गर्मियों में ऐसे करें पेठा की खेती, जल्द ही हो जाएंगे मालामाल

गर्मियों में ऐसे करें पेठा की खेती, जल्द ही हो जाएंगे मालामाल

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पेठा को भारत में सफेद कद्दू या धुंधला ख़रबूज़ा भी कहा जाता है। यह शुरुआती दौर में दक्षिण-पूर्व एशिया में उगाया जाता था, बाद में इसे भारत में उगाया जाने लगा। इसका प्रयोग सब्जी बनाने में किया जाता है। इसके साथ ही इससे कई तरह की मिठाइयां भी बनाई जाती हैं। इसमें शुगर की मात्रा बेहद कम होती है, इसलिए इसे मरीजों के लिए एक अच्छा आहार माना जाता है। यह चर्बी, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और रेशे से भरपूर होता है। इसलिए इसे दवाई बनाने में भी प्रयोग किया जाता है। साथ ही इसका प्रयोग कब्ज़ और एसिडिटी के उपचार में भी किया जाता है। पेठा एक ऐसी फसल है जो बहुत कम लागत में अच्छा खास मुनाफा दे सकती है। इसलिए भारत के किसान पेठा की खेती करना पसंद करते हैं।

इन राज्यों में की जाती है पेठा की खेती

भारत में पेठा की खेती वैसे तो पूरे देश में की जाती है। लेकिन उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार में इस खेती की प्रचलन ज्यादा है। भारत में सबसे ज्यादा पेठा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उगाया जाता है। जहां इसका प्रयोग ज्यादातर मिठाई बनाने में किया जाता है।

पेठा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु एवं तापमान

उष्णकटिबंधीय जलवायु में पेठा की खेती के अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं। इसकी खेती ज्यादातर गर्मियों और बरसात में की जाती है। पेठा की खेती सर्दियों के मौसम में संभव नहीं है, क्योंकि सर्दियों के मौसम में इसके पेड़ अच्छे से विकसित नहीं हो पाते। जिसके कारण खर्च अधिक आता है और पैदावार अपेक्षा के अनुरूप नहीं होती है।

पेठा के खेती के लिए 30 से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान जरूरी होता है। इससे ज्यादा तापमान पेठा की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होता। पेठा के बीज 15 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर आसानी से अंकुरित हो जाते हैं।

पेठा की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

पेठा की खेती किसी भी मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन यदि किसान भाइयों के पास दोमट मिट्टी के खेत हैं तो इसकी पैदावार ज्यादा हो सकती है। पेठा के लिए जमीन का चुनाव करते वक्त ध्यान रखें कि खेत में पानी की उचित निकासी की व्यवस्था हो। खेत में पानी भरने की स्थिति में पौधे पानी में डूबकर नष्ट हो जाएंगे।

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पेठा की प्रसिद्ध किस्में

सी. ओ. 1 :

यह किसानों द्वारा पसंद की जाने वाली उत्तम किस्म है। इसकी फसल 120 दिन में तैयार हो जाती है। इस किस्म के फल का वजन 7 से 10 किलो तक हो सकता है। अगर पैदावार की बात करें यह किस्म एक हेक्टेयर खेत में 300 क्विंटल तक का उत्पादन दे सकती है।

कोयम्बटूर :

पेठा की इस किस्म के फलों का उपयोग सब्जी बनाने के साथ मिठाई बनाने में भी किया जाता है। इस किस्म के फल का औसत वजन 8 किलो के आस पास होता है। इस किस्म की खेती करने पर किसान 250 से 300 क्विंटल तक का उत्पादन ले सकते हैं।

काशी धवल :

पेठा की यह किस्म भी बुवाई एक 120 दिन के भीतर तैयार हो जाती है। इस किस्म के फल का वजन लगभग 5 किलो होता है। यह किस्म भी प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 250 से 300 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |

अर्को चन्दन :

यह किस्म बुवाई के 130 दिनों के बाद तैयार होती है। इसके फलों का उपयोग सब्जी बनाने के लिए किया जाता है। इससे भी किसान एक हेक्टेयर खेत में 350 क्विंटल का उत्पादन ले सकते हैं ।

काशी उज्ज्वल :

पेठा की यह किस्म 110 से 120 दिनों में आसानी से तैयार हो जाती है। इसके फल बेहद बड़े होते हैं। इनका वजन 12 से 13 किलो तक हो सकता है। यह किस्म एक हेक्टेयर खेत में 600 क्विंटल तक का उत्पादन दे सकती है।

इनके अलावा भी पेठा की बहुत सारी किस्में बाजार में उपलब्ध हैं जो अलग-अलग जलवायु के हिसाब से उपयुक्त होती हैं।

पेठा की फसल एक लिए खेत की तैयारी

सबसे पहले 1 से 2 बार खेत की गहरी जुताई करें, जिससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाएं।  जुताई के दौरान खेत में सड़ी गोबर की खाद अवश्य डालें। इसके बाद खेत में सिंचाई करें। खेत का पानी सूखने के बाद एक बार फिर से खेत की जुताई करें। जुताई के बाद खेत को खुली धूप में 15 दिनों  के लिए छोड़ दें। इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाएगी। इसके बाद खेत में मिट्टी के बेड तैयार कर लें। प्रत्येक बेड के बीच 3 से 4 मीटर की दूरी होनी चाहिए।

पेठा के बीजों की रोपाई

पेठा के बीजों की रोपाई गर्मियों और बरसात में करनी चाहिए। रोपाई के पहले बीजों को थीरम या कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर लें। पेठा की बुवाई के लिए एक हेक्टेयर खेत में 8 किलो बीजों की जरूरत होती है। रोपाई करते वक्त ध्यान रखें कि बीज से बीज की दूरी डेढ़ फुट होना चाहिए, जबकि गहराई 2 से 3 सेंटीमीटर होनी चाहिए। पहाड़ी क्षेत्रों में पेठा की रोपाई अप्रैल के बाद की जाती है।

पेठा की सिंचाई

वैसे तो पेठा के पौधों को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। लेकिन फिर भी तेज गर्मियों के मौसम में सप्ताह में दो बार सिंचाई अवश्य करें। इससे पौधों का विकास तेजी से होगा। अगर पेठा की फसल बरसात में लगाई गई तो सिंचाई न करें।

खरपतवार नियंत्रण

पेठा की फसल के साथ खरपतवार तेजी से खेत में फैलता है। इसलिए इसे नियंत्रित करना बेहद जरूरी है। खरपतवार नियंत्रित न कर पाने की स्थिति में फसल को हानि पहुंचेगी। इसके नियंत्रण के लिए बीजों की रोपाई के 20 से 25 दिन बाद निराई गुड़ाई करें। इसक बाद हर 15 दिन में निराई गुड़ाई करते रहें।

फसल में लगने वाले कीट

इस फसल में कीटों का हमला होता है, जिससे फसल को सुरक्षित करना बेहद जरूरी होता है। नहीं तो फसल का उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित होगा। पेठा की खेती में आमतौर पर लाल कद्‌द भृंग, सफेद मक्खी, चेपा, फल मक्खी और चूर्णिल आसिता कीटों का हमला होता है। जिनसे निपटने के लिए फेनवेलिरेट, क्लोरपाइरीफोस, सायपरमेथ्रिन, इमिडाक्लोप्रिड और एन्डोसल्फान का छिड़काव किया जा सकता है।

फसल की तुड़ाई

पेठा के फल को पकने के ठीक पहले तोड़ लेना चाहिए। इसके बाद इसे गाड़ी में लोड करके मंडी भेज दें। यह फल आमतौर पर जल्दी खराब नहीं होता है, इसलिए इसे वातानुकूलित वाहन में रखने की जरूरत नहीं होती है। इस फल से बहुत सारी चीजें बनाई जाती हैं, इसलिए किसान भाइयों को इस फल का अच्छा खासा भाव मिलता है।

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