सरसों की खेती में लगने वाले प्रमुख रोग एवं उनके प्रभावी रोकथाम उपाय

Published on: 23-Dec-2025
Updated on: 23-Dec-2025

सरसों की खेती मुख्य रूप से रबी मौसम में की जाती है और यह भारत की एक प्रमुख तिलहनी फसल है। सरसों की फसल को अच्छे विकास और अधिक उपज के लिए ठंडे तापमान की आवश्यकता होती है। हालांकि, सरसों की खेती में किसानों को कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें फसल में लगने वाले रोग सबसे बड़ी समस्या माने जाते हैं। यदि इन रोगों पर समय रहते ध्यान न दिया जाए, तो फसल की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों पर बुरा असर पड़ता है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।

यदि किसान फसल की नियमित निगरानी करते रहें और शुरुआती अवस्था में ही रोग के लक्षण पहचान लें, तो इन बीमारियों की रोकथाम संभव है। उचित समय पर बीज उपचार, संतुलित खेती प्रबंधन और सही दवाओं का प्रयोग करके सरसों की फसल को रोगों से सुरक्षित रखा जा सकता है। इस लेख में हम सरसों की खेती में लगने वाले प्रमुख रोगों और उनकी प्रभावी रोकथाम के तरीकों के बारे में विस्तार से जानकारी दे रहे हैं, जो हर सरसों उत्पादक किसान के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

सरसों की खेती में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम

सरसों की खेती के दौरान किसानों को कई प्रकार की फफूंद जनित बीमारियों का सामना करना पड़ता है। ये रोग मुख्य रूप से बीज, मिट्टी और अधिक नमी के कारण फैलते हैं। यदि सही समय पर इनका नियंत्रण न किया जाए, तो फसल की उपज में भारी गिरावट आ सकती है। सरसों की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम निम्नलिखित हैं –

1. सरसों का सफेद रोली (White Rust) रोग

सफेद रोली रोग सरसों की खेती के लिए एक बहुत ही हानिकारक रोग है। यह रोग बीज जनित और मिट्टी जनित दोनों होता है। इस बीमारी के लक्षण सामान्यतः बुवाई के 30 से 40 दिन बाद दिखाई देने लगते हैं। सबसे पहले पत्तियों की निचली सतह पर सफेद रंग के उभरे हुए फफोले बनते हैं, जबकि पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीले रंग के धब्बे नजर आने लगते हैं।

जब रोग अधिक गंभीर हो जाता है, तो पत्तियों की दोनों सतहों पर सफेद फफोले फैल जाते हैं। ये फफोले फटने पर सफेद चूर्ण पत्तियों पर बिखर जाता है और धीरे-धीरे पीले धब्बे पूरी पत्ती को ढक लेते हैं। इस रोग का असर केवल पत्तियों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि फूल और फलियाँ भी पूरी तरह खराब हो जाती हैं, जिससे फसल की उपज में भारी कमी आ जाती है।

सरसों का सफेद रोली रोग का नियंत्रण कैसे करें?

  • सरसों की बुवाई अक्टूबर के पहले पखवाड़े में करें। 
  • बुवाई से पहले बीजों को ट्राइकोडर्मा पाउडर 8–10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या मेटालेक्सिल (एप्रोन 36 एस.डी.) 6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें।
  • फसल में 55–60 दिन बाद या रोग के लक्षण दिखाई देने पर रिडोमील एम.जेड 2% का छिड़काव करें।
  • आवश्यकता पड़ने पर 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव दोहराएं।

2. अंगमारी (Alternaria Blight) रोग

अंगमारी रोग सरसों की पत्तियों को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। इस बीमारी में पत्तियों पर कत्थई-भूरे रंग के उभरे हुए धब्बे दिखाई देते हैं, जिनके किनारे पीले रंग के होते हैं। ये धब्बे देखने में आंख के समान प्रतीत होते हैं।

जब रोग उग्र रूप धारण कर लेता है, तो ये धब्बे आपस में मिलकर बड़े हो जाते हैं। इसके कारण पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं और धीरे-धीरे गिरने लगती हैं। पत्तियों के झड़ने से पौधे की बढ़वार रुक जाती है और प्रकाश संश्लेषण प्रभावित होता है, जिससे अंततः उपज में कमी आती है।

अंगमारी रोग का नियंत्रण कैसे करें?

  • बीजों को थायरम 75 WP 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या ट्राइकोडर्मा पाउडर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें।
  • 100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में 10 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा हरजेनियम मिलाकर 15 दिन तक ढककर रखें।
  • बुवाई से पहले इस खाद को खेत में छिड़कें और हल्की सिंचाई कर दें।

3. स्केलेरोटीनिया तना सड़न रोग

स्केलेरोटीनिया तना सड़न सरसों की खेती का सबसे खतरनाक रोग माना जाता है। यह रोग बीज और मिट्टी दोनों के माध्यम से फैलता है। इसके शुरुआती लक्षण तने पर लंबे धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जिन पर सफेद रंग का कवक जाल नजर आता है।

रोग के उग्र होने पर तना फट जाता है और पूरा पौधा मुरझाकर सूख जाता है। संक्रमित पौधों पर काले रंग के गोल कवक कण (स्केलेरोशिया) दिखाई देते हैं। यह रोग अधिक नमी वाली परिस्थितियों में तेजी से फैलता है और पूरी फसल को भारी नुकसान पहुंचा सकता है।

स्केलेरोटीनिया तना सड़न रोग का नियंत्रण कैसे करें?

  • बुवाई के लिए हमेशा रोग-मुक्त बीज का ही उपयोग करें।
  • बुवाई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम + मेन्कोजेब (साफ) 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या ट्राइकोडर्मा पाउडर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचार करें।
  • खड़ी फसल में 50–60 दिन बाद या रोग के लक्षण दिखाई देने पर कार्बेन्डाजिम 12% + मेन्कोजेब 63% के मिश्रण का 0.2% घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • आवश्यकता पड़ने पर 10 दिन के अंतराल पर दोबारा छिड़काव करें।
  • रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर खेत से बाहर निकालकर नष्ट कर दें।

सरसों की खेती में लगने वाले रोग यदि समय पर नियंत्रित न किए जाएं, तो किसानों को भारी नुकसान हो सकता है। लेकिन समय पर बीज उपचार, सही बुवाई समय, खेत में स्वच्छता और वैज्ञानिक तरीके से दवाओं के प्रयोग द्वारा इन रोगों से बचाव संभव है। नियमित निगरानी और रोग के शुरुआती लक्षणों की पहचान करके किसान अपनी सरसों की फसल को स्वस्थ रख सकते हैं। सही प्रबंधन अपनाकर सरसों की खेती से अधिक उपज और बेहतर मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है।

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