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इस तकनीक से केले की खेती करके कमा सकते है अच्छा मुनाफा

Published on: 08-Jul-2024
Updated on: 08-Jul-2024

भारत में पिछले कुछ वर्षों से केले की उन्नत प्रजातियों के पौधों को ऊतक संवर्धन (टिसु कल्चर) विधि से बनाया जा रहा है। इस प्रक्रिया से तैयार होने वाले पौधों से केले की खेती करने पर कई लाभ मिलते हैं। 

ये पौधे स्वस्थ होते हैं, रोगमुक्त होते हैं और समान रूप से बढ़ते हैं। सभी पौधों में एक साथ पुष्पन, फलन और घौद की कटाई होती है, जिससे विपणन में सुविधा होती है। फल पुष्ट और आकार में समान होते हैं।


ऊतक संवर्धन से 8 से 10 माह में दूसरी फसल हो जाती है तैयार

ऊतक संवर्धन द्वारा तैयार पौधों में, प्रकन्दों की तुलना में, फलन लगभग 60 दिन पूर्व होता है। इस प्रकार रोपण करने के बाद 12 से 14 महीने में ही केला की पहली फसल प्राप्त होती है। 

जबकि प्रकन्दों से तैयार पौधों से पहली फसल 15 से 16 महीने बाद मिलती है। ऊतक संवर्धन विधि से तैयार पौधों की औसत उपज 30 से 35 kg प्रति पौधा होती है। वैज्ञानिक खेती से 60 से 70 किलोग्राम के घौद मिल सकते हैं।

ऊतक संवर्धन द्वारा बनाए गए केले के पौधों से पहली फसल लेने के बाद, 8 से 10 माह के भीतर घौद (बंच) दूसरी खुटी फसल (रैटून) में फिर से आ जाता है। 

प्रकन्दों से तैयार पौधों से केले की दो फसलें 24 से 25 माह में ली जा सकती हैं।

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समय और धन की होती है बचत

इस विधि से तैयार किए गए पौधों की बुवाई करके समय और पैसे दोनों की बचत होती है। इस विधि में पौधों की देखभाल अधिक करनी पड़ती है। 

ऊतक सवर्धन विधि द्वारा पौधों को तैयार करने के विभिन्न चरण निम्नलिखित है, जैसे- मातृ पौधों का चयन, विषाणु मुक्त मातृ पौधों को चिन्हित करना, पौधों से संक्रमण विहिन ऊतक संवर्धन तैयार करना, प्रयोगशाला में संवर्धन का बहुगुणन तथा नवजात पौधों को सख्त बनाना, वातावरण के अनुरूप पौधों को बनाना तथा आनेवाली व्यवहारिक समस्याओं का अध्ययन करना इत्यादि।

लोकप्रिय हो रही ऊतक संवर्धन तकनीक

आजकल पूरे भारत में केले की खेती के लिए ऊतक संवर्धन से तैयार पौधों का उपयोग रोपण सामग्री के रूप में किया जा रहा है। 

बिहार सरकार के विशेष प्रयासों के परिणामस्वरूप, बिहार जैसे राज्य में भी ऊतक संवर्धन से तैयार केले के पौधों की खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है। पहले यहां परंपरागत रूप से प्रकंद के माध्यम से केले की खेती की जाती थी। 

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हालांकि, बिहार में अभी भी ऊतक संवर्धन प्रयोगशालाओं की संख्या बहुत कम है, जबकि अन्य राज्यों में, जहां केले की खेती प्रमुखता से होती है, वहां बहुत सारी ऊतक संवर्धन प्रयोगशालाएं हैं। 

लेकिन देश में अभी भी केला उत्पादक किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि आदर्श ऊतक संवर्धन से तैयार केले के पौधों में कौन-कौन से गुण होने चाहिए, इस पर बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।

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