दिवाली से पहले सस्ता होगा खाने का तेल : आम जनता के लिए राहत, तो किसानों की बढ़ने वाली हैं मुश्किलें

By: MeriKheti
Published on: 12-Sep-2022

फेस्टिवल सीजन के समय आम जनता को महंगाई से अगर थोड़ी राहत मिले तो इससे ज्यादा खुशी की बात क्या हो सकती है। आम जनता पेट्रोल डीजल और गैस सिलेंडर के बढ़ते रेट्स के कारण काफ़ी परेशान है, लेकिन इस बार फेस्टिवल सीजन के दौरान, यानी दिवाली से पहले महंगाई के मोर्चे पर आम लोगों को बड़ी राहत मिल सकती है। उम्मीद की जा रही है की दिवाली से पहले खाने के तेलों के दाम सस्ते हो सकते हैं जिससे आम जनता को थोड़ी राहत मिल सकती है।

खाने के तेलों के दाम घटने का मुख्य कारण

अंतर्राष्ट्रीय बजारों में खाने के तेल के दामों में भारी गिरावट हुई है, जिसके कारण अंतर्राष्ट्रीय बजारों से तेल की खरीदारी तेजी से हो रही है। अंतरराष्ट्रीय बजारों में खाने के तेल के दामों में लगभग 40 फीसदी तक की कमी आई है, जिसके कारण ज्यादा मात्रा में तेल का आयात किया जा रहा है। मौजूदा समय कि बात करें तो खाने के तेलों का आयात 11 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। अगस्त के महीने में तो जुलाई के मुकाबले 94% अधिक आयात हुआ है, जिससे भारतीय बजारों में खाने के तेलों का पर्याप्त स्टॉक है। फेस्टिवल सीजन के दौरान आमलोगों के घरों में खाने के तेलों की खपत ज्यादा होती है। इसको मद्देनजर रखते हुए आयातकों ने अधिक मात्रा में तेल का आयात किया है। अंतर्राष्ट्रीय बजारों में खाने के तेलों के दाम में भारी गिरावट होने के कारण घरेलू बाजारों में भी रेट्स सस्ते होने की उम्मीद लगाई जा रही है। ये भी पढ़ें - देश की सभी मंडियों में एमएसपी से ऊपर बिक रही सरसों

भारत में इतनी है खाने के तेल की खपत

हर साल भारत लगभग 70 हजार करोड़ रुपये का खाने का तेल दुसरे देशों से खरीदता है जिसमें इंडोनेशिया, मलेशिया मुख्य रूप से शामिल हैं। भारत में खाने वाले तेलों की मांग और आपूर्ति में भारी अंतर दिखाई पड़ता है, कहें तो लगभग 55 से 60 फीसदी का गैप माना जाता है। मांग की बात करे तो भारत में लगभग खाद्य तेलों की मांग 250 लाख टन है और उत्पादन की बात करें तो केवल 110 से 112 लाख टन ही हैं। जाहिर है की मांग और आपूर्ति के बीच जो गैप है उसको खत्म करने के लिए भारत को भारी मात्रा में खाद्य तेल का आयत दूसरे देशों से करना पड़ता है। इसीलिए यहाँ खाने के तेलों के दाम में गिरावट या बढ़ोतरी आयत से ज्यादा प्रभावित होता है।

किसानों की बढ़ सकती है मुश्किलें

अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ तेल के कीमतों में गिरावट पर चिंता जताते हुए कहता है की भारत सरकार ने जिस तरह से आयत शुल्क में कमी के आदेश को बढ़ा दिया है, उससे किसानों को भारी मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि आयत शुल्क में कमी के कारण, आने वाले समय में भी व्यापक पैमाने पर आयात होता रहेगा और इससे आयत पर निर्भरता बढ़ती जाएगी, जिससे भारतीय किसानो के लिए ऑयलसीड्स का उत्पादन का कोई फायदा नहीं मिलेगा, जो की भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी सही नही है। किसान अगर आयलसीड्स का उत्पादन करते हैं, तो आयात के लगातार बढ़ने से प्रभावित हुए तेल के दामों में गिरावट के कारण, उन्हें बजारों में उनके फसल का उचित मूल्य प्राप्त नहीं होगा। इस कारण भारतीय किसानों को घाटे का सौदा करना पड़ेगा, जो की काफ़ी नुकसानदायक होगा, इसीलिए सरकार को आयात शुल्क के बारे में लिए गए निर्णय पर फिर से संज्ञान लेना चाहिए। ये भी पढ़ें - तिलहनी फसलों से होगी अच्छी आय दूसरी तरफ बड़ी खाद्य तेल कंपनियां जैसे फॉर्च्यून और धारा ब्रांड पिछले दिनों सरकार के सख्ती और दबाव के कारण खाने के तेलों के MRP में कटौती भी कर चुकी हैं, जिससे पिछले दिनों तेल की कीमतों में गिरावट देखने को मिली थी। लेकिन ज्यादातर कंपनियों का यह कहना है की सरकार को खाने वाले तेलों पर सब्सिडी देना चाहिए, जिससे MRP में कटौती के बिना भी कमजोर वर्ग के लोगों को सपोर्ट मिल पायेगा और किसानों के ऊपर खाद्य तेलों के दाम में गिरावट होने का असर भी नही होगा और वह अपने उत्पादनों को घरेलू बजारों में किफायती दर पर बेच पाने में सक्षम होंगे।

कम से कम हो आयात तभी भारत खाद्य तेलों के मामले में बन सकता है आत्मनिर्भर

90 के दशक में आज की तरह हालात नही थे, उस समय भारत खाद्य तेलों के मामले में वास्तव में आत्मनिर्भर था। आज की तरह उस वक़्त भारत अपनी खपत का 60% तेल का आयात नहीं करता था। उस वक़्त नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड के ‘धारा’ ब्रांड सरसों के तेल की मार्केट में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी थी। लेकिन उसी उसी दौरान अचानक से ड्रॉप्सी (epidemic dropsy) के केसों में बढ़ोतरी होने के बाद सरसों के तेल की छवि खराब होने लगी और विकल्प के तौर पर पाम आयल की मांग बाजारों में बढने लगी। ये भी पढ़ें : आयात पर निर्भरता घटाएं वैज्ञानिक:कृषि मंत्री लेकिन पाम आयल का उत्पादन भारत में खपत के अनुसार नही होने के कारण दुसरे देशों से आयात करना शुरू कर दिया गया। आपको यह जानकर हैरानी होगी पाम आयल को बनाने की लागत को कम करने के लिए इसे बनाने वाली कंपनियां लगभग हर तरह के खाद्य तेल में इसकी मिक्सिंग करती हैं और कम लागत में इसे भारी मात्रा में तैयार किया जाता है और इस कारण से इसका आयात भी खूब होता है। सरकार को चाहिए कि कंपनियों को यह आदेश दे की खाद्य तेल बनाने वाली कम्पनी, पैकेट पर यह स्पष्ट रूप से लिखे कि इस तेल में पाम ऑयल कितना प्रतिशत है, जिससे ग्राहक को शुद्धता के बारे में स्पष्ट रूप से पता चल जाए और दूसरी ओर सरकार को सरसों के तेल के उत्पादन को लेकर विचार करना चाहिए। अगर भारत तेल के मामलों में आत्मनिर्भर नहीं बनता है तो आने वाले दिनों में एक तरफ लोग सरसों तेल के नाम पर पाम आयल खा कर बीमार पड़ते जायेंगे, वहीं बढ़ते आयात के कारण दूसरी तरफ किसान आयलसीड्स का फसल उगाना भी बंद कर देंगे। ये भी पढ़ें : अपने दुधारू पशुओं को पिलाएं सरसों का तेल, रहेंगे स्वस्थ व बढ़ेगी दूध देने की मात्रा जिससे आनेवाले समय में भारी नुक्सान होने की संभवाना बनेगी और भारत पूर्ण रूप से सिर्फ और सर्फ आयत पर निर्भर रहेगा और भारतीय बाजारों में विदेश से आये हुए तेलों की बोलबाला बना रहेगा, इससे आने वाले समय में भारत की कमर अर्थव्यस्था के मामले में टूट सकती है। इस पर सरकार को किसानों के साथ मिलकर कार्य करना होगा तभी जाकर और उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए पहल करनी होगी। तभी जाकर इन समस्याओं से छुटकारा मिलने की उम्मीद की जा सकती है।

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