आम की खेती: आमदनी अच्छी खर्चा कम

By: MeriKheti
Published on: 24-Jul-2020

आम का नाम आते ही मन में एक स्वादिष्ट, रसभरे फल की आकृति मन में बनती है वैसे भी आम को फलों का राजा बोला जाता है। आम को कई तरह से हम अपने खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए प्रयोग में लाते हैं जैसे आमचूर्ण, आमपापड, आम का अचार, आमरस, आम का शेक, आम की मीठी सब्जी (लोंजी) इत्यादि. तभी तो आम को फलों का राजा बोला जाती है. आम का उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार ने आम महोत्सब मनाना शुरू किया जो की शायद ही किसी अन्य फल का कोई महोत्सब होता हो। 

आम की खेती

आम सामान्य और खास, बच्चे और बूढ़े सभी की खास पसंद होता है। आम को गर्मी में खाने से लू से बचा जा सकता है तथा इसके पना पीने से गर्मी में बहुत राहत मिलती है। आम में पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा पाई जाती है तथा ये अपने स्वाद , रूप, रंग से भी लोगों को अपना दीवाना बनता है। इसकी सबसे बड़ी कमी ये है की इसको बाहर किसी पार्टी में इसके खाने की तरह नहीं खाया जा सकता जो की इसकी खासियत है। 

खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

वैसे तो आम की खेती आप किसी भी उपजाऊ जमीन में कर सकते हैं लेकिन दोमट और काली मिट्टी इसके लिए बहुत अच्छी होती है, इसके लिए अच्छी और उपजाऊ शक्ति वाली मिट्टी का होना बहुत आवश्यक है इसको किसी भी क्षेत्र में उगाया जा सकता है। इसको काम उपजाऊ बाली मिटटी में पहले से ही गोबर की बानी हुई खाद को मिटटी के साथ मिलाकर 1X1 के गड्ढे में डाल के या तो पानी डाल देना चाहिए या वर्षा होने का इंतजार करना चाहिए। 

आम लगाने की विधि

Mango Cultivation 

 इसके लिए तापमान भी 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तक चाहिए इसको उगाने के लिए आपको कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना होता है। इसकी पेड़ से पेड़ की दूरी का विशेष ध्यान रखना चाहिए, इसको जून से जुलाई के मध्य लगाना चाहिए। 

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जून के पहले हफ्ते में 1X1 मीटर का गड्ढा खोद के उसमे गोबर की सड़ी हुई खाद मिटटी, यदि दीमक की समस्या हो तो 200 ग्राम क्लोरपाइरीफॉस पाउडर प्रति गड्ढे की दर से गड्ढे भरने से पहले मिट्टी में मिला लेनी चाहिए। इसको पहली बारिश तक खुला छोड़ देना चाहिए तथा बारिश के बाद या पानी लगाने के बाद पेड़ को शाम के समय गड्ढे में रोपित करें।

आम के पेड़ों की देखभाल कैसे करें

Mango Farming

इसके छोटे पेड़ों में पाले का बहुत नुकसान होता है इसके लिए शुष्क वातावरण ज्यादा सही है इसके लिए वर्षा का वार्षिक वितरण अधिक महत्वपूर्ण है फल फूल आने के समय पर मौसम अच्छा होना चाहिए बारिश नहीं होनी चाहिए अगर फल आने के टाइम पर बारिश हो जाती है तो इसके लिए नुकसानदायक होती है उसे फल और फूल झड़ जाते हैं और जब फल लगने के टाइम पर अगर तेज आंधी आ जाए तो उसमें कच्चे फल झड़ जाते हैं। इसके लिए जट्टारी के पास के किसान खेमचंद जी से हमारी बात हुई जिनका आम का बगीचा हैं उन्होंने बताया कि अगर मौसम अच्छा ना हो तो कई बार पूरी की पूरी फसल ही बर्बाद हो जाती है जैसे फूल लगाने के समय में थोड़ी सी हल्की बारिश भी हो जाए तो इनके लिए ज्यादा नुकसानदायक होती है सभी किसान भाइयों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पेड़ की निराई गुड़ाई टाइम से की जाए और कोशिश करें कि पेड़ का आकार छोटा ही रहे बहुत बड़ा ना हो जिससे इस पर फल अच्छे लगते हैं देसी खाद आम के पेड़ के लिए बहुत आवश्यक है क्योंकि इसकी वजह से कई बार आपको रासायनिक खाद की जरूरत नहीं पड़ती है इससे फल स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है.

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 पेड़ के जड़ के पास थोड़ा गड्ढा बनाकर उसमें गोबर और बाकी दीमक नाशक मिला  कर  लगा सकते हैं जब आप पेड़ लगाएं तो दो पेड़ों के बीच में कम से कम 8 से 10 मीटर की दूरी होनी चाहिए उस से क्या होगा, जब आम का पेड़ बड़ा होगा तो उसको फैलने के लिए पूरी जगह चाहिए. आम के पेड़ की देखभाल 3 साल तक बहुत ज्यादा होती है सर्दी में इसे पाले से बचाना होता है तथा गर्मी में इसे लू लगाने से बचाना होता है. इसके लिए समय समय पर आपको पानी देना होता है पानी गर्मी में ठंडक और सर्दी में गर्मी देने का काम करता है.  आम का पेड़ काफी बड़ा होता है और इसके लिए आपको इसको समय समय पर कटिंग करने पड़ेगी जिससे की इसकी फुटोर अच्छी हो तो उसमे फल और फूल भी अच्छा आएगा.

आम की उन्नत किस्में

mango varieties

आम की कुछ उन्नत किस्में ऐसी होती हैं जो कि एक नॉर्मल इंसान को भी पता होती है जैसे, दशहरी:  यह किस्म सबसे मशहूर किस्म है दशहरी आम उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, पंजाब , बिहार में ज्यादा पाया जाता है, और जो सबसे महंगा आम होता है वह अल्फांसो होता है इसकी पैदावार साउथ में होती है अगर हम राज्यबार बात करें  तो उत्तर प्रदेश में दशहरी, लंगड़ा , चौंसा, सफेदा एवं लखनवी इत्यादि. 

हरियाणा- सरोली (बाम्बे ग्रीन), दशहरी, लंगड़ा और आम्रपाली आदि प्रमुख है| 

गुजरात- आफूस, केसर, दशेरी, लंगड़ो, राजापुरी, वशीबदामी, तोतापुरी, सरदार, दाडमियो, नीलम, आम्रपाली, सोनपरी, निल्फान्सो और रत्ना आदि प्रमुख है| 

बिहार- लंगड़ा (कपूरी), बम्बई, हिमसागर, किशन भोग, सुकुल, बथुआ और रानीपसंद आदि प्रमुख है| 

मध्य प्रदेश- अल्फान्सो, बम्बई, लंगड़ा, दशहरी और सुन्दरजा आदि प्रमुख है| पंजाब- दशहरी, लंगड़ा और समरबहिश्त चौसा आदि प्रमुख है| 

बंगाल- बम्बई, हिमसागर, किशन भोग, लंगड़ा जरदालू और रानीपसन्द आदि प्रमुख है| 

महाराष्ट्र- अल्फान्सो, केसर, मनकुराद, मलगोवा और पैरी आदि प्रमुख है| 

उड़ीसा- बैंगनपल्ली, लंगड़ा, नीलम और सुवर्णरेखा आदि प्रमुख है| 

कर्नाटक- अल्फान्सो, बंगलौरा, मलगोवा, नीलम और पैरी प्रमुख है| 

केरल- मुनडप्पा, ओल्यूर और पैरी आदि प्रमुख है| 

आन्ध्र प्रदेश-बैंगनपल्ली, बंगलौरा, चेरुकुरासम, हिमायुद्दीन और सुवर्णरेखा आदि प्रमुख है| 

गोवा- फरनानडीन और मनकुराद प्रमुख है|

आम के रोग:

Mango Disease

आम में दो तरह के रोग होते हैं एक जो पेड़ को ख़राब करते हैं एक जो फल और फूल को नुकसान पहुंचाते हैं. आम के पेड़ में लगाने वाला रोग आम के तने को खोकला करता है. पौधे की उम्र जैसे – जैसे बढ़ते जाती है वैसे – वैसे पेड़ का मुख्य तना खोखला होते जाता है तथा शाखाएं आपस में मिल जाती हैं, तथ बहुत सघन हो जाती हैं आम के ऐसे पौधों में बारिश का पानी खोखली जगह में भर जाता है । जिससे सड़न व गलन कि समस्या उत्पन्न होती है तथा, पौधे कमजोर हो जाते हैं और थोड़ी सी हवा में टूट जाते हैं, ऐसे में उपचार के लिए सबसे पहले सभी अनुत्पादक शाखाओं को हटा देना चाहिए 100 कि.ग्रा. अच्छी पकी हुई गोबर की खाद तथा 2.5 कि.ग्रा. नीम की खली प्रति पौधा देना चाहिए। जिससे अगले सीजन में लगी शाखाओं में वृद्धि होती है

आम के निम्नलिखित रोग होते हैं:

1. फुदका या भुनगा कीट-

Mango Disease

यह कीट आम की फसल को सबसे अधिक क्षति पहुंचाते हैं। इस कीट के लार्वा एवं वयस्क कीट कोमल पत्तियों एवं पुष्पक्रमों का रस चूसकर हानि पहुचाते हैं। इसकी मादा 100-200 तक अंडे नई पत्तियों एवं मुलायम प्ररोह में देती है और इनका जीवन चक्र 12-22 दिनों में पूरा हो जाता है। इसका प्रकोप जनवरी-फरवरी से शुरू हो जाता है। 

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रोकथाम- इस कीट से बचने के लिए ब्यूवेरिया बेसिआना फफूंद के 0.5 फीसदी घोल का छिड़काव करें। नीम तेल 3000 पीपीएम प्रति 2 मिली प्रति लिटर पानी में मिलाकर, घोल का छिड़काव करके भी निजात पाई जा सकती है। इसके अलावा कार्बोरिल 0.2 फीसदी या क्विनोलफाॅस 0.063 फीसदी का घोल बनाकर छिड़काव करने से भी राहत मिल जाएगी।

2. गाल मीज-

Mango Disease

इनके लार्वा बौर के डंठल, पत्तियों, फूलों और छोटे-छोटे फलों के अन्दर रह कर नुकसान पहुंचाते हैं। इनके प्रभाव से फूल एवं फल नहीं लगते। फलों पर प्रभाव होने पर फल गिर जाते हैं। इनके लार्वा सफेद रंग के होते हैं, जो पूर्ण विकसित होने पर भूमि में प्यूपा या कोसा में बदल जाते हैं। 

रोकथाम- इनके रोकथाम के लिए गर्मियों में गहरी जुताई करना चाहिए। रासायनिक दवा 0.05 फीसदी फोस्फोमिडान का छिड़काव बौर घटने की स्थिति में करना चाहिए।

3. फल मक्खी (फ्रूट फ्लाई)-

Mango Disease

फलमक्खी आम के फल को बड़ी मात्रा में नुकसान पहुंचाने वाला कीट है। इस कीट की सूंडियां आम के अन्दर घुसकर गूदे को खाती हैं जिससे फल खराब हो जाता है। 

रोकथाम- यौनगंध के प्रपंच का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें मिथाइल यूजीनॉल 0.08 फीसदी एवं मेलाथियान 0.08 फीसदी बनाकर डिब्बे में भरकर पेड़ों पर लटका देने से नर मक्खियां आकर्षित होकर मेलाथियान द्वारा नष्ट हो जाती हैं। एक हैक्टेयर बाग में 10 डिब्बे लटकाना सही रहेगा।

कीट का नाम लक्षण नियंत्रण 

मैंगोहापर

फरवरी मार्च में कीट आक्रमण करता है। जिससे फूल-फल झाड़ जाते है एवं फफूँद पैदा होती है। क्विीनालाफास का एक एम.एल दवा एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 

मिलीबग 

फरवरी में कीट टहनियों एवं बौरों से रस चूसते हैं जिससे फूल फल झाड़ जाते है। क्लोरपायरीफास का 200 ग्राम धूल प्रति पौधा भुरकाव करें। 

मालफारर्मेषन 

पौधों की पत्तियां गुच्छे का रूप धारण करती है एवं फूल में नर फूलों की संख्या बड़ पाती है। प्रभावित फूल को काटकर दो एम.एल. नेप्थलीन ऐसटिक एसिड का छिड़काव 15 दिन के अंतर से 2 बार करें।  

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रोकथाम हेतु सावधानियाँ

  1. सिन्थेटिक पाइथाइड दवाओं जैसे साइपरमेथिन, डेल्टामेथ्रिन, फेनवेलरेट आदि को भुनगे की रोकथाम हेतु प्रयोग न करें, क्योंकि इससे परागण कीट एवं अन्य लाभकारी कीट नष्ट हो जाते हैं और भुनगे में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है|
  2. बागों में परागण करने वाले कीटों का संरक्षण करें और मधु मक्खियों की कालोनी रखें|
  3. यदि फूल खिल गये हो तो छिड़काव न करें|
  4. भुनगा तथा पाउडरी मिल्ड्यू के नियंत्रण के लिए तीनों छिड़काव में फफूंद नाशक एवं कीटनाशक दवाओं को मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं|
  5. कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को अन्य दवाओं के साथ न मिलायें|
  6. प्रत्येक छिड़काव के लिए दवा बदल कर घोल बनाये, जिससे कीटों में दवा की प्रतिरोधक क्षमता विकसित न हो|
  7. दवा के घोल में तरल साबुन (टीपॉल) अवश्य मिलायें|
  8. दवा का छिड़काव फब्बारे के रूप में करें तथा सही सान्द्रता का प्रयोग करें|
  9. अच्छी गुणवत्ता वाले कीट या फफूंदनाशक का प्रयोग करें|

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