फ्रेंच बीन्स की खेती कैसे की जाती है जानिए सम्पूर्ण जानकारी

Published on: 01-Aug-2025
Updated on: 01-Aug-2025
Farmer hand harvesting fresh cowpea beans from plant in the field
फसल

फ्रेंच बीन्स उत्तर-पूर्वी भारत की एक प्रमुख दलहनी सब्जी फसल है, जिसे कोमल फलियों, हरी दालों और सूखी फलियों (राजमा) के रूप में उगाया जाता है। 

यह पोषण से भरपूर होती है, जिसमें प्रोटीन, विटामिन और खनिज भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। 100 ग्राम हरी फलियों में औसतन 1.7 ग्राम प्रोटीन, 4.5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 221 आईयू विटामिन-ए, 11 मि.ग्रा. विटामिन-सी और 50 मि.ग्रा. कैल्शियम पाया जाता है। इसकी सूखी फलियाँ प्रोटीन का अच्छा स्रोत होती हैं।

यह एक अल्पकालिक फसल है, जिससे किसान थोड़े समय में अच्छा लाभ कमा सकते हैं। इसे वसंत और गर्मी के मौसम में धान की परती भूमि पर, तथा शरद और सर्दियों में पहाड़ी ढलानों पर उगाया जाता है। यदि सिंचाई की सुविधा हो तो इसे सालभर उगाया जा सकता है।

फ्रेंच बीन्स की किस्में

फ्रेंच बीन्स को मुख्यतः दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है:

  1. बौनी या झाड़ीदार किस्में – कंटेंडर, पूसा पार्वती, पंत अनुपमा, अर्का कोमल, सिलेक्शन-एस
  2. लता या बेल वाली किस्में – केंटकी वंडर, RCMFB-1

ये भी पढ़ें: कैसे की जाती हैं ककोड़ा की खेती? जानिए सम्पूर्ण जानकारी

मिट्टी और जलवायु

मैदानी इलाकों में इसे सर्दियों में और पहाड़ी क्षेत्रों में सिवाय ठंड के बाकी सभी ऋतुओं में उगाया जा सकता है। इसकी बेहतर उपज के लिए दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है। उत्तर-पूर्वी भारत की जलवायु और मिट्टी इसके लिए विशेष रूप से अनुकूल मानी जाती है।

खेत की तैयारी

खेत को 2-3 बार कुदाल या पावर टिलर से जोतकर भुरभुरी अवस्था में लाना चाहिए। अंतिम जुताई के बाद पाटा चलाकर मिट्टी समतल कर ली जाती है ताकि बीज आसानी से बोए जा सकें।

बीज दर

  • बौनी किस्मों के लिए 50-75 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।
  • बेल वाली किस्मों के लिए 25 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहता है।

बुवाई का समय

मैदानी क्षेत्रों में जनवरी-फरवरी और जुलाई-सितंबर के बीच बुवाई की जाती है, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च से जून तक बुवाई उपयुक्त मानी जाती है।

बुवाई की विधि और दूरी

  • बौनी किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 40-50 सेमी और पौधों के बीच 10 सेमी रखनी चाहिए।
  • बेल वाली किस्मों के लिए कतारों के बीच 60-65 सेमी और पौधों के बीच 10-12 सेमी दूरी उचित रहती है।
  • बीजों को 2-3 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए।

खाद और उर्वरक प्रबंधन

  • खेत तैयार करते समय 30 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिलानी चाहिए। साथ ही, एनपीके उर्वरक को 60:120:50 के अनुपात में देना चाहिए।
  • नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय दें।
  • शेष नाइट्रोजन बुवाई के एक महीने बाद डालनी चाहिए।

ये भी पढ़ें: सांगरी की खेती: खेजड़ी के फल की खेती, उपयोग और और उत्पादन विधि

सहारा (स्टेकिंग)

बेल वाली किस्मों को सहारा देने के लिए लकड़ी या बांस के खंभों का उपयोग किया जाता है। इन्हें आपस में रस्सियों से जोड़कर पौधों को सहारा दिया जा सकता है।

रोग प्रबंधन

1. एन्थ्रेक्नोज

  • स्वच्छ बीजों का उपयोग करें।
  • खेत को साफ रखें और ऊपर से सिंचाई न करें।
  • थिरम, डाइथेन Z-78 या बाविस्टिन/बेनलेट @ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

2. पत्ती धब्बा रोग

  • पत्तियों पर गोल/कोणीय, ग्रे केंद्र और लाल किनारे वाले धब्बे दिखाई देते हैं।
  • थिरम @ 2 ग्राम या कॉपर फफूंदनाशक @ 3-4 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर 12-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।

3. पाउडरी मिल्ड्यू

  • पत्तियों और पौधे के अन्य भागों पर सफेद चूर्ण जैसे धब्बे बनते हैं।
  • प्रभावित पौधों के हिस्सों को नष्ट कर दें।
  • वेटेबल सल्फर, कराथेन (0.2%) या बाविस्टिन/बेनलेट (0.1%) का छिड़काव करें।

ये भी पढ़ें: भारत में रबी फसलों की सूची वनस्पति नाम के साथ

कीट नियंत्रण

1. एफिड

  • ये छोटे कीट पत्तियों का रस चूसते हैं और वृद्धि रोकते हैं।
  • फोरेट या एल्डिकार्ब 10-15 किग्रा/हेक्टेयर तथा कार्बोफ्यूरान 3G @ 30-33 किग्रा/हेक्टेयर बुवाई के समय डालें।
  • एंडोसल्फान 35 EC @ 2 मिली/लीटर या BHC 50% WP @ 1-2 ग्राम/लीटर छिड़कें।

2. पॉड बोरर

  • ये फलियों की सतह और बीज को नुकसान पहुंचाते हैं।
  • एंडोसल्फान @ 2 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

3. बीन्स वीविल

  • भंडारण के दौरान बीजों को संक्रमित करता है।
  • फॉस्फीन गैस (सेल्फॉस/फॉसफ्यूम) द्वारा 1-2 टेबलेट प्रति टन अनाज या घन मीटर में फ्यूमिगेशन करें।

4. बीन्स बीटल

  • यह कीट पौधे के सभी भागों को प्रभावित करता है।
  • मैलाथियान 0.1% का छिड़काव करें।

कटाई और उत्पादन

  • फलियों की कटाई कोमल अवस्था में की जाती है, आमतौर पर फूल आने के 7-12 दिन बाद।
  • झाड़ीदार किस्मों में 2-3 बार और बेल वाली किस्मों में 3-5 बार कटाई होती है।
  • शुरुआती कटाई में फलियां अधिक गुणवत्ता वाली होती हैं।
  • भंडारण के दौरान जल की कमी और पेक्टिन की वृद्धि से कुरकुरापन कम होता है।

उत्पादन

हरी फलियों का उत्पादन:

  • झाड़ीदार किस्में: 8-10 टन/हेक्टेयर
  • बेल वाली किस्में: 12-15 टन/हेक्टेयर
  • सूखी फलियाँ तब काटी जाती हैं जब अधिकतर फलियाँ पूरी तरह पककर पीली हो जाती हैं।
  • बीज उत्पादन: लगभग 1250-1500 किग्रा प्रति हेक्टेयर।