जो किसान चाहें कम लागत में अच्छी कमाई, ऐलोवेरा की खेती में है भलाई

By: MeriKheti
Published on: 16-Jul-2021

किसान भाइयों यदि आप अपनी थोड़ी खराब भूमि या बाग बगीचे में कम लागत करके अच्छी कमाई करना चाहते हों तो आज के समय में ऐलोवेरा यानी घीग्वार अथवा घृतकुमारी की खेती से अच्छी और कोई खेती नहीं है। अब तक इसके खेत की मेड़ पर उगने वाली घास या जानवरों से बचाने के लिए मेड़ों में उगाया जाता था लेकिन जब से योगा और आयुर्वेदिक दवाओं का प्रचार प्रसार बढ़ा है तब से ऐलोवेरा को आयुर्वेदिक व कॉस्मेटिक दवाओं के कच्चे पदार्थ के रूप में पहचाना गया है। इसके बाद तो इसकी मांग पूरे विश्व में इतनी अधिक बढ़ गयी है कि अब इसकी भी परम्परागत तरीके से खेती की जाने लगी है।अब तो आयुर्वेदिक और कॉस्मेटिक कंपनियों अपनी मनचाही फसल के लिए किसानों से खेती के लिस कान्ट्रेक्ट करतीं हैं। इससे किसानों को फसल बेचने के लिए परेशान नहीं होना पड़ता है। साथ ही किसानों को अच्छी खासी आमदनी होती है।

हर मर्ज की दवा में उपयोग होता है ऐलावेरा

एलोवेरा की खेती ऐलोवेरा अब व्यवसायिक या नकदी फसल बन गयी है। ऐलोवेरा को आयुर्वेद में संजीवनी का पौधा कहा जाता है। ऐलोवेरा का उपयोग मनुष्य के सिर से लेकर पांव तक होने वाली छोटी-बड़ी सभी बीमारियों के उपचार में बनने वाली दवाइयों में होता है। मिनरल्स, विटामिन्स से युक्त ऐलोवेरा को पौष्टिक आहार के रूप में किया जा सकता है। इससे कमजोरी दूर होती है। कोरोना में इम्युनिटी बढ़ाने के लिए खूब इस्तेमाल किया गया है। बवासीर, मधुमेह, गर्भाशय रोगों, पेट के सभी रोगों, जोड़ों की बीमारियों, मुंहासे, रूखी त्वचा, धूप से झुलसी हुई त्वचा, झुर्रियों , चेहरे के दाग-धब्बों, आंखों के काले घेरों, फटी एड़ियों, जलने-कटने, अंदरूनी चोटों, हृदय रोग, ब्रेस्ट कैंसर, आंतों की सूजन, बालों को सुंदर बनाने, वजन घटाने, चर्मरोग, सहित अनेक रोगों में लाभकारी होने के कारण आयुर्वेदिक कंपनियां और कास्मेटिक प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियां इसकी सबसे बड़ी ग्राहक हैं। वर्तमान समय में जितनी इसकी मांग है उतना उत्पादन नहीं हो पा रहा है। इसलिये किसान भाइयों इस समय इसकी खेती करना बहुत ही फायदेमंद सौदा है।

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ऐलोवेरा से क्या-क्या बनता है

ऐलोवेरा के जूस को तो सारी दुनिया जानती है लेकिन इससे हेयर स्पा, जेल, बॉडी लोशन, शैंम्पू, स्किन जैल, ब्यूटी क्रीम, हेयर जैल, फेशियल फोम, बनता है। इसके अलावा अनेक आयुर्वेदिक दवाओं में भी इसका उपयोग किया जाता है। साथ ही लोग हरे पौधे से गूदा निकाल कर सीधे भी इस्तेमाल करके अनेक बीमारियों का घरेलू उपचार भी कर लेते हैं। इसका प्रयोग करके मच्छर से भी बचाव किया जा सकता है।

ऐलोवेरा की खेती कैसे की जाती है

एलोवेरा की खेती कैसे करें इस चमत्कारिक पौधे की खेती के बारे में जानते हैं कि किस प्रकार और कब इसकी खेती की जा सकती है। इसकी खेती की खास बात यह है कि एक बार बुआई करने के बाद आप लगातार तीन साल तक फसलों की कटाई कर सकते हैं। साल में कम से कम दो बार फसल की कटाई होती है। इससे किसानों को कम लागत में अधिक लाभ होता है।

ऐलोवेरा के खास लाभ

  1. किसान भाई अपनी परती की भूमि व असिंचित भूमि में भी अतिरिक्त खर्चा किये बिना इसकी खेती कर सकते हैं
  2. इसकी खेती के लिए खाद, कीटनाशक व सिंचाई की विशेष आवश्यकता नहीं होती है
  3. ऐलोवेरा को कोई जानवर नहीं खाता है। इसलिये इसकी रखवाली की भी जरूरत नहीं होती है।
  4. पहले साल की अपेक्षा दूसरे व तीसरे साल में उत्पादन काफी बढ़ जाता है और उससे किसान भाइयों की आमदनी अधिक होती है।
  5. जो किसान भाई इस की खेती के बाद व्यवसाय करना चाहें तो वे जूस और पाउडर का प्लांट लगाकर अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं।

मिट्टी व जलवायु

वैसे तो ऐलोवेरा की खेती किसी भी भूमि में की जा सकती है, केवल जलभराव से इसकी फसल को नुकसान होता है। वैसे इसकी फसल के लिए काली उपजाऊ मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। लेकिन पहाड़ी, बलुई दोमट, दोमट बलुई मिट्टी में भी इसकी फसल ली जा सकती है। पीएच मान 6 से लेकर 9 तक  वाली मृदा में भी ऐलोवेरा की खेती की जा सकती है। कम उपजाऊ वाली भूमि पर भी ऐलोवेरा की खेती आसानी से की जा सकती है। ऐलोवेरा यानी ग्वार पाठा के लिए शुष्क व उष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती आमतौर पर शुष्क क्षेत्र में न्यूनतम वर्षा में की जाती है। अत्यधिक ठंड इस पौधे को को नुकसान पहुंचा सकता है।

खेत की तैयारी कैसे करें

पहली बार गहरी जुताई करके खेत को खुला छोड़ देना चाहिये। इसके बाद प्रति हेक्टेयर 10 से 15 टन सड़ी गोबर की खाद डाल देना चाहिये। इसके अलावा जो किसान भाई इसकी उन्नत खेती करना चाहते हों तो वे इसके साथ 120 किग्रा यूरिया 150 किग्रा फास्फोरस व 33 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर इसी समय डाल दें और उसके बाद एक और जुताई कर दें। इसके बाद आपका खेत बुआई के लिए तैयार हो जायेगा।

कब और कैसे करें ऐलोवेरा की बुआई या रोपाई

जुताई और पाटा लगाने के बाद समतल खेत में क्यारी बनायें मेड़ बनाकर 50-50 सेमी की दूरी पर उसमें पौधों को रोपित करें। वैसे निराई गुड़ाई करने की सुविधा चाहते हों तो दो लाइनों के बीच एक मीटर की जगह छोड़ देनी चाहिये। यदि आप सघन खेती करते हैं तो प्रत्येक हेक्टेयर में 45 हजार से 50 हजार तक पौधे लगाये जा सकते हैं। ऐलोवेरा की खेती के लिए जुलाई के अंतिम सप्ताह से अगस्त माह में करना सबसे उपयुक्त समय होता है। वैसे जलवायु और मिट्टी की विभिन्नता में इसकी फसल अलग-अलग जगह अलग-अलग समय में इसकी बुआई की जा सकती है।

सिंचार्ई प्रबंधन कैसे करें

एलोवेरा के पौधों की रोपाई करने के बाद पानी देना अच्छा रहता है। इसकी खेती में अधिक पानी की आवश्यकता नही होती है। साल भर तीन या चार बार सिंचाई करना ही पर्याप्त होता है। इसकी खेती में यदि ड्रिप या स्प्रिकलर से सिंचाई की जाये तो अधिक फायदा होता है। छिड़Þकाव वाली सिंचाई से इसकी पत्तियों में जेल का उत्पादन अधिक हो सकता है और उसकी क्वालिटी भी अच्छी होती है।

ग्वार पाठा खाद प्रबंधन

ग्वार पाठा की खेती में खाद का प्रयोग बुआई से पहले ही गोबर की खाद और उर्वरकों का किया जाता है। उसके बाद किसान भाई चाहें तो अधिक लाभ लेने के लिए नाइट्रोजन का छिड़काव साल में तीन बार कर सकते हैं।

रोग व कीट प्रबंधन

  1. ऐलोवेरा की खेती में कीट और रोग बहुत कम लगते देखे गये हैं।कभी-कभी पत्तियों और तनों के सड़ने वाली एवं धब्बों वाली बीमारियों का प्रकोप देखा जाता है। इस बीमारी का पता लगने पर मैंकोजेब, डाइथेन एम-45 और रिडोमिल को दो से ढाई ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें अवश्य ही लाभ मिलेगा।
  2. ऐलोवेरा के पौधों को बीमारी से बचाने के लिए उसकी जड़ों में मिट्टी हमेशा चढ़ÞÞÞाते रहना चाहिये और खेत को सूखने नहीं दिया जाना चाहिये।
  3. बरसात में इसकी खेती की विशेष देखभाल करने की जरूरत है। खेत में पानी भरने पर उसको निकालने का तत्काल प्रबंध करना चाहिये। ऐसा नहीं करने पर जड़ में काला चिकना पदार्थ लगन से पौधा गलने लगता है।

ग्वार पाठा के फसल की कटाई

एलोवेरा की फसल की कटाई पौधे की रोपाई के बाद पहली कटाई आठ से दस महीने के बीच की जा सकती है। पौधे की ऊपरी एवं नई पत्तियों की जगह निचली व पुरानी पत्तियों को पहले काटना चाहिये। इसके डेढ माह बाद फिर से कटाई की जा सकती है। इस प्रकार एक खेत में एक बार की बुआई के बाद तीन साल तक आठ से बारह बार कटाई की जा सकती है। पहली कटाई में 50 से 60 टन प्रति हेक्टेयर ताजी पत्तियां मिलती है। दूसरे साल में 15 से 20 प्रतिशत अधिक पत्तियां मिलतीं हैं और तीसरे साल में भी इसी प्रकार अधिक पत्तियां मिलतीं हैं। किसान भाई चौथे साल भी फसल का लाभ ले सकते हैं लेकिन तीसरे साल से 20 प्रतिशत फसल कम मिलेगी। इसलिये अधिकतर किसान भाई तीन साल के बाद नयी खेती करते हैं।

कटाई के बाद प्रबंधन व प्रसंस्करण

खेतों से निकाली गई पत्तियों की सफाई करनी पड़ सकती है। उसे स्वच्छ पानी से धोना चाहिये। पत्तियों के निचले सिरे को काट कर साफ कर लेना चाहिये। उसके बाद इसे कटी फसल को कुछ समय के लिए यूं ही खुला छोड़ दें त पील रंग का गाढा रस निकलता है। इस रस को इकट्ठा करके वाष्पीकरण विधि से उबाल कर घन रस क्रिया से सुखा लेते हैं। इस सूखे हुए पदार्थ को मुसब्बर, अदनी, बारवेडोज एलोज आदि नाम से विश्व की मार्केट में बेचा जाता है। इससे किसानों का अधिक लाभ मिल सकता है। इससे किसान भाइयों को प्रति हेक्टेयर 8 लाख रुपये की आमदनी हो सकती है। यदि किसान भाई चाहें तो उनकी पत्तियां भी सीधे बाजार में बेची जा सकतीं हैं। उससे कम लाभ होगा फिर भी प्रति हेक्टेयर 3 से 5 लाख रुपये तक की आमदनी हो सकती है।

व्यापार भी है संभव

ऐलोवेरा की खेती करने वाले किसान भाई यदि अधिक आय चाहते हैं तो उन्हें इसका जूस व पाउडर बनाने का प्लांट लगाना चाहिये। इस तरह के प्लांट लगाने के लिए सरकारों से आर्थिक मदद  लोन व सब्सिडी के रूप में मिल सकती है। इससे किसानों की आय बहुत अधिक बढ़ सकती है।    

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