भिंडी के रोग - रोगों के नाम, लक्षण और नियंत्रण के उपाय

Published on: 03-May-2025
Updated on: 03-May-2025
Fresh okra with flower on plant
फसल बागवानी फसल भिंडी

भिंडी की खेती भारत में एक महत्वपूर्ण कृषि व्यवसाय है, जिसे विभिन्न क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर किया जाता है। मुख्य रूप से इसे खरीफ के मौसम में उगाया जाता है। 

इस फसल की अच्छी पैदावार के लिए उपजाऊ मिट्टी, उपयुक्त मौसम और अनुकूल प्राकृतिक परिस्थितियाँ आवश्यक होती हैं। भिंडी उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है।

भिंडी की बुवाई आमतौर पर मार्च से जून के बीच होती है और फसल जुलाई से सितंबर तक पककर तैयार हो जाती है।

भिंडी की खेती में प्रमुख रोग और उनके नियंत्रण उपाय

 1. डैम्पिंग ऑफ (Damping Off)

यह रोग बीज बोने के तुरंत बाद दिखाई देता है। ठंडा और नम मौसम, भारी मिट्टी, अधिक नमी और अत्यधिक भीड़ इस रोग को बढ़ावा देते हैं।  

इस रोग में बीज अंकुरित नहीं होते या अंकुर निकलने के बाद मर जाते हैं। रोगग्रस्त तनों पर मिट्टी की सतह के पास घाव बनते हैं जिससे पौधे गिर जाते हैं।

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नियंत्रण उपाय:

  • अत्यधिक सिंचाई से बचें।
  • बीजोपचार करें: ट्राइकोडर्मा विराइड (3-4 ग्राम/किलो बीज) या थीरम (2-3 ग्राम/किलो बीज) का उपयोग करें।
  • मिट्टी को डाइथेन एम-45 (0.2%) या बाविस्टिन (0.1%) से उपचारित करें।
  • नियमित निरीक्षण करें और प्रभावित पौधों को नष्ट करें।

2. येलो वेन मोज़ेक वायरस (Yellow Vein Mosaic Virus)

इस रोग में पत्तियों की नसें पीली और मोटी हो जाती हैं। गंभीर मामलों में पत्तियाँ पीली, छोटी हो जाती हैं और पौधा बौना रह जाता है। फल छोटे, विकृत और कम मूल्य के होते हैं।

नियंत्रण उपाय:

  • 5% नीम बीज गिरी अर्क या अदरक-लहसुन-मिर्च अर्क का छिड़काव करें।
  • खरपतवार और जंगली मेज़बानों को नष्ट करें।
  • संक्रमित पौधों को हटाकर जला दें।
  • गर्मी में रोपण से बचें।
  • रोग-प्रतिरोधी किस्में लगाएँ जैसे परभणी क्रांति, अर्का अनामिका, वीआरओ-5, वीआरओ-6।

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3. फ्यूज़ेरियम विल्ट (Fusarium Wilt)

यह रोग पौधों को मुरझा देता है, जो शुरुआत में अस्थायी होता है पर बाद में स्थायी हो जाता है। पत्तियाँ पीली होकर गिरने लगती हैं और अंततः पौधा सूख जाता है।

नियंत्रण उपाय:

  • 10 दिन के अंतराल पर डाइमेथोएट (0.05%) या ऑक्सीडेमेटन मिथाइल (0.02%) का छिड़काव करें।
  • खनिज तेल (2%) का भी उपयोग करें।
  • बुवाई के समय कार्बोफ्यूरान 1 किलो/हेक्टेयर की दर से मिलाएँ।
  • प्रतिरोधी किस्मों जैसे अर्का अनामिका व अर्का अभय का उपयोग करें।

4. पाउडरी मिल्ड्यू (Powdery Mildew)

यह रोग विशेष रूप से पुरानी पत्तियों और तनों पर सफेद चूर्ण जैसे धब्बों के रूप में दिखता है। पत्तियों के झड़ने के कारण उपज में गिरावट आती है। आर्द्रता और भारी ओस इसके प्रसार को बढ़ावा देती हैं।

नियंत्रण उपाय:

  • अकार्बनिक सल्फर (0.25%) या डिनोकैप (0.1%) का 15 दिनों के अंतराल पर 3-4 बार छिड़काव करें।

Q- भिंडी की खेती में डैम्पिंग ऑफ रोग क्या है और इसके लक्षण क्या हैं?

उत्तर: डैम्पिंग ऑफ एक फफूंद जनित रोग है जो बीज अंकुरण के तुरंत बाद होता है। इसके लक्षणों में बीजों का अंकुरित न होना, छोटे पौधों का गिरना और तनों पर मिट्टी के पास घाव दिखाई देना शामिल है।

Q-येलो वेन मोज़ेक वायरस से बचाव के उपाय क्या हैं?

उत्तर: 5% नीम अर्क या घरेलू कीटनाशक छिड़कें और संक्रमित पौधों को नष्ट करें साथ ही  रोग-प्रतिरोधी किस्में जैसे परभणी क्रांति और अर्का अनामिका लगाएँ।

Q-फ्यूज़ेरियम विल्ट रोग के लक्षण क्या हैं?

उत्तर: इस रोग में भिंडी के पौधे मुरझा जाते हैं। शुरुआत में मुरझाना अस्थायी होता है, लेकिन धीरे-धीरे स्थायी हो जाता है। पत्तियाँ पीली होकर गिरती हैं और पौधा सूख जाता है।

Q-भिंडी में पाउडरी मिल्ड्यू रोग को नियंत्रित करने के उपाय क्या हैं?

उत्तर: डिनोकैप या अकार्बनिक सल्फर का 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें साथ ही नमी नियंत्रण रखें और नियमित निरीक्षण करें।