तिलहनी फसलों से होगी अच्छी आय

By: MeriKheti
Published on: 28-Jun-2021

सूरजमुखी, सोयाबीन, मूंगफली, तिल और अरंडी खरीफ की मुख्य फसलें हैं। मध्य जून से जुलाई के अंत तक इन्हें लगाया जा सकता है। भारत में खाद्य तेलों की कमी के चलते इन सभी तिलहनी फसलों की कीमतें अच्छी रहने का अनुमान है। किसान उपजाऊ जमीन पर्याप्त नमी एवं उचित तकनीकों का प्रयोग कर इनकी अच्छी पैदावार भी ले सकते हैं और मुनाफा पा सकते हैं। खाद्य तेल की कमी भारत में ही नहीं समूचे विश्व में व्याप्त है। देश में लगाई जाने वाली तिलहनी फसलों में उक्त पांच प्रमुख है जिन से 70% तिलहन प्राप्त होता है। इनमें से अरंडी से प्राप्त तेल औषधियों के काम में आता है। तिलहनी फसलों में सोयाबीन एक उभरती हुई फसल है। सूरजमुखी का क्षेत्रफल भी संतोषजनक है लेकिन तिल और मूंगफली की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है।

खरीफ तिलहन की बीज दर एवं बुवाई का समय

सूरजमुखी

  • 10 से 12 केजी सामान्य और 8 से 10 केजी शंकर किस्म।
  • जुलाई के अंत से अगस्त के प्रथम सप्ताह तक इसकी बिजाई की जा सकती है।
  • बुवाई मशीन से लाइन में 50 × 25 सेंटीमीटर की दूरी पर बुवाई करें।



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सोयाबीन

  • 70 से 75 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर।
  • इसकी बाबई 25 जून से 15 जुलाई के मध्य तक की जा सकती है।
  • मोबाइल मशीन से 45 × 5 सेंटीमीटर की दूरी पर बीज डालें।



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मूंगफली

  • गुच्छे दार कृष्ण चौकी जी एवं फैलने वाली 80kg प्रति हेक्टेयर बीज चाहिए।
  • इसकी बिजाई जुलाई के प्रथम पखवाड़े में की जा सकती है।
  • दुबई मशीन द्वारा 30 × 10 सेंटीमीटर की दूरी पर बुवाई करें।

तिल

  • 3 से 4 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर चाहिए।
  • जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक बुवाई की जा सकती है।
  • सीड ड्रिल द्वारा 30 ×10 सेंटीमीटर की दूरी पर बुराई करें।



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अरंडी

  • 12 से 15 किलोग्राम बीज 20 प्रति हेक्टेयर चाहिए होता है।
  • अरंडी की बुवाई के लिए जुलाई का प्रथम पखवाड़ा उपयुक्त होता है।
  • अरंडी की संकर किस्म 75 × 75 सेंटीमीटर पर एवं संकुल किस्म 60 ×60 सेंटीमीटर पर लगानी चाहिए।

तिलहनी फसलों में उर्वरक प्रबंधन

1-सोयाबीन में 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 30 किलोग्राम पोटाश, एवं 30 किलोग्राम सल्फर का प्रयोग करना चाहिए। 2-मूंगफली में 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस ,40 किलोग्राम पोटाश एवं 30 किलोग्राम सल्फर का प्रयोग करना चाहिए। 3-सूरजमुखी में 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश से 30 किलोग्राम सल्फर प्रयोग करें। 4-अरंडी में 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 30 किलोग्राम पोटाश से 30 किलोग्राम सल्फर डालें। 5-तिल में 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 30 किलोग्राम पोटाश से  वह 30 किलोग्राम सल्फर का प्रयोग करें।

खरीफ तिलहन में सिंचाई का समय

मूंगफली-सूइयां निकलने पर 40 से 45 दिन बाद, फलियां बनने पर 65 से 70 दिन एवं फलियों में दाना बनते समय 85 से 90 दिन की अवस्था पर यदि बरसात न हुई हो तो सिंचाई करें। सोयाबीन-फूल आने पर 50 से 60 दिन बद एवं फलियों में दाना बनते समय 60 से 70 दिन की अवस्था पर सिंचाई का ध्यान रखें। तिल में पानी लगाने का समय 25 से 30 दिन, फूल बनते समय 45 से 50 दिन एवं कैप्सूल भरते समय 60 से 70 दिन की अवस्था पर सिंचाई करें। सूरजमुखी में कली बनने के समय 35 से 40 दिन, फूल खिलने के समय 55 से 60 दिन एवं बीज भरते समय 70 से 75 दिन की अवस्था भर पानी लगाना चाहिए। अरंडी में फूल आने पर 55 से 60 दिन एवं कैप्सूल भरते समय 75 से 80 दिन की अवस्था पर यदि बरसात ना आई हो तो सिंचाई करें।

खरीफ तिलहन में खरपतवार नियंत्रण

सोयाबीन में खरपतवार नियंत्रण के लिए फ्लूक्लोरालीन 45 ईसी की एक किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से फसल बुवाई से पहले मिट्टी की सतह पर अच्छी तरह से डालें। पेंडामैथालिन 30 ईसी कि 1 किलोग्राम मथुरा सक्रिय चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार ओं को नष्ट करने के लिए फसल में खरपतवार के अंकुरण से पूर्व प्रयोग करें। फसल बुवाई के 36 घंटे के अंदर इसका पर्याप्त पानी में खेत पर छिड़काव किया जाता है। मूंगफली-सोयाबीन में प्रयोग होने वाली उक्त दोनों दवाओं का प्रयोग इसमें भी किया जा सकता है। सूरजमुखी-फ्लूक्लोरोनिल 45 इसी की एक किलोग्राम मात्रा फसल मोबाइल से पहले मिट्टी की सतह में मिला दें। इसके अलावा एलोक्लोर 50 इसी की 1 से 2 लीटर मात्रा फसल बुबाई के बाद एवं अंकुरण से पूर्व खेत में छिड़क दें। तिल- में एलाक्लोर की 1 से 2 लीटर मात्रा अंकुरण से पूर्व खेत में छिड़कें।

तिलहनी फसलों की उन्नत किस्में

सोयाबीन

पूसा 24, एमएसीएस 1407 पूर्वोत्तर, 1025, जेएस 2069, 2034, 2029, जेएस 93-05, पीके 416, पंत 564, एनआरसी 37, एसएल 525, पंजाब एक, पूसा 16, पीके 1042, डीएस 9712, पूसा 9814, पूसा 9712 आदि किस्में उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हैं। जे एस 97 - 52, जेएस 95-60, जेएस 335, एनआरसी 27,  12, 37, इंदिरा सोया 9, पूसा 22, पूसा 16, पूसा 37, गुजरात सोया 1,2, दुर्गा एवं प्रताप सोया आदि मध्य एवं पश्चिम भारत के लिए उपयुक्त हैं।

सूरजमुखी

सीएचएस 1, के बीएस एच 1, एम एस, एफ एच 8, आर एस एच 3, पीएसी 1091, हरियाणा सूरजमुखी 1, एलडीएम, एम एस एफ एच 17, पारस, दिव्या मुखी, अरुण, एन एस एफ ए 36, मोडर्न एन डी एस एच 1, पीएसी 36, बीएसएच 44, पीसीएस एच 234, डीके 3849 आदि किस्में उपयुक्त हैं।

तिल

स्वेता, टीकेएस 65, प्राची, जीटी 10, वीआर आईएस, वी 1, पीएस एस 6, आरटी 127, 346,351,46,125, टीसी 25, गुजरात तिल 2-3, राजस्थान तिल 46, टीकेमजी  55, 22, हरियाणा तिल 1, ग्वालियर 5, गुजरात तिल 10,टाइप 13 उन्नत किस्में हैं।

मूंगफली

आईसीसीएच 37, पीजी 22, टीजी 26, गिरनार, सोमनाथ,आईजीसीएस 44,  वीआर आई 2, चित्रा, आर एसबी 87, जेएल 24, एसजी 24, पंजाब मूंगफली 1, मुक्ता, चित्रा, जवाहर, वीएयू 13, गंगापुरी, एम ए 10, टीजी 37 ए, ज्योति, जी 201 आदि उन्नत किस्में हैं।

अरंडी

जीबीएच 2,4, 5, 32, 519, आर एचसी 1, वीआई 9, एसकेआई73, ज्योति,किरन, हरीता, डीसीएच32, 177,519, जीसीएच4, पीसीएस 124, पीसीएस 4,ज्योति, क्रान्ति,किरन, ज्वाला, एस ए 2 आदि किस्में उपयुक्त हैं।

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