Ad

मसूर की फसल में रोग एवं कीट नियंत्रण की जानकारी

Published on: 25-Nov-2019

मसूर एक ऐसी दलहनी फसल है, जिसकी खेती भारत के लगभग सभी राज्यों में की जाती है । मसूर दोमट एवं भारी मिट्टी में होने वाली दलहनी फसल है। इसे बरसात के दिनों में संरक्षित नमी में ही किया जा सकता है। इसकी बिजाई मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर तक की जा सकती है। चावल के साथ अरहर के बाद प्रयोग में लाई जाने वाली यह प्रमुख दलहन है।  मसूर की में मेहनत व लागत दोनों कम लगती हैं। इसकी खेती धान के खाली पड़े खेतों या परती जमीन में भी की जा सकती है। राजस्थान में बाजारा की कटाई के बाद इसकी फसल लगाई जाती है। मसूर की खेती के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से 2-3 बार जुताई कर के पाटा लगा देना चाहिए। अगर रोटावेटर या पावर हैरो से जुताई की जा रही है, तो 1 बार जुताई करना ही काफी होता है।  मसूर की समय से बोआई के लिए प्रति हेक्टेयर 40-60 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है। बोआई समय से न करने की हालत में 65-80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है। बीज को खेत में बोने से पहले उपचारित किया जाना जरूरी होता है। मसूर बीज का उपचार राइजोबियम कल्चर से किया जाना ज्यादा सही होता है। 10 किलोग्राम बीज के उपचार के लिए 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर की जरूरत पड़ती है। किसी खेत में मसूर की खेती पहली बार की जा रही हो, तो बीजोपचार से पहले बीज का रासायनिक उपचार भी किया जाना चाहिए। चूंकि मसूर की जड़ों में राइजोबियम गांठें होती हैं, इसलिए इस की फसल में ज्यादा उर्वरक की जरूरत नहीं पड़ती है। अगर सामान्य तरीके से खाली खेत में मसूर की बोआई की जा रही हो, तो प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस व 20 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिए। अगर धान की कटाई के बाद खेत में मसूर की बोआई करनी है, तो 20 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से टापड्रेसिंग करना चाहिए। इसके बाद 30 किलोग्राम फास्फोरस का छिड़काव 2 बार फूल आने पर व फलियां बनते समय करना चाहिए। ये भी पढ़े: घर पर करें बीजों का उपचार, सस्ती तकनीक से कमाएं अच्छा मुनाफा मसूर की फसल में ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। अगर बोआई के समय नमी न हो तो फली बनते समय सिंचाई करनी चाहिए। इससे पहले फूल आने पर भी सिंचाई जरूरी होती है। मसूर की बोआई के 20-25 दिनों बाद खरपतवार निकाल देने चाहिए।

मसूर की फसल में रोग

masoor ki kheti मसूर की बोआई से पहले उस के बीज को 2.5 ग्राम थीरम या 4 ग्राम ट्राइकोडरमा या 1 ग्राम कार्बेंडाजिम प्रति किलोग्राम की बीज की दर से उपचारित करने पर बीमारियां लगने का खतरा काफी कम हो जाता है। फिर भी मसूर की फसल में अक्सर उकठा, गेरुई गलन रोग, ग्रीवा गलन व मूल विगलन रोग का असर दिखाई पड़ता है। ये भी पढ़े: अचानक कीट संक्रमण से 42 प्रतिशत आम की फसल हुई बर्बाद अगर खेत में उकठा या गेरुई रोग का प्रकोप हो तो मसूर की रोग प्रतिरोधी प्रजातियों जैसे नरेंद्र मसूर 1 जिसके पकने की अवधि 140 दिन व उत्पादन 22 कुंतल प्रति हैक्टेयर, पंत मसूर 4, पंत मसूर 5, डीपीएल 15, एल 4076, पूसा वैभव, के 75, एचयूएल 57, केएलएस 218, आईपीएल 406, शेखर 2 और 3, प्रिया, वैभव जैसी प्रजातियों की बोआई करनी चाहिए। अगर ग्रीवा गलन या मूल विगलन जैसे रोगों से फसल को बचाना है तो बीज का फफूंदनाशक से उपचार आवश्यक है। भूमि शोधन के लिए ट्राईकोडर्मा को गोबर की खाद में मिलाकार एक हफ्ते बाद खेत में डालें। खेत की गर्मी की गहरी जुताई करें। साथ ही जिस खेत में पिछले सालों में मसूरी की फसल ली गई है उसमें फसल न लगाएं। अन्यथा पूर्व का संक्रमण भी प्रभावी हो सकता है।

मसूर की फसल में कीट नियंत्रण

mahu keet podhe माहू कीट पौधे के कोमल भागों का रस चूस कर पौधे का विकास रोकता हैैै। वहीं फलीछेदक कीट फली के दानों को खा कर उत्पादन घटाता है। ऐसे में मिथाइल ओ डिमटोन 25 र्इ्सी की एक लीटर मात्रा, क्यूनालफास की 1 लीटर मात्रा या मेलाथियान 50 र्इ्सी की दो लीटर मात्रा का प्रति हैक्टेयर उचित पानी में मिलाकार ​छिड़काव करें। छिड़काव तीनों में से किसी एक दवा का करना है।

कटाई व भंडारण

  masur fali मसूर की फलियां जब सूख कर भूरे रंग की हो जाएं, तो फसल की कटाई कर के उस में अल्यूमीनियम फास्फाइड की 2 गोलियां प्रति मीट्रिक टन के हिसाब से डाल कर भंडारित करें।

श्रेणी