सरसों के कीट और उनसे फसल सुरक्षा
सरसों बेहद कम पानी व लागत में उगाई जाने वाली फसल है। इसकी खेती को बढ़ावा देकर किसान अपनी माली हालत में सुधार कर सकते हैं। इसके अलावा विदेशों से मंगाए जाने वाले खाद्य तेलों के आयात में भी कमी आएगी। राई-सरसों की फसल में 50 से अधिक कीट पाए जाते हैं लेकिन इनमें से एक दर्जन ही ज्यादा नुकसान करते हैं। सरसों का माँहू या चेंपा प्रमुख कीट है एवं अकेला कीट ही 10 से 95 प्रतिशत तक नुकसान पहुॅचा सकता है । अतः किसान भाइयों को सरसों को इन कीटों के नियंत्रण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
चितकबरा कीट या पेन्टेड बग
इस अवस्था में नुकसान पहुॅचाने वाला यह प्रमुख कीट है । यह एक सुन्दर सा दिखने वाला काला भूरा कीट है जिस पर कि नारंगी रंग के धब्बे होते हैं। यह करीब 4 मिमी लम्बा होता है । इसके व्यस्क व बच्चे दोनों ही समूह में एकत्रित होकर पोधो से रस चूसते हैं जिससे कि पौधा कमजोर होकर मर जाता है। अंकुरण से एक सप्ताह के भीतर अगर इनका आक्रमण होता है तो पूरी फसल चैपट हो जाती है। यह कीट सितम्बर से नवम्बर तक सक्रिय रहता है । दोबारा यह कीट फरवरी के अन्त में या मार्च के प्रथम सप्ताह में दिखाई देता है और यह पकती फसल की फलियों से रस चूसता है । जिससे काफी नुकसान होता है । इस कीट द्वेारा किया जाने वाला पैदावार में नुकसान 30 प्रतिशत तथा तेल की मात्रा में 3-4 प्रतिशत आंका गया है ।
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नियंत्रणः जहा तक सम्भव हो 3-4 सप्ताह की फसल में पानी दे देवें । कम प्रकोप की अवस्था में क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत धूल का 20-25 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करें ।अधिक प्रकोप की अवस्था में मैलाथियान 50 ई.सी. 500 मि.ली. दवा को 500 ली. पानी में मिलाकर छिड़कें ।फसल को सुनहरी अवस्था मे कटाई करें व जल्दी से जल्दी मड़ाई कर लेवंे।
आरा मक्खी
इस कीट की सॅंूड़ी ही फसल को नुकसान पहुचाती है जिसका कि सिर काला व पीठ पर पतली काली धारिया होती है। यह कीट अक्तूबर में दिखाई देता है व नबम्बर से दिसम्बर तक काफी नुकसान करता है । यह करीब 32 प्रतिशत तक नुकसान करता है । अधिक नुकसान में खेत ऐसा लगता है कि जानवरों ने खा लिया हो ।
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नियंत्रणः खेत में पानी देने से सूंडिंया पानी में डूब कर मर जाती हैं ।अधिक प्रकोप की अवस्था में मैलाथियान 50 ई.सी. 500 मि.ली. दवा को 500 ली. पानी में मिलाकर छिड़कें ।
बिहार हेयरी केटरपिलर
इस कीट की सूंड़िया ही फसल को नुकसान पहुंचाती हैं । छोटी सॅंड़ी समूह में रहकर नुकसान पहुचाती है जबकि बडी सूंडी जो करीब 40-50 मि.मी. बडी हो जाती है तथा उसके ऊपर धने, लम्बे नांरगी से कत्थई रंग के बाल आ जाते हैं। यह खेत में घूम-घूम कर नुकसान करती है|यह पत्तियों को अत्यधिक मात्रा में खाती है । यह एक दिन में अपने शरीर के वजन से अधिक पत्तियां खा सकती है जिससे फसल नष्ट हो जाती है और फसल दोबारा बोनी पड़ सकती है ।
नियंत्रणः छोटी सूंडियों के समूह को पत्ती सहित तोड़कर 5 प्रतिशत केरोसिन तेल के घोल में डालकर नष्ट कर दें ।अधिक प्रकोप की अवस्था में मैलाथियान 50 ई.सी. 1 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से 500 ली. पानी में मिलाकर छिड़कें ।
फूल निकलने से फसल पकने तक लगने वाले कीट रोग
सरसों का चेंपा या मांहूः यह राई-सरसों का सबसे मुख्य कीट है । यह काफी छोटा 1-2 मि.मी. लम्बा,पीला हरा रंग का चूसक कीड़ा है। यह पौधे की पत्ती, फूल, तना व फलियों से रस चूसता है, जिससे पौधा कमजोर होकर सूख जाता है । इनकी बढ़वार बहुत तेजी से होती है। यह कीट मधु का श्राव करते हैं जिससे पोैधे पर काली फफूॅद पनप जाती है । यह कीट कम तापमान और ज्यादा आर्द्रता होने पर ज्यादा बढता है। इसलिए जनवरी के अंत तथा फरवरी में इस कीट का प्रकोप अधिक रहता है । यह कीट फसल को 10 से 95 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचा सकता है । सरसों में तेल की मात्रा में भी 10 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है ।
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नियंत्रणः चेंपा खेत के बाहरी पौधों पर पहले आता है। अतः उन पौधों की संक्रमित टहनियों को तोड़कर नष्ट कर देवें। जब कम से कम 10 प्रतिशत पौधों पर 25-26 चेंपा प्रति पौधा दिखाई देवंे तभी मोनोक्रोटोफास 36 एस.एल. या डाइमैथोएट 30 ई.सी. दवा को 1 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से 600-800 ली. पानी में मिलाकर छिड़काव करें । यदि दोबारा कीड़ों की संख्या बढ़ती है तो दोबारा छिड़काव करें।मटर का पर्णखनक -इस कीट की सॅंूडी़ छोटी व गंदे मटमेले रंग की होती है । पूरी बड़ी सॅंडी़ 3 मि.मी. लम्बी हल्के हरे रंग की होती हेै । यह पत्ती की दोनों पर्तों के बीच घुसकर खाती है और चमकीली लहरियेदार सुरंग बना देती है जिसे दूर से भी देखा जा सकता है । यह कीट 5-15 प्रतिशत तक नुकसान करता है ।
नियंत्रणः चेंपा के नियंत्रण करने से ही इस कीट का नियंत्रण हो जाता है ।
सरसों के खेत की तैयारी करते समय याद रखें की इसकी खेत में घास न होने पाए और हर बारिश के बाद खेत की जुताई कर देनी चाहिए जिससे की सरसों में पानी देने की जरूरत नहीं पड़ती या फिर कम पानी की जरूरत होती है। सरसों के खेत की जुताई गहरी होनी चाहिए तथा इसकी मिटटी भुरभुरी होनी चाहिए। सरसों की जड़ें गहरी जाती हैं इसलिए इसको गहरी जुताई की आवश्यकता होती है। याद रहे की इसकी खेती समतल खेत में ज्यादा सही होती है इसको ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है तो इसके खेत में पानी नहीं भरना चाहिए नहीं तो इसकी फसल के गलने की समस्या हो जाती है।
सरसों की बुवाई दो समय पर की जा सकती है जो अगस्त से लेकर अक्टूबर तक की जाती है. राई सरसों को अगस्त के अंतिम सप्ताह या सितम्बर के पहले सप्ताह में लगा देना चाहिए। पीली सरसों को सितम्बर में लगा देना चाहिए तथा सामान्य सरसों या काली सरसों को 15 अक्टूबर से पहले बो देना चाहिए। ध्यान रहे की खेत में में पर्याप्त नमी होनी चाहिए जिससे की पौधे को पनपने में आसानी हो।
उर्वरकों का प्रयोग
2018 तक एआईसीआरपी- आरएम की छतरी के तहत, रेपसीड-सरसों की कुल 248 किस्में जारी की गई हैं, इनमें से 185 किस्मों को अधिसूचित किया गया है (भारतीय सरसों-113; टोरिया -25; पीली सरसों -17; गोभी सरसों -11) भूरा सरसों -5; करन राई -5; तारामिरा -8 और काली सरसों -1)। इनमें छह संकर और जैविक (सफेद जंग, अल्टरनेरिया ब्लाइट, पाउडर फफूंदी) और अजैविक तनाव (लवणता, उच्च तापमान) के लिए सहिष्णुता वाले किस्में और विशिष्ट लक्षणों को विशिष्ट बढ़ती परिस्थितियों के लिए अनुशंसित किया गया है।




2. आरा मक्खी: सरसों की फसल में लगने वाले इस कीट के नियंत्रण के लिए मेलाथियान 50 ईसी की एक लीटर को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करना चाहिये। एक बार में कीट न खत्म हों तो दुबारा छिड़काव करना चाहिये।
3.चितकबरा कीट : इस कीट से बचाव करने के लिए प्रति हेक्टेयर के हिसाब से क्यूलनालफास चूर्ण को 1.5 प्रतिशत को मिट्टी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिये। जब इस कीट का प्रकोप अपने चरम सीमा पर पहुंच जाये तो उस समय मेलाथियान 50 ईसी की 500 मि.ली. मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़कना चाहिये।
4.लीफ माइनर: इस कीट के प्रकोप के दिखते ही मेलाथियान 50 ईसी का छिड़काव करने से लाभ मिलेगा।
5.बिहार हेयरी केटर पिलर : डाइमोथिएट के घोल का छिड़काव करने से इस कीट से बचाव हो सकता है।
6. सफेद रतुवा : सरसों की फसल में लगने वाले रोग से बचाव के लिए मैन्कोजेब (डाइथेन एम-45) के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार तीन बार तक छिड़काव किया जा सकता है।
7. काला धब्बा या पर्ण चित्ती: इस रोग से बचाव के लिए आईप्रोडियाँन, मेन्कोजेब के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें।
8. चूर्णिल आसिता: इस रोग की रोकथाम करने के लिए सल्फर का 0.2 प्रतिशत या डिनोकाप 0.1 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करे।
9. मृदूरोमिल आसिता: सफेद रतुआ के प्रबंधन से ये रोग अपने आप ही नियंत्रित हो जाता है।
10. तना गलन: फंफूदीनाशक कार्बेन्डाजिम 0.1 प्रतिशत का छिड़काव फूल आने के समय किया जाना चाहिये। बुआई के लगभग 60-70 दिन बाद यह रोग लगता है। उसी समय रोगनाशी का छिड़काव करने से फायदा मिलता है।



