ज्वार की बुवाई, भूमि तैयारी व उन्नत किस्मों की जानकारी

By: Merikheti
Published on: 05-Apr-2024

भारत के अंदर ज्वार की खेती आदि काल से होती आ रही है। भारत में ज्वार की खेती मोटे दाने वाली अनाज फसल और हरे चारे के रूप में की जाती है। 

पशुओं के चारे के तोर पर ज्वार के सभी भागों का उपयोग किया जाता है। यह एक तरह की जंगली घास है, जिसकी बाली के दाने मोटे अनाजों में शुमार किए जाते हैं। ज्वार (संस्कृत रूयवनाल, यवाकार या जूर्ण) एक प्रमुख फसल है। 

ज्वार की पैदावार कम बारिश वाले इलाकों में अनाज और चारा दोनों के लिए बोई जाती हैं। ज्वार जानवरों का एक विशेष महत्वपूर्ण एवं पौष्टिक चारा है। 

भारत में यह फसल का उत्पादन करीब सवा चार करोड़ एकड़ जमीन में किया जाता है। ज्वार भी बहुत तरह की होती है, जिनके पौधों में कोई खास भेद नजर नहीं पड़ता है। ज्वार की फसल दो तरह की होती है, एक रबी, दूसरी खरीफ। 

मक्का भी इसी का एक प्रकार है। इसलिए कहीं-कहीं मक्का भी ज्वार ही कहलाता है। ज्वार को जोन्हरी, जुंडी आदि नामों से भी जानते हैं। ज्वार की खेती सिंचित और असिंचित दोनों इलाकों पर आसानी से की जा सकती है। 

अगर हम अपने भारत की बात करें, तो ज्वार की खेती खरीफ की फसलों के साथ की जाती है। ज्वार के पौधे 10 से 12 फिट की लंबाई तक के हो सकते हैं। इनको हरे रूप में कई बार काटा जा सकता है। 

इसके पौधे को किसी खास तापमान की आवश्यकता नही होती। अधिकांश किसान भाई इसकी खेती हरे चारे के तोर पर ही करते हैं। परंतु, कुछ किसान भाई इसे व्यापारिक रूप से भी उगाते हैं। 

अगर आप भी ज्वार की व्यवसायिक खेती करने का मन बना रहे हैं। हम आपको इसकी बुवाई, भूमि तैयारी व उन्नत किस्मों से जुड़ी जरूरी जानकारी प्रदान करेंगे।

अच्छी उपज के लिए ज्वार की बुवाई कब करें ?

भारत के अंदर ज्वार की खेती खरीफ की फसलों के साथ की जाती है। अब ऐसे में ज्वार के बीज की रोपाई अप्रैल से मई माह के अंत तक की जानी चाहिए। भारत में ज्वार को सिंचाई करके वर्षा से पहले एवं वर्षा शुरू होते ही इसकी बोवाई की जाती है। 

अगर किसान बरसात से पहले सिंचाई करके यह बो दी जाए, तो फसल और अधिक तेजी से तैयार हो जाती है। ज्वार के बीजों को अंकुरण के समय सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है। 

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उसके बाद पौधों को विकास करने के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान उपयुक्त होता है। परंतु, इसके पूरी तरह से विकसित पौधे 45 डिग्री तापमान पर भी सहजता से विकास कर लेते हैं।

ज्वार की खेती के लिए कौन-सी मिट्टी सबसे अच्छी है ?

ज्वार एक खरीफ की मोटे आनाज वाली गर्मी की फसल है। यह फसल 45 डिग्री के तापमान को झेलकर बड़ी आसानी से विकास कर सकती है। वैसे तो ज्वार की फसल को किसी भी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है। 

लेकिन, अधिक मात्रा में उपज प्राप्त करने के लिए इसकी खेती उचित जल निकासी वाली चिकनी मृदा में करें। इसकी खेती के लिए जमीन का पीएच मान 5 से 7 के बीच होना चाहिए। 

इसकी खेती खरीफ की फसल के साथ की जाती है। उस समय गर्मी का मौसम होता है, गर्मियों के मौसम में बेहतर ढ़ंग से सिंचाई कर शानदार उपज हांसिल की जा सकती है।

बेहतर उपज के लिए ज्वार की उन्नत किस्में 

आज के समय में ज्वार की महत्ता और खाद्यान्न की बढती हुई मांग को मद्देनजर रखते हुए कृषि वैज्ञानिकों ने ज्वार की ज्यादा पैदावार और बार-बार कटाई के लिए नवीनतम संकर और संकुल प्रजातियों को विकसित किया है। ज्वार की नवीन किस्में तुलनात्मक बौनी हैं एवं उनमें अधिक उपज देने की क्षमता है। 

अनुमोदित दाने के लिए ज्वार की उन्नतशील किस्में सी एस एच 5, एस पी वी 96 (आर जे 96), एस एस जी 59 -3, एम पी चरी राजस्थान चरी 1, राजस्थान चरी 2, पूसा चरी 23, सी.एस.एच 16, सी.एस.बी. 13, पी.सी.एच. 106 आदि ज्वार उन्नत किस्में है। इन किस्मों की खेती हरे चारे और दाने के लिए की जाती है। 

ज्वार की यह किस्में 100 से 120 दिन के समयांतराल में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इन किस्में से किसानों को 500 से 800 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के अनुरूप पशुओं के लिए हरा चारा हो जाता है। 

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90 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सूखा चारा प्राप्त हो जाता है। साथ ही, 15 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से दाने हांसिल हो सकते हैं।

ज्वार की बुवाई के लिए खेत की तैयारी 

ज्वार की खेती के लिए शुरुआत में खेत की दो से तीन गहरी जुताई कर उसमें 10 से 12 टन उचित मात्रा में गोबर की खाद डाल दें। उसके बाद फिर से खेत की जुताई कर खाद को मिट्टी में मिला दें। 

खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी चलाकर खेत का पलेव कर दे। पलेव के तीन से चार दिन बाद जब खेत सूखने लगे तब रोटावेटर चलाकर खेत की मिट्टी को भुरभुरा बना लें। 

उसके बाद खेत में पाटा चलाकर उसे समतल बना लें। ज्वार के खेत में जैविक खाद के अलावा रासायनिक खाद के तौर पर एक बोरा डी.ए.पी. की उचित मात्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में दें। 

ज्वार की खेती हरे चारे के रूप में करने पर ज्वार के पौधों की हर कटाई के बाद 20 से 25 किलो यूरिया प्रति हेक्टेयर के हिसाब से समय समय पर खेत में देते रहें।

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