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अरहर की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

अरहर की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

अरहर अपने आप में पोषण और पोषक तत्वों का खजाना होती है। साथ ही, इसकी खेती के पश्चात मृदा को भी अच्छी मात्रा में पोषण प्राप्त हो जाता है। 

दलहन उत्पादन के क्षेत्र में कृषकों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार निरंतर प्रयासरत है। इसी के साथ कृषकों को ज्यादा पैदावार देने वाली दाल की उत्तम किस्मों की खेती के लिए भी प्रोत्साहन मिल रहा है। 

दालों की खेती के विषय में बात की जाए तो भारत में अरहर दाल बड़े स्तर पर उगाई जाती है। विश्व की 85% फीसद अरहर की उपज भारत में ही होती है। 

बतादें, कि अरहर की दाल प्रोटीन, खनिज, कार्बोहाइड्रेट, लोहा, कैल्शियम आदि पोषक तत्वों से भरपूर होती है। इसकी खेती विशेष तोर पर बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में की जाती है। 

अरहर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु एवं मृदा 

अरहर दाल का उत्पादन शुष्क और नमी वाले इलाकों में किया जाता है। इसकी खेती के लिए अच्छी सिंचाई के साथ सूर्य की ऊर्जा की भी आवश्यकता होती है। 

इसलिए इसकी बुवाई के लिए जून-जुलाई का महीना सबसे अच्छा माना जाता है। अरहर की बेहतरीन पैदावार लेने के लिए अरहर को मटियार दोमट मृदा या रेतीली दोमट मृदा में उगा सकते हैं। 

अरहर की बुवाई से पहले खेतों में गोबर की कंपोस्ट खाद को डालकर मृदा को पोषण प्रदान करें। खेत में गहरी जुताईयों के पश्चात जल निकासी का अवश्य प्रबंध करें, क्योंकि जलभराव से अरहर बर्बाद हो जाती है। 

जून-जुलाई के मौसम में पहली बारिश पड़ते ही या जून के दूसरे सप्ताह से अरहर की बुवाई का कार्य शुरु कर लें। बुवाई के लिए अरहर की मान्यता प्राप्त उन्नत किस्मों का ही चुनाव करें, इससे गुणवत्तापूर्ण उपज लेने में सहायता मिलेगी। खेतों में बुवाई से पहले बीजोपचार भी करना अत्यंत आवश्यक है, जिससे फसल में कीट-रोग न लग पाऐं। 

अरहर की फसल में सिंचाई और पोषण प्रबंधन

खेतों में अरहर की बुवाई करने के पश्चात समय-समय पर निराई-गुड़ाई का कार्य करें और खरपतवारों को उखाड़कर भूमि में ही दबा दें। अरहर की फसल में बुवाई के 30 दिन पश्चात फूल आने पर प्रथम सिंचाई कर लें। 

दूसरी सिंचाई का कार्य फसल में फली आने पर मतलब करीब 70 दिन करना चाहिए। अरहर की सिंचाई बारिश पर ही निर्भर करती है। 

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परंतु, कम बारिश पड़ने पर बुवाई से 110 दिन बाद भी फसल में पानी लगा देना चाहिए। अरहर में कीट और बीमारियों की निगरानी करते रहें और इनकी रोकथाम के लिए जैविक कीटनाशकों का ही उपयोग करें।

अरहर की फसल में लागत और आय

सह-फसल के रूप में अरहर की खेती करने पर यह 5 साल तक किसानों को कम खर्च में दोगुना लाभ कमा कर देती है। अरहर के साथ ज्वार, बाजरा, उड़द और कपास की खेती कर सकते हैं। 

अरहर खुद तो पोषण का खजाना होती ही है। साथ ही मिट्टी को भी पोषण प्रदान करती है। अरहर के उत्पादन की बात करें तो करीब 1 हैक्टेयर उपजाऊ और सिंचित भूमि से 25-40 क्विंटल तक उपज उठा सकते हैं। 

वहीं कम पानी वाले क्षेत्रों में भी अरहर 15-30 क्विंटल तक उपज प्रदान करती है। यही वजह है, कि प्रमुख दलहनी फसल होने के साथ-साथ इसे नकदी फसल भी कहा जाता है।

मसूर की फसल में रोग एवं कीट नियंत्रण की जानकारी

मसूर की फसल में रोग एवं कीट नियंत्रण की जानकारी

मसूर एक ऐसी दलहनी फसल है, जिसकी खेती भारत के लगभग सभी राज्यों में की जाती है । मसूर दोमट एवं भारी मिट्टी में होने वाली दलहनी फसल है। इसे बरसात के दिनों में संरक्षित नमी में ही किया जा सकता है। इसकी बिजाई मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर तक की जा सकती है। चावल के साथ अरहर के बाद प्रयोग में लाई जाने वाली यह प्रमुख दलहन है।  मसूर की में मेहनत व लागत दोनों कम लगती हैं। इसकी खेती धान के खाली पड़े खेतों या परती जमीन में भी की जा सकती है। राजस्थान में बाजारा की कटाई के बाद इसकी फसल लगाई जाती है। मसूर की खेती के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से 2-3 बार जुताई कर के पाटा लगा देना चाहिए। अगर रोटावेटर या पावर हैरो से जुताई की जा रही है, तो 1 बार जुताई करना ही काफी होता है।  मसूर की समय से बोआई के लिए प्रति हेक्टेयर 40-60 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है। बोआई समय से न करने की हालत में 65-80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है। बीज को खेत में बोने से पहले उपचारित किया जाना जरूरी होता है। मसूर बीज का उपचार राइजोबियम कल्चर से किया जाना ज्यादा सही होता है। 10 किलोग्राम बीज के उपचार के लिए 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर की जरूरत पड़ती है। किसी खेत में मसूर की खेती पहली बार की जा रही हो, तो बीजोपचार से पहले बीज का रासायनिक उपचार भी किया जाना चाहिए। चूंकि मसूर की जड़ों में राइजोबियम गांठें होती हैं, इसलिए इस की फसल में ज्यादा उर्वरक की जरूरत नहीं पड़ती है। अगर सामान्य तरीके से खाली खेत में मसूर की बोआई की जा रही हो, तो प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस व 20 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिए। अगर धान की कटाई के बाद खेत में मसूर की बोआई करनी है, तो 20 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से टापड्रेसिंग करना चाहिए। इसके बाद 30 किलोग्राम फास्फोरस का छिड़काव 2 बार फूल आने पर व फलियां बनते समय करना चाहिए। ये भी पढ़े: घर पर करें बीजों का उपचार, सस्ती तकनीक से कमाएं अच्छा मुनाफा मसूर की फसल में ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। अगर बोआई के समय नमी न हो तो फली बनते समय सिंचाई करनी चाहिए। इससे पहले फूल आने पर भी सिंचाई जरूरी होती है। मसूर की बोआई के 20-25 दिनों बाद खरपतवार निकाल देने चाहिए।

मसूर की फसल में रोग

masoor ki kheti मसूर की बोआई से पहले उस के बीज को 2.5 ग्राम थीरम या 4 ग्राम ट्राइकोडरमा या 1 ग्राम कार्बेंडाजिम प्रति किलोग्राम की बीज की दर से उपचारित करने पर बीमारियां लगने का खतरा काफी कम हो जाता है। फिर भी मसूर की फसल में अक्सर उकठा, गेरुई गलन रोग, ग्रीवा गलन व मूल विगलन रोग का असर दिखाई पड़ता है। ये भी पढ़े: अचानक कीट संक्रमण से 42 प्रतिशत आम की फसल हुई बर्बाद अगर खेत में उकठा या गेरुई रोग का प्रकोप हो तो मसूर की रोग प्रतिरोधी प्रजातियों जैसे नरेंद्र मसूर 1 जिसके पकने की अवधि 140 दिन व उत्पादन 22 कुंतल प्रति हैक्टेयर, पंत मसूर 4, पंत मसूर 5, डीपीएल 15, एल 4076, पूसा वैभव, के 75, एचयूएल 57, केएलएस 218, आईपीएल 406, शेखर 2 और 3, प्रिया, वैभव जैसी प्रजातियों की बोआई करनी चाहिए। अगर ग्रीवा गलन या मूल विगलन जैसे रोगों से फसल को बचाना है तो बीज का फफूंदनाशक से उपचार आवश्यक है। भूमि शोधन के लिए ट्राईकोडर्मा को गोबर की खाद में मिलाकार एक हफ्ते बाद खेत में डालें। खेत की गर्मी की गहरी जुताई करें। साथ ही जिस खेत में पिछले सालों में मसूरी की फसल ली गई है उसमें फसल न लगाएं। अन्यथा पूर्व का संक्रमण भी प्रभावी हो सकता है।

मसूर की फसल में कीट नियंत्रण

mahu keet podhe माहू कीट पौधे के कोमल भागों का रस चूस कर पौधे का विकास रोकता हैैै। वहीं फलीछेदक कीट फली के दानों को खा कर उत्पादन घटाता है। ऐसे में मिथाइल ओ डिमटोन 25 र्इ्सी की एक लीटर मात्रा, क्यूनालफास की 1 लीटर मात्रा या मेलाथियान 50 र्इ्सी की दो लीटर मात्रा का प्रति हैक्टेयर उचित पानी में मिलाकार ​छिड़काव करें। छिड़काव तीनों में से किसी एक दवा का करना है।

कटाई व भंडारण

  masur fali मसूर की फलियां जब सूख कर भूरे रंग की हो जाएं, तो फसल की कटाई कर के उस में अल्यूमीनियम फास्फाइड की 2 गोलियां प्रति मीट्रिक टन के हिसाब से डाल कर भंडारित करें।
जानिए किस प्रकार घर पर ही मसूर की दाल से जैविक खाद तैयार करें

जानिए किस प्रकार घर पर ही मसूर की दाल से जैविक खाद तैयार करें

बागवानी में हम जिन खादों का इस्तेमाल करते हैं, उनमें जैविक खादों का अपना अहम महत्व होता है। बहुत सारी खादों को हम घर पर ही तैयार कर सकते हैं। आज हम आपको मसूर की दाल से निर्मित होने वाली खाद के विषय में बताने जा रहे हैं। आपको इस खाद को तैयार करने के लिए सिर्फ दो मुठ्ठी मसूर की दाल की आवश्यकता होती है। दरअसल, आप अपने घर के लगभग सभी गमलों में इसका प्रयोग कर सकते हैं। मसूर की दाल से खाद निर्मित किए जाते हैं। खाद अथवा उर्वरक पोधों के पोषण के लिए तो आवश्यक होने के साथ-साथ उनके विकास में भी मददगार साबित होती है। हम घर में बागवानी करते समय विभिन्न प्रकार की जैविक और अजैविक खादों का इस्तेमाल करते हैं। दरअसल, इस लेख में हम आपको बागवानी में इस्तेमाल होने वाली एक ऐसी खाद के विषय में बताएंगे, जिसे निर्मित करने में आपको किसी भी अतिरिक्त सामग्री की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। साथ ही, घर में मौजूद सामग्रियों के जरिए से आप यह खाद घर पर ही बना सकते हैं। दरअसल, इस खाद को हम मसूर की दाल से निर्मित करते हैं। साथ ही, इसका इस्तेमाल हम घर की बागवानी वाले पौधों के लिए भी कर सकते हैं।

खाद तैयार करने की विधि

मसूर की दाल की बात की जाए तो इसमें वे समस्त पोषक तत्व विघमान होते हैं, जिनके चलते पौधों में विकास और वृद्धि को रफ्तार मिलती है। इसको तैयार करने के लिए आपको सबसे पहले दो मुठ्ठी दाल को तकरीबन आधा लीटर पानी में डाल लें। पानी में इस दाल को 4 से 5 घंटे तक रखें। यदि मौसम सर्दी का है, तो आप इसको रात भर भिगो कर रख सकते हैं।

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पानी का मिश्रण किस अनुपात में किया जाए

पौधों में इस खाद को डालने के लिए सर्व प्रथम पानी और दाल को अलग कर लेना है। आपको दाल के भिन्न किए गए पानी में 1:5 के अनुपात में पानी और मिला लेना है। इस पानी को पौधों में एक स्प्रे बोतल से छिड़काव के साथ में पौधों की मृदा में पानी को डाल देना है। यह पानी बहुत सारे पोषक तत्वों से भरपूर होता है, जिसकी वजह से पौधों में होने वाले विकास में वृद्धि होती है। आपको इस बात का विशेष ख्याल रखना है, कि यह पानी आपको पौधों में एक माह में केवल एक बार ही देना है। पानी से केवल पौधों की मिट्टी की ऊपरी सतह भीगने तक ही सिंचाई करनी चाहिए।

किस प्रकार प्रयोग करें

किसान भाइयों यदि आप इस दाल के पानी से खाद तैयार करना चाहते हैं, तो आपको एक बार के इस्तेमाल के पश्चात उस दाल को फेंकना नहीं है। क्योंकि, एक बार के उपयोग के पश्चात भी इसके पोषक तत्व खत्म नहीं होते हैं। आप इस दाल का इस्तेमाल तीन बार तक कर सकते हैं। पौधों में इस खाद का इस्तेमाल पानी के तौर पर नहीं करना चाहिए। बतादें, कि आप इस दाल को महीन पीस लें। साथ ही, इसे पौधों की मिट्टी की ऊपरी परत पर ही मिला दें। आपको इसे मिलाने से पूर्व एक बात का खास ख्याल रखना होगा कि आप जिन पौधों में इस खाद को मिश्रित करने जा रहे हैं, उस मिट्टी की पहले गुड़ाई कर लें। इसके पश्चात ही इसका उपयोग करें।
भारत सरकार द्वारा 6 रबी फसलों की एमएसपी में की गई बढ़ोतरी से किसानों में खुशी की लहर

भारत सरकार द्वारा 6 रबी फसलों की एमएसपी में की गई बढ़ोतरी से किसानों में खुशी की लहर

भारत सरकार ने सरसों, गेहूं, मसूर और चना समेत 6 रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी कर दी है। इससे विशेष कर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के करोड़ों किसानों को लाभ मिलेगा। साथ ही, किसानों की आमदनी भी बढ़ जाएगी। केंद्र सरकार की तरफ से किसानों को दिवाली का शानदार तोहफा प्रदान किया गया है। उसने गेहूं सहित 6 रबी फसलों की एमएसपी बढ़ा दी है। इससे भारत के करोड़ों किसानों का लाभ मिलेगा। उनकी आमदनी में भी काफी इजाफा होगा। विशेष बात यह है, कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा
रबी फसलों की एमएसपी में 2% से लगाकर 7% फीसद तक की वृद्धि की है। वहीं, केंद्रीय कैबिनेट द्वारा एमएसपी की बढ़ोतरी पर मुहर भी लग चुकी है। मतलब कि फसल सीजन 2024- 25 के लिए जब रबी फसलों की खरीद आरंभ होगी, तो किसानों को नवीन एमएसपी की दर से धनराशि मिलेगी।

रबी फसल में आने वाली फसलें

गेहूं, अलसी, सरसों, कुसुम, मटर, चना एवं जौ रबी फसल में आते हैं। इनकी बुवाई अक्टूबर माह से नवंबर माह के बीच की जाती है। विशेष बात यह है, कि रबी फसलों की सर्वाधिक खेती उत्तर भारत के राज्यों में ही की जाती है। गेंहू की बात करें तो उत्तर प्रदेश इसका सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कहा जाता है। इसके पश्चात मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार पंजाब, हरियाणा और राजस्थान का नंबर आता है। वर्तमान में केंद्र सरकार ने गेहूं की एमएसपी में 150 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बढ़ोतरी की है। इसके उपरांत गेहूं की एमएसपी रबी मार्केटिंग सीजन 2024-25 के लिए 2275 रुपये प्रति क्विंटल हो गई। मतलब, कि पीएम मोदी के कैबिनेट के निर्णय से , गुजरात, बिहार, यूपी, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के करोड़ों किसानों को काफी ज्यादा लाभ मिलेगा।

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भारत में सरसों का कहाँ और कितना उत्पादन किया जाता है

भारत में इसी प्रकार सरसों की पैदावार में राजस्थान अव्वल राज्य है। इसकी भारत में कुल उत्पादित सरसों में 46.7 फीसद भागीदारी है। इसका मतलब यह हुआ है, कि राजस्थान एकमात्र 46.7 फीसद सरसों की पैदावार करती है। इसके पश्चात उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और पश्चिम बंगाल का नंबर आता है। फिलहाल, केंद्र सरकार ने सरसों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 200 रुपये प्रति क्विंटल की दर से इजाफा किया है। इसके साथ ही सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 6550 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुँच चुका है। ऐसी स्थिति में इन राज्यों के किसानों को बेहद लाभ मिलेगा।

सरसों का उत्पादन क्षेत्रफल बढ़ने से महंगाई में गिरावट आएगी

साथ ही, कृषि विशेषज्ञों का कहना है, कि भारत में खपत के अनुसार सरसों की पैदावार काफी कम होती है। ऐसी परिस्थिति में विदेश से खाद्य तेलों का आयात करना पड़ता है। परंतु, केंद्र सरकार द्वारा एमएसपी में बढ़ोतरी करने का निर्णय समुचित समय पर लिया गया है। क्योंकि, वर्तमान में सरसों की बिजाई का सीजन चल रहा है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि एमएसपी में इजाफा होने से कृषक अधिक कमाई करने के लिए अधिक क्षेत्रफल में सरसों की बिजाई करेंगे। इससे भारत में सरसों का उत्पादन बढ़ जाएगा, जिससे सरसों के तेल की कीमतों में गिरावट आ सकती है। इससे महंगाई में भी काफी गिरावट आएगी।
दालों की कीमतों में उछाल को रोकने के लिए सरकार ने उठाया कदम

दालों की कीमतों में उछाल को रोकने के लिए सरकार ने उठाया कदम

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि त्योहारों को देखते हुए बाजार में दाल के भावों में विगत दो हफ्तों से बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। चना की दाल का खुदरा मूल्य 60 रुपये से बढ़कर 90 रुपये प्रति किलो तक पहुंच चुका है। वहीं, उड़द की दाल 100 रुपये प्रति किलो को पार कर चुकी है। साथ ही, इसी प्रकार तुअर दाल 150 रुपये से 160 रुपये प्रति किलो पर बेची जा रही है। दाल के मूल्यों को नियंत्रित करने के लिए सरकार की तरफ से बड़ा कदम उठाया गया है। त्योहारी सीजन में बाजार में दाल के मूल्यों में विगत दो सप्ताह से बढ़ोतरी दर्ज की जा रहा है। चना की दाल का खुदरा भाव 60 रुपये से बढ़कर 90 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है। उड़द की दाल 100 रुपये प्रति किलो को पार कर गई है। साथ ही, इसी प्रकार तुअर दाल 150 रुपये से 160 रुपये प्रति किलो पर बेची जा रही है। मांग में उछाल आने की वजह से आने वाले दिनों में दालों के भावों में बढ़ोतरी की संभावना है। इसकी वजह से केंद्र सरकार ने आयातकों के लिए उड़द तथा तूर दाल की स्टॉक लिमिट को बढ़ा दिया है। बतादें, कि बाजार में दाल की सप्लाई में बढ़ोतरी होगी, जिसके परिणाम में कीमतों को काबू करने में सहायता मिलेगी।


 

दाल की भंडारण सीमा को लेकर नए निर्देश

उपभोक्ता मामलों के विभाग ने नोटिफिकेशन जारी किया है, जिसमें आयातकों, छोटे-बड़े खुदरा विक्रेताओं एवं मिल स्वामियों के लिए दाल की भंडारण सीमा को लेकर नवीन निर्देश जारी किए गए हैं। नोटिफिकेशन में बताया गया है, कि सरकार ने तूर दाल और उड़द दाल के थोक विक्रेताओं को दालों का भंडारण पूर्व के 50 मीट्रिक टन से बढ़ाकर 200 मीट्रिक टन करने की मंजूरी दी है। सरकार ने उस समय सीमा को भी दोगुना कर दिया है, जिसके लिए आयातक क्लीयरेंस के पश्चात अपने भंडार को 60 दिनों तक रख सकते हैं।

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स्टॉक धारण क्षमता में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं हुआ

नोटिफिकेशन के मुताबिक, छोटे खुदरा विक्रेताओं के लिए स्टॉक धारण क्षमता में किसी तरह का बदलाव नहीं हुआ है। बतादें, कि छोटे खुदरा विक्रेताओं के लिए भंडारण सीमा 5 मीट्रिक टन है। वहीं, बड़ी चेन के खुदरा विक्रेता 50 मीट्रिक टन से वृद्धि कर 200 मीट्रिक टन प्रति डिपो तक का भंडार रख सकते हैं।साथ ही, यह भी बताया गया है, कि मिलर्स विगत तीन माहों के उत्पादन अथवा वार्षिक स्थापित पूंजी का 25% प्रतिशत जो भी ज्यादा हो, भंडार कर सकते हैं। वहीं इसे पहले महज 10% तक सीमित किया गया था।


 

दाल मिल एसोसिएशन के मुताबिक निर्णय से आपूर्ति में बढ़ोतरी होगी

आंकड़ों के मुताबिक, ऑल-इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल का कहना है, कि केंद्र सरकार की तरफ से दी गई इस छूट से उद्योग को बाजार में तूर और उड़द दालों की सप्लाई बढ़ाने में सहायता मिलेगी। उन्होंने बताया है, कि उद्योग जगत ने अधिकारियों के साथ अपनी विगत बैठक में इसकी सिफारिश की थी। बाजार में दाल की पर्याप्त मात्रा की उपलब्धता बढ़ने से मांग को पूर्ण किया जा सकेगा। साथ ही, कीमतों को काबू करने में भी काफी सहयोग मिलेगा।

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बाजार में 60 रुपये से 90 रुपये पहुँचा चना दाल का भाव

उधर, चना की दाल की कीमत विगत 15 दिनों के चलते 60 रुपये प्रतिकिलो से 85-90 रुपये प्रति किलो पहुंच चुकी है। महंगी चना दाल से सहूलियत देने के लिए सरकार सहकारी समितियों नेफेड एवं एनसीसीएफ के माध्यम से बाजार भाव से लगभग 30 रुपये सस्ती चना दाल विक्रय कर रही है। विगत 6 नवंबर को केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने नेफेड की 100 वैन जारी की हैं। इसके माध्यम से 60 रुपये प्रति किलो मूल्य पर चना दाल, 25 रुपये प्रति किलो में प्याज एवं 27.50 रुपये प्रति किलो में आटे को विक्रय किया जा रहा है।