सदाबहार की खेती कैसे होती है और इसका क्या महत्व है

Published on: 30-Apr-2025
Updated on: 30-Apr-2025
Cultivation of Evergreen Plant
फसल बागवानी फसल

सदाबहार एक बहुवर्षीय (बार-बार फलने वाला) सजावटी औषधीय पौधा है, जो भारतभर में परती भूमि और रेतीली जगहों पर पाया जाता है। 

सदाबहार की जड़ो में इंडोल एल्कलॉइड्स — रॉबसिन (अजमालिसिन) और सर्पेंटिन होते है जो की इसे एक औषधीय पौधा बनाते है, इसकी खेती भारत में कई स्थानों पर की जाती है, इस लेख में हम आपको सदाबहार के गुणों और इसकी खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी देंगे।

सदाबहार में पाए जाने वाले एल्कलॉइड्स

सदाबहार में एंटी-फाइब्रिलिक और हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने वाले गुण होते हैं। इसके पत्तों में विनब्लास्टिन और विनक्रिस्टिन नामक दो महत्वपूर्ण एल्कलॉइड्स पाए जाते हैं, जो पेटेंट किए गए कैंसर की दवाओं के प्रमुख घटक हैं।

विनक्रिस्टिन एल्कलॉइड्स पौधे के विभिन्न भागों में पाए जाते हैं, लेकिन सबसे अधिक मात्रा में इसकी जड़ों में (0.75% से 1.20% तक) और फिर पत्तियों में (0.60% से 0.65% तक) पाए जाते हैं। 

विनक्रिस्टिन सल्फेट को ओनकोविन (ONCOVIN) नामक व्यापारिक नाम से बेचा जाता है, जो एक्यूट ल्यूकेमिया (ब्लड कैंसर) के इलाज में उपयोग होता है। वहीं विनब्लास्टिन सल्फेट को वेल्बे (VELBE) नाम से हॉजकिन्स डिज़ीज़ के इलाज में प्रयोग किया जाता है।

सदाबहार के उपयोग से किन बीमारियों का इलाज होता है

  1. पत्तियाँ ब्लड कैंसर के इलाज में उपयोगी हैं।
  2. पत्तियाँ माहवारी संबंधी विकारों और मधुमेह (डायबिटीज़ मेलिटस) के इलाज में सहायक।
  3. पत्तियों और जड़ों का काढ़ा उच्च रक्तचाप पर प्रभावी होता है।
  4. जड़ें हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में सहायक हैं।

सदाबहार का उत्त्पति स्थानों और उत्पादन

सदाबहार के पौधे की उत्पति मेडागास्कर में मानी जाती है और वहीं से ये पौधा भारत, इंडोनेशिया, इंडो-चीन, फिलीपींस, दक्षिण अफ्रीका, इज़राइल, अमेरिका और दुनिया के अन्य हिस्सों में फैला है। 

भारत में यह मुख्यतः तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और असम में लगभग 3000 हेक्टेयर क्षेत्र में उगाया जा रहा है। 

अमेरिका इस पौधे का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है और एक अकेली कंपनी जिसके पास विनब्लास्टिन और विनक्रिस्टिन सल्फेट के उत्पादन का पेटेंट है, वह हर साल 1000 टन से अधिक पत्तियाँ उपयोग करती है। 

पश्चिम जर्मनी, इटली, नीदरलैंड्स और यूनाइटेड किंगडम इसकी जड़ों में रुचि रखते हैं, और इन देशों से जड़ों की कुल माँग 1000 टन से अधिक प्रति वर्ष है।

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सदाबहार का पौधा दिखने में कैसा होता है?

सदाबहार एक बहुवर्षीय जड़ी-बूटी है, जिसे आमतौर पर इसके गुलाबी और सफेद फूलों के लिए बाग-बगीचों में उगाया जाता है। इसके फूल साल भर खिलते रहते हैं। 

यह पौधा लंबी और लचीली शाखाओं वाला होता है, जिसकी पत्तियाँ साधारण और विपरीत दिशा में होती हैं। फूल 2-3 की संख्या में, साइम्स में, कांखीय (axillary) और अंत (terminal) गुच्छों में आते हैं। सदाबहार का फल लंबा बेलनाकार फली जैसा होता है जिसमें कई काले बीज होते हैं।

सदाबहार की बुवाई के तरीके

सदाबहार की बुवाई की तरीको से की जाती है इसकी बुवाई के तरिके निम्नलिखित दिए गए है -

सदाबहार की सीधी बुवाई

यह विधि उन बड़े क्षेत्रों के लिए सबसे उपयुक्त है जहाँ मज़दूरी महँगी होती है, क्योंकि यह उत्पादन लागत को कम करती है। भूमि को दो बार जुताई कर अच्छी तरह भुरभुरी (fine tilth) बनाई जाती है। 

खेत से खरपतवार, पराली और कंकड़ आदि हटा दिए जाते हैं। इसके बाद खेत को सुविधाजनक आकार के टुकड़ों में बाँट दिया जाता है और मिट्टी में सिफारिश की गई मात्रा में खाद और उर्वरक मिला दिए जाते हैं।

बीजों की बुवाई

बीजों की बुवाई मानसून की शुरुआत (जून-जुलाई) में की जाती है। बीजों की मात्रा लगभग 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है। बीजों को पंक्तियों में 30 से 45 सेमी की दूरी पर छिड़का जाता है और हल्की मिट्टी से ढक दिया जाता है। 

बीज बहुत छोटे होते हैं, इसलिए इन्हें बालू (रेत) के साथ इनके वजन से लगभग 10 गुना मिलाकर बुवाई की जाती है, ताकि वितरण आसान हो। अंकुरण लगभग 7–8 दिन में होता है।

अंकुरण पूर्ण होने पर पंक्ति के भीतर पौधों को 30–40 सेमी की दूरी पर thinning (छंटाई) कर दिया जाता है। इस विदी में फूल आना बुवाई के 40–45 दिन बाद शुरू हो जाता है।

सदाबहार की नर्सरी तैयार करना और रोपाई (Nursery Preparation and Transplanting)  

जब बीज की उपलब्धता कम हो, तब इस विधि का प्रयोग किया जाता है। प्रत्यक्ष बुवाई की तुलना में इस विधि में स्वस्थ और तेज़ी से बढ़ने वाले पौधों का चयन किया जा सकता है और कमजोर पौधों को हटा दिया जाता है।

1. नर्सरी बुवाई:  

बीजों को मार्च–अप्रैल में 8–10 सेमी की दूरी पर बनी ऊँची क्यारी में लगभग 1.5 सेमी गहराई में बोया जाता है। 500 ग्राम बीज पर्याप्त होते हैं 1 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए पौधे तैयार करने हेतु।

2. रोपाई:  

अंकुरण के दो महीने बाद पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इन्हें खेत में 45 x 30 सेमी की दूरी पर लगाया जाता है। इस तरह 74,000 पौधे प्रति हेक्टेयर लगाए जा सकते हैं।

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सदाबहार का शाकीय प्रवर्धन (Vegetative Propagation)  

सदाबहार बुवाई की इस विधि में सहज शाखाओं (lateral shoots) से लिए गए कोमल कटिंग्स (softwood cuttings) सबसे अच्छे माने गए हैं, क्योंकि यह कठोर या अर्ध-कठोर कटिंग्स की तुलना में अधिक सफल होते हैं।

कटिंग्स की विशेषताएँ:

  • लंबाई: 10–15 सेमी
  • कम से कम 5–6 गांठें (nodes)
  • जड़ बनने की दर लगभग 90%
  • यदि इन्हें 25 या 50 ppm की NAA (नेफथलीन एसीटिक एसिड) घोल में रातभर भिगोया जाए तो जड़ बनने की दर 96% तक पहुँच सकती है।

यह विधि उन क्लोनों के प्रचार में उपयोगी है जिनमें एल्कलॉइड की मात्रा अधिक होती है या केवल बीज उत्पादन के लिए पौधे तैयार करने होते हैं।

सदाबहार के प्रकार और किस्में (Types and Varieties)

सदाबहार की तीन मुख्य किस्में पाई जाती हैं:

  1. गुलाबी बैंगनी फूल (Roseus)
  2. सफेद फूल (Alba)
  3. सफेद फूल, केंद्र में गुलाबी बैंगनी धब्बा (Ocilatta)

इनमें से पहली किस्म (Roseus) को अधिक एल्कलॉइड सामग्री के कारण उगाया जाता है। हाल ही में सीमैप (CIMAP), लखनऊ द्वारा दो सफेद फूलों वाली किस्में "निर्मल" और "धवल" विकसित की गई हैं, जो सक्रिय तत्वों में बराबर होते हुए भी अधिक जैव द्रव्यमान (biomass) देती हैं।

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सदाबहार के पौधों में  खाद और उर्वरक प्रबंधन (Manures and Fertilizers)

  • एफ.वाई.एम (गोबर की खाद): 10–15 टन प्रति हेक्टेयर
  • यदि सिंचाई की सुविधा हो तो हरी खाद की फसल उगाकर फूल आने पर उसे खेत में मिला सकते हैं।
  • यदि जैविक खाद उपलब्ध न हो, तो:
  •  20 किलो नाइट्रोजन (N)
  •  30 किलो फास्फोरस (P₂O₅)
  •  30 किलो पोटाश (K₂O) प्रति हेक्टेयर बेसल डोज के रूप में दें।
  • साथ ही, 20 किलो नाइट्रोजन को दो बराबर भागों में टॉप ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए।

सदाबहार में सिंचाई (Irrigation)

जिन क्षेत्रों में वर्षा वर्ष भर समान रूप से होती है, वहाँ पौधों को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन जहाँ वर्षा केवल कुछ महीनों तक सीमित रहती है, वहाँ 4-5 बार सिंचाई करने से पौधों की उपज अधिक और बेहतर होती है।

सदाबहार की खेती में खरपतवार नियंत्रण (Weed Control)

फसल की प्रारंभिक वृद्धि अवस्था में दो बार निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है:

  • पहली निराई: बुवाई के लगभग 60 दिन बाद
  • दूसरी निराई: बुवाई के 120 दिन बाद

इसके अतिरिक्त, खेत में कटी हुई घास या धान का पुआल (rice straw) बिछाकर मल्चिंग करने से भी खरपतवारों की वृद्धि को कम किया जा सकता है।

 सदाबहार की कटाई और प्रसंस्करण (Harvesting and Processing)

1. पत्तियाँ, तना और बीज:

  • पहली बार पत्तियाँ तोड़ना: बुवाई के 6 महीने बाद  
  • दूसरी बार पत्तियाँ तोड़ना: बुवाई के 9 महीने बाद  
  • तीसरी बार पत्तियाँ: पूरे पौधे की कटाई के समय  
  • कटाई के बाद पौधों को छाया में सुखाया जाता है।

2. जड़ें:

  • फसल की 12 महीने बाद कटाई की जाती है।  
  • पौधों को जमीन से लगभग 7.5 सेमी ऊपर से काटा जाता है और तना, पत्तियाँ व बीज अलग कर छाया में सुखाए जाते हैं।
  • फिर खेत में भरपूर सिंचाई की जाती है और जब मिट्टी खुदाई के लिए उपयुक्त हो जाती है, तो जड़ों को खुदाई कर निकाला जाता है।  
  • जड़ों को अच्छी तरह धोकर छाया में सुखाया जाता है।

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 बीजों की कटाई:

  • बीज पके हुए फलियों (pods) से पूरे पौधे की कटाई से 2–3 महीने पहले ही एकत्र किए जाते हैं।  
  • पौधे का 7.5 सेमी से लेकर 25 सेमी तक का ऊपरी भाग "तना" माना जाता है और यही विपणन के लिए प्रयोग होता है।

सदाबहार की उपज (Yield)

 सिंचित (Irrigated) स्थिति में:

  • पत्तियाँ: 4 टन/हेक्टेयर  
  • तना: 1.5 टन/हेक्टेयर  
  • जड़ें: 1.5 टन/हेक्टेयर  

(सभी सूखे रूप में)

 वर्षा आधारित (Rain-fed) स्थिति में:

  • पत्तियाँ: 2 टन/हेक्टेयर  
  • तना: 0.75 टन/हेक्टेयर  
  • जड़ें: 0.75 टन/हेक्टेयर  

(सभी सूखे रूप में)

 एल्कलॉइड की मात्रा (Alkaloid Content):

  • पत्तियों में कुल एल्कलॉइड की मात्रा: 0.15% से 1.34%  
  • जिसमें:
  •  विनब्लास्टिन (Vinblastine): औसतन 0.002%  
  •  विनक्रिस्टिन (Vincristine): औसतन 0.005%

Q-सदाबहार की जड़ो में कौन से एल्कलॉइड्स होते है?     

Ans - सदाबहार की जड़ो में इंडोल एल्कलॉइड्स — रॉबसिन (अजमालिसिन) और सर्पेंटिन होते है। 

Q-सदाबहार का उपयोग किन बीमारियों के उपचार के लिए किया जाता है? 

Ans - सदाबहार का उपयोग हाई ब्लड प्रेशर, ब्लड कैंसर और  डायबिटीज़ के उपचार के लिए किया जाता है। 

Q-सदाबहार की पत्तियों में एल्कलॉइड की मात्रा कितनी होती है?    

Ans - सदाबहार की  पत्तियों में कुल एल्कलॉइड की मात्रा: 0.15% से 1.34% तक होती है।