भविष्य की फसल है मक्का

By: MeriKheti
Published on: 13-May-2020
भविष्य की फसल है मक्का
फसल खाद्य फसल मक्का

मक्का भविष्य की फसल है। हम यह बात इसलिए भी कह रहे हैं क्योंकि मक्का में पोषक तत्वों की मौजूदगी गेहूं से कहीं अधिक है। इसकी उपज भी साल में दो बार ली जा सकती है। इसके अलावा मनुष्य के लिए खाद्यान्न के साथ पशुओं के लिए पोषक चारा भी इससे मिल जाता है। इसकी खेती के लिए यदि सही तरीके अपनाए जाएं तो उपज 35 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है। खरीफ में पैदा होने वाली मक्का के अच्छे उत्पादन के लिए जरूरी बिंदुओं हम प्रकाश डाल रहे हैं। 

कैसे करें खेती

makka ki kheti 

 मक्का की खेती के लिए बालवीर 2 मठ भूमि उपयुक्त रहती है। ऐसे खेत का चयन करें जिसमें से पानी निकल जाता हो। खेत को भैरव और कल्टीवेटर से दो-दो बार जोत कर पाटा लगाना चाहिए।अच्छी पैदावार के लिए आखरी जुताई में उर्वरकों का प्रयोग करें। 

कितना उर्वरक डालें

makka urvarak


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उर्वरकों का प्रयोग करने से पहले खेतों की मिट्टी की जांच करा लेनी चाहिए ताकि हमें पता चल सके कि हमारे खेत में किन-किन तत्वों की कितनी कमी है। यदि मृदा परीक्षण नहीं हुआ है तो देर से पकने वाली शंकर एवं संकुल पर जातियों के लिए 120, 60, 60 व शीघ्र पकने वाली प्रजातियों हेतु 100, 60,40 तथा देशी प्रजातियों के लिए 60, 30, 30 किलोग्राम नाइट्रोजन फास्फोरस एवं पोटाश की क्रमशः मात्रा का प्रयोग करें। अच्छी फसल के लिए सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग अवश्य करें। उसकी मात्रा 10 टन प्रति हेक्टेयर खेत में डालनी चाहिए। उक्त कभी कल उर्वरकों में से नाइट्रोजन को पानी लगाने के बाद के लिए आधी मात्रा में बचा लेना चाहिए बाकी उर्वरकों को मिट्टी में मिला दें। 

कब करें बिजाई

makka ki buwai 

देर से पकने वाली मक्का मई से मध्य जून तक कभी भी बोई जा सकती है। इसकी बिजाई मशीन से लाइनों में उचित दूरी पर करनी चाहिए ताकि भविष्य में निराई गुड़ाई उर्वरक प्रबंधन आदि में आसानी रहे। प्रति किलोग्राम बीज को ढ़ाई ग्राम थीरम, 2 ग्राम कार्बन्जिडाजिम या 3 ग्राम ट्राइकोडरमा से उपचारित करके ही बोना चाहिए। उपचारित करने के लिए उक्त तीनों दवाओं में से किसी एक को लेकर बीज पर हल्के से पानी के छींटे देकर हाथों में दस्ताने पहनकर हर दाने पर लपेट देना चाहिए।


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बिजाई व बीज दर

बिजाई करते समय ताना साडे 3 सेंटीमीटर से ज्यादा गहरा ना डालें लाइनों की दूरी 45 सेंटीमीटर अगेती किस्मों के लिए एवं देर से पकने वाली किस्मों के लिए 60 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। अगेती किस्मों में पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर मध्यम व देरी से पकने वाली प्रजातियों को 25 सेंटीमीटर दूरी पर लगाना चाहिए। देसी एवं छोटे दाने वाली किस्मों के लिए बीज 16 से 18 किलोग्राम एवं हाइब्रिड किस्म का बीज 20 से 22 किलोग्राम तथा सामान्य संकुल किस्मौं का 18 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रयोग में लाना चाहिए। 

भूमि का उपचार जरूरी

makka ki kheti 

 जिन क्षेत्र में फफूंदी जनित बीमारियों की समस्या है उन क्षेत्रों में जमीन की गहरी जुताई तेज गर्मियों में एक एक हफ्ते के अंतराल पर करें ताकि मिट्टी पलट के सिक जाए। इसके अलावा सड़े हुए गोबर की खाद में ट्राइकोडरमा मिलाकर एक हफ्ते छांव में रखकर उसे भी खेत में बुरक कर तुरंत मिट्टी में मिला देना चाहिए। दीमक के प्रकोप वाले इलाकों में क्लोरो पायरी फास 20 ईसी की  ढाई लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर 20 किलोग्राम बालों में मिलाकर प्रत्येक के किधर से मिट्टी में मिला दें।

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