साइलेज बनाकर करें हरे चारे की कमी को पूरा

By: MeriKheti
Published on: 20-Jan-2020

हरे चारे के बगैर कितनी भी अच्छी खुराक देने के बाद भी दुधारू पशुओं की सारी जरूरतें पूरी नहीं होती। देश में हरे चारे की करीब 45 प्रतिशत कमी है। सफल पशुधन व्यवसाय के लिये हरे चारे की उपलब्धता नितांत आवश्यक है। प्रायः उत्तर भारत में बरसात के पूर्व मई—जून में तथा बरसात के बाद अक्टूबर-नवम्बर में हरे चारे की उपलब्धता में बहुत कमी होती  है । इस कमी को साइलेज बनाकर पूरा किया जा सकता है।

   

  सामान्यतः उत्तर भारत के विभिन्न स्थानो पर मानसून के समय (जुलाई से सितम्बर) माह में आवश्यकता से अधिक हरा चारा उपलब्ध्ध रहता है। यदि इस चारे को साइलेज के रुप में संरक्षित कर लिया जाये तो अभाव के दिनों मे पशओं को समुचित पौष्टिक चारा मिल सकता है। साइलेज पौष्टिक तथा सुपाच्य होता है। साइलेज को आम भाषा में “हरे चारे का आचार” भी कहते हैं।

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 साइलेज में 80-90 प्रतिशत तक हरे चारे के बराबर पोषक तत्व संरक्षित रहते है। हरे चारे को प्रतिदन काट कर खिलाने की अपेक्षा साइलेज खिलाना अधिक किफायती होता है। साइलेज के निर्माण में जैविक अम्ल बनते हैं, जिससे उसकी पाचन क्षमता बढ़ती है। 

साइलेज बनाने की पद्धति-

  1. साइलेज बनाने के लिये दाना चारा फसलें जिसमें विलेय शर्करा की मात्रा अधिक हो उसे उपयुक्त माना जाता है। मोटे तने व चैड़े पत्तों वाले पौधों जैसे मक्का, ज्वार, जई, बाजरा आदि साइलेज बनाने के लिये उत्तम फसलें हैं। दलहनी फसलों का साइलेज अच्छा नहीं रहता है क्योंकि उनमें शर्करा की अपेक्षा प्रोटीन अधिक होता है।दलहनी फसलों को दाने वाली फसलों के साथ (1: 3) के अनुपात में मिलाकर साइलेज बनाया जा सकता है।
  2. साइलेज बनाने के लिये फसलों की कटाई की अवस्था का विशेष महत्व होता है। दाने वाली फसलें जैसे मक्का, ज्वार, जई, बाजरा आदि की साइलेज बनाने के लिये जब दाने दूधिया आवस्था में हों तो काटना चाहिये। साइलेज बनाने के लिये चारे में 65-70 प्रतिशत पानी रहना चाहिये। यदि पानी की मात्रा अधिक होती है तो चारे को 5-6 घण्टे के लिये सुखा लेना चाहिये।
  3. साइलेज के लिये साइलो का चयन करने के लिये कुछ बातों को ध्यान में रखाना चाहिये जैसे - पशुपालक के पास कितने पशु हैं, कितने दिनों तक साइलेज खिलाना है तथा पर्याप्त मात्रा में हरे चारे की उपलब्धता है या नहीं।
उदाहरणार्थः एक पशुपालक के पास 4 दुधारु पशु हैं तथा उसे साइलेज 4 माह के लिये खिलाना है-

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प्रतिदिन प्रति पशु साइलेज की खिलाई - 20 कि0 ग्रा0/पशु, इसलिये 4 पशु के लिये प्रतिदिन- 80 किग्रा साइलेज, 4 माह हेतु-80×120=9600 कि0 ग्राम चाहिए। इसका मतलब 4 पशुओं के लिये 120 दिन के लिये 9600 कि0 ग्रा0 हरा चारे की जरुरत होगी । एक घन फुट गड्ढ़े/बंकर में लगभग 14-16 कि0 ग्रा0 हरा चारा, इसलिये 9600 कि0 ग्रा0 हरे चारे हेतु 600 घन फुट गड्डे/बंकर= 20 फुट लम्बा×6फुट चैड़ा × 5 फुट ऊंचाई। बडे़ पशुपालकों को गड्ढ़ो/बंकरो में साइलेज बनाना चाहिये तथा छोटे/मझले पशुपालकों को बैग/थैले/कन्टेनर या छोटे गड्ढ़ो में साइलेज बनाना चाहिये।

  1. चारे के कुट्टी करने हेतु चारा काटने की मशीन से चारे को 2-4 से0 मी0 के छोटे टुकड़ो में काट लिया जाता है। ऐसा करने से चारे का भण्डारण कम स्थान में हो जाता है तथा छोटे टुकड़ों में काटने से किण्वन के लिये जीवाणुओं को अधिक क्षेत्रफल मिलता है।
  2. साइलेज हेतु गड्ढ़े बनाने के लिय उपयुक्त स्थान का चयन करना चाहिये। ऐसे स्थानों में जल भराव की स्थिति नहीं होनी चाहिये। गड्ढ़े हमेशा ऊंचे स्थान पर बनने चाहिये जहां वर्षा के पानी का निकास अच्छी तरह हो सकता हो तथा यह स्थान पशुशाला के पास होना चाहिये, जिससे सुगमता से पशुओं को साइलेज खिलाया जा सके।
  3. गड्ढ़ो की भराई करने के लिये चारे की कटी हुयी फसल को परत दर परत बिछाकर अच्छी तरह से दबाया जाता है। जिससे उसके बीच की सारी हवा बाहर निकाली जा सके। यदि साइलेज बड़े गड्ढ़े में बनाना है तो उसमें चारा भरकर ट्रैक्टर से दबाना चाहिये। छोटे गड्ढ़ो को आदमी पैरों से भी दबा सकते हैं। गड्ढ़ो में भराई जमीन से लगभग 1 मी0 ऊंची करनी चाहिये और फिर उसे पोलिथीन से भली भांति ढ़कना चाहिये। उसके ऊपर सूखी घास या गीली मिट्टी से अच्छी तरह से लिपाई कर दें, जिससे पानी और वायु अन्दर न जा सके।
  4. गड्ढ़े भरने के 60 दिन बाद गडढ़ों को खोलना चाहिये। साइलेज को गड्ढ़ों से एक तरफ से परतों में निकालना चाहिये। शेष भाग को ढ़क कर रखना चाहिये।
  5. गड्ढों को खोलने के बाद साइलेज को जितना जल्दी हो सके पशुओं को खिला देना चाहिये। साइलेज के ऊपरी भाग तथा दीवारों के पास कुछ फंफूद लग जाती है। ऐसे फंफूदयुक्त साइलेज को अलग कर देना चाहिये तथा उसे पशुओं को नही खिलना चाहिये।
  6. सही प्रकार से तैयार किये गये उच्चगुणवत्ता वाले साइलेज का रंग पीला होता है। इसका पी0एच0 लगभग 4 होता है तथा इसमें लैक्टिक अम्ल की मात्रा 4-6 प्रतिशत तक होती है। एसिटिक अम्ल की मात्रा अधिक होने पर उसमें सिरके जैसी महक आती है। ऐसे साइलेज का स्वाद खट्टा होता है।
  7. सामान्यतः एक वयस्क पशु को लगभग 20-25 कि0 ग्रा0 साइलेेज प्रतिदिन खिलाया जा सकता है। यह सभी प्रकार के पशुओं को खिलाया जा सकता है। आरम्भ में कम मात्रा में या सूखे चारे में मिलाकर साइलेज खिलाना चाहिये। धीरे-धीरे इसके स्वाद की आदत लगने पर पशु सामान्य मात्रा में इसे चाव से ग्रहण करने लगते हैं।

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