्पादन नहीं होता है। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़, कौशांबी, लखनऊ, कानपुर, इटावा और हरदोई इत्यादि बहुत सारे क्षेत्रों में सरसों की खेती नहीं की जाती है। वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई सरसों की इन तीनों किस्मों से अब इन क्षेत्रों में भी सरसों की फसल लहराएगी।

श्रेणी