आज के आधुनिक युग में जहां हर चीज आधुनिक हो गयी हैं। खेती भी आधुनिक हो गयी हैं जिससे की खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों को अधिक इस्तेमाल हो रहा हैं।
जिससे उत्पादन तो अधिक हो गया हैं परंतु भूमि की उपजाऊ शक्ति कम होती जा रहीं हैं। किसानों को ऐसे में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना चाहिए।
आज यहां हम आपको शून्य बजट प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी देंगे।
शून्य बजट प्राकृतिक खेती को इंग्लिश में Zero Budget Natural Farming के नाम से जाना जाता हैं। जीरो बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) एक प्रकार की खेती है जिसमें रसायनों (जैसे रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक या महंगे बीज) का उपयोग नहीं किया जाता है बल्कि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके खेती की जाती है। शून्य बजट प्राकृतिक खेती उद्देश्य किसानों को कर्ज़ मुक्त खेती के लिए प्रोत्साहित करना और उत्पादन लागत को कम करना हैं।
ये भी पढ़ें: हाइड्रोपोनिक खेती विधि क्या है? भारत में हाइड्रोपोनिक्स के लाभ
जीरो बजट प्राकृतिक खेती के मुख्य 4 स्तम्भ हैं। जो पूरी तरह से प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित हैं। इन स्तम्भों का उद्देश्य खेती को बाहरी निवेश से मुक्त करना और प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग करके फसलों का उत्पादन करना है। ये चार स्तम्भ इस प्रकार हैं:
जीवामृत गाय के गोबर, गौमूत्र, गुड़, बेसन और मिट्टी को मिलाकर तैयार किया जाने वाला मिश्रण है, जो प्राकृतिक उर्वरक का काम करता है और मिट्टी में आवश्यक सूक्ष्मजीवों को बढ़ावा देता है और फसलों की बढ़वार के लिए पोषक तत्व प्रदान करता है।
ये भी पढ़ें: मल्चिंग क्या होती है - इससे किसानों को क्या लाभ होता है?
यह रासायनिक उर्वरकों का प्राकृतिक विकल्प है। जीवामृत मिट्टी को उपजाऊ बनाता है और पौधों को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराता है।
जीवामृत बनने के लिए सामग्री निम्नलिखित है - 10 किलो देशी गाय का मूत्र, 8 से 10 लीटर देशी गाय का मूत्र, 1.5 से 2 किलो बेसन, 180 लीटर पानी, 500 ग्राम मिट्टी आदि।
बीजामृत बीजों को तैयार करने के लिए उपयोग किया जाने वाला मिश्रण है, जिसमें गाय का गोबर, गौमूत्र, नीम की पत्तियां आदि होते हैं। यह बीजों को रोगों से बचाता है और उनकी अंकुरण क्षमता बढ़ाता है।
इस उपचार का इस्तेमाल नए पौधों के बीज रोपण के दौरान किया जाता है और बीज अमृत की मदद से नए पौधों की जड़ों को कवक मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियों और बीजों की बीमारियों से बचाया जाता है।
बीजामृत को बनाने के लिए 5 किलो गाय का गोबर, 5 लीटर गाय का मूत्र, 50 ग्राम बुझा हुआ चुना, 20 लीटर पानी और मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है।
किसी भी फसल के बीजों को बीजने से पहले उन बीजों में आप बीज अमृत अच्छी तरह लगा दे और यह लगाने के बाद उन बीजों को कुछ समय सुकने के लिए छोड़ दे।
इन बीजों पर लगा बीज अमृत का मिश्रण सूख जाने के बाद आप इनको जमीन में बीज सकते हो।
खेत की मिट्टी को घास या पत्तियों से ढक कर रखा जाता है, ताकि नमी बनी रहे और खरपतवार की समस्या कम हो। इसके अलावा जमीन से कार्बन उत्सृजन को रोकने और भूमि की जैविक कार्बन क्षमता को बढ़ाने में मदद मिलती है।
ये भी पढ़ें: मल्टी फार्मिंग - लाभ, तकनीक और उत्पादन बढ़ाने के उपाय
प्राकृतिक खेती में इस्तेमाल होने वाली मल्चिंग-
खेती के दौरान मिट्टी की ऊपरी तैय को बचाने के लिए मिट्टी मल्च का प्रयोग किया जाता है और मिट्टी के चारों ओर करक लगाया जाता है। (मिट्टी की जल प्रतिधारण क्षमता को बेहतर बनाने के लिए)
तूड़ी या स्ट्रा मल्च सब्ज़ी की खेती में सबसे अधिक उपयोग किया जाता है क्योंकि यह सबसे अच्छा मलच सामग्री है।
चावल की तूड़ी और कनक की तूड़ी को सब्ज़ी की खेती के दौरान उपयोग करके किसान मिट्टी की गुणवत्ता को सुधार सकता है और अच्छी सब्ज़ी की फसल पा सकता है।
लाइव मल्चिंग प्रक्रिया में एक खेत में कई प्रकार के पौधे एक साथ लगाए जाते हैं। और यह सब एक पौधे को बढ़ावा देते हैं। उदाहरण के लिए, लौंग और काफ़ी के पेड़ों को पूरी सूरज की रोशनी चाहिए।
वाफसा (मिट्टी में नमी और हवा का संतुलन): यह तकनीक मिट्टी में हवा और नमी का संतुलन बनाए रखने के लिए उपयोग की जाती है, जिससे पौधों की जड़ें बेहतर तरीके से पोषक तत्व ग्रहण कर पाती हैं।
वाफसा के होने से फसल न तो अधिक वर्षा - तूफान में गिरती है और न ही सूखे की स्थिति में खराब होती है।
ये भी पढ़ें: भारत में जैविक खेती के फायदे, चुनौतियाँ और भविष्य