ड्रैगन फ्रूट, जिसे पिटाया या पिताहाया भी कहा जाता है, हाल के वर्षों में भारत में एक तेजी से लोकप्रिय होता फल बन गया है। यह न केवल सेहत के लिए लाभकारी है, बल्कि किसानों के लिए आर्थिक रूप से भी फायदेमंद है।
इसमें भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन सी और फाइबर पाए जाते हैं, जो इसे एक पोषण से भरपूर फल बनाते हैं।
यह फल कैक्टस की प्रजाति से संबंध रखता है और इसका मूल स्थान मध्य व दक्षिण अमेरिका है, हालांकि अब यह एशियाई देशों में भी बड़े पैमाने पर उगाया जा रहा है। भारत में इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए किसान अब इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं।
ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र सबसे बेहतर माने जाते हैं। यह पौधा गर्म और शुष्क वातावरण में अच्छी तरह पनपता है।
इसके लिए आदर्श तापमान 20°C से 30°C के बीच होना चाहिए। यह हल्की ठंड को झेल सकता है, लेकिन पाला इसे नुकसान पहुंचा सकता है। अच्छी वृद्धि के लिए इसे प्रतिदिन 6–8 घंटे की धूप मिलना जरूरी है।
ड्रैगन फ्रूट के लिए ऐसी मिट्टी जरूरी है जिसमें पानी का निकास अच्छा हो। रेतीली दोमट मिट्टी जिसमें पीएच स्तर 5.5 से 7 के बीच हो, सबसे उपयुक्त मानी जाती है।
यह एक कैक्टस पौधा होने के कारण जलभराव को सहन नहीं कर पाता और इससे जड़ों के सड़ने का खतरा रहता है। इसलिए मिट्टी को हल्का और हवादार रखना चाहिए।
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खेती से पहले खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए और उसमें से खरपतवार, पत्थर आदि हटा देने चाहिए। जमीन को समतल बनाकर ट्रीलिस सिस्टम (खंभे और तार) तैयार करना चाहिए क्योंकि ड्रैगन फ्रूट की बेल को सहारे की जरूरत होती है। आमतौर पर खंभे बांस या सीमेंट से बनाए जाते हैं।
किस्म का चुनाव स्थानीय जलवायु और बाजार की मांग को ध्यान में रखकर करना चाहिए। भारत में आमतौर पर हाइलोसेरियस उंडाटस की खेती की जाती है।
हालांकि बीज से भी पौधे उगाए जा सकते हैं, लेकिन यह प्रक्रिया लंबी होती है। आमतौर पर किसान कटिंग विधि का उपयोग करते हैं क्योंकि इससे पौधे 12 से 18 महीनों में फल देना शुरू कर देते हैं, जबकि बीज से उगाए गए पौधों को फल देने में 5–6 साल लग जाते हैं।
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स्वस्थ पौधे की शाखा से 20-25 सेमी लंबी कटिंग ली जाती है, जिसे कुछ दिन छाया में सुखाकर मिट्टी में लगाया जाता है। पहले पॉलीबैग में उगाकर बाद में खेत में रोपण करना एक अच्छा तरीका है। ट्रीलिस सिस्टम में एक खंभे के चारों ओर 3-4 पौधे लगाए जाते हैं और पौधों के बीच 2-3 मीटर की दूरी रखी जाती है।
ड्रैगन फ्रूट को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती, लेकिन मिट्टी में थोड़ी नमी बनी रहनी चाहिए। गर्मियों में 10–15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें, जबकि बरसात के मौसम में सिंचाई की जरूरत कम होती है।
ड्रिप इरिगेशन इस फसल के लिए सबसे उपयुक्त है क्योंकि इससे पानी की बचत होती है और पौधों को नमी भी बराबर मिलती रहती है।
कटिंग से तैयार पौधे एक से डेढ़ साल में फल देना शुरू कर देते हैं और हर साल 4 से 6 महीने तक फल देते हैं। बीज से उगाए गए पौधों में यह समय 5-6 साल तक हो सकता है।
फूल आने के 30–50 दिनों के भीतर फल पककर तैयार हो जाते हैं। जब छिलका पूरी तरह से रंगीन और चमकदार हो जाए, तभी तुड़ाई करें।
सुबह या शाम के समय तुड़ाई करना बेहतर होता है। तुड़ाई के बाद फलों को छाया में सुखाकर पैकिंग की जाती है। भंडारण के लिए 8°C से 10°C का तापमान उपयुक्त होता है, जिससे फल 2–3 हफ्तों तक ताजा बने रहते हैं।
ड्रैगन फ्रूट की खेती न केवल मुनाफे का साधन है बल्कि यह किसानों को जलवायु बदलाव और पारंपरिक खेती की अनिश्चितताओं से उबरने का अवसर भी देती है।
यह एक पौष्टिक, लाभदायक और टिकाऊ फसल है, जिसे भारत में खेती की विविधता के रूप में अपनाया जा सकता है।